यहां पर पूरे रास्ते में पीने का पानी नीलगंगा के बाद नही है सो हमने अपनी बोतले भर ली । हम भी दोनो धीरे धीरे चलते रहे और दस बजे के करीब पाताल गैरोली पहुंच गये । पाताल गैराली में हमने थोडी देर आराम किया और उसके बाद मैने कुंवर सिंह को कैमरा दिया कि मेरा भी फोटो ले दे ।
नीलगंगा पार करने के बाद लगातार चढाई थी ये तो कुंवर सिंह ने मुझे बता ही दिया था । पर इतनी खडी चढाई तो मैने सोची भी नही थी । दो बातो ने इस चढाई पर मुझे परेशान कर दिया ।
पहली कि मैने विनचीटर पहन रखी थी । मेरे पास कोई गर्म कपडे नही थे बस एक गर्म बनियान था जिसे मैने अभी बैग में रख रखा था पर मैने जो टीशर्ट रखी हुई थी वो पसीने से भीग गयी थी इसका कारण भी वो विनचीटर थी । उसे पहनना मजबूरी थी क्योंकि उसे निकालते ही ठंडी हवा लगती थी जबकि उसे ना निकालो तो अंदर ही अंदर पसीने बहने लगे थे । आगे चलकर इसने मुझे बहुत परेशान किया
दूसरा मैने सामान काफी ज्यादा ले लिया था । खाने पीने का कुछ सामान मैने अपने बैग में रखा था और कुछ कपडे ज्यादा थे । वजन में हल्की 5 टी शर्ट और एक जींस एक लोअर , दवाईया जो कि मैने पहली पोस्ट में आपको बताया ही था और 5 जोडी सैल करीब दस किलो वजन था पर उसके बावजूद दिमाग में एक ही बात परेशान किये जा रही थी कि घर से चलने से लेकर अब तक एक बार भी चार्जिंग नही हो सके थे ।
ये तो मोबाईल था जिसने जान बचा रखी थी । इस पूरे टूर में 700 फोटो खींचे गये मोबाईल से । उससे फोन तो ना के बराबर ही हुए इसी काम आया पर वो यहां पर जबाब देने लगा था सो मैने उसे बंद करके रख लिया कि पाताल गैरोली में जाकर एक फोन घर और एक जाट को करना है बाद में ये बंद हो जाये तो कोई नही ।
पहले दिन दिल्ली से चला तो कौसानी वाले होटल में केवल फोन ही चार्ज हो सका था । वाण गांव में लाइट नही है गांव के ही पानी को रोककर छोटा सा प्लांट है पर उससे केवल लाइट यानि टयूबलाइट ही जलाते हैं । टयूब लाइट के होल्डर में ना तो मेरा फोन का चार्जर लगा ना ही सैल चार्जर तो आज तीसरा दिन था और अभी दो या तीन दिन पता नही कितना लगेगा पता नही । सैल दो जोडी डिस्चार्ज हो चुके थे जबकि एक कैमरे में थे और दो जोडी अभी बचे थे सो मै देखभाल कर खर्च करने की सोच रहा था
पर जब नजारे इतने बढिया हों तो कौन अपने आप को रोक पाता है । वैसे नीलगंगा से पाताल गैरोली तक फोटो खींचने के लिये कुछ खास नही है ये घना ज्रंगल है जिसमें कहीं कहीं से रनकाधार केवल दिख जाता है नही तो बस रास्ता देखते जाओ और उपर की ओर चढते जाओ ।
यहां पर पूरे रास्ते में पीने का पानी नीलगंगा के बाद नही है सो हमने अपनी बोतले भर ली । हम भी दोनो धीरे धीरे चलते रहे और दस बजे के करीब पाताल गैरोली पहुंच गये । पाताल गैराली में हमने थोडी देर आराम किया और उसके बाद मैने कुंवर सिंह को कैमरा दिया कि मेरा भी फोटो ले दे । इसीलिये तो मैने गाइड किया था नही तो मेरा फोटो कौन खींचता ?
पहली कि मैने विनचीटर पहन रखी थी । मेरे पास कोई गर्म कपडे नही थे बस एक गर्म बनियान था जिसे मैने अभी बैग में रख रखा था पर मैने जो टीशर्ट रखी हुई थी वो पसीने से भीग गयी थी इसका कारण भी वो विनचीटर थी । उसे पहनना मजबूरी थी क्योंकि उसे निकालते ही ठंडी हवा लगती थी जबकि उसे ना निकालो तो अंदर ही अंदर पसीने बहने लगे थे । आगे चलकर इसने मुझे बहुत परेशान किया
दूसरा मैने सामान काफी ज्यादा ले लिया था । खाने पीने का कुछ सामान मैने अपने बैग में रखा था और कुछ कपडे ज्यादा थे । वजन में हल्की 5 टी शर्ट और एक जींस एक लोअर , दवाईया जो कि मैने पहली पोस्ट में आपको बताया ही था और 5 जोडी सैल करीब दस किलो वजन था पर उसके बावजूद दिमाग में एक ही बात परेशान किये जा रही थी कि घर से चलने से लेकर अब तक एक बार भी चार्जिंग नही हो सके थे ।
ये तो मोबाईल था जिसने जान बचा रखी थी । इस पूरे टूर में 700 फोटो खींचे गये मोबाईल से । उससे फोन तो ना के बराबर ही हुए इसी काम आया पर वो यहां पर जबाब देने लगा था सो मैने उसे बंद करके रख लिया कि पाताल गैरोली में जाकर एक फोन घर और एक जाट को करना है बाद में ये बंद हो जाये तो कोई नही ।
पहले दिन दिल्ली से चला तो कौसानी वाले होटल में केवल फोन ही चार्ज हो सका था । वाण गांव में लाइट नही है गांव के ही पानी को रोककर छोटा सा प्लांट है पर उससे केवल लाइट यानि टयूबलाइट ही जलाते हैं । टयूब लाइट के होल्डर में ना तो मेरा फोन का चार्जर लगा ना ही सैल चार्जर तो आज तीसरा दिन था और अभी दो या तीन दिन पता नही कितना लगेगा पता नही । सैल दो जोडी डिस्चार्ज हो चुके थे जबकि एक कैमरे में थे और दो जोडी अभी बचे थे सो मै देखभाल कर खर्च करने की सोच रहा था
पर जब नजारे इतने बढिया हों तो कौन अपने आप को रोक पाता है । वैसे नीलगंगा से पाताल गैरोली तक फोटो खींचने के लिये कुछ खास नही है ये घना ज्रंगल है जिसमें कहीं कहीं से रनकाधार केवल दिख जाता है नही तो बस रास्ता देखते जाओ और उपर की ओर चढते जाओ ।
यहां पर पूरे रास्ते में पीने का पानी नीलगंगा के बाद नही है सो हमने अपनी बोतले भर ली । हम भी दोनो धीरे धीरे चलते रहे और दस बजे के करीब पाताल गैरोली पहुंच गये । पाताल गैराली में हमने थोडी देर आराम किया और उसके बाद मैने कुंवर सिंह को कैमरा दिया कि मेरा भी फोटो ले दे । इसीलिये तो मैने गाइड किया था नही तो मेरा फोटो कौन खींचता ?
मनु भाई. पढ़ कर ऐसा लगता है जैसे मैं खुद भी साथ हूँ.
ReplyDeleteआ रहा हूँ पीछे लगा हुआ हूँ।
ReplyDeleteपसंद आया
ReplyDeleteलो जी हम भी साथ साथ हो लिए आपके
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