यहां तो मैने बाइक रोककर फोटो लिया लेकिन इसके बाद गढमुक्तेश्वर तक जहां भी फोटो लिया चलती हुई बाइक से ही लिया । यहां तक कि मोबाईल से लिये गये 600 फोटो में से 400 चलती बाइक पर से ही लिये गये है। आगे चलकर रेलवे लाइन आती है जिसे पार करना होता है पर नीचे से यानि की अंडर पास से । इसके बाद सूर्य महाराज भी पेडो की ओट से दिखना शुरू हो गये थे ।
तय ये हुआ था कि शनिवार को जाट देवता अपनी डयूटी करके सुबह नौ बजे चल देंगें और बारह बजे के लगभग हम दोनो बिजनौर बैराज पर मिलेंगें । क्योंकि हरिद्धार से या पौडी से किसी एक रास्ते से जाना था तो उसके लिये मै मुजफफर नगर में होने के कारण् घर पर ही रह गया । मैने घर जाने की बजाय सारा सामान भी यहीं ले आया ताकि मै भी शनिवार को यहीं से निकल जाउं । शुक्रवार की रात तक सब ठीक था और मेरी और जाट देवता की बात भी हुई । रात को नौ बजे के करीब बात हुई तो पता चला कि उनके हाथ में दर्द है जो कि कुछ ज्यादा ही हो गया है तो जाट ने कहा कि अगर एक दिन प्रोग्राम खिसका लें तो चलेगा । मैने मरे से मन से हामी भर दी । जब चलना हो तो ब्रेक लगाने में मजा नही आता । और मु0नगर में पडे रहने की बजाय मै गाजियाबाद आ गया ।
अगले दिन मैने पूछा तो जाट ने कहा कि दर्द पूरा तो सही नही हुआ है पर मै चलूंगा । मेरा उत्साह और दुगुना हो गया और मैने फाइनल फेसबुक पर ऐलान भी कर दिया । रात को मैने एक बार और पूछना उचित समझा और वही हुआ जिससे मै डर रहा था । जाट ने बताया कि दर्द भी ठीक नही हुआ है और मुझे कुछ ठीक भी नही लग रहा है सो इस बार नही कुछ दिन बाद चलते हैं । मुझे बढिया नही लग रहा था क्योंकि अब मेरा मन जाने का था और मुझे ये भी पता था कि अब से कुछ दिन बाद सर्दी और बढती जायेगी और फिर बाइक से दिक्कत ही होती है इसलिये मैने उनसे कह दिया कि जाट भाई अब आप चलो या ना चलो मै तो जाउंगा जरूर और कल सुबह ही जाउंगा ।
जाट ने कहा कि मै कोशिश करूंगा कि दर्द ठीक होते ही मै चल दूं पर जब दर्द ठीक होगा तब । मैने भी कह दिया कि वो तो आपकी मर्जी है कि आप आते हो या नही पर मेरा जब तक और जहां तक मन करेगा मै जाउंगा जहां मन नही करेगा वहीं से वापिस आ जाउंगा । अगले दिन सुबह छह बजे उसी कार्यक्रम के अनुसार मैने चलने की सोची पर अपना रास्ता बदल दिया । सोचा कि अकेला हूं कभी मन ना लगे तो नैनीताल की साइड से चलता हूं मैने नैनीताल , अल्मोडा रानीखेत कौसानी आदि तो घूम रखे थे पर भीमताल और बाकी ताल अभी तक नही घूमें थे तो सोचा कि इस बार इन्हे देख लूंगा अगर आगे मन करेगा तो ठीक नही तो यहीं से वापसी आ जाउंगा ।
मुझे सबसे बडा डर था मन ना लगने का । अकेला बंदा ना किसी से बात ना चीत कहां घूमते भी पागल लगोगे । पहले पता होता तो श्रीमति जी भी तैयार थी पर अब अचानक एकदम से ना बा बा ना अनुष्का का स्कूल भी है फिर वो अकेली कैसे रहेगी सो परेशानी उन्होने भी बता दी । वैसे तो मेरे अकेले जाने को लेकर वो काफी सशंकित भी थी पर जब मै नही माना तो वे ही मान गयी ।हां इस सब के बीच मैने अपने कैमरे की बैट्री को बचाने के लिये अपनी बहन से उसका सैमसंग का 5 मेगापिक्सल का फोन बदल लिया था ताकि मेरे कैमरे की बैट्री ज्यादा खर्च ना हो । उसका फायदा भी रहा और कुल 1800 फोटो जो इस यात्रा में खींचे गये उसमें से 600 मोबाईल कैमरे के थे जिनमें से आधे काम नही आयेंगें पर उन्होने कैमरे की एनर्जी बचा दी । ठीक सुबह के 6 बजे मैने बाइक घर से निकाली । पांच बजे मै उठकर तैयार होने लगा था और चलने से पहले मैने एक परांठा चाय के साथ ले लिया था । पहली बार बिलकुल अकेला यात्रा पर जा रहा था बाइक से । बस वगैरा से तो जा चुका था । मुरादनगर की गंग नहर से पहुंच कर मैने नहर की पटरी को पकडा जो कि मसूरी डासना से निकलती है । यहां इस रास्ते पर मुरादनगर से हरिद्धार वाली भीड भाड ना दिन मे चलती है ना ही रात में इसलिये इस रास्ते पर बंदरो की बेतहाशा फौज रहती है जो कि अकेले में तो हमला करने को भी तैयार रहती है । सुबह सुबह के वक्त तो इनका हौंसला और भी बढा रहता है और ये हर सामान को खाने की नजर से देखते है और पूरा का पूरा रास्ता घेरकर बैठे रहते हैं । ठंड नाम की तो चीज नही थी । बाइक का होरन बजाने के साथ साथ लाइट भी जलाई तब जाकर इन्होने रास्ता दिया । ये रास्ता नहर का दस किलोमीटर का है इसके बाद ये नेशनल हाइवे 24 में मिल जाता है एन एच 58 से ।इस रास्ते पर एक जगह झाल आती है । झाल मतलब जहां पर पानी रोककर बिजली बनायी जाती है । यहां पर पानी का बहाव ना के बराबर हो जाता है यानि की उसकी तेजी । तो इस जगह पर गर्मी के दिनो में टयूब वगैरा लेकर गाजियाबाद के आस पास के एरिये के लडके आ जाते हैं और बिना पैसे लगाये जितनी देर चाहें मजा ले सकते हैं । ठंडे पानी में नहाने का । डूबने का भी कोई खतरा नही । मेरा कैमरा अभी बैग में ही था और उसे निकालने का भी कोई इरादा अभी नही था । इसलिये जींस की जेब में से मोबाईल निकालकर मैने फोटो लेने शुरू कर दिये । यहां तो मैने बाइक रोककर फोटो लिया लेकिन इसके बाद गढमुक्तेश्वर तक जहां भी फोटो लिया चलती हुई बाइक से ही लिया । यहां तक कि मोबाईल से लिये गये 600 फोटो में से 400 चलती बाइक पर से ही लिये गये है। आगे चलकर रेलवे लाइन आती है जिसे पार करना होता है पर नीचे से यानि की अंडर पास से । इसके बाद सूर्य महाराज भी पेडो की ओट से दिखना शुरू हो गये थे । मैने फोन से कुछ फोटो लिये हैं पर उनमें वे नही आये । एन एच 24 पर चढने के बाद हापुड के आस पास को आकर हाइवे काफी उंचा हो गया और सूर्य महाराज एक साइड में को चमकने लगे तब मैने कुछ फोटो और लिये । इसके बाद सूरजराम जी ने कर्कश् होना शुरू कर दिया तो मैने भी अपना हैलमेट दबाया और रेस को दबा दिया ।
himmate
ReplyDeleteमर्दा हौसला दे खुदा .हमसफर हम राही हम भी रहे आपके सफर के यह इलाका काफी कुछ बूझा हुआहिम्मते है .
बहुत सुंदर चित्र हैं...दो-तीन ले जा रही हूँ|
ReplyDeleteआपकी यात्रा सफल और सुखद हो...शुभकामनाएँ!!
स़फर मजेदार था बडे भाई मजा आ गया1
ReplyDeleteManu bhai hapur tak ek hi post sarasar nainsafi hai.photo jyada hai thode kam karo bhai
ReplyDeleteसुन्दर चित्रों से सजी रचना |
ReplyDeleteआशा
आपके हाइगा इस लिंक पर- आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी
ReplyDeletehttp://hindihaiga.blogspot.in/2012/11/blog-post_24.html
यह सफ़र अकेले ही करने की ठान रहे थे लेकिन पकड में आये भी तो कहाँ?
ReplyDeleteफ़कीरा चल चला चल:)
ReplyDeleteHmm
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