हां मेलो या विशेष स्नान दिवसो पर भले ही भीड हो जाती हो पर ज्यादातर यहां पर सूना सूना सा ही रहता है । यहां से मुरादाबाद 65 गजरौला 15 गाजियाबाद 72 और हापुड 38 किमी है । एक खास बात और कि ब्रजघाट के उस पार यानि की गंगा पार पुल पार करते ही जेपी नगर जिला शुरू हो जाता है । और 65 किमी के बाद मुरादाबाद ।
वहां से मै सीधा गढमुक्तेश्वर के ब्रजघाट नामक जगह पर ही रूका । पहले घंटे में 40 किलोमीटर और दूसरे में 45 मिनट में चालीस किलोमीटर चला था । आठ बजने में पन्द्रह मिनट थी । ब्रजघाट का कुछ नजारा आप लोगो के लिये रख लूं ये सोचकर बाइक को विपरीत दिशा में ब्रजघाट पर उतार दिया । यहां पर सीधे घाट पर पहुंचा बाइक खडी की और कुछ फोटो लिये । आवाजाही कम थी । ज्यादातर लोग स्नान कर रहे थे ।
भीड भाड बिलकुल नही थी । नाव वाले गंगाजी के बीच में ले जाकर स्नान कराने के लिये आवाज लगा रहे थे । मै यहां पर गंगाजी के बीच में जाकर भी स्नान कर चुका हूं । मेरी बहन की शादी यहीं पास में ही हुई है और जब भी मै वहां जाता हूं तो कंधे पर तौलिया रखकर सुबह नहाने के लिये अक्सर वहां के लोग ब्रजघाट के लिये चल देते हैं ।सुबह सुबह यहां पर लंगर भी चल रहा था जिसमें साधु और बच्चे लाइन में लगकर खाना ले रहे थे । पुजारियो ने अभी अभी अपनी बोहनी भी नही की थी । वे घाट की सीढियो पर अपनी चादर बिछाकर नहाकर आने वाले श्रद्धालुओ की ताक में बैठे थे । ब्रजघाट के बारे मे मैने पता नही कितनी बार पढ लिया कि यहां हरिद्धार जैसा बनाया जायेगा इतने करोड रूपये खर्च् किये जायेंगे पर यहां का हाल भी शुक्रताल जैसा ही है । हां मेलो या विशेष स्नान दिवसो पर भले ही भीड हो जाती हो पर ज्यादातर यहां पर सूना सूना सा ही रहता है । यहां से मुरादाबाद 65 गजरौला 15 गाजियाबाद 72 और हापुड 38 किमी है । एक खास बात और कि ब्रजघाट के उस पार यानि की गंगा पार पुल पार करते ही जेपी नगर जिला शुरू हो जाता है । और 65 किमी के बाद मुरादाबाद ।
वाह पुरानी याद ताजा हो आई, जब हमने भी गढ़ गंगा पर स्नान किया था, उस समय कहते थे कई जगह घाट पर ही हाथी डूब पानी रहता है, अब पता नहीं... जय गंगा मैया
ReplyDeleteवाह भाई गढ गंगा में तो अपुन ने भी दो बार स्नान किया है एक बार बीच में एक बार परली तरफ़, दोनों यात्रा बाइक से ही की थी।
ReplyDeleteदिखाते रहो, बढते रहो।
सुन्दर यात्रा संस्मरण!
ReplyDeleteराम राम जी, ब्रिज घाट के फोटो देखे, दुःख भी हुआ और आश्चर्य भी, हिन्दुओ के इतने बड़े तीर्थ की हालत इतनी बुरी, हम लोग या हमारी सरकारे गढ़ को, शुक्रताल को, हरिद्वार और ऋषिकेश की तरह से विकसित क्यां नहीं करते हैं, हर साल बज़ट में करोडो अरबो की घोषनाए की जाती हैं, वह पैसा कंहा जा रहा हैं. उत्तराखंड के जाने के बाद, कम से कम इन स्थानों की दुर्दशा तो सरकारे सुधार सकती हैं, पर ये तथाकथित हिंदू विरोधी सरकारे आ जा रही हैं, ये कब्रिस्तानो की चारदीवारी तो करवा सकती हैं, हिन्दुओ के हित में ये कुछ नहीं कर सकती हैं, गंगा मेले के समय में जिला पंचायात टोल(जजिया कर) तो वसूलती हैं, पर सुविधाओं के लिए कुछ नहीं करती हैं.
ReplyDeleteबनारस जैसा ही माहौल दिखता है इन घाटों का। घाटों पर नहाते लोगों की तस्वीर खींचते वक्त थोड़ी सावधानी जरूरी है भाई। :)
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 27/11/12 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका चर्चा मंच पर स्वागत है!
ReplyDeleteअपना ही प्रदेश है ..जाना -पहचाना..न जाने कब विकास होगा !चित्र बता रहे हैं सब वैसा ही है..कुछ बदला नहीं.
ReplyDeleteअपना प्रदेश है,जाना-पहचाना.
ReplyDeleteचित्र बता रहे हैं कि सालों बाद भी सब वैसा का वैसा..लगता आगे भी कुछ विकास नहीं होगा .
अफ़सोस!
इतना गंदा सा तो नहीं था गढ़मुक्तेस्वर .....१९८१ के लगभग देखा था ...सुन्दर मनोहारी गंगा घाट ....और वो बहुत बड़े हनुमान जी कहाँ गए जो स्थान को चार चाँद लगाते थे....
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