ये है पातर नौचानियां , यात्रा से पहले नाम सुन सुनकर तो ऐसा लगता है कि पता नही रास्ते में कितने गांव है इन दो झौंपडियो को देखकर ही पहचान हो सकती है कि ये पातर नौचानी है नही तो कोई बता भी नही सकता । ये झौंपडिया भी फाइबर हट वन विभाग ने बनवाई हुई है । हम इनमें रूकने की रसीद पहले ही कटवा चुके थे । शाम के 6 बजे हम यहां पर पहुंचे ।
ये है पातर नौचानियां , यात्रा से पहले नाम सुन सुनकर तो ऐसा लगता है कि पता नही रास्ते में कितने गांव है इन दो झौंपडियो को देखकर ही पहचान हो सकती है कि ये पातर नौचानी है नही तो कोई बता भी नही सकता । ये झौंपडिया भी फाइबर हट वन विभाग ने बनवाई हुई है । हम इनमें रूकने की रसीद पहले ही कटवा चुके थे । शाम के 6 बजे हम यहां पर पहुंचे ।
यहां जाकर मुआयना किया तो पाया कि एक हट में तीन अंकल और उनके तीन पोर्टर रूके थे । वो आज सुबह बेदिनी बुग्याल से चले थे पर बर्फ पडने के समय से यहीं पर रूके थे । हम सुबह वाण से चले थे । हमने पहले तो दूसरी हट में रूकने की सोची पर एक तो इन हटस में जो खिडकी थी वे टूटी थी दूसरी बात कि हम दो आदमी वहां पर रूकेंगें तो कुछ गर्मी सी भी नही आयेगी । अब तक मेरे जूते वगैरा पूरे सुन्न हो चुके थे । पैर में जूते हैं भी या नही पता ही नही चल रहा था ।
मैने कुंवर सिंह से कहा कि वो दूसरी हट में मौजूद अपने पहाडी भाई बंदो से पूछ ले कि क्या हम भी उनके साथ आ जायें अगर उन्हे कोई आपत्ति ना हो तो
कुंवर सिहं ने उन बंदो से पूछा और उन्होने अपने मालिक से उनकी एन ओ सी के बाद हम दोनो भी उसी में फंस गये । वैसे तो हट काफी बडी थी और उसमें बिना सामान के बीस आदमी भी सो सकते थे
शुक्र है कि ये हट यहां पर थी नही तो मर ही जाते क्योंकि रात में बर्फ भी पडी और उसके साथ ही भयंकर ठंड भी थी । वापसी में हमें बेदिनी में अगले दिन वन विभाग वालो ने बताया था कि माइनस आठ डिग्री के करीब ठंड थी उस रात पातर नौचानियां में
मै काफी थक गया था । आज 19 किलोमीटर की चढाई की थी और सारे के सारे चाकलेट और काफी सारे बिस्कुट के पैकेट निपटा डाले थे । इसलिये मुझे ज्यादा भूख नही लग रही थी । कुंवर सिंह ने पूछा कि कुछ बनाउं तो मैने कहा कि अपने लिये बना ले । पर वो माना नही बोला कि मैगी ही बनानी है तो दोनो की बनाउंगा और चाय भी । चाय का नाम सुनकर मैने हां कर दी । जब तक उसने चाय और मैगी बनायी तब तक मैने अपने गीले कपडे जो कि पसीने में गीले हो गये थे , को बदला और सीधा स्लीपिंग बैग में घुस गया ।
अब एक दिक्कत और हो गयी थी कि बराबर में जो तीन लोग थे उनके पोर्टर जो खाना बना रहे थे वे डीजल से बना रहे थे । ये तो भला हो कुंवर सिंह का जो मेरे लिये कहीं से दो लीटर केरोसीन ले आया था । उनके डीजल का धुंआ चढ रहा था सिर में
हट को चारो ओर से बंद कर रखा था तो कुछ देर बाद गेट खोलकर वो धुंआ निकालने को कहते पर गेट खोलते ही भयंकर ठंड आ घुसती ।
कुल मिलाकर ऐसा काकटेल बन गया था कि जैसे देशी और अंग्रेजी दारू पी ली हो । तीनो लोग और उनके पोर्टर अपना सारा सामान साथ लिये थे यानि की शराब और वो पीकर मस्त थे । कुंवर सिंह ने मैगी बनाकर दी और मैने स्लीपिंग बैग में बैठे बैठे ही खा ली पर आधे घंटे में ही मेरा मन खराब हो गया और मुझे उल्टी करने बाहर जाना पडा ।
उल्टी करके मुझे शांति मिली और तब जाकर मुझे कुछ घंटे की नींद आयी । इस बीच मैने कुंवर सिंह को फोन मिलाने को कहा तो उसने कहा कि वो जगह उपर काफी दूर है और इस ठंड में वो नही जा पायेगा । मै ही क्या जा सकता था अंधेरे में बर्फ पर चलकर । ठीक है भाई सो जा और कल देखते हैं जाट मिलता है कि नही ?
यहां जाकर मुआयना किया तो पाया कि एक हट में तीन अंकल और उनके तीन पोर्टर रूके थे । वो आज सुबह बेदिनी बुग्याल से चले थे पर बर्फ पडने के समय से यहीं पर रूके थे । हम सुबह वाण से चले थे । हमने पहले तो दूसरी हट में रूकने की सोची पर एक तो इन हटस में जो खिडकी थी वे टूटी थी दूसरी बात कि हम दो आदमी वहां पर रूकेंगें तो कुछ गर्मी सी भी नही आयेगी । अब तक मेरे जूते वगैरा पूरे सुन्न हो चुके थे । पैर में जूते हैं भी या नही पता ही नही चल रहा था ।
मैने कुंवर सिंह से कहा कि वो दूसरी हट में मौजूद अपने पहाडी भाई बंदो से पूछ ले कि क्या हम भी उनके साथ आ जायें अगर उन्हे कोई आपत्ति ना हो तो
कुंवर सिहं ने उन बंदो से पूछा और उन्होने अपने मालिक से उनकी एन ओ सी के बाद हम दोनो भी उसी में फंस गये । वैसे तो हट काफी बडी थी और उसमें बिना सामान के बीस आदमी भी सो सकते थे
शुक्र है कि ये हट यहां पर थी नही तो मर ही जाते क्योंकि रात में बर्फ भी पडी और उसके साथ ही भयंकर ठंड भी थी । वापसी में हमें बेदिनी में अगले दिन वन विभाग वालो ने बताया था कि माइनस आठ डिग्री के करीब ठंड थी उस रात पातर नौचानियां में
मै काफी थक गया था । आज 19 किलोमीटर की चढाई की थी और सारे के सारे चाकलेट और काफी सारे बिस्कुट के पैकेट निपटा डाले थे । इसलिये मुझे ज्यादा भूख नही लग रही थी । कुंवर सिंह ने पूछा कि कुछ बनाउं तो मैने कहा कि अपने लिये बना ले । पर वो माना नही बोला कि मैगी ही बनानी है तो दोनो की बनाउंगा और चाय भी । चाय का नाम सुनकर मैने हां कर दी । जब तक उसने चाय और मैगी बनायी तब तक मैने अपने गीले कपडे जो कि पसीने में गीले हो गये थे , को बदला और सीधा स्लीपिंग बैग में घुस गया ।
अब एक दिक्कत और हो गयी थी कि बराबर में जो तीन लोग थे उनके पोर्टर जो खाना बना रहे थे वे डीजल से बना रहे थे । ये तो भला हो कुंवर सिंह का जो मेरे लिये कहीं से दो लीटर केरोसीन ले आया था । उनके डीजल का धुंआ चढ रहा था सिर में
हट को चारो ओर से बंद कर रखा था तो कुछ देर बाद गेट खोलकर वो धुंआ निकालने को कहते पर गेट खोलते ही भयंकर ठंड आ घुसती ।
कुल मिलाकर ऐसा काकटेल बन गया था कि जैसे देशी और अंग्रेजी दारू पी ली हो । तीनो लोग और उनके पोर्टर अपना सारा सामान साथ लिये थे यानि की शराब और वो पीकर मस्त थे । कुंवर सिंह ने मैगी बनाकर दी और मैने स्लीपिंग बैग में बैठे बैठे ही खा ली पर आधे घंटे में ही मेरा मन खराब हो गया और मुझे उल्टी करने बाहर जाना पडा ।
उल्टी करके मुझे शांति मिली और तब जाकर मुझे कुछ घंटे की नींद आयी । इस बीच मैने कुंवर सिंह को फोन मिलाने को कहा तो उसने कहा कि वो जगह उपर काफी दूर है और इस ठंड में वो नही जा पायेगा । मै ही क्या जा सकता था अंधेरे में बर्फ पर चलकर । ठीक है भाई सो जा और कल देखते हैं जाट मिलता है कि नही ?
सो जा भाई सो जा, माईनस में देखते है कैसी नीन्द आती है?
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