से तो गांव में को भी जाने का रास्ता था पर वो हमें शार्टकट से ले गया । कच्ची पगडंडियो और झाडियो में से गुजरते हुए हम दोनो उसके पीछे चले जा रहे थे और साथ ही साथ कर रहे थे असली पहाड के दर्शन रास्ता बडा सुंदर था और कई बार हमने छोटे बडे झरनो को पार किया जो कि हल्का हल्का रोमांच मन में भर देते थे
रात का नवरात्र का कार्यक्रम देखकर मन प्रसन्न हो गया था । सुबह सवेरे उठे तो सबसे पहले जो होटल वाले बाबा थे उनसे चाय बनाने के लिये बोला । वैसे तो हम सुबह देर से उठने वाले थे पर यहां तो कुछ जल्दी ही सूरज निकल आया था सो आंख जल्दी ही खुल गयी । बाबा ने चाय भिजवाई कुंवर सिंह के हाथ ।
वही कुंवर सिंह जो दो दिन से हमारे साथ था और जिसने बहुत हंसते खेलते हमारा साथ निभाया । वो बंदा इतना दिलखुश और इतना बढिया कि दो दिन हमारे साथ रहने के बाद भी वो रात को पूरे कार्यक्रम में रहा और सुबह सवेरे उठकर आ गया । रात को वो गांव में कहीं सो गया था । वैसे यहां उसका घर नही था । उसका घर वाण गांव में ही था पर दो किलोमीटर उपर चढकर । पहले तो मैने उसे उसके दो दिन के 1000 रूपये दिये और बर्तन और स्टोव व स्लीपिंग बैग का किराया देकर उन्हे वापिस करने को कहा । कुंवर सिंह कुछ और ही ठानकर आया था बोला कि वो तो सब मै कर दूंगा पर आपको मेरे घर चलना पडेगा ।
कहां है तुम्हारा घर ?
यहीं है साब जी पास में
पास में कहां ?
वो पहाड दिख रहा है ना ,
हां
बस वहीं है
वहां , ना बाबा ना अभी तो कल की थकान भी नही उतरी है और तू फिर से चढा दे हमें पहाड पर
कोई नी साब जी आप भी याद रखोगे । मेरी भाभी ने खाना बनाया है तुम्हारे लिये और बुलाया है
मै और जाट देवता एक दूसरे की ओर को देखने लगे
क्या करें क्या ना करें ? वैसे तो हम काफी थके थे और आज बस वापिस चलने का इरादा था पर कुंवर सिंह इतना खूबसूरत दिल का इंसान था कि हम उसकी बात टाल नही सके । दोनो ने अपने अपने घर फोन किया । सैल चार्जिंग पर लगवाये कुंवर सिंह से कहकर पडौस में एक घर में जिसके पास सोलर प्लेट लगी थी । तब जाकर हम दोनो ने सोचा कि एक बार कुंवर सिंह के घर होकर तब वापस चलते हैं
बस यहीं सोचकर हम दोनो उसके पीछे पीछे उसके घर चल दिये । वैसे तो गांव में को भी जाने का रास्ता था पर वो हमें शार्टकट से ले गया । कच्ची पगडंडियो और झाडियो में से गुजरते हुए हम दोनो उसके पीछे चले जा रहे थे और साथ ही साथ कर रहे थे असली पहाड के दर्शन
रास्ता बडा सुंदर था और कई बार हमने छोटे बडे झरनो को पार किया जो कि हल्का हल्का रोमांच मन में भर देते थे
आप इन चित्रो के माध्यम से देखे कि कैसा रास्ता था तब तक हम दोनो कुंवर सिंह के घर पर दावत के लिये पहुंचते हैं कल मिलेंगें दावत पर जो कि स्पेशल है
वही कुंवर सिंह जो दो दिन से हमारे साथ था और जिसने बहुत हंसते खेलते हमारा साथ निभाया । वो बंदा इतना दिलखुश और इतना बढिया कि दो दिन हमारे साथ रहने के बाद भी वो रात को पूरे कार्यक्रम में रहा और सुबह सवेरे उठकर आ गया । रात को वो गांव में कहीं सो गया था । वैसे यहां उसका घर नही था । उसका घर वाण गांव में ही था पर दो किलोमीटर उपर चढकर । पहले तो मैने उसे उसके दो दिन के 1000 रूपये दिये और बर्तन और स्टोव व स्लीपिंग बैग का किराया देकर उन्हे वापिस करने को कहा । कुंवर सिंह कुछ और ही ठानकर आया था बोला कि वो तो सब मै कर दूंगा पर आपको मेरे घर चलना पडेगा ।
कहां है तुम्हारा घर ?
यहीं है साब जी पास में
पास में कहां ?
वो पहाड दिख रहा है ना ,
हां
बस वहीं है
वहां , ना बाबा ना अभी तो कल की थकान भी नही उतरी है और तू फिर से चढा दे हमें पहाड पर
कोई नी साब जी आप भी याद रखोगे । मेरी भाभी ने खाना बनाया है तुम्हारे लिये और बुलाया है
मै और जाट देवता एक दूसरे की ओर को देखने लगे
क्या करें क्या ना करें ? वैसे तो हम काफी थके थे और आज बस वापिस चलने का इरादा था पर कुंवर सिंह इतना खूबसूरत दिल का इंसान था कि हम उसकी बात टाल नही सके । दोनो ने अपने अपने घर फोन किया । सैल चार्जिंग पर लगवाये कुंवर सिंह से कहकर पडौस में एक घर में जिसके पास सोलर प्लेट लगी थी । तब जाकर हम दोनो ने सोचा कि एक बार कुंवर सिंह के घर होकर तब वापस चलते हैं
बस यहीं सोचकर हम दोनो उसके पीछे पीछे उसके घर चल दिये । वैसे तो गांव में को भी जाने का रास्ता था पर वो हमें शार्टकट से ले गया । कच्ची पगडंडियो और झाडियो में से गुजरते हुए हम दोनो उसके पीछे चले जा रहे थे और साथ ही साथ कर रहे थे असली पहाड के दर्शन
रास्ता बडा सुंदर था और कई बार हमने छोटे बडे झरनो को पार किया जो कि हल्का हल्का रोमांच मन में भर देते थे
आप इन चित्रो के माध्यम से देखे कि कैसा रास्ता था तब तक हम दोनो कुंवर सिंह के घर पर दावत के लिये पहुंचते हैं कल मिलेंगें दावत पर जो कि स्पेशल है
चल भाई हम भी चलते है कुवर सिंह के घर दावत उड़ाने।
ReplyDeleteमनु भाई...
ReplyDeleteवैसे भी पहाड़ी बड़े ही साफ़, सरल और ईमानदार दिल के इंसान होते हैं...
वाह.... खुबसूरत नज़ारे और ऊपर से दावत!
ReplyDeleteवाह मनु भाई आप लोग तो प्रकृति का अब हिस्सा ही बन चुके हो .वन प्रांतर आपको टोहने लगे होंगें .हरियाली का संग साथ रखे दिल की नालियों को साफ .लगाए रक्त चाप पे लगाम .बढ़ने न दे तौल .रखे कद काठी दुरुस्त .
ReplyDeleteapke sath maie bhi ghum liya
ReplyDeleteयात्रा वृतांत के साथ तस्वीरोँ का संयोजन अदभुत है।
ReplyDeleteआपकी आगामी यात्रा के इंतजार मेँ.....
http://yuvaam.blogspot.com/p/katha.html?m=0
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल गुरूवार (07-03-2013) के “कम्प्यूटर आज बीमार हो गया” (चर्चा मंच-1176) पर भी होगी!
सूचनार्थ.. सादर!
A very interesting place. I'd like to know more of the history
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