इस रूपकुंड यात्रा में तीन चरण ही सबसे मुश्किल हैं एक वाण् या नीचे कहीं से भी बेदिनी , दूसरा पातर नौचानियां से कालू विनायक और तीसरा भागूवासा से रूपकुंड तक बेदिनी से पातर नौचानियां और कालू विनायक से भागूवासा अपेक्षाकृत आसान है ।
आज की सुबह कुछ खास है आज का दिन भी । पूछिये क्यों ?
क्योंकि यही वो दिन है जब मैने अपने जीवन की सबसे मुश्किल ट्रैकिंग आज के एक ही दिन में कर डाली । कल और आज को मिलाकर केवल 48 घंटे में रूपकुंड यात्रा और कल 19 किलोमीटर जबकि आज के दिन मै 40 किलोमीटर से अधिक की चढाई उतराई करूंगा तो आइये चलते हैं पातर नौचानियां से आगे के सफर पर
सुबह सवेरे रास्ते बर्फ से ढके थे । हमारी हट के चारो ओर बर्फ ऐसे पडी थी जैसे सजाकर रख दी हो । सुबह 4 बजे का अलार्म लगाकर सोया था और नींद ऐसी कच्ची थी कि अलार्म बजते ही खुल गयी । कल की थकान के बाद चार बजे उठना भी मुश्किल नही लगा क्योंकि पहाडो पर आपको अगर अपना सफर पूरा करना हो तो सुबह सवेरे चलो । ऐसी दुर्गम जगहो पर दस बजे के बाद ही मौसम खराब कब हो जाये पता नही चलता ।
सुबह सवेरे शौच कैसे कैसे गया बस मुझे ही पता है और हां हाथ कैसे धोये ?
नही वो तो कुंवर सिंह का भला हो जिसने मेरे आने से पहले गर्म पानी कर दिया था । कुंवर सिंह ने चाय बनायी और चाय के साथ बिस्कुट खाकर हम दोनो और वो तीनो लोग भी चल दिये । उन तीनो लोगो के बारे में भी बताउंगा पर आगे
सुबह आज मौसम बढिया था और एक घंटा चलने के बाद ही अच्छा उजाला होने लगा था । मैने कुंवर सिहं से पूछा कि अब किधर को जाना है तो उसने सामने की पहाड की ओर उंगली उठाकर कहा कि वहां पर
बाप रे .............इतनी खडी चढाई ?
इस रूपकुंड यात्रा में तीन चरण ही सबसे मुश्किल हैं एक वाण् या नीचे कहीं से भी बेदिनी , दूसरा पातर नौचानियां से कालू विनायक और तीसरा भागूवासा से रूपकुंड तक
बेदिनी से पातर नौचानियां और कालू विनायक से भागूवासा अपेक्षाकृत आसान है ।
ताजी बर्फ पर पैर रखकर चलना बडा ही मजेदार लग रहा था । बर्फ से भी आवाज आती थी क्या आपने सुनी है ?
ये अलग अनुभव है मै पहली बार खतरे और सुंदरता का इतना गहरा संगम एक साथ देख रहा हूं ।
ये वाकई मजेदार है । हमारे चढते चढते धूप निकलने लगी है । धूप से सामने बर्फ के शिखरो का सुंदर नजारा दिखने लगा है पर इससे हमारी मुश्किल कम नही हो रही है । जैसे जैसे उंचाई बढ रही है सांस जल्दी फूल रही है । कुंवर सिंह ने मेरी कई बार हिम्मत बढायी । उसने कई बार मेरा बैग जो कि गीले कपडो की वजह से और भी वजनी हो गया था , उसे लेने की जिद की पर मैने नही दिया क्योंकि वो भी तो इंसान ही है गधा थोडे ही है । ठीक है कि वो पहाडी है और उनका स्टेमिना हम से ज्यादा है पर इंसानियत भी कुछ चीज होती है इसलिये मैने पूरी यात्रा में अपना सामान और खाना पीना भी खुद उठाया । उसके पास स्टोव , केरोसीन ,स्लीपिंग बैग , पानी और उसके अपने कपडे वगैरा थे
अब आते हैं रोमाच की बात पर । ये जो उपर के फोटो में आपको बर्फ से ढका पहाड दिख रहा है और इसकी चोटी ....................वहीं पर कालू विनायक हैं अब तो आप समझ ही गये होंगे कि क्यों मैने कहा कि ये रास्ता सबसे मुश्किल है और इस चढाई पर हिम्मत टूट जाती है पर जब आप मेरे साथ पढते हुए चल रहे हैं तो इस रास्ते को भी पार कर लेंगें हम लोग
सुंदरता का मजा लेते चलो पर ये भी ध्यान रखना कि पैर फिसला तो मौत तय है चाहो तो नीचे झांककर देख लो
क्योंकि यही वो दिन है जब मैने अपने जीवन की सबसे मुश्किल ट्रैकिंग आज के एक ही दिन में कर डाली । कल और आज को मिलाकर केवल 48 घंटे में रूपकुंड यात्रा और कल 19 किलोमीटर जबकि आज के दिन मै 40 किलोमीटर से अधिक की चढाई उतराई करूंगा तो आइये चलते हैं पातर नौचानियां से आगे के सफर पर
सुबह सवेरे रास्ते बर्फ से ढके थे । हमारी हट के चारो ओर बर्फ ऐसे पडी थी जैसे सजाकर रख दी हो । सुबह 4 बजे का अलार्म लगाकर सोया था और नींद ऐसी कच्ची थी कि अलार्म बजते ही खुल गयी । कल की थकान के बाद चार बजे उठना भी मुश्किल नही लगा क्योंकि पहाडो पर आपको अगर अपना सफर पूरा करना हो तो सुबह सवेरे चलो । ऐसी दुर्गम जगहो पर दस बजे के बाद ही मौसम खराब कब हो जाये पता नही चलता ।
सुबह सवेरे शौच कैसे कैसे गया बस मुझे ही पता है और हां हाथ कैसे धोये ?
नही वो तो कुंवर सिंह का भला हो जिसने मेरे आने से पहले गर्म पानी कर दिया था । कुंवर सिंह ने चाय बनायी और चाय के साथ बिस्कुट खाकर हम दोनो और वो तीनो लोग भी चल दिये । उन तीनो लोगो के बारे में भी बताउंगा पर आगे
सुबह आज मौसम बढिया था और एक घंटा चलने के बाद ही अच्छा उजाला होने लगा था । मैने कुंवर सिहं से पूछा कि अब किधर को जाना है तो उसने सामने की पहाड की ओर उंगली उठाकर कहा कि वहां पर
बाप रे .............इतनी खडी चढाई ?
इस रूपकुंड यात्रा में तीन चरण ही सबसे मुश्किल हैं एक वाण् या नीचे कहीं से भी बेदिनी , दूसरा पातर नौचानियां से कालू विनायक और तीसरा भागूवासा से रूपकुंड तक
बेदिनी से पातर नौचानियां और कालू विनायक से भागूवासा अपेक्षाकृत आसान है ।
ताजी बर्फ पर पैर रखकर चलना बडा ही मजेदार लग रहा था । बर्फ से भी आवाज आती थी क्या आपने सुनी है ?
ये अलग अनुभव है मै पहली बार खतरे और सुंदरता का इतना गहरा संगम एक साथ देख रहा हूं ।
ये वाकई मजेदार है । हमारे चढते चढते धूप निकलने लगी है । धूप से सामने बर्फ के शिखरो का सुंदर नजारा दिखने लगा है पर इससे हमारी मुश्किल कम नही हो रही है । जैसे जैसे उंचाई बढ रही है सांस जल्दी फूल रही है । कुंवर सिंह ने मेरी कई बार हिम्मत बढायी । उसने कई बार मेरा बैग जो कि गीले कपडो की वजह से और भी वजनी हो गया था , उसे लेने की जिद की पर मैने नही दिया क्योंकि वो भी तो इंसान ही है गधा थोडे ही है । ठीक है कि वो पहाडी है और उनका स्टेमिना हम से ज्यादा है पर इंसानियत भी कुछ चीज होती है इसलिये मैने पूरी यात्रा में अपना सामान और खाना पीना भी खुद उठाया । उसके पास स्टोव , केरोसीन ,स्लीपिंग बैग , पानी और उसके अपने कपडे वगैरा थे
अब आते हैं रोमाच की बात पर । ये जो उपर के फोटो में आपको बर्फ से ढका पहाड दिख रहा है और इसकी चोटी ....................वहीं पर कालू विनायक हैं अब तो आप समझ ही गये होंगे कि क्यों मैने कहा कि ये रास्ता सबसे मुश्किल है और इस चढाई पर हिम्मत टूट जाती है पर जब आप मेरे साथ पढते हुए चल रहे हैं तो इस रास्ते को भी पार कर लेंगें हम लोग
सुंदरता का मजा लेते चलो पर ये भी ध्यान रखना कि पैर फिसला तो मौत तय है चाहो तो नीचे झांककर देख लो
kurunda, basmat, NANDED, MAHARASTRA, INDIA
ReplyDeleteमनु भाई अभी तो यात्रा का रोमांच आया है
ReplyDeletebahut badhiya safar chal raha hai ...romaanchak..
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