हनुमान जी रास्ते में एक जगह राम भजन होता देखकर वहां पर बैठ गये और उन्हे देर हो गयी । इस बीच शिवलिंग की स्थापना का मुहूर्त निकल गया और वहां सीताजी ने खुद शिवलिंग तैयार कर उसकी स्थापना कर दी । हनुमान जी के आने पर सोचा गया कि अब इस शिवलिंग का क्या होगा तो राम जी ने कहा कि इस शिवलिंग की पूजा ही पहले होगी और जो सीताजी ने स्थापित किया है इसकी बाद में
पम्बन ब्रिज से रामेश्वरम
सुबह सवेरे जब आंख
खुली तो ट्रेन एक सिंगल लाइन पर चल रही थी ये रामेश्वरम को जाने वाली लाइन पर एक लाइन होने के कारण् बार बार गाडी को कहीं भी रोक कर खडी कर देते थे कुछ छोटे छोटे गांव आते रहे जिनसे
समुद्री जीवन और मछुआरो
के जीवन की झलक मिल रही थी
चाय पानी तो
ट्रेन में ही करना पडा और
नाश्ता भी चाहे नहाये या नही पर
ऐसा ही था क्योंकि समय के
लिहाज से भी ये गाडी दो
घंटे लेट जा रही थी
और
इस
समय तो खाने का भी समय हो
जाता है । उस वक्त बडा ही
गुस्सा आता है पर खैर उससे कूद भी
तो
नही सकते थे ।
रामेश्वरम पहुंचने से
पहले पम्बन पुल आया जिस पर
ट्रेन गुजरने पर हम सब गाडी के
गेट पर आ गये क्योंकि ये
अपने आप में एक बडा अदभुत नजारा था
। रेलवे पुल के बराबर में ही सडक का पुल है जो कि रेलवे
पुल से उंचा है । वहां पर सैकडो लोग रेल को देखने के लिये खडे थे । हमें तो ट्रेन से
अच्छा नजारा लग ही रहा था पर उन लोगो में भी इस पुल से गुजरती ट्रेन के फोटो लेने की
होड लगी थी । ज्यादातर हाथ भी हिलाकर अभिवादन कर रहे थे । ये पुल वास्तव में कमाल का
है ।
ये कथा रामायण
में वर्णित है कि जब भगवान श्रीराम ने लंका जाने के लिये रास्ता खोजा और वे इस तट
पर आये तो उन्होने इसी जगह से समुद्र पार किया था । देश का और हिंदुओ का प्रमुख
तीर्थ स्थल होने से देश के कोने कोने से लोग यहां आते हैं । इस जगह के बारे में एक
और बात भी सुनी थी कि यहां पर हमारे पूर्व
राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का पैतृक घर भी है पर हमारा वहां तक जाना तो क्या
उसके बारे में पूछना तक भी नही हुआ । यहां तक पहुंचने के लिये जो सिंगल लाइन बनी
है उस पर हमें जबकि दिन के बारह बजे पहुंचना था तो हम करीब 2 बजे पहुंचे
।
रामेश्वरम में गुजराती धर्मशाला
इस समय पहुंचने के बाद सबसे पहले तो हमें ठिकाना
ढूंढना था और जैसा कि हिसार वाले अंकल मनीराम जी ने पहले ही किसी से पूछ रखा था कि
गुजराती धर्मशाला है मंदिर के पास में ही अगर मिल जाये तो । स्टेशन से उतरकर आटो
में आये और आटो वाले से हमने पहले ही कह दिया था कि हमें गुजराती धर्मशाला पर जाना
है पर वो इधर उधर की गाने लगा । बोला जी वहां पर तो कमरा मिलना नामुमकिन है हमने
बोला कि हमें तो खाना खाना है इसलिये तुझे जो कहा है वो कर तब जाकर वो हमें
गुजराती धर्मशाला ले गया । ये धर्मशाला वाकई में मंदिर के पास थी और आटो से सामान
उतारकर रखने के बाद हम लोग अंदर गये तो शुक्र की बात ये थी कि चार कमरे खाली थे जो
कि अभी अभी हुए थे । किस्मत ने साथ दिया और वे कमरे दूसरी मंजिल पर हमारे हो गये ।
धर्मशाला मंदिर और अग्नितीर्थ के बीच में है जो कि मंदिर से 500 मी0 की दूरी पर है । धर्मशाला के कमरो में सामान रखने के बाद हमने खाने के बारे
में पूछा । धर्मशाला के निचले हिस्से में गुजराती खाने और राजस्थानी खाने का
प्रबंध था । हालांकि ये समयबद्ध था लेकिन उस वक्त चल रहा था और हम समय की कमी
देखते हुए सबसे पहले खाना खाने पहुंच गये । धर्मशाला के कमरे का किराया बहुत ही वाजिब था लगभग 120
रू और धर्मशाला के भोजनालय के खाने का रेट भी वाजिब था । शायद
पचास या साठ रू थाली था पर खाने के बारे में तो लिखने के लिये मेरे पास शब्द ही
नही हैं । ऐसा खाना इस टूर के सारे हिस्से में कहीं भी नही मिला । तवे की रोटियो
के साथ में दही और सलाद हर चीज थी । खाने के बाद में मीठा और पापड भी । इस टूर में
तवे की तो छोडिये तंदूर की रोटी मिलना भी दूश्वार था अगर मिल भी गयी तो रोटी अठारह
रूपये की एक भी खायी थी तो इस रेट मे तो मै कहूंगा कि पूरा पैसा वसूल था यहां का
खाना ।
अग्नि तीर्थम में स्नान |
अग्नि तीर्थम
खाना खा पीकर हम
लोग कमरे में गये और वहां पर औरतो ने अपने कपडे वगैरा धोकर डाल दिये और तब तक हम
मंदिर के बारे में नीचे से थोडा बहुत पता कर आये । मंदिर में दर्शन के लिये करीब
चार पांच बजे का तय हुआ क्योंकि रात को ट्रेन में बैठने के बाद आधा दिन और भी चला
गया था बैठे बैठे ।` शाम को सब लोग इकठठे होकर मंदिर दर्शनो के लिये तैयार होकर
चले । मंदिर दर्शन से पहले अग्नि तीर्थ में स्नान जरूरी बताया जाता है तो हम लोग
पहले अग्नि तीर्थ गये । एक बात और कि हमें ये पता था कि हमें पहले समुद्र में और
फिर मंदिर के अंदर के कुंडो में स्नान करना है सो हम अपने साथ कैमरा या मोबाईल
लेकर नही गये थे । इस वजह से मै आपकेा वहां का एक भी फोटो नही दिखा सकता हूं पर आश
करूंगा कि आपको फोटो की जरूरत ना पडे । अग्नि तीर्थ मंदिर के बिलकुल सामने समुद के किनारे पर । है ना मजे की
बात कि नाम तो है अग्नितीर्थ और है समुद्र के किनारे पर बना नहाने के लिये एक घाट
जो कि गंगा घाट जैसा है बिलकुल उसी तरह सीढियां और कपडे बदलने का स्थान वगैरा । इसकी भी एक कहानी है जब लंका विजय के बाद
हनुमान जी और बाकी सेना तथा सीताजी को साथ लेकर रामचन्द्र वापस लौटे तो वापिस
रामेश्वरम वाली जगह यानि की भारत की जमीन और समुद्र किनारे आने पर राम को लगा कि
उन्होने पाप कर दिया है । तो उसका प्रायश्चित करने के लिये राम ने शिव की आराधना
करनी चाही और इसके लिये उन्होने हनुमान जी को शिवलिंग या शिवजी का प्रतीक लाने के
लिये कैलाश पर्वत भेजा । हनुमान जी रास्ते में एक जगह राम भजन होता देखकर वहां पर
बैठ गये और उन्हे देर हो गयी । इस बीच शिवलिंग की स्थापना का मुहूर्त निकल गया और
वहां सीताजी ने खुद शिवलिंग तैयार कर उसकी स्थापना कर दी । हनुमान जी के आने पर
सोचा गया कि अब इस शिवलिंग का क्या होगा तो राम जी ने कहा कि इस शिवलिंग की पूजा
ही पहले होगी और जो सीताजी ने स्थापित किया है इसकी बाद में क्योंकि भले ये देर से
आया हो पर इसी का निश्चय मन में पहले किया था । जहां सीताजी ने शिवलिंग स्थापित
किया था वहां पर भद्रकाली का मंदिर है और इसी के पास में अग्नितीर्थ है क्योंकि
यहां पर युद्ध की अग्नि को शांत किया गया था इसलिये इसका ये नाम पडा
अगली पोस्ट में रामेश्वरम दर्शन
मनु भाई गुजराती धर्मशाला से पहले ही एक मधु काटेज नया नया बना था, हम वहाँ ठहरे थे। अग्नि तीर्थ में पानी बेहद ही उथला होने से बहुत गंदा था अत: हम नहा नहीं पाये।
ReplyDeleteयहाँ मन्दिर प्रांगण में बनाये गये ढेर सारे कुएँ में स्नान जरुर किया था।
मनु जी राम राम, राजस्थानी मारवाड़ी खाना तो होता ही ऐसा है की आदमी उंगलिया चाटता रह जाता हैं, विशेषकर ऐसे इलाके में जंहा उत्तर भारतीय खाना मिलना असंभव हैं...आपकी यात्रा बहुत अच्छी चल रही हैं मज़ा आ रहा हैं. एक अर्जी हैं आपसे की पोस्ट को डालने में कम से कम ३-४ दिन का गैप ले लिया करो. धन्यवाद, वन्देमातरम...
ReplyDeleteअग्नि तीर्थं मैं मैंने स्नान किया था . यहाँ का पानी बहुत स्थिर है ज़रा भी लहरें नहीं आती जोकि एक चमत्कार है . अब रामेस्वरम का इन्तेज़ार
ReplyDeleteबढ़िया है |
ReplyDeleteआभार सुन्दर -
प्रस्तुति के लिए ||
बहुत अच्छी जानकारी मिल रही हैं, कभी जाना हुआ तो काम आयेंगी। शुक्रिया मनु जी।
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी 24 मार्च को जाने की सोच रहा हूँ। आपके द्वारा दी गयी जानकारी फायदेमंद रहेगी। रामेस्वरम् दर्शण वृतांत का इंतजार रहेगा।
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