मैने सुबह सात बजे चलना शुरू किया और साढे बारह बजे मै बेदिनी बुग्याल में था । खडी चढाई और बारह किलोमीटर । मुझे कोई खास थकान नही थी और मेरा उत्साह मुझे उतावला कर रहा था कि आज बेदिनी नही आगे रूकना है
लो जी आ पहुंचे हम बेदिन बुग्याल । ये एशिया में स्थान रखता है बुग्यालो में । अपनी खूबसूरती के साथ साथ इस बुग्याल का क्षेत्रफल भी काफी बडा है ।
यहां तक आने के रास्ते में मै और कुंवर सिंह मिलकर पांच छह बिस्कुट के पैकेट और दस चाकलेट और टाफिया खा चुके थे उसकी वजह थी कि हमने सुबह नाशता किया नही था और दूसरा कि हम खाते खाते से ही चल रहे थे और वाकई में हमें रास्ते का पता ही नही चला ।
इसी साल जब मै मणिमहेश गया तो बडी मुश्किल से हमने तेरह किलोमीटर का रास्ता बारह घंटे में पूरा किया था । हम बारह लोग थे । आज तो गजब ही हो गया था । मैने सुबह सात बजे चलना शुरू किया और साढे बारह बजे मै बेदिनी बुग्याल में था । खडी चढाई और बारह किलोमीटर । मुझे कोई खास थकान नही थी और मेरा उत्साह मुझे उतावला कर रहा था कि आज बेदिनी नही आगे रूकना है
मैने कुंवर सिंह से पूछा कि आगे पडाव कहां है जहां हमें रूकने की जगह मिलेगी । उसने बताया कि आगे पातर नौचानियां में वन विभाग की हट है और बेदिनी से ही उसकी पर्ची कटवानी पडेगी । वो कितना दूर है , सात किलोमीटर
तो चलो वहीं चलते हैं
अभी ? कुंवर सिंह मुझे अचरज से देख रहा था
हां क्यों कोई दिक्कत है क्या ?
नही क्या चाय या खाना नही लोगे ?
ठीक है तुम खाने का इंतजाम देखो तब तक मै आराम कर लूंगा
ठंड से मेरे हाथ सूजने शूरू हो गये हैं क्या आप अंदाजा लगा सकते हो कि यहां पर कितनी ठंड है फिलहाल ?
10 डिग्री ?
5 डिग्री ?
या और कम ?आगे बताउंगा
ये है बेदिनी बुग्याल की पहली झलक । सामने लगे दिखायी दे रहे टैट इंडिया हाइक वालो के हैं
ये यहां पर पीने के पानी का श्रोत हैं । जी हां यहां पर पीने के पानी के नल या कुंए नही हैं बस यहीं पर कुछ पानी है जिससे खाना बनाने या बाकी के काम चलता है फिर ज्यादा लोग हों तो कैसे काम चलता है वही ................बर्फं को पिघलाकर
क्या बर्फ पिघलाकर ?
हां देखनी है क्या ?
थोडी इंतजार और बस
ये एक अंग्रेज जोडा है जिसने हमें बताया कि ये पातर नौचानियां तक नही जा सके क्योंकि रास्ते में इतनी बर्फ थी । क्या ? और मै तो सोच रहा हूं रूपकुड तक जाने की तो कैसे होगा ?
आप भी रूपकुंड के अलग अलग नजारो का आनंद लो तब तक मै चाय पी लेता हूं । और हां घास का रंग पीला है वो सूखने की वजह से है । क्योंकि हरा रंग तो बरसात के बाद ही खिल कर आता है तब तक भगवान ने क्या लीला रच रखी है देखते हैं
यहां तक आने के रास्ते में मै और कुंवर सिंह मिलकर पांच छह बिस्कुट के पैकेट और दस चाकलेट और टाफिया खा चुके थे उसकी वजह थी कि हमने सुबह नाशता किया नही था और दूसरा कि हम खाते खाते से ही चल रहे थे और वाकई में हमें रास्ते का पता ही नही चला ।
इसी साल जब मै मणिमहेश गया तो बडी मुश्किल से हमने तेरह किलोमीटर का रास्ता बारह घंटे में पूरा किया था । हम बारह लोग थे । आज तो गजब ही हो गया था । मैने सुबह सात बजे चलना शुरू किया और साढे बारह बजे मै बेदिनी बुग्याल में था । खडी चढाई और बारह किलोमीटर । मुझे कोई खास थकान नही थी और मेरा उत्साह मुझे उतावला कर रहा था कि आज बेदिनी नही आगे रूकना है
मैने कुंवर सिंह से पूछा कि आगे पडाव कहां है जहां हमें रूकने की जगह मिलेगी । उसने बताया कि आगे पातर नौचानियां में वन विभाग की हट है और बेदिनी से ही उसकी पर्ची कटवानी पडेगी । वो कितना दूर है , सात किलोमीटर
तो चलो वहीं चलते हैं
अभी ? कुंवर सिंह मुझे अचरज से देख रहा था
हां क्यों कोई दिक्कत है क्या ?
नही क्या चाय या खाना नही लोगे ?
ठीक है तुम खाने का इंतजाम देखो तब तक मै आराम कर लूंगा
ठंड से मेरे हाथ सूजने शूरू हो गये हैं क्या आप अंदाजा लगा सकते हो कि यहां पर कितनी ठंड है फिलहाल ?
10 डिग्री ?
5 डिग्री ?
या और कम ?आगे बताउंगा
ये है बेदिनी बुग्याल की पहली झलक । सामने लगे दिखायी दे रहे टैट इंडिया हाइक वालो के हैं
ये यहां पर पीने के पानी का श्रोत हैं । जी हां यहां पर पीने के पानी के नल या कुंए नही हैं बस यहीं पर कुछ पानी है जिससे खाना बनाने या बाकी के काम चलता है फिर ज्यादा लोग हों तो कैसे काम चलता है वही ................बर्फं को पिघलाकर
क्या बर्फ पिघलाकर ?
हां देखनी है क्या ?
थोडी इंतजार और बस
ये एक अंग्रेज जोडा है जिसने हमें बताया कि ये पातर नौचानियां तक नही जा सके क्योंकि रास्ते में इतनी बर्फ थी । क्या ? और मै तो सोच रहा हूं रूपकुड तक जाने की तो कैसे होगा ?
आप भी रूपकुंड के अलग अलग नजारो का आनंद लो तब तक मै चाय पी लेता हूं । और हां घास का रंग पीला है वो सूखने की वजह से है । क्योंकि हरा रंग तो बरसात के बाद ही खिल कर आता है तब तक भगवान ने क्या लीला रच रखी है देखते हैं
मणिमहेश यात्रा में जबदस्त चढाई है, इसके मुबाकले यहाँ थोडी कम है, खाते पीते रहो, यह अच्छा संकेत है। मैं भी वाण के नजदीक आ चुका हूँ
ReplyDeleteबहुत खूब, लगे रहो मेरे भाई...
ReplyDeleteबहुत बढिया ट्रेकिंग चल रही है…… राम राम
ReplyDeletebhai kaha ho aaj kal?
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