हमारी बाइके खडी थी वाण गांव में और अगर हम आली बुग्याल से दिदना और कुलिंग के रास्ते वापस जाते तो हमें कई किलोमीटर तक पैदल चलना पडता और इस समय तीन बज रहे थे जिसका मतलब था कि अगर हम शाम के छह बजे तक भी कुलिंग जाते तो अंधेरे में हमें वो रास्ता तय करना पडता इसलिये हम दोनो यानि मै और जाट देवता ने ये तय किया कि अपना सारा सामान कुंवर सिंह के पास छोडा
मैगी बनाकर खाना वो भी 12000 फुट की उंचाई पर एक अलग ही अनुभव था । मैगी खाकर मन तृप्त हो गया और आधा घंटा आराम भी हो गया था । इसके बाद हमारा अगला टारगेट था आली बुग्याल । आली बुग्याल से होकर दूसरे रास्ते से जाने का मन भी था पर इसमें एक दिक्कत थी
कि हमारी बाइके खडी थी वाण गांव में और अगर हम आली बुग्याल से दिदना और कुलिंग के रास्ते वापस जाते तो हमें कई किलोमीटर तक पैदल चलना पडता और इस समय तीन बज रहे थे जिसका मतलब था कि अगर हम शाम के छह बजे तक भी कुलिंग जाते तो अंधेरे में हमें वो रास्ता तय करना पडता इसलिये हम दोनो यानि मै और जाट देवता ने ये तय किया कि अपना सारा सामान कुंवर सिंह के पास छोडा , उसे मैगी बनाने के बाद बर्तन धोकर और सामान को दोबारा लगाना भी था इसलिये हमने उसे बोला कि तुम पाताल गैरोली में हमें मिलो हम आली बुग्याल जाकर वापिस आते हैं इसी रास्ते को ।
वैसे भी अब इन रास्तो पर चढाई तो चढनी नही थी केवल उतराई ही थी । बस आली बुग्याल तक जाने के रास्ते में थोडी सी चढाई थी । बेदिनी से आगे चलकर ही आली बुग्याल दिखाई देने लगता है वैसे तो ये ऐसी जगह है कि ये वाण और कुलिंग गांव से भी कुछ कुछ दिखायी देता है । आली बुग्याल जाने से पहले जब हम लोग मैगी खा रहे थे तो वे तीनो बुजुर्ग लोग हमें पार कर गये थे ।
आली बुग्याल जाकर ही हम उन्हे पकड पाये । आली बुग्याल में हमने घूमना उचित नही समझा । पूरा आली बुग्याल दिखायी दे रहा था । बेदिनी की तरह इस समय घास का रंग हरा ना होकर कुछ पीलापन ले चुका था जिसकी वजह से इतना सुंदर नही दिखायी दे रहा था पर फिर भी ये काफी विशालकाय मैदान था और सुंदर भी । हमने कुछ समय घास पर बैठकर आराम किया और फोटो लिये ।
उसके बाद तो जाट देवता ने वो दौड लगायी कि मुझे उन्हे पकडने में पसीने छूट गये पर उनकी इस दौड ने हमें बहुत जल्दी नीचे वाण गांव पहुंचा दिया
आप भी देखो आली बुग्याल को और इसके हर कोने को जी भरकर तब तक मै आपको आगे मिलता हूं
कि हमारी बाइके खडी थी वाण गांव में और अगर हम आली बुग्याल से दिदना और कुलिंग के रास्ते वापस जाते तो हमें कई किलोमीटर तक पैदल चलना पडता और इस समय तीन बज रहे थे जिसका मतलब था कि अगर हम शाम के छह बजे तक भी कुलिंग जाते तो अंधेरे में हमें वो रास्ता तय करना पडता इसलिये हम दोनो यानि मै और जाट देवता ने ये तय किया कि अपना सारा सामान कुंवर सिंह के पास छोडा , उसे मैगी बनाने के बाद बर्तन धोकर और सामान को दोबारा लगाना भी था इसलिये हमने उसे बोला कि तुम पाताल गैरोली में हमें मिलो हम आली बुग्याल जाकर वापिस आते हैं इसी रास्ते को ।
वैसे भी अब इन रास्तो पर चढाई तो चढनी नही थी केवल उतराई ही थी । बस आली बुग्याल तक जाने के रास्ते में थोडी सी चढाई थी । बेदिनी से आगे चलकर ही आली बुग्याल दिखाई देने लगता है वैसे तो ये ऐसी जगह है कि ये वाण और कुलिंग गांव से भी कुछ कुछ दिखायी देता है । आली बुग्याल जाने से पहले जब हम लोग मैगी खा रहे थे तो वे तीनो बुजुर्ग लोग हमें पार कर गये थे ।
आली बुग्याल जाकर ही हम उन्हे पकड पाये । आली बुग्याल में हमने घूमना उचित नही समझा । पूरा आली बुग्याल दिखायी दे रहा था । बेदिनी की तरह इस समय घास का रंग हरा ना होकर कुछ पीलापन ले चुका था जिसकी वजह से इतना सुंदर नही दिखायी दे रहा था पर फिर भी ये काफी विशालकाय मैदान था और सुंदर भी । हमने कुछ समय घास पर बैठकर आराम किया और फोटो लिये ।
उसके बाद तो जाट देवता ने वो दौड लगायी कि मुझे उन्हे पकडने में पसीने छूट गये पर उनकी इस दौड ने हमें बहुत जल्दी नीचे वाण गांव पहुंचा दिया
आप भी देखो आली बुग्याल को और इसके हर कोने को जी भरकर तब तक मै आपको आगे मिलता हूं
यहाँ जुलाई में जाना सबसे बेहतर रहेगा तब इसकी हरियाली पूरे रंग में होती है
ReplyDeleteJatram ji agar me gaya to isi mausam me hi jaunga kyonki mujhe or meri wife ko to sirf baraf hi baraf pasand hai
DeleteBlogVarta.com पहला हिंदी ब्लोग्गेर्स का मंच है जो ब्लॉग एग्रेगेटर के साथ साथ हिंदी कम्युनिटी वेबसाइट भी है! आज ही सदस्य बनें और अपना ब्लॉग जोड़ें!
ReplyDeleteधन्यवाद
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बहुत सुन्दर चित्रावली!
ReplyDeletebina gaye hi maine ghum liya ali bugyal, aabhar
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteआभार आपका -
कितनी सारी सुन्दर तस्वीरें!
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