लोहाजंग से वाण 12 किलोमीटर के करीब है वैसे बिजलीघर तक की दूरी दस किलोमीटर है पर जहां रूपकुंड की चढाई शुरू होती है वहां तक 2 किलोमीटर और है । रास्ते में कुलिंग गांव पडता है यहां से दिदना के रास्ते पहले आली बुग्याल जाकर रूपकुंड जाया जा सकता है । रास्ता बडा सुंदर था और चौलाई के खेतो
भाई तो चिपक ही गया था । मैने अपनी बाइक उठायी और चल पडा वाण गांव की ओर ।
यहां से मुझे ये तो पता चल ही गया था कि आज ही इंडिया हाइक वालो का एक 40 आदमियो का बैच गया है जो कि आज
दिदना में रूकेंगें । तो अगर वे मुझे मिल गये तो मै उन्हे ही पकड लूंगा ये सोचकर
मुझे बडी राहत मिली कि आफ सीजन में भी अभी लोग जा रहे हैं तो मुझे साथ मिल जायेगा
।
लोहाजंग का अपना धार्मिक महत्व भी है । देवाल ब्लाक और थराली तहसील के 2250 मी0 की उंचाई पर स्थित इस गांव का मौसम साल भर बढिया
रहता है और दिन में कई बार बदलता है वैसे यहां कुछ अच्छे प्वांइट भी हैं जिन्हे
वापसी में आपको घुमाउंगा । कौसानी से दिखायी दे रही त्रिशूली , नंदा घूंटी , और चौखंभा जैसी चोटियां यहां से
और भी पास दिखायी देती हैं । यहां के महत्व के बारे में कथा कही जाती है कि देवी
मां ने यहां पर लोहासुर नामक राक्षस का वध किया था इस वजह से इस जगह का नाम
लोहाजंग पडा । यहां पर नंदा का चबूतरा भी है जब नंदा देवी राजजात यात्रा यहां से
गुजरती है तो उनकी डोली यहां पर विश्राम करती है । नंदा देवी राजजात यात्रा हर साल
होती हैपर 12 साल में होने वाली यात्रा को ज्यादा अच्छा माना जाता है ।
नंदा देवी उत्तराखंड की प्रसिद्ध देवी है । उनकी पूजा उत्तराखंड में कई जगहो
पर की जाती है । कुमांउ के कत्यूरी राजाओ की कुलदेवी के रूप में नंदा देवी की पूजा
की जाती है । नंदा देवी को पार्वती की बहन भी माना जाता है । पूरे हिमालय में
शक्ति के रूप में नंदा देवी की पूजा की जाती है ।
ऐसा माना जाता है दक्ष प्रजापति की सात कन्याऐं थी । जिनमें से पार्वती को तो
सभी जानते हैं पर नंदा देवी भी उनमें से एक थी । कहीं कहीं तो उनका विवाह शिव के
साथ भी माना जाता है । हिमालय पर शिव के साथ उनका वास माना जाता है । कहीं उनको
पार्वती का रूप भी माना जाता है ।
राजजात का अर्थ है नंदा देवी की यात्रा । आमतौर पर गढवाल में देवी देवताओ की
यात्रा यानि जात काफी प्रचलित है और ज्यादातर देवी देवताओ को डोली में बिठाकर उनकी
जात निकाली जाती है ।
ऐसा विश्वास है कि नंदा देवी भाद्रपद के कृष्ण पक्ष में अपने मायके पधारती है
और प्रतिवर्ष शुक्ल अष्टमी के दिन राजजात मनायी जाती है । इस दिन देवी अपने मायके
से ससुराल के लिये जाती है यही यात्रा राजजात कहलाती है । इसमें सारी वे ही
क्रियाए की जाती हैं जैसे मैके आयी अपनी लडकी को ससुराल भेजते वक्त की जाती हैं
उनके लिये वस्त्र , गहने , मिठाई फल , फूल आदि देकर उनको विदा
किया जाता है ।
अब आते हैं लोहाजंग से आगे के रास्ते की बात पर । मै लोहाजंग के लाज वाले भाईसाहब को गच्चा सा देकर चल पडा वाण की ओर । लोहाजंग से वाण 12 किलोमीटर के करीब है वैसे बिजलीघर तक की दूरी दस किलोमीटर है पर जहां रूपकुंड की चढाई शुरू होती है वहां तक 2 किलोमीटर और है । रास्ते में कुलिंग गांव पडता है यहां से दिदना के रास्ते पहले आली बुग्याल जाकर रूपकुंड जाया जा सकता है । रास्ता बडा सुंदर था और चौलाई के खेतो , उंचे पहाडो और चीड के पेडो ने समां बांध रखा था । आप इन चित्रो से यहां की खूबसूरती का आनंद लीजिये और मै आपको मिलता हूं वाण गांव में अगली पोस्ट में
मनु भाई, वैरी गुड पोस्ट.
ReplyDeleteहम भी अपनी धड़कने सम्भाल कर पीछे लगे हुए है।
ReplyDeleteबहुत खूब...लगे रहो....
ReplyDeleteउत्तराखंड की खूबसूरत वादियाँ देखकर, वहां अभी चले जाने का दिल करता है. बहुत सुन्दर पोस्ट, यूँही लिखते रहिये.
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