अल्मोडा से निकलने के बाद देवस्थल नाम की एक जगह आती है जो कि कोसी नदी के किनारे बसा एक मंदिर है । यहां पर पैकेज बसे जिसमें कि मैने पहली बार सफर किया था कौसानी का उनका स्टापेज होता है । यहां नीचे काफी सुंदर नजारा होता है पानी पत्थरो में बहता हुआ वो भी काफी कम मात्रा में ।
मै सात ताल से सवा दो बजे के करीब चला था । इस हिसाब से कौसानी मै छह या सात के बीच में पहुंच सकता था । कौसानी फिर भी सुंदर जगह थी । मैने खट से बाइक उठायी और कौसानी के लिये चल दिया । बीच बीच में शहर के कुछ नजारो और अल्मोडा शहर का नजारा मैने कैमरे में लिया । सच पूछो तो बार बार फोटो लेने के लिये रोकने में करीब आधा घंटा निकल गया जब तक कि अल्मोडा आंखो से ओझल हो गया ।
ये अल्मोडा के नजारे हैं अल्मोडा से निकलने के बाद देवस्थल नाम की एक जगह आती है जो कि कोसी नदी के किनारे बसा एक मंदिर है । यहां पर पैकेज बसे जिसमें कि मैने पहली बार सफर किया था कौसानी का उनका स्टापेज होता है । यहां नीचे काफी सुंदर नजारा होता है पानी पत्थरो में बहता हुआ वो भी काफी कम मात्रा में । लोग पत्थरो पर बैठकर फोटो खिंचवाते हैं । ये मैने देखा हुआ था इसलिये यहां भी एक दो फोटो लेकर मै आगे चलता बना । अब अंधेरा होने को था और मै अभी काफी दूर था । मेरी बाइक में पैट्रोल भी कम था और मुझे पता चला था कि मुक्तेश्वर जो कि कौसानी से दस किलोमीटर पहले है में देा पैट्रोल पम्प हैं । मै मुक्तेश्वर तक उजाले में पहुंच गया था और मैने यहां अपनी टंकी फुल करा ली । अंधेरा बस हो गया था । मैने पम्प वाले से पूछा कि यहां कोई होटल वगैरा है तो वो बोला किये भी सही बात है वहां पर ज्यादा होटल मिलेंगे और सुबह वहां का सूर्योदय भी देख लेंगें । बस फिर क्या था मै कौसानी के लिये चल पडा । मुझे कौसानी तक का रास्ता अंधेरे में तय करना पडा । कौसानी मै सवा छह बजे पहुंचा । बारह घंटे में 436 किलोमीटर वाया भीमताल सातताल , नौकुचियाताल ये था आज का रिपोर्ट कार्ड । मुझे चार पांच साल पहले का अपना होटल याद था । ये बिलकुल रोड पर था । पर वहां आज कमरा खाली नही था । पर होटल वाले अंकल ने मुझे दूसरा एक गेस्ट हाउस बताया जो कि बाजार में था । मैने उस गेस्ट हाउस पर जो कि एक दुकानदार का था और उसकी दुकान के उपर मेन बाजार में उसने दो कमरे बना रखे थे , में 150 रू में एक बढिया डबल बैड रूम तय कर लिया । बाइक को दुकान के अंदर खडी करनी थी । इसके बाद मै खाना खाने पास के ही एक होटल में चला गया जहां चालीस रूपये में भरपेट खाना था । आकर मैने बाइक खडी की और सो गया
कौशानी की १० साल पुरानी यादों को ताज़ा कर दिया आपने। बहुत शुक्रिया।
ReplyDeleteमनु जी कुछ चित्र रिपीट हो रहे हैं, ऐसी कंहा की जल्दी हैं....वन्देमातरम..
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteबहुत बदिया मनु भाई,
ReplyDeleteअभी परसो ही मैं कौसनी से लौटा हूँ। आपकी लेख से वहाँ की याद ताज़ा हो गयी।
Meri samajh se Mukteshwar nahi Someshwar.
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