लाटू देवता से या वाण गांव से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर नीलगंगा आती है जिसमें वाण गांव से आधा किलोमीटर दूर पर लाटू देवता और रनकाधार से नीलगंगा भी आधा किलोमीटर के करीब है यानि वाण से दो किलोमीटर के करीब तक रनकाधार है । यहां पर इस जगह एक फोरेस्ट विभाग ने हट बनाई हुई है फाइबर की । ये वाण गांव से चढाई करने के बाद लगातार चढाई आने तक की जगह है ।
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लाटू देवता के दर्शन करने के बाद हम लोग आगे के लिये चल दिये । कुंवर सिंह काफी तेजी से जा रहा था तो मैने उसे एक बार समझाया कि बार बार ना कहना पडे मेरे साथ ही चलना है क्योंकि आगे अगर फोन नही चले तो मै कहां आवाज लगाकर खोजता फिरूंगा तुम्हे ।
लाटू देवता से या वाण गांव से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर नीलगंगा आती है जिसमें वाण गांव से आधा किलोमीटर दूर पर लाटू देवता और रनकाधार से नीलगंगा भी आधा किलोमीटर के करीब है यानि वाण से दो किलोमीटर के करीब तक रनकाधार है । यहां पर इस जगह एक फोरेस्ट विभाग ने हट बनाई हुई है फाइबर की । ये वाण गांव से चढाई करने के बाद लगातार चढाई आने तक की जगह है । वाण गांव से लगातार चढने के बाद काफी उंची जगग आती है । इस जगह तक ही आबादी है । इस रास्ते में आपको घर मिलते जाते हैं । ये सब भी वाण गांव का ही हिस्सा है । जैसे हमारे यहां मजरे होते हैं किसी बडे गांव के । पर यहां रहने वाले घरो के बच्चे पढने के लिये नीचे ही जाते हैं । घर आते रहे तो हमें भी रास्ते का ज्यादा पता नही चला ।
हां यहां पर हर घर मे , चाहे वो झौंपडी ही क्यों ना हो , डिश टीवी यानि छतरी लगी हुई है । एफ एम भी बजता मिला दो एक घरो में । इस पूरे रास्ते में खेत काफी हैं और लोग अपने छोटे छोटे खेतो में मेहनत से लगे हुए दिखायी देते हैं । रास्ते में काफी लडकियां और औरते खेतो से अपनी कमर और सिर पर घास के गठठर लाती मिल जायेंगी ।
इस पालतू मेमने ने अपने मालिक को काफी भगाया क्योंकि ये खुलकर आ गया था और वो इसके पीछे आ रहा था । मेरे और कुंवर सिंह के बीच में जब ये आया तो मै कोई फोटो खींच रहा था
इस फूल को देखिये । इसका फोटो लेने की कोशिश कर रहा था जब वो मेमना बीच में आ गया ।
लीजिये आ गये हम रनकाधार में । अब यहां से आगे केवल उतराई है । कुंवर सिंह थोडा आराम कर रहा है कुंवर सिंह के पीछे जो हरे रंग की फाइबर की हट दिख रही है वो वन विभाग ने बनाई हुई है । इनमें रूकने के लिये पर्ची कटवानी पडती है । देखा जाये तो रनकाधार यहां का पहला पडाव है थोडी देर सांस लेने के लिये रूकते हैं और अगली बार चलते हैं नीलगंगा की ओर तब तक अपने और जरूरी काम भी कर लो क्योंकि मै ज्यादा देर में नही आउंगा जल्द ही मिलते हैं
बहुत सुन्दर यात्रा संस्मरण!
ReplyDeleteरुपकुन्ड यात्रा का रोमांच तो अब जाकर आया है। पढ़ने वाले के लिये गाइड का काम करेगी।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया -
ReplyDeleteशुभकामनायें-
गणतंत्र दिवस की -