36 घंटे और मैने रूपकुंड का पूरा ट्रैक कर लिया था । कल सुबह 6 बजे चलकर मै पातर नौचानियां में रूका और आज सुबह पातर नौचानियां से रूपकुंड और वापिस । इस तरह से मैने कुंवर सिंह को जिसे रोज के 500 रू में तय किया था उसमें भी 500 रू की बचत हो गयी थी ।
रास्ते में ये भारी भरकम पेड गिरा पडा था जिसे जाट देवता ने जब कोई और रास्ता नही दिखा तो अपने पराक्रम से उठाया और एक तरफ फेंक दिया तब जाकर कहीं रास्ता चलने लायक हुआ वाकई सुपरमैन है जाट देवता
वाण तक जाने का रास्ता हमने दो घंटे में ही तय कर लिया । जाते समय तो बडी मुश्किल से चढा जा रहा था पर आते समय तो जितने भी शार्टकट हो सकते थे वो सब किये गये । जिन रास्तो पर चढने में आधा घंटा लगा था क्योंकि वे मोडदार घुमाव होने के कारण लम्बे रास्ते थे उन पर मिनटो में नीचे उतरते चले गये
वैसे मन तो जाने के समय भी कर रहा था कि शार्टकट पकडूं और जल्दी से रास्ता तय करूं पर वो गलत होता । ये मेरा अनुभव है कि चढने में लम्बा रास्ता इसलिये सही होता है क्योकि उस पर थकान कम होती है पर उतरने में केवल घुटनो को रोकने में जोर पडता है बाकी थकान तो बिलकुल नही होती । इसलिये 18 किलोमीटर का सफर करीब साढे तीन घंटे में हमने बेदिनी बुग्याल से कर लिया था
बेदिनी को भी एक बार जाना पडता पर हमने उसका भी शार्टकट मारा और सीधे पाताल गैरोली की तरफ को उतर लिये । इस बार थकान नही थी तो रास्ते में फोटो खींचने की भी ललक ज्यादा नही थी क्योंकि हम इसी रास्ते को होकर गये थे और खूब फोटो खींचे थे ।
रास्ते मे एक जगह केवल नीलगंगा के उपर थोडा सा आराम किया । वैसे मै जाट और कुंवर सिंह से उतरने में भी काफी पीछे था और इस शांत जंगल में जो कि काफी घना भी था दिखायी ना देने पर भी आवाज से ही काम चल जाता
था । इस जंगल में तो जानवर भी कोई दिखायी नही देते थे
एक बार फिर से नीलगंगा पार की और रनकाधार पार करते ही तो सामने वाण गांव दिखायी देने लगा था
सबसे पहले मन कर रहा था कि किसी तरह फोन चार्ज करके घर पर फोन करूं और बस सो जाउं ।
36 घंटे और मैने रूपकुंड का पूरा ट्रैक कर लिया था । कल सुबह 6 बजे चलकर मै पातर नौचानियां में रूका और आज सुबह पातर नौचानियां से रूपकुंड और वापिस ।
इस तरह से मैने कुंवर सिंह को जिसे रोज के 500 रू में तय किया था उसमें भी 500 रू की बचत हो गयी थी ।
जाट देवता ने तो शायद रिकार्ड ही ना बना दिया हो । अगला तो कल शाम 4 बजे चला था और आज शाम 6 बजे वाण गांव में वापिस लगभग 26 घंटे में । और थकान का नामोनिशान तक नही था उसके चेहरे पर । कमाल की फिटनेस है भाई सलाम है
मेरी हालत उसके जैसी नही थी क्योंकि एक तो रात को सो नही पाया था ठीक से और कल दोपहर से खाना भी नही खाया था । रात को मैगी खायी तो उल्टी हो गयी थी और आज दोपहर फिर मैगी । वैसे खाने के अलावा बहुत सारा सामान गटक गये थे । कई पैकेट बिस्कुट , कुरकुरे , नमकीन , चाकलेट और टाफियो के साथ साथ लिक्विड भी
तो फिर कल मिलते हैं वाण गांव में जो कि ऐतिहासिक जगह है और वहां पर हमारा इंतजार एक सरप्राइज कर रहा था
वाण तक जाने का रास्ता हमने दो घंटे में ही तय कर लिया । जाते समय तो बडी मुश्किल से चढा जा रहा था पर आते समय तो जितने भी शार्टकट हो सकते थे वो सब किये गये । जिन रास्तो पर चढने में आधा घंटा लगा था क्योंकि वे मोडदार घुमाव होने के कारण लम्बे रास्ते थे उन पर मिनटो में नीचे उतरते चले गये
वैसे मन तो जाने के समय भी कर रहा था कि शार्टकट पकडूं और जल्दी से रास्ता तय करूं पर वो गलत होता । ये मेरा अनुभव है कि चढने में लम्बा रास्ता इसलिये सही होता है क्योकि उस पर थकान कम होती है पर उतरने में केवल घुटनो को रोकने में जोर पडता है बाकी थकान तो बिलकुल नही होती । इसलिये 18 किलोमीटर का सफर करीब साढे तीन घंटे में हमने बेदिनी बुग्याल से कर लिया था
बेदिनी को भी एक बार जाना पडता पर हमने उसका भी शार्टकट मारा और सीधे पाताल गैरोली की तरफ को उतर लिये । इस बार थकान नही थी तो रास्ते में फोटो खींचने की भी ललक ज्यादा नही थी क्योंकि हम इसी रास्ते को होकर गये थे और खूब फोटो खींचे थे ।
रास्ते मे एक जगह केवल नीलगंगा के उपर थोडा सा आराम किया । वैसे मै जाट और कुंवर सिंह से उतरने में भी काफी पीछे था और इस शांत जंगल में जो कि काफी घना भी था दिखायी ना देने पर भी आवाज से ही काम चल जाता
था । इस जंगल में तो जानवर भी कोई दिखायी नही देते थे
एक बार फिर से नीलगंगा पार की और रनकाधार पार करते ही तो सामने वाण गांव दिखायी देने लगा था
सबसे पहले मन कर रहा था कि किसी तरह फोन चार्ज करके घर पर फोन करूं और बस सो जाउं ।
36 घंटे और मैने रूपकुंड का पूरा ट्रैक कर लिया था । कल सुबह 6 बजे चलकर मै पातर नौचानियां में रूका और आज सुबह पातर नौचानियां से रूपकुंड और वापिस ।
इस तरह से मैने कुंवर सिंह को जिसे रोज के 500 रू में तय किया था उसमें भी 500 रू की बचत हो गयी थी ।
जाट देवता ने तो शायद रिकार्ड ही ना बना दिया हो । अगला तो कल शाम 4 बजे चला था और आज शाम 6 बजे वाण गांव में वापिस लगभग 26 घंटे में । और थकान का नामोनिशान तक नही था उसके चेहरे पर । कमाल की फिटनेस है भाई सलाम है
मेरी हालत उसके जैसी नही थी क्योंकि एक तो रात को सो नही पाया था ठीक से और कल दोपहर से खाना भी नही खाया था । रात को मैगी खायी तो उल्टी हो गयी थी और आज दोपहर फिर मैगी । वैसे खाने के अलावा बहुत सारा सामान गटक गये थे । कई पैकेट बिस्कुट , कुरकुरे , नमकीन , चाकलेट और टाफियो के साथ साथ लिक्विड भी
तो फिर कल मिलते हैं वाण गांव में जो कि ऐतिहासिक जगह है और वहां पर हमारा इंतजार एक सरप्राइज कर रहा था
यादगार यात्रा और शानदार मार्ग, अब मजा आयेगा वाण की रात में जब धमाल होगा।
ReplyDeleteक्या कहने - किसी की नज़र न लग जाए'सुपरमैनता' पर !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया यात्रा वृतांत ||
ReplyDeleteआपकी यायावर प्रवृति को जान कर अच्छा लगा।
ReplyDeleteमैँ भी गुगल से घूमता घूमता यहाँ आ पहुचाँ।
धन्यवाद।
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