Dancho to gaurikund , manimahesh yatra ,धन्छो से गौरीकुंड

उत्साही और युवा लोग इस रास्ते का सहारा लेते हैं । इस रास्ते में नदी के किनारे किनारे जाकर एक दम से पहाड को पर्वतारोहियो कि तरह से पकड पकड कर चढना होता है ये रास्ता बेहद छोटा है पर बेहद खतरनाक । गौरीकुंड पहुंचने से एक किलोमीटर पहले बारिश शुरू हो गयी और गौरीकुंउ पहुंचने तक पडती रही । मैने छतरी निकाल ली और बाकियो ने वहीं रास्ते में पडी एक पन्नी ओढ ली । गौरीकुंड के पास जगह जगह रास्ता बर्फ के कारण बंद था जिसने हमारे सफर को और भी मुश्किल कर दिया था उसके कारण पहाड पर पत्थरो को पकड पकड कर चढना पडता था बर्फ को बचाने के लि




धन्छो में आते ही एक खुला सा मैदान आ गया था । इस जगह को मणिमहेश की यात्रा में सबसे बडा पडाव माना जाता है । एक घाटी खत्म होकर अब दूसरी घाटी यहां से शुरू हो गयी थी और जिस रास्ते से हम आये थे वो दिखना भी बंद हो गया था । जाट देवता का इंतजार हमने एक घंटे तक किया और जब भी वो नही आये तो हमने चलना शुरू कर दिया । एक काम ये हो गया था कि जाट देवता तो रह गये सबसे पीछे क्योंकि वो जिम्मेदार थे तो उन्होने राजेश जी और बलवान , मोहित के साथ चलने की ठानी ।


मै और मराठा सबसे पहले चले थे तो हम सबसे आगे थे पर धन्छो में हमें विधान के साथी ने पार कर दिया । मै अपनी कछुआ चाल से चल रहा था जबकि मराठा के दो साथी बडी तेजी से चले और उसके बाद विधान के साथी के साथ मिलकर सबसे आगे निकल गये, खुली जग​ह में किसी  सज्जन ने एक कमरा बनवा रखा था जिसे यहां की बोलचाल में धर्मशाला या यादगार कहते हैं । वैसे ना तो यहां कोई बंदा था और ना कोई ताला यानि खुली यादगार । इस रास्ते पर से पीछे मुडकर देखने पर एक पर्वत की बर्फ से ढकी चोटिया दिखायी दे रही थी जबकि मणिमहेश के बारे में तो अभी दूर दूर तक भी कहीं कुछ नही था । 


फूल और अन्य वनस्पतियां आनी शुरू हो गयी थी  धन्छो के बारे में बता दूं कि यहां पर भस्मासुर ने घोर तपस्या की थी और शिव से वरदान प्राप्त किया था कि जिस पर भी मै हाथ रखूं वो भस्म हो जाये । शिवजी ने तपस्या से प्रसन्न होकर ऐसा ही वर देने को कहा जिसके बाद भस्मासुर शिवजी के ही पीछे पड गया तब शिवजी ने यहां मौजूद झरने में छुपकर अपनी जान बचायी थी । कुछ दूर चलने के बाद हमें दो बंदे आते मिले उपर से । हमने वैसे ही पूछ लिया कि उपर क्या हाल हैं तो वे बोले कि उपर रूकने और खाने की व्यवस्था हो जायेगी पर तुम यहां से रास्ता ये मत पकडना जो बांये हाथ को जा रहा है बल्कि दांये हाथ वाला रास्ता पकडना । हमने पूछा क्यों तो वो बोले कि इस रास्ते पर चढाई कम है और दूसरे पर ज्यादा दूसरे रास्ते से आते वक्त उतरते हुए आ जाना । बिन मांगे एक मस्त सलाह मिल गयी थी यानि की एक रास्ते से जाना और एक से आना । हमें तो ये पसंद ही था सो हमने उनकी सलाह मानकर चलना शुरू कर दिया । 



यहां हमें एक कुत्ता मिला । हम लोग बिस्कुट लिये थे । मराठा संतोष ने एक दो बिस्कुट उसे डाल दिया । बस फिर क्या था वो तो हमारे साथ ही चल दिया । रास्ते में उसने कई जगह सुंदर सुंदर पोज भी दिये । ये कुत्ता पूरी यात्रा करके हमारे साथ वापिस आया । आगे आप इसके फोटो झील पर भी देखोगे । धन्छो में केवल और केवल उंचे उंचे पहाडेा की चोटिया ही दिखायी दे रही थी । पर साथ में एक जगह से मणिमहेश की चोटी के दर्शन अब तक नही हो पाये थे ।  धन्छो जैसी जगह में भी लेकिन टायलेट की कोई सुविधा नही थी । यहां पर ओपन में तीन टायलेट की शीट लगी थी । पूरे साल ये ऐसे ही रहती हैं । यात्रा के समय मे इनमें  टीन के दरवाजे खडे कर दिये जाते हैं । बडी अजीब बात थी जब मुझे दुकानदार ने बताया कि अभी तो आपकेा पूरी यात्रा में कहीं भी टायलेट जाना पडे तो ओपन में ही जाना पडेगा । धन्छो से अगला पडाव सुंदरासी का है । सुंदरासी को जो रास्ता जाता है वो भैंरो घाटी कहलाता है  । ये रास्ता सुंदरासी से गौरी कुंड जाता है । हमें उपर से आने वाले श्रद्धालुओ ने जिस रास्ते की सलाह दी थी वो बंदर घाटी

धन्छो में जो पुल बना है उसे पार करके हम फिर से उपर से आ रही नदी के सीधे हाथ पर चल दिये । यहां पर एक खास बात ये भी रही कि धन्छो से सुंदरासी के बीच में एक दुकान और थी यानि की बांयें हाथ वाले रास्ते पर लेकिन जिस रास्ते को हम जा रहे थे उस पर तो एक भी दुकान अगले सात किलोमीटर तक नही मिलने वाली थी । पर एक बात खुशी की ये थी कि ये रास्ता हरा भरा था जबकि जो सुंदरासी वाला रास्ता है उस पर कहीं पेड पौधे या बडे पेड की छाया तक नही थी । पुल पार करने के बाद दो तीन मोड काटने के बाद जब हम कुछ उंचाई पर आ गये तो हमें यहां से सुंदरासी को जाने वाला रास्ता दिखायी देने लगा जो कि बहुत ही खडी चढायी का था और सांप के जैसा लहरा कर जा रहा था ।


 इस रास्ते को देखकर हवा गुल हो गयी । अच्छा हुआ कि हम इस रास्ते को नही गये । तभी नीचे की ओर नजर गयी तो देखा कि जाट देवता और विपिन दिखायी दिेये  दोनेा में से विपिन आगे चल रहा था और जाट देवता कुछ पीछे थे । विपिन ने किसी लोकल के आदमी  से खडे होकर रास्ता पूछा और सुंदरास वाले रास्ते की ओर चल दिया । मैने आवाज लगायी पर एक तो उंचाई और बीच  में बह रही नदी के भयंकर शोर में वो आवाज उन तक नही पहुंची । फिर मै और संतोष और उसके एक साथी ने तीनो ने एक साथ मिलकर पागलो की तरह हू हू की अजीब सी आवाजे निकालनी शुरू की तो अचानक जाट देवता को कुछ महसूस सा हुआ और उन्होने उपर को नजर उठाकर देख लिया तो उन्हे हम दिखायी दे गये । हमने हाथ से इशारा किया कि इधर को आ जाओ तो वे उधर को चल दिये । अब हालत ये थी कि विपिन और विधान के साथी के साथ दो मराठे ये सब तो चल दिये थे सुंदरासी वाले रास्ते की ओर  । मै संतोष और उनका एक साथी एक साथ थे और जाट देवता पीछे आ रहे थे । बाकी बहुत दूर तक चढने पर भी हमें धन्छो तो दिखायी दिया पर विधान , राजेश जी ग्रुप का कोई आदमी नही दिखाई दिया । अब जाट देवता के पास आने की देर थी वो ही बता सकते थे कि वे सब कहां हैं पर जाट देवता भी लगभग डेढ दो किलोमीटर पीछे थे और हम भी रूके नही थे बल्कि अपनी मंद गति से चल रहे थे । 



हमें पता था कि जाट देवता हमे थोडी ही देर में पकड लेंगे सो हम चले जा रहे थे । बीच बीच में फूलो को निहारने के कारण आ​राम कर लेते थे । तीन किलोमीटर चलने के बाद हम ऐसी जगह पर आ गये थे जिसमें से हमें धन्छो वाली घाटी दिखायी दे रही थी पीछे को निगाह मारने पर और सामने उपर की ओर देखने पर गौरीकुड की जगह का आभास हो रहा था  । ये जगह इतनी अच्छी जगह थी कि यहां से सुंदरासी वाला सारा रास्ता यानि की धन्छो से गौरीकुंड तक का दिखायी दे जाता था । इसका एक और कारण भी था कि उस रास्ते पर पेड वगैरा नही थे जबकि हमारे रास्ते पर पेड पौधो की वजह से आदमी दिखायी नही देता था थेाडी देर में हमें विपिन दिखायी दिया । हम तीनो ने फिर से इकठठे होकर आवाज लगायी । विपिन ने उपर की ओर देखा । हम एक खुली जगह में थे और जाट देवता का इंतजार करने लगे थे रूककर । विपिन के पास छोटी सी दूरबीन भी थी उसने उससे हमें देखा और हाथ हिलाया ।



 विपिन को आप फोटो में भी देख सकते हैं । अगर हम ऐसे सीजन में ना गये होते जब कोई नही था तो ये सब संभव नही था । थेाडी देर में जाट देवता हमारे पास आ गये । हमने साथ बैठकर अपने बिस्कुट चाकलेट और बाकी सामान खत्म किये । क्योंकि धूप काफी तेज थी और दोपहर का समय हो चला था । धूप तेज होने के कारण पसीना बहुत आ रहा था पर धूप के साथ साथ ठंड भी काफी बढ गयी थी । जब हमने धन्छो पार किया तो 3050 मी0 की उंचाई का बोर्ड लगा आया था । उसके बाद तो थकान के मारे ये हालत थी कि जिसको जहां और जब जगह मिल जाती थी वो वहीं पर लेट जाता था । संतोष के घुटने में दर्द होने लगा था और वो लेटने के लिये ये भी परवाह नही करता था कि पत्थरो पर लेटा है कि मिटटी पर । गौरीकुंड तक पहुंचने के लास्ट के देा किलोमीटर संतोष् पर काफी भारी पडे । उसके पैर बेकार हो गये थे और वेा लेट लेटकर काफी देर में चलता था और उसके साथी पर भी उंचाई की वजह से थकान हावी हो गयी थी । पैर तो हमारे भी दुख रहे थे पर मेरी कछुआ चाल ने मुझे अभी तक बचाये रखा था ।



 मेरी पीठ पर 12 किलो के करीब वजन था और उससे मेरी शर्ट पूरी तरह गीली हो चुकी थी । विपिन को हम पूरे रास्ते देखते रहे और कोई हमें दिखायी नही दिया । जाट देवता ने बताया कि राजेश जी पर चढना मुश्किल हो रहा है । उनका लडका विधान और बलवान बाकी सब तो चढ जायेंगे पर राजेश जी के बारे में शंका है । वे घोडे पर जा सकते हैं पर वे पैदल जितना हो सके चलना चाहते हैं । उन्होने जाट देवता को बोल दिया कि आप जाओ हम पर जहां तक चला जायेगा चलेंगे नही तो घोडा कर लेंगे । अब कुछ मन की शंका कम हुई थी । साथियो के बारे में चिंता तो रहती ही है । उपर बर्फ का काफी बडा रास्ता ( मै इसे ग्लेशियर नही कहूंगा ) सामने दिखायी दे रहा था जिसे विपिन पार कर रहा था ।



 इधर हमारे रास्ते में भी कई जगह रास्ते पर बर्फ जमी थी । कई जगह तेा हमने पत्थरो पर चढकर अलग से उस रास्ते को पार कर लिया पर कई जगह बर्फ पर ही चलना पडा । ये जो रास्ता बंदर घाटी बोला जाता है पहले ये ही मेन रास्ता था बाद में नया रास्ता बन गया तो इस  रास्ते की बेकद्री सी हो गयी और अब ना तो इस रास्ते पर कोई दुकान लगा रहा था । यात्रा सीजन में लग जाओ तो पता नही पर हमारे समय में कोई जगह भी नही दिख रही थी । वैसे मुझे लगता है कि यात्रा के समय में घोडो के साथ देा से तीन फुट चौडे रास्ते पर जाने की बजाय इस रास्ते से जाना चाहिये । क्योंकि गौर ना करने के कारण ये रास्ता घोडेा के लायक नही रहा था । एक तीसरा रास्ता भी है गौरीकुंड तक जाने का जिसे रावण घाटी कहते हैं । 




उत्साही और युवा लोग इस रास्ते का सहारा लेते हैं । इस रास्ते में नदी के किनारे किनारे जाकर एक दम से पहाड को पर्वतारोहियो कि तरह से पकड पकड कर चढना होता है ये रास्ता बेहद छोटा है पर बेहद खतरनाक । गौरीकुंड पहुंचने से एक किलोमीटर पहले बारिश शुरू हो गयी और गौरीकुंउ पहुंचने तक पडती रही । मैने छतरी निकाल ली और बाकियो ने वहीं रास्ते में पडी एक पन्नी ओढ ली । गौरीकुंड के पास जगह जगह रास्ता बर्फ के कारण बंद था जिसने हमारे सफर को और भी मुश्किल कर दिया था उसके कारण पहाड पर पत्थरो को पकड पकड कर चढना पडता था बर्फ को बचाने के लिये । जैसे तैसे करके शाम के चार बजे के करीब हम गौरीकुंड पहुंचें

MANIMAHESH YATRA-






















































COMMENTS

BLOGGER: 14
  1. मनु जी राम राम, बहुत बढ़िया पोस्ट हैं, आगे बढते चलो, यात्रा में आनंद आ रहा हैं. सर जी फोटो में शीर्षक डाल दिया करो तो और भी आनंद आ जाएगा, धन्यवाद, वन्देमातरम..

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  2. मनु जी इतनी सुंदर यात्रा पर ले जाने के लिए दिल से शुक्रिया है आपको |

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  3. रोमांचक लेकिन बेहद सुंदर.

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (09-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  5. बहुत खूबसूरत जगह है| शिव शम्भू ने मौक़ा दिया तो मैं भी कभी ऐसे ही बिना यात्रा के सीजन के ही जाना पसंद करूंगा|

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  6. manu ji ab fursat mili hai padne ki maja aa gaya

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  7. I enjoyed reading the post immensely, Going to Mani Mahesh and then may be sometimes later to Kailash Mansarover is my dream wish. Did you encounter female yatris on the way? There seem to be absolutely no infrastructure a woman might need on the way.

    A request, please add captions to your photographs.

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    1. ya.these two destination are superb for a trekker . yes female yatris can go easily but only in yatra season bcoz it s the time when facilities are available and one can go easily.

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  8. Beautiful and scenic. What an experience!

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  9. मनु भाई बहुत रोमंचक यात्रा है आज सारी पढ लूगा

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  10. मनु भाई बहुत रोमंचक यात्रा है आज सारी पढ लूगा

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TravelUFO । Musafir hoon yaaron: Dancho to gaurikund , manimahesh yatra ,धन्छो से गौरीकुंड
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