जहां पर ये चार सींग वाला मेंढा जन्म लेता है वहां पर शेर आना शुरू कर देता है और जब तक उस मेंढे का मालिक उसे राजजात को देने की मनौती नही रखता तब तक शेर आता रहता है । पूरी नंदा देवी राजजात यात्रा का पूरी भीड का ये मेंढा अपने आप पहली बार में ही चमत्कारिक रूप से मार्गदर्शन करता है । आस पास के जानवरो के ये पास भी नही फटकता जैसे कि ये विशेष है और ये इसे पता है । पूरी यात्रा में ये पूजनीय होता है और यात्रा सम्पन्न हो जाती है पर मेंढा चलना नही छोडता
रूपकुंड में आज भी सैकडो अस्थिपंजर पडे हैं पर उनके देखने के लिये एक सही मौसम होना चाहिये । इस वातावरण में बर्फ से सारे साल सामना होता है पर अक्सर सितंबर के आसपास यानि की बरसात के बाद यहां पर बर्फ बहुत मामूली रह जाती है । तब इन अस्थि पंजरो को आसानी से देखा जा सकता है । ये अस्थि पंजर किसके बारे में कई जनश्रुतियां और वैज्ञानिक तथ्य प्रचलित हैं । जनश्रुतियो के अनुसार ये कंकाल राजा कन्नौज के राज जसधवल और उनके परिवार और सेना के हैं जो कि बर्फीले तूफानो में मारे गये ।
इन अवशेषो का विदेशो तक में भी ले जाकर अध्ध्यन किया गया और रेडियो कार्बन विधि से इनकी उम्र पता करने की कोशिश की गयी जो 600 से 800 वर्ष पुराने अवशेष बताती है । 16200 फीट की उंचाई पर बसे रूपकुंड की यात्रा इसी रहस्यमयी अस्थियो को देखने के लिये की जाती है । वैसे मै बता ही चुका हूं कि मुझे पूरी रूपकुंड यात्रा में सबसे सुंदर जगह लगी कालू विनायक ।
रूपकुंड से आगे भी नंदा देवी की यात्रा जारी रहती है और जुनारगली नाम की चोटी से होकर शिला समुद्र तक जाती है जो कि रूपकुंड से भी कठिन मार्ग है । लाटू देवता ने यहां पर राजजात यात्रियो से टैक्स वसूलने का प्रावधान किया था जो आज भी लागू है । कहा जाता है कि इस यात्रा के पडाव शिलासमुद्र पर सूर्योदय के समय नन्दा घुंघ्रटी पर्वत पर तीन दीपक और धूप की लौ दिखायी देती है ।
यहां के लोगो के मान्यताओ के अनुसार नंदा देवी दक्ष प्रजापति की सात कन्याओ में से एक थी । उत्तरांचल के लोक गीतो में नंदा देवी के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं इस पूरी यात्रा का अर्थ है कि नंदा देवी हिंदी माह के भादो के कृष्णपक्ष में अपने मायके पधारती हैं । अष्टमी के दिन वे अपने मायके से विदा होती हैं और इस दौरान उन्हे डोली में बिठाकर सामान्य लडकी की तरह विदाई दी जाती है और साथ में फल फूल वस्त्र गहने आदि भी दिये जाते हैं ।
नंदा देवी की यात्रा 250 किलोमीटर की विश्व की शायद सबसे प्राचीन और दुर्गम यात्राओ में से एक है । इस दौरान बेदिनी जैसे सुंदर बुग्याल और रूपकुंड झील के अलावा जूनारगली और होमीकुंड जैसी जगहो पर कठिन 18000 फीट तक की उंचाई पर ये यात्रा होती है । फिर भी आज भी पर्यटको के अलावा हर साल तय समय पर पहाड के हजारो निवासी इस यात्रा को पूरा करते हैं
इस पूरी यात्रा में रीति रिवाजो , परम्पराओ का पालन भी होता है । दो दल बन जाते हैं भक्तो के जिनमें से एक नंदा देवी के मायके वाले और दूसरे शिव के गण बन जाते हैं । इस यात्रा की मुख्य बातो में से एक है चार सींग वाले मैंढे का जन्म होना ।
नर भेड को शायद मेंढा कहते हैं मुझे पक्का नही पता पर इस मेंढे का जन्म होते ही विचित्र घटनायें होने लगती हैं । जहां पर ये चार सींग वाला मेंढा जन्म लेता है वहां पर शेर आना शुरू कर देता है और जब तक उस मेंढे का मालिक उसे राजजात को देने की मनौती नही रखता तब तक शेर आता रहता है । पूरी नंदा देवी राजजात यात्रा का पूरी भीड का ये मेंढा अपने आप पहली बार में ही चमत्कारिक रूप से मार्गदर्शन करता है । आस पास के जानवरो के ये पास भी नही फटकता जैसे कि ये विशेष है और ये इसे पता है । पूरी यात्रा में ये पूजनीय होता है और यात्रा सम्पन्न हो जाती है पर मेंढा चलना नही छोडता और लोगो के देखते देखते गायब हो जाता है । कुछ लोग कहते हैं कि ये कैलाश तक जाता है और कुछ कहते हैं कि ये हरिद्धार तक गंगा स्नान के लिये जाता है पर कुल मिलाकर ये गायब हो जाता है और फिर किसी को दिखायी नही देता ।
नंदा देवी राजजात यात्रा में कुल 19 पडाव होते हैं वो हैं
ईडाबधाणी
नौटी
कांसुवा
सेम
कोटि
भगौती
कुलसारी
चेपंडयू
नंदकेशरी
फल्दिया
मुंडौली
वाण
पाताल गैरोली
पातर नौचानियां
शिलासमुद्र
चनणियां घट
सुतोल
घाट
धन्यवाद ऐसी देवभूमि को चमत्कारो से भरी पडी है
मोबाईल तो चार दिन से चार्जिंग ना मिलने की वजह से वाण से निकलते ही बोल गया था । भागूवासा में कैमरे के सैल डाउन होने के बाद भी हम लोग चलते रहे और एक किलोमीटर चलने के बाद हमें इंडिया हाइक वालो का एक ग्रुप वापस आता मिला । वे लोग सुबह सवेरे भागूवासा से निकले थे और उनकी वजह से उस सारे रास्ते में ताजी बर्फ को काटकर रास्ता बनाया गया था उनके पोर्टरो ने । ये रास्ता मुझे बडी मदद कर रहा था । अभी तक मेरा स्वास्थय ठीक ठाक था और कालू विनायक से भागूवासा की मामूली सी उतराई ने थकान भी दूर कर दी थी । दोबारा चढने पर दोबारा सांस चढने लगा था । इंडिया हाइक वालो के ग्रुप से पता किया तो उन्होने बताया कि झील के पास तक जाना तो खतरे से खाली नही है और ना ही वहां पर कुछ देखने को है क्योंकि बर्फ ही इतनी पडी हुई है । दूसरी बात वो सब ये देखकर हैरान थे कि मै अकेला एक पोर्टर को लिये चढा आ रहा हूं जबकि वो सब इतने साजो सामान से लैस थे कि पूछो मत । उनके जूतो के नीचे भी लोहे की कील वाला कुछ लगा हुआ था और उनके सबके पास बढिया स्टिक थी हाथ में पकडने के लिये । मुझे देखकर तो वो सब यही कह रहे थे कि तुम ऐसे ही आ रहे हो ? मै बोला हां वो बोले कैसे ? तो मैने यही कहा कि आप लोगो का बनाया हुआ रास्ता मुझे मदद कर रहा है । खैर वहां थोडी देर रूककर मै और कुंवर सिंह फिर चल पडे ।
रूपकुंड से आधा किलोमीटर पहले तक भागूवासा दिखता रहता है उसके बाद एकदम से हम उस पहाड के पीछे पहुंच जाते हैं जो कि भागूवासा से दिखता है और यहीं से रूपकुंड के दर्शन होते हैं जो कि यहां पर दिखायी ही नही दे रही थी झील तो । वो तो बर्फ ही बर्फ थी चारो तरफ और इंडिया हाइक वालो ने रास्ता भी यहीं तक बनाया हुआ था बर्फ को काटकर । वो भी यहीं से देखकर वापस गये होंगें क्योंकि ना तो देखने के लिये झील थी और ना ही अस्थि पंजर । यहां तो आराम करने के लिये या बैठने के लिये भी जगह नही थी सो मै और कुंवर सिंह तुरंत लौट लिये और रास्ते में ही हमें भागूवासा में जाट देवता के भी दर्शन हो गये ।
क्या जाट कैमरा या सैल लिये था ? इसका जबाब अगली पोस्ट में
रूपकुंड से आधा किलोमीटर पहले तक भागूवासा दिखता रहता है उसके बाद एकदम से हम उस पहाड के पीछे पहुंच जाते हैं जो कि भागूवासा से दिखता है और यहीं से रूपकुंड के दर्शन होते हैं जो कि यहां पर दिखायी ही नही दे रही थी झील तो । वो तो बर्फ ही बर्फ थी चारो तरफ और इंडिया हाइक वालो ने रास्ता भी यहीं तक बनाया हुआ था बर्फ को काटकर । वो भी यहीं से देखकर वापस गये होंगें क्योंकि ना तो देखने के लिये झील थी और ना ही अस्थि पंजर । यहां तो आराम करने के लिये या बैठने के लिये भी जगह नही थी सो मै और कुंवर सिंह तुरंत लौट लिये और रास्ते में ही हमें भागूवासा में जाट देवता के भी दर्शन हो गये ।
क्या जाट कैमरा या सैल लिये था ? इसका जबाब अगली पोस्ट में
आखिरकार जाट मिल ही गया, चलो शुक्र रहा। केवल रुपकुन्ड़ तक जाकर वापिस लौट आना कुछ अधूरा सा लगता है, असली यात्रा वो है जिसमें रुपकुन्ड़ से आगे जुनारगली होकर होमकुन्ड़ देखकर आगे निकल जाओ, मैं इस साल एक बार फ़िर जाऊँगा। चलना है तो बता देना। दिनांक 15 सितम्बर पहले से तय है।
ReplyDelete"दौरान बेदिनी जैसे सुंदर बुग्याल" iska matlab kya hai bedini kya hai or ye bugyal kya hai?
ReplyDeletehi
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