मै अपनी गणना में लगा हुआ था कि अगर आज मै यहीं पर रूकता हूं तो कल भागूवासा तक और परसो रूपकुंड से वापस भागूवास और उससे अगले दिन वापसी यानि चार दिन ओ माई गाड इन पहाडो में जहां ना फोन है ना कोई साथी चार दिन तक इतनी ठंड में परेशानी हो जायेगी तो फिर क्या करूं
एक पोस्ट पहले आप सबने देखा और पढा कि किस तरह बेदिनी बुग्याल मै दिन के साढे बारह बजे पहुंच गया था पर एक बजे बर्फ पडने लगी तो मै टैट में स्लीपिंग बैग में लेट गया । मेरा मन आगे चलने का था और लेटे रहना मुझे पसंद नही था । आधे घंटे में ही फिर से गजब हुआ और बर्फबारी बंद हो गयी । मैने थोडी जोर की आवाजे सुनी तो बाहर को निकलकर देखा । मौसम एकदम साफ हो गया था और कुंवर सिंह और इंडिया हाइक के दोनो बंदे फुटबाल खेलने लगे थे ।
यहां पर अकेला बंदा भी फुटबाल खेल सकता है बस फुटबाल को पहाड की तरफ मारना है बाकी वापस वो अपने आप आ जायेगी । मै शौकीन नही नही तो मुझे निश्चित रूप से पसंद आता । मैने इंडिया हाइक वालो से जानकारी ली तो उन्होने बताया कि उनका एक ग्रुप उपर गया है और वे आज भागूवासा में रूकेंगे लेकिन आगे जाने का फैसला मौसम और बर्फ देखकर होगा ।
वे रूपकुंड जा भी सकते हैं नही तो वापिस आ भी सकते हैं
मेरा उनसे वार्तालाप कुछ इस तरह से था
क्या रूपकुंड जाओगे ?
हां
तुम जा नही पाओगे
क्यूं?
तुम्हारे पास तो जूते भी गोल्डस्टार के हैं वहां पांच फुट बर्फ पडी हुई है जूतो के नीचे लोहे का एक उपकरण लगाना पडता है तब चल सकते हैं और ना तुम्हारे पास गर्म कपडे हैं ना ही स्टिक वगैरा ।
मै तो ऐसे ही जाउंगा तुम बस इतना बताओ कि क्या अब से पातर नौचानियां जाना सही होगा ?
बिलकुल नही अब रूको यहीं कल सुबह यहां से भागूवासा के लिये निकलना अगर जा सके तो ठीक नही तो वापिस भी आ सकते हो
पातर नौचानियां में पहुंच गये तो वहां रूकने का कैसे होगा ?
नही जा पाओगे पर फिर भी जिद है तो कर लो वन विभाग से पर्ची कटवा लो पर अगर वापस आये तो भी पर्ची वापस नही होगी तुम नीचे वाले पहाड को मजाक समझते हो आ जाते हो ऐसे ही मुंह उठाकर चल दिये
आप अंदाजा लगा सकते हो कि मुझे उसकी बात अब आगे सुनना बेकार था । मै अपनी गणना में लगा हुआ था कि अगर आज मै यहीं पर रूकता हूं तो कल भागूवासा तक और परसो रूपकुंड से वापस भागूवास और उससे अगले दिन वापसी यानि चार दिन ओ माई गाड
इन पहाडो में जहां ना फोन है ना कोई साथी चार दिन तक इतनी ठंड में परेशानी हो जायेगी तो फिर क्या करूं आज ही चलूं तो पातर नौचानियां , कल रूपकुंड से वापिस भागूवासा और परसो नीचे
यानि अगर मै आज चलता हूं तो तीन दिन में मेरा सफर हो जायेगा
कुंवर सिंह से पूछा तो उस जिंदादिल बंदे ने हंसकर कहा चलो साब मै आपके साथ हूं जैसा आप कहो
उसके 500 रू रोज का खर्चा भी मै जोड रहा था कि जितने दिन उसके बढेंगें उतना ही मेरा खर्च बढता जायेगा
फिर मैने क्या फैसला किया ?
आप क्या कहते हो मुझे चलना चाहिये कि नही ?
सात किलोमीटर अब से चलूं तो पहुंच जाउंगा कि नही ?
और अगर रास्ते में ज्यादा बर्फ हुई तो ?
उपर की ओर दिख रहे कुछ छोटे छोटे मंदिर हैं और बाकी कमरेनुमा जो हैं वो वन विभाग की हट हैं जिनमें कोई कैसे रूकेगा ? पर उनको क्या है उन्होने तो सब कुछ प्राइवेट कम्पनी के भरोसे छोडा हुआ है हां पर्ची काटने के लिये सबसे आगे हैं
यहां पर अकेला बंदा भी फुटबाल खेल सकता है बस फुटबाल को पहाड की तरफ मारना है बाकी वापस वो अपने आप आ जायेगी । मै शौकीन नही नही तो मुझे निश्चित रूप से पसंद आता । मैने इंडिया हाइक वालो से जानकारी ली तो उन्होने बताया कि उनका एक ग्रुप उपर गया है और वे आज भागूवासा में रूकेंगे लेकिन आगे जाने का फैसला मौसम और बर्फ देखकर होगा ।
वे रूपकुंड जा भी सकते हैं नही तो वापिस आ भी सकते हैं
मेरा उनसे वार्तालाप कुछ इस तरह से था
क्या रूपकुंड जाओगे ?
हां
तुम जा नही पाओगे
क्यूं?
तुम्हारे पास तो जूते भी गोल्डस्टार के हैं वहां पांच फुट बर्फ पडी हुई है जूतो के नीचे लोहे का एक उपकरण लगाना पडता है तब चल सकते हैं और ना तुम्हारे पास गर्म कपडे हैं ना ही स्टिक वगैरा ।
मै तो ऐसे ही जाउंगा तुम बस इतना बताओ कि क्या अब से पातर नौचानियां जाना सही होगा ?
बिलकुल नही अब रूको यहीं कल सुबह यहां से भागूवासा के लिये निकलना अगर जा सके तो ठीक नही तो वापिस भी आ सकते हो
पातर नौचानियां में पहुंच गये तो वहां रूकने का कैसे होगा ?
नही जा पाओगे पर फिर भी जिद है तो कर लो वन विभाग से पर्ची कटवा लो पर अगर वापस आये तो भी पर्ची वापस नही होगी तुम नीचे वाले पहाड को मजाक समझते हो आ जाते हो ऐसे ही मुंह उठाकर चल दिये
आप अंदाजा लगा सकते हो कि मुझे उसकी बात अब आगे सुनना बेकार था । मै अपनी गणना में लगा हुआ था कि अगर आज मै यहीं पर रूकता हूं तो कल भागूवासा तक और परसो रूपकुंड से वापस भागूवास और उससे अगले दिन वापसी यानि चार दिन ओ माई गाड
इन पहाडो में जहां ना फोन है ना कोई साथी चार दिन तक इतनी ठंड में परेशानी हो जायेगी तो फिर क्या करूं आज ही चलूं तो पातर नौचानियां , कल रूपकुंड से वापिस भागूवासा और परसो नीचे
यानि अगर मै आज चलता हूं तो तीन दिन में मेरा सफर हो जायेगा
कुंवर सिंह से पूछा तो उस जिंदादिल बंदे ने हंसकर कहा चलो साब मै आपके साथ हूं जैसा आप कहो
उसके 500 रू रोज का खर्चा भी मै जोड रहा था कि जितने दिन उसके बढेंगें उतना ही मेरा खर्च बढता जायेगा
फिर मैने क्या फैसला किया ?
आप क्या कहते हो मुझे चलना चाहिये कि नही ?
सात किलोमीटर अब से चलूं तो पहुंच जाउंगा कि नही ?
और अगर रास्ते में ज्यादा बर्फ हुई तो ?
उपर की ओर दिख रहे कुछ छोटे छोटे मंदिर हैं और बाकी कमरेनुमा जो हैं वो वन विभाग की हट हैं जिनमें कोई कैसे रूकेगा ? पर उनको क्या है उन्होने तो सब कुछ प्राइवेट कम्पनी के भरोसे छोडा हुआ है हां पर्ची काटने के लिये सबसे आगे हैं
ये तुमने एकदम घुमक्कड वाला निर्णय लिया था। जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह शाम,
ReplyDeleteब्लॉग की सेंटिग कुछ दाये-बाये हो रही है, एक बार जाँच ले।
बढिया सफ़र, बरफ़ बारी के बीच।
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ReplyDeleteशुक्रिया आपकी सार्थक जनुपयोगी टिपण्णी का .
वाह बहुत बढ़िया सचित्र रोमांचक यात्रा वृत्तांत .
काफी दिलचस्प वाकया, आपका निर्णय काबिले तारीफ़ था यह इशारा करते हुए की मुसाफिर को चलते ही रहना चाहिए. दृश्य हमेशा की तरह बहुत ही मनोरम, उन वादियों मैं खो जाने का मन करता है.
ReplyDeleteDil kar raha hai me bhi chala jau yaha.
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