रत का सबसे लम्बा गलियारा माना जाता है । ये 197 मी0 लम्बा पूर्व पश्चिम में है । मंदिर का गोपुरम 38 मीटर उंचा है । पम्बन द्धीप के चारो ओर के समुद्र में मछलियां हैं
मंदिर दर्शन और कुंड स्नान
अच्छा तरीका यही है कि आप समुद्र में स्नान करो कपडो
में ही और ऐसे ही गीले शरीर से पैदल चलकर मंदिर तक जाओ । मंदिर के सामने जूते रखने
की जगह है और प्रसाद भी मिल जाता है । मंदिर के गेट में घुसने के बाद उल्टे हाथ पर
काफी लोग खडे रहते हैं और एक पर्ची काउंटर सा भी बना है जो कि कुड स्नान करने वालो
के लिये है । यहां पर मंदिर में 22 कुंड हैं जिनमें से 21 में स्नान किया जाता है
। अगर कोई व्यक्ति पूरा स्नान ना करना चाहे तो बाइसवे कुंड में खाली स्नान करने से
सभी का स्नान माना जाता है क्योंकि इस कुंड में सभी कुंडो का जल है । सभी कुंड में
स्नान करने के लिये आपको एक आदमी मंदिर समिति से लेना पडता है जो कि 2 रू
प्रति व्यक्ति प्रति बाल्टी लेता है वो इसलिये कि इनमें से ज्यादातर कुंऐ हैं और
उनमें बाल्टी से पानी खींचकर वो आपके उपर डालता है ।। वैसे तो पति और पत्नी दोनेा के पैसे अलग अलग होते हैं पर जब पानी डालता है तो वो अपना काम आधा कर लेता है कि दोनेा एक साथ खडे हो जाओ । इसमें किसी को कोई आपत्ति नही थी पर मा0जी बिगड गये उस पानी डालने वाले पर कि पैसे अलग अलग लिये हैं तो पानी भी अलग अलग डालो और उसे मा0 जी पर और आंटी जी पर अलग अलग ही पानी डालना पडा । कभी कभी ऐसी स्थिति में और ऐसी चुहलबाजी में आनंद आता है । आपको क्या लगता है ?यहां पर जितने कुंड हैं वे सब तीर्थ कहलाते हैं जैसे कि नल और नील तीर्थ , अर्जुन तीर्थ आदि । इन कुंडो में नहाना और इन्हे देखना भी एक विचित्र स्थिति है क्योंकि ये कुंड कोई एक जगह नही बने हैं इसके लिये आपको अपने साथ लाये गये बंदे के पीछे पीछे चलना पडता है । एक पूरे ग्रुप को एक बंदा दे दिया जाता है । उसके जाये बिना तो आपको ये सारे मिल भी नही पायेंगे । ये मंदिर के चारो ओर फैले हैं और एक खास बात और कि चारो ओर से समुद्र से घिरे इस द्धीप में स्थित ये कुड मीठे जल के है और इससे भी आश्चर्य जनक बात ये है कि इन सभी कुंडो के जल का स्वाद अलग अलग है । हमारे नहलाने वाले बंदे ने जब ये बात हमें बतायी तो हमने नहाते समय उस पानी का स्वाद लेकर भी देखा वो वाकई में अलग अलग था ।
वैसे सभी कुंड पर
नाम और
नम्बर लिखे हैं
ये किये भी क्रम से जाते हैं । इसके बाद जब आखिरी कुंड में स्नान हो जाता है तो
यहां पर वस्त्र बदलने के लिये जगहे बनी हैं औरतो के लिये भी और आदमियो के लिये भी
। हम भी अपने साथ पोलिथिन में एक एक जोडी सूखे वस्त्र लाये थे जो कि नहाते समय हम
सूखी जगह में रख देते थे । वैसे भी आदमी ज्यादा होने का यही फायदा होता है ।
मंदिर स्थापत्य
रामेश्वरम मंदिर
बडे बडे पत्थरो से बना है और बडे बडे गलियारे हैं मंदिर में । वो गलियारे जिनमें
कि स्तम्भ या खम्बे बने हुऐ है कतारो में दोनो ओर और शायद 2000 के लगभग स्तम्भ बनाये जाते हैं जिन पर काफी
चित्रकारी आदि की हुई है । ये लम्बे और विशाल गलियारे काफी सुंदर लगते हैं ।
इनमें से ज्यादातर पर धार्मिक मूर्तिया उकेरी हुई हैं ।
और इस गलियारो और
बडे बडे पत्थरो के होने के कारण जहां बाहर कुछ गर्मी लग रही थी वहीं अंदर ठंड लगनी
शुरू हो गयी थी । कपडे बदलने के बाद कुछ राहत मिली और उसके बाद मुख्य मंदिर मे
जाकर दर्शनो की लाइन में लग गये । यहां भी हमें द्धारिकाधीश की तरह ज्यादा भीड भाड
नही मिली । बस पुरी और बद्रीनाथ में ही धक्का मुक्की रहती है । हमारे साथी लाला जी
जो कि अब तक बडी मेहनत से दस लीटर की कैन ढोकर लाये थे और बडी ही बेसब्री से
इंतजार कर रहे थे कि वो इस गंगाजल से जो कि वो पहले हरिद्धार से घर और फिर यहां
तक लाये हैं इसके बारे में सुनकर यहां के पुजारी भी उन्हे जल चढाने का मौका देंगे
। जब लाइन मे नम्बर आया तो हम सबने तो शिवलिंग के दर्शन किये और आगे को निकल गये
पर लालाजी उलझ गये । उनसे पुजारियो ने जल को चढाने के लिये एक सौ एक रूपये मांग
लिये और वो भी उनके हाथ से नही जल को भी वो पुजारी लोग ही चढायेंगे । अगर गर्भगृह
में जाकर अपने हाथ से चढाना है तो इक्कीस सौ रूपये लगेंगे । अब लालाजी ने एक सौ एक
रूपये और कैन पकडायी और हाथ जोडकर बाहर आ गये । मै उनकी मनोस्थिति समझ रहा था । मै
क्या सब समझ रहे थे पर कोई क्या कर सकता
था ।
मंदिर के गर्भ गृह में मध्यम उजाला फैला था जिसमें काले रंग के पत्थर का बना
शिवलिंग दिखायी दे रहा था । दर्शनो की दो लाइन लगती है और दोनो में रेलिंग लगी है
। दोनो लाइनो से दर्शन करके अलग अलग दिशाओ को निकल जाते हैं । मंदिर गर्भगृह के
अंदर कुछ और छोटी छोटी मूर्तिया स्थापित है जिन्हे हमने सरसरी तौर पर ही दर्शन
किये और बाहर निकल गये । यहां पर मंदिर से बाहर निकलने के बाद जो दुकाने लगी थी
वहां से सब कुछ ना कुछ सामान खरीदने लगे । मैने भी इस यात्रा की यादगार पेट पर बांधने
वाला एक बैग लिया जिसमें कैमरा और पैसे रख सकते हैं और वो जून दो हजार बारह तक रहा
है जब तक मैने मणिमहेश की यात्रा में नया बैग नही ले लिया । खरीददारी करने तक
अंधेरा सा होने लगा था और हमें ध्यान ही अब आया कि हमें कुछ फोटो भी लेने चाहिये तो तब मंदिर के सामने का एक फोटो
लिया ।
मंदिर की पौराणिक कथा व इतिहास
अगली पोस्ट में पढिये रामेश्वरम का सूर्योदय एवं कन्याकुमारी के बारे में
Nice Pictures and information.....
ReplyDeleteमनु जी कंहा तक पहुँच गए हो, फोन भी नहीं मिल रहा हैं...
ReplyDeleteYatra share karne ke liye dhanyawaad . rameswaram dhaam ke darshan ke liye dhanyawaad.
ReplyDeleteबहुत पहले बचपन में गया था दादाजी-दादीजी के साथ वहां | आज फिर से यादें तजा हो गयी | आभार |
ReplyDeleteनई पोस्ट:- ठूंठ
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (20-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ! नमस्ते जी!
रामेश्वरम की यादें ताजा हो गयी .कुंडों के भीतर जमी काई को देखते आचमन करने के लिए मन बड़ी मुश्किल से राजी हुआ था :)
ReplyDeleteVery well written and nicely pictured travelogue...it reminded me of our visit to Rameshwaram in April 2013. Well, just to add a few more lines, the bridge which is built on the sea is called Pumban Bridge and a rail line is constructed over that bridge. We took a train from Villupuram till Rameshwaram which is the last railhead and train doesn't go beyond that point. The Pumban Bridge was inaugurated by Late Mrs. Indira Gandhi. It is the first bridge in India which is built over a sea (Bandra - Worli Sealink was built lateron in 2009-10) with a train passing over it. While we were crossing that bridge at early morning around 3.00 am, we dreadfully feared that the train was running under the sea water. The site was so dreadful and horrible it felt like we will be drown in to the sea. However, it was the most exciting and incredible experience of the lifetime...
ReplyDelete... and one more important thing which I forgot to write, this Pumban Bridge is folding bridge and will split into two when a ship comes nearer to the rail-line to pass through the sea. The rail line will open upside giving way to the ship first to pass through the sea to go to the other side of the rail line. To see this amazing scene, one must know when the ship will pass through the route of rail though...
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