हम अपनी बोट में पहुंचे और वहां पर हमें लाइफ जैकेट पहनने के लिये दी गयी । हम नाव के निचले तल में बैठे थे ये नम्बर के हिसाब से नाव को भरते हैं पहले नीचे का तल और फिर उपर का जिसका नम्बर आ जाये उसकी किस्मत । हमारी नाव तैयार हुई और फिर निकल पडी एक झील नही मै इसे नदी कहूंगा जैसी जलराशि में ।
मदुरै हमारा जाना बिलकुल समतल में हुआ
था । मदुरै से थेक्कडी के लिये चलना भी ऐसा ही था पर थेक्कडी से कुछ 50 एक किलोमीटर पहले से पहाडियां दिखनी
और आनी शुरू हो गयी । साथ में ठंडी ठंडी हवा भी थी जो पहाड में जाते ही हल्की हल्की
बारिश में बदल गयी जो कभी पड जाती और कभी नही । यहां पहुंचने से कुछ पहले एक कस्बा
पडता है कुमली । ये कस्बा ही थेक्कडी आने वालो के लिये रूकने का सर्वोत्तम स्थान है
क्योंकि यहां पर रूकने के साधन थेक्क्डी से ज्यादा हैं और थेक्कडी से सस्ते भी । दूरी
बमुश्किल दो या तीन किलोमीटर होगी ।
ये कस्बा मिर्च ,मसालो , इलायची आदि के व्यापार का केन्द्र है यहां होटल तलाश करना ज्यादा मुश्किल काम नही था । वैसे तो हमारे ड्राइवर राजेश को भी हम कह सकते थे पर अभी समय था अंधेरा ज्यादा नही हुआ था सो हम खुद ही ढूंढने निकल गये । मेन चौक से कुछ दूरी पर ही तीन मंजिला एक गेस्ट हाउस में बालकनी फेसिंग के चार कमरे 300 रू कमरे के हिसाब से मिल गये । कमरो का साइज थोडा छोटा था पर कमरे मे अटैच्ड बाथ ,गीजर के समेत सारी सुविधाये थी। गाडी से सामान उतारकर हमने अपने अपने कमरे में रखा और फिर सबसे पहले खाने के लिये होटल ढूंढने चल पडे । यहां भी खाने के लिये कोई ज्यादा परेशानी नही हुई । मेन चौक पर ही हमें किसी ने बता दिया कि पंजाबी और राजस्थानी दोनो तरह के होटल थोडे आगे चलकर हैं सो हमने राजस्थानी होटल पर खाना खाया । खाना खाकर हम सोने चले गये । सुबह बहुत जल्दी उठकर तैयार जो होना था
ये कस्बा मिर्च ,मसालो , इलायची आदि के व्यापार का केन्द्र है यहां होटल तलाश करना ज्यादा मुश्किल काम नही था । वैसे तो हमारे ड्राइवर राजेश को भी हम कह सकते थे पर अभी समय था अंधेरा ज्यादा नही हुआ था सो हम खुद ही ढूंढने निकल गये । मेन चौक से कुछ दूरी पर ही तीन मंजिला एक गेस्ट हाउस में बालकनी फेसिंग के चार कमरे 300 रू कमरे के हिसाब से मिल गये । कमरो का साइज थोडा छोटा था पर कमरे मे अटैच्ड बाथ ,गीजर के समेत सारी सुविधाये थी। गाडी से सामान उतारकर हमने अपने अपने कमरे में रखा और फिर सबसे पहले खाने के लिये होटल ढूंढने चल पडे । यहां भी खाने के लिये कोई ज्यादा परेशानी नही हुई । मेन चौक पर ही हमें किसी ने बता दिया कि पंजाबी और राजस्थानी दोनो तरह के होटल थोडे आगे चलकर हैं सो हमने राजस्थानी होटल पर खाना खाया । खाना खाकर हम सोने चले गये । सुबह बहुत जल्दी उठकर तैयार जो होना था
थेक्कडी जो है वो
एक जंगल में वन्य पर्यटक स्थल बना दिया गया है । ये कृत्रिम झील है ना कि कुदरती ।
जब मुल्लापेरियार बांध का निर्माण किया गया तो इस झील का निर्माण हुआ । पर इस जगह
का भी केरल सरकार ने बढिया उपयोग किया । बांध बनाया उससे बिजली बनेगी और साथ में बनी
झील को पर्यटक स्थल बना दिया ।
पर्यटक स्थल बनाने के लिये यहां पर बढिया और बडी दो मंजिला नावे चलाई जाती हैं । इन नावो में भी भेद है । असल में यहां पर एक तो वन विभाग नावो का संचालन करता है और एक केरल सरकार का पर्यटन विभाग । दोनो विभागो की नाव में भी थोडा बहुत फर्क है लेकिन रेट में काफी अंतर है । मै अब ये तो पक्का नही कह सकता कि कौन सी सस्ती थी पर एक का टिकट तो 250 रू प्रति आदमी का था और एक का था केवल 80 रू का ।
यहां की नावें एक निश्चित समय पर छूटती हैं और वो एक एक घंटे के अंतर पर है । फायदा उस नाव में जाने में होता है जो सबसे सुबह चलती है क्योंकि अगर आप गर्मियो में वहां पर जा रहे हैं तो गर्मियो में जानवर सुबह सुबह ही झील में पानी पीने आते हैं । बाकी दिन में वे गर्मी के मारे ज्यादातर जंगल मे ही दुबके रहते हैं । हमें भी होटल वाले ने पहले ही बता दिया था कि जितनी सुबह हो सके उतना निकल जाना । हमने सुबह चार बजे का अलार्म लगा लिया । सबके अलग अलग कमरे थे इसलिये सब आराम से और एक साथ तैयार हो गये ।
पांच बजे हम तैयार होकर चल दिेये । होटल से उतरकर हमने अपना सामान गाडी के उपर बांध लिया । 15 मिनट के सफर के बाद हम सब थेक्कडी झील के मुख्य प्रवेश द्धार पर पहुंच गये । वहां पर हमारे से भी पहले दो आटो और चार पांच गाडिया आकर खडी थी । एक आटो में और और एक गाडी में विदेशी थे । हम तो सोच रहे थे कि हम ही पहले आये हैं । अभी गेट के पास मौजूद एक छोटे से कमरे की खिडकी नही खुली थी । इसी में से टिकट मिलना था और गाडियो में मौजूद लोग यहां पर अभी से लाइन लगाये थे । हमे देखकर लग रहा था कि सुबह के साढे पांच बजे जब ये हाल है तों बाद में क्या होगा ? हमारे बाद में भी धडाधड गाडिया आने लगी । इस बात को देखकर मै लाइन में लग गया क्योंकि टिकट तो एक ही आदमी को ले लेना था । बाकी सब लोग वहीं पर मौजूद एक चाय की दुकान पर चाय पीने लगे । काफी देर तक लाइन में लगने के बाद वो कमरा खुला और टिकट देने वाले महाशय आये । तब तक लाइन में काफी सरगर्मी बढ चुकी थी और लोगो की भीड भी जिसे संभालने के लिये सुरक्षाकर्मी भी आ गये थे । इस खिडकी को जिसे हम अपनी मेहनत मान रहे थे कि हम सुबह आ गये है केवल गाडी के प्रवेश करने के लिये बनाया गया था । गाडी का कुछ शुल्क जो शायद चालीस या पचास रूपये होगा और कुछ जानकारी आदमियो की लेकर हमें एक पास मिल गया जिसे लेकर हमारी गाडी अंदर जा सकती थी । हम फटाफट गाडी में बैठे और अंदर की ओर चल दिये । एक जगह पार्किंग में जाने के बाद पता चला कि अभी करीब दौ तीन सौ मीटर पैदल चलकर जाना है क्योंकि वन्य अभ्यारन्य है तो गाडी आगे नही जायेगी । और यहां पर जो दौड लगी है वो याद करके मुझे आज भी हंसी आ जाती है जैसे खजाना लुट रहा हो और हम पीछे रह जायेंगे । मैने भी सबके कहने पर दौड लगा दी और जहां टिकट काउंटर बना था वहां पर सबसे पहले जाकर लग गया । पर यहां पर भी एक अजीब शर्त थी कि हर बंदे को आना पडेगा और एक एक फार्म दिया गया जिसको भरने के बाद काउंटर पर देना था । ऐसा शायद दलालो को रोकने के लिये किया गया था पर अब केवल मै आगे था पीछे सब सोच रहे थे कि मनु तो लाइन में लग ही गया है तो वे आराम से आये और काफी पीछे से लाइन में लगे बाद में । पर इसका फायदा ये हुआ कि पहले ढाई सौ वाली बोट भर गयी और हमें वहां पर ही मौजूद दूसरे कांउटर पर ये कहकर भेज दिया कि जो उस बोट से जाना चाहें वो उधर से टिकट ले लें । जो ढाई सौ वाली बोट से जाना चाहें वो अभी अगली बोट का इंतजार करें । हमने तो अस्सी रूपये वाली का टिकट ले लिया । इस काउंअर के पास शौचालय और बच्चो के खेलने के लिये पार्क टाइप सा बना था जहां पर लोग टाइम पास कर सकते हैं दोनो बोट तक पहुंचने के लिये अलग अलग लकडी के रास्ते बनाये गये थे । हम अपनी बोट में पहुंचे और वहां पर हमें लाइफ जैकेट पहनने के लिये दी गयी । हम नाव के निचले तल में बैठे थे ये नम्बर के हिसाब से नाव को भरते हैं पहले नीचे का तल और फिर उपर का जिसका नम्बर आ जाये उसकी किस्मत । हमारी नाव तैयार हुई और फिर निकल पडी एक झील नही मै इसे नदी कहूंगा जैसी जलराशि में । ये कुछ इस तरह की थी जैसे आप टिहरी या किसी भी पहाडी बांध में जाओ तो बांध से जितना आप दूर जाते जाओगे वैसे वैसे उसको जल से भरने वाली धाराओ की तरफ आपको कम पानी मिलता जायेगा । जैसा कि आमतौर पर झील को देखा जाता है वो कोई आकार लिये होती है यहां पर हम नदी की तरह नाव में चलकर एक रास्ते से गये जिसके दोनेा ओर पहाड थे जिन पर लकदक जंगल थे और दूसरी तरफ भी पहाड थे ऐसे ही । लेकिन हम ना तो दूसरी नाव को देख पाये और जिस रास्ते से हम गये उसी रास्ते से वापिस नही आये तो हो सकता है कि ये इतनी बडी झील हो जिसमें बीच में बहुत बडे बडे पहाड टापू जैसे हों । नाव के चलने से ही सब लोग इस इंतजार में बैठे थे कि कौन कौन से जानवर दिखेंगे । जानवर सबसे पहले जंगली सूअर जैसे दिखायी दिये जो पानी पी रहे थे । सबके कैमरो ने दनादन चमकना शुरू कर दिया । कुछ लोग दूरबीन लिये थे और पूरी जोर आजमाईश में थे कि कोई जानवर दिखायी दे । बार बार शोर मचता कि वो देखो और फिर तो सब अपनी सीट छोडकर खडे हो जाते फिर नाव में जो गाइड के रूप में सवार था उसको सबका अपनी अपनी जगह बैठ जाने के लिये कहना पडता । बहुत देर बाद एक हिरन या शायद सांभर दिखायी दिया जो कि पानी के पास बैठा था और आराम फरमा रहा था । वो भी इतनी दूर था कि फूल जूम करके उसका फोटो आ सकता था । क्योंकि नदी या झील का पाट काफी चौडा था और नाव चूंकि सरकारी थी तो अपने तय रूट पर और बिलकुल बीचोबीच चल रही थी ऐसे नही कि जानवर दिखायी दे तो उधर को ही ले ले जैसा कि डाल्फिन टूर में होता है और डाल्फिन आगे आगे और नाव वाला तेज स्पीड करके उसके पीछे पीछे । उस एक जानवर के अलावा शोर तो कई बार मचा पर कुछ और दिखायी नही दिया । हां झील के बीच मे बांध के डूबने के कारण जो जंगल डूब गये उनके सूखे पेडो के तने अभी भी खडे दिख जाते हैं जो कि काफी अच्छे लगते हैं और कभी कभी सुंदर दृश्य बनाते हैं । वैसे मौसम बहुत बढिया था इतने हरेभरे जंगल कम ही देखने को मिलते हैं । चूंकि ये टाइगर रिजर्व भी है और बहुत बडे जगह में फैला है इसलिये शायद ऐसा हो और इसीलिये इसे अभ्यारण्य बनाया गया हो । पहाड के उपर स्थित पेडो के उपर बादल उड रहे थे । भले जानवर कम दिखे पर मनभावन यात्रा रही और काफी लम्बी भी । लगभग एक घंटे की इस यात्रा में मजा आ गया । इसकी वजह वो अस्सी रूपये का टिकट भी था क्योंकि वो ज्यादा नही था । अगर ढाई सौ रूपये प्रति व्यक्ति देते तो दुख होता यहां आज पूरा दिन हो चला था सेा हमने आज भी यही रूकने का निश्चय किया और शाम को कुमली के बाजार में घूमें ।
कल रात वाले होटल की बजाय आज पंजाबी होटल में खाना खाया । हमारा इरादा अगली सुबह सुबह सवेरे उठकर मुन्नार के लिये चलने का था । इसलिये यहां पर काफी बाजार देखा । हालांकि सामान ज्यादा नही लिया पर यहां से काफी ली जा सकती है इसके साथ ही इलायची और गर्म मसाले भी मिलते हैं जिन्हे सस्ता तो नही कहा जा सकता पर हां वे असली जरूर हो सकते हैं । हो सकता है उनमें कुछ कम मिलावट होती हो यहां पर । चाय लेने का इरादा मुन्नार से था तो चाय यहां से नही ली हमने रात को होटल में जाकर सोने से पहले राजेश को बता दिया कि सुबह चार बजे उठकर तैयार हो जाना
पर्यटक स्थल बनाने के लिये यहां पर बढिया और बडी दो मंजिला नावे चलाई जाती हैं । इन नावो में भी भेद है । असल में यहां पर एक तो वन विभाग नावो का संचालन करता है और एक केरल सरकार का पर्यटन विभाग । दोनो विभागो की नाव में भी थोडा बहुत फर्क है लेकिन रेट में काफी अंतर है । मै अब ये तो पक्का नही कह सकता कि कौन सी सस्ती थी पर एक का टिकट तो 250 रू प्रति आदमी का था और एक का था केवल 80 रू का ।
यहां की नावें एक निश्चित समय पर छूटती हैं और वो एक एक घंटे के अंतर पर है । फायदा उस नाव में जाने में होता है जो सबसे सुबह चलती है क्योंकि अगर आप गर्मियो में वहां पर जा रहे हैं तो गर्मियो में जानवर सुबह सुबह ही झील में पानी पीने आते हैं । बाकी दिन में वे गर्मी के मारे ज्यादातर जंगल मे ही दुबके रहते हैं । हमें भी होटल वाले ने पहले ही बता दिया था कि जितनी सुबह हो सके उतना निकल जाना । हमने सुबह चार बजे का अलार्म लगा लिया । सबके अलग अलग कमरे थे इसलिये सब आराम से और एक साथ तैयार हो गये ।
पांच बजे हम तैयार होकर चल दिेये । होटल से उतरकर हमने अपना सामान गाडी के उपर बांध लिया । 15 मिनट के सफर के बाद हम सब थेक्कडी झील के मुख्य प्रवेश द्धार पर पहुंच गये । वहां पर हमारे से भी पहले दो आटो और चार पांच गाडिया आकर खडी थी । एक आटो में और और एक गाडी में विदेशी थे । हम तो सोच रहे थे कि हम ही पहले आये हैं । अभी गेट के पास मौजूद एक छोटे से कमरे की खिडकी नही खुली थी । इसी में से टिकट मिलना था और गाडियो में मौजूद लोग यहां पर अभी से लाइन लगाये थे । हमे देखकर लग रहा था कि सुबह के साढे पांच बजे जब ये हाल है तों बाद में क्या होगा ? हमारे बाद में भी धडाधड गाडिया आने लगी । इस बात को देखकर मै लाइन में लग गया क्योंकि टिकट तो एक ही आदमी को ले लेना था । बाकी सब लोग वहीं पर मौजूद एक चाय की दुकान पर चाय पीने लगे । काफी देर तक लाइन में लगने के बाद वो कमरा खुला और टिकट देने वाले महाशय आये । तब तक लाइन में काफी सरगर्मी बढ चुकी थी और लोगो की भीड भी जिसे संभालने के लिये सुरक्षाकर्मी भी आ गये थे । इस खिडकी को जिसे हम अपनी मेहनत मान रहे थे कि हम सुबह आ गये है केवल गाडी के प्रवेश करने के लिये बनाया गया था । गाडी का कुछ शुल्क जो शायद चालीस या पचास रूपये होगा और कुछ जानकारी आदमियो की लेकर हमें एक पास मिल गया जिसे लेकर हमारी गाडी अंदर जा सकती थी । हम फटाफट गाडी में बैठे और अंदर की ओर चल दिये । एक जगह पार्किंग में जाने के बाद पता चला कि अभी करीब दौ तीन सौ मीटर पैदल चलकर जाना है क्योंकि वन्य अभ्यारन्य है तो गाडी आगे नही जायेगी । और यहां पर जो दौड लगी है वो याद करके मुझे आज भी हंसी आ जाती है जैसे खजाना लुट रहा हो और हम पीछे रह जायेंगे । मैने भी सबके कहने पर दौड लगा दी और जहां टिकट काउंटर बना था वहां पर सबसे पहले जाकर लग गया । पर यहां पर भी एक अजीब शर्त थी कि हर बंदे को आना पडेगा और एक एक फार्म दिया गया जिसको भरने के बाद काउंटर पर देना था । ऐसा शायद दलालो को रोकने के लिये किया गया था पर अब केवल मै आगे था पीछे सब सोच रहे थे कि मनु तो लाइन में लग ही गया है तो वे आराम से आये और काफी पीछे से लाइन में लगे बाद में । पर इसका फायदा ये हुआ कि पहले ढाई सौ वाली बोट भर गयी और हमें वहां पर ही मौजूद दूसरे कांउटर पर ये कहकर भेज दिया कि जो उस बोट से जाना चाहें वो उधर से टिकट ले लें । जो ढाई सौ वाली बोट से जाना चाहें वो अभी अगली बोट का इंतजार करें । हमने तो अस्सी रूपये वाली का टिकट ले लिया । इस काउंअर के पास शौचालय और बच्चो के खेलने के लिये पार्क टाइप सा बना था जहां पर लोग टाइम पास कर सकते हैं दोनो बोट तक पहुंचने के लिये अलग अलग लकडी के रास्ते बनाये गये थे । हम अपनी बोट में पहुंचे और वहां पर हमें लाइफ जैकेट पहनने के लिये दी गयी । हम नाव के निचले तल में बैठे थे ये नम्बर के हिसाब से नाव को भरते हैं पहले नीचे का तल और फिर उपर का जिसका नम्बर आ जाये उसकी किस्मत । हमारी नाव तैयार हुई और फिर निकल पडी एक झील नही मै इसे नदी कहूंगा जैसी जलराशि में । ये कुछ इस तरह की थी जैसे आप टिहरी या किसी भी पहाडी बांध में जाओ तो बांध से जितना आप दूर जाते जाओगे वैसे वैसे उसको जल से भरने वाली धाराओ की तरफ आपको कम पानी मिलता जायेगा । जैसा कि आमतौर पर झील को देखा जाता है वो कोई आकार लिये होती है यहां पर हम नदी की तरह नाव में चलकर एक रास्ते से गये जिसके दोनेा ओर पहाड थे जिन पर लकदक जंगल थे और दूसरी तरफ भी पहाड थे ऐसे ही । लेकिन हम ना तो दूसरी नाव को देख पाये और जिस रास्ते से हम गये उसी रास्ते से वापिस नही आये तो हो सकता है कि ये इतनी बडी झील हो जिसमें बीच में बहुत बडे बडे पहाड टापू जैसे हों । नाव के चलने से ही सब लोग इस इंतजार में बैठे थे कि कौन कौन से जानवर दिखेंगे । जानवर सबसे पहले जंगली सूअर जैसे दिखायी दिये जो पानी पी रहे थे । सबके कैमरो ने दनादन चमकना शुरू कर दिया । कुछ लोग दूरबीन लिये थे और पूरी जोर आजमाईश में थे कि कोई जानवर दिखायी दे । बार बार शोर मचता कि वो देखो और फिर तो सब अपनी सीट छोडकर खडे हो जाते फिर नाव में जो गाइड के रूप में सवार था उसको सबका अपनी अपनी जगह बैठ जाने के लिये कहना पडता । बहुत देर बाद एक हिरन या शायद सांभर दिखायी दिया जो कि पानी के पास बैठा था और आराम फरमा रहा था । वो भी इतनी दूर था कि फूल जूम करके उसका फोटो आ सकता था । क्योंकि नदी या झील का पाट काफी चौडा था और नाव चूंकि सरकारी थी तो अपने तय रूट पर और बिलकुल बीचोबीच चल रही थी ऐसे नही कि जानवर दिखायी दे तो उधर को ही ले ले जैसा कि डाल्फिन टूर में होता है और डाल्फिन आगे आगे और नाव वाला तेज स्पीड करके उसके पीछे पीछे । उस एक जानवर के अलावा शोर तो कई बार मचा पर कुछ और दिखायी नही दिया । हां झील के बीच मे बांध के डूबने के कारण जो जंगल डूब गये उनके सूखे पेडो के तने अभी भी खडे दिख जाते हैं जो कि काफी अच्छे लगते हैं और कभी कभी सुंदर दृश्य बनाते हैं । वैसे मौसम बहुत बढिया था इतने हरेभरे जंगल कम ही देखने को मिलते हैं । चूंकि ये टाइगर रिजर्व भी है और बहुत बडे जगह में फैला है इसलिये शायद ऐसा हो और इसीलिये इसे अभ्यारण्य बनाया गया हो । पहाड के उपर स्थित पेडो के उपर बादल उड रहे थे । भले जानवर कम दिखे पर मनभावन यात्रा रही और काफी लम्बी भी । लगभग एक घंटे की इस यात्रा में मजा आ गया । इसकी वजह वो अस्सी रूपये का टिकट भी था क्योंकि वो ज्यादा नही था । अगर ढाई सौ रूपये प्रति व्यक्ति देते तो दुख होता यहां आज पूरा दिन हो चला था सेा हमने आज भी यही रूकने का निश्चय किया और शाम को कुमली के बाजार में घूमें ।
कल रात वाले होटल की बजाय आज पंजाबी होटल में खाना खाया । हमारा इरादा अगली सुबह सुबह सवेरे उठकर मुन्नार के लिये चलने का था । इसलिये यहां पर काफी बाजार देखा । हालांकि सामान ज्यादा नही लिया पर यहां से काफी ली जा सकती है इसके साथ ही इलायची और गर्म मसाले भी मिलते हैं जिन्हे सस्ता तो नही कहा जा सकता पर हां वे असली जरूर हो सकते हैं । हो सकता है उनमें कुछ कम मिलावट होती हो यहां पर । चाय लेने का इरादा मुन्नार से था तो चाय यहां से नही ली हमने रात को होटल में जाकर सोने से पहले राजेश को बता दिया कि सुबह चार बजे उठकर तैयार हो जाना
हम भी एक बार रणथंभौर अभ्यारण्य में पूरा दिन जीप में घूमते रहे, न शेर दिखा न शेर का बच्चा लेकिन प्राक्रतिक दृश्य कसर पूरी कर देते हैं।
ReplyDeleteखूबसूरत चित्र हैं, अच्छी पोस्ट है।
शुभकामनायें ।
ReplyDeleteमनु जी केरल में भी उत्तरभारतीय खाना मिलाता हैं. पढकर अच्छा लगा. नयी नयी जगह का दर्शन कराने के लिए धन्यवाद....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (11-11-2012) के चर्चा मंच-1060 (मुहब्बत का सूरज) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
बढ़िया लिखा मनु भाई !!
ReplyDeleteदूर्भाग्य से हम ये झील नही घूम पाये ...
पर आपका ब्लॉग पढ़कर हमें लग रहा कि ठीक ही हुआ ....
इसके बदले जो हमने घूमा वो आप मेरे ब्लॉग में पढियेगा ...वही लिख रहे हैं ....!!
Thanks a lot for sharing the most beautiful lines which you have shared about the thekkady in Kerala. I like this place very much because it is the nice place which is filled with the beauty and the greenery everywhere. Once i have been to this place from Bhubaneswar to Kerala in the month of august in the year 2015.
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