यहां से जोत 18 किमी0 है और चंबा 24 किमी0 , तीसा 85 किमी0 और भरमौर 90 किमी0 जहां हमें जाना था । गाडी को पार्किंग में लगाने के बाद जो मैदान में एंट्री की तो वाकई स्त बध कर देने वाला नजारा था । क्याप लाजबाब लम्बेा लम्बेे देवदार के पेडो के बीच एक खूबसूरत लम्बाि चौडा मैदान जो कि हरी घास से भरपूर है । बिलकुल बीचो बीच एक झील जो अब तो सूख कर हमारे यहां के जोहडो से भी बेकार हो रही थी पर फि
नाग भूमि |
उतर लो भाई गाडी से पार्किंग में |
जब हम लोग खजियार पहुंचे तो सबसे पहले हमने दक्षिणा दी यानि की पार्किंग पूजा के 50 रूपये । यहां से जोत 18 किमी0 है और चंबा 24 किमी0 , तीसा 85 किमी0 और भरमौर 90 किमी0 जहां हमें जाना था । गाडी को पार्किंग में लगाने के बाद जो मैदान में एंट्री की तो वाकई स्त बध कर देने वाला नजारा था । क्याप लाजबाब लम्बेा लम्बेे देवदार के पेडो के बीच एक खूबसूरत लम्बाि चौडा मैदान जो कि हरी घास से भरपूर है । बिलकुल बीचो बीच एक झील जो अब तो सूख कर हमारे यहां के जोहडो से भी बेकार हो रही थी पर फिर भी अच्छीब दिखायी दे रही थी । हमने जहां से एंट्री की थी उस कोने की उंचाई काफी थी और यहां पर एक खम्बांछ खडा किया हुआ था लोहे का जिस पर एक तीर का निशान लगा हुआ था कि स्विटजरलैंड यहां से 6195 किमी0 है ।
शायद इसलिये कि एक स्विटजरलैंड से दूसरे स्विटजरलैड की दूरी बता रहे हों । उंचाई काफी होने की वजह से हमें सारे मैदान में बैठे लोग बहुत छोटे छोटे दिखायी दे रहे थे । यहां सबसे पहला काम जो आया वो था मराठा संतोष तिडके के दिमाग में उसने आव देखा ना ताव नीचे जाने के लिये चलने की बजाय लेटकर जाना सोचा । अपने हाथ उपर किये और लुढकना शुरू कर दिया इस हरे भरे घास के मैदान की ढलान पर । बस उसकी देखादेखी औरो ने भी इसी फार्मूले को आजमाया । यहां वैसे तो पालिथिन फेंकने या कूडा फैलाने पर जगह जगह भारी जुर्माने की बात लिखी हुई पर वैसे मैदान में इकठठा पर्यटको को बेचने के लिये बाल्टियो में रखकर चिप्स , कुरकुरे के पैकेट और आइसक्रीम लिये लोकल लोग घूमते हैं । यहां मैदान की शुरूआत में एक प्राथमिक विदयालय है । इस स्कूल के बच्चो का तो मजा है जो खजियार को देखते देखते पढते हैं मैदान के चारो और एक पैदल पथ बनाया हुआ है उन लोगो के लिये जो इस मैदान का चारो ओर से मजा लेना चाहते है और साथ में कुछ पैदल घूमना चाहते हैं । इसी के थोडी दूर यानि करीब 4 फुट की दूरी पर एक और रास्ता मैदान के चारो और है वो घोडे वालो के लिये बनाया हुआ है । ये रास्ता थोडा पेडो में को होकर गुजरता है ताकि घुडसवारी करने वाले को जंगल से गुजरने का भी अहसास हो । इस ट्रैक पर दो या तीन किलोमीटर का रास्ता हो जाता होगा करीब और घूमते घूमते ये पता ही नही चलता कि हमने कितना रास्ता तय कर लिया है क्योंकि कभी तो आपके सामने एक बडी सी बाल वाले आ जाते हैं जो इस प्लास्टिक की बाल में दो आदमियो को बैल्ट से बांधकर लुढकाते हुए ले जाते हैं । इसमें सवारी करने का मजा 250 में लिया जा सकता है । वैसे जून के महीने में जब हम यूमथांग सिक्क्मि में गये तो वहां भी 250 रू मांगे थे बाल वाले ने पर जब एक सौदेबाज ने ये कह दिया कि अगर 50 रू प्रति व्यक्ति घुमाओ तो चलते हैं और ये कहकर सब चल दिये तो वो तैयार हो गये थे । मेरा कहने का मतलब ये है कि इनका कोई रेट फिक्स नही होता जैसा मुंह वैसी बात । रेट की बात पर मुझे याद आया कि यहां पर पैरा ग्लाइडिंग होती देखकर कई साथियो का मन किया तो उन्होने रेट पूछा । रेट बताया पहले तो 3000 फिर ढाई और आखिर मे 2000 पर बात बनी तो हमारे ग्रुप में से केवल एक आदमी जो कि विधान के साथी थे वो चले गये । ये पैरा ग्लाइडिंग वाले अपनी गाडी में लेकर जाते हैं बंदे को और आना तो फ्री है ही । तो जब तक वे गये तब तक हमने मैदान का चक्कर लगाना तय किया । आस पास में कुछ कुटिया या कह लो काटेज भी बने हुए हैं जो लोग यहां रूकना चाहते हैं पर उनका रेट भी लचीला है । अगर भीड ज्यादा हो जाती है तो सीमित साधन होने के कारण दो हजार वाली काटेज के आपको पांच हजार भी देने पड सकते हैं इसलिये यहां रूकने में कोई समझदारी नही है पर फिर भी पैसे वाले या नवविवाहित युगल के लिये बढिया है हम जैसे फक्कड घुमक्कडो के लिये नही बच्चो के लिये तो यहां पर आनंद की विशेष चीजे हैं जैसे कि एक तो वो मिकी माउस सा जो कि आजकल शादियो में भी बाहर कर दिया गया है और दूसरा एक और नये चलन का जिस पर कूदने से उछलते हैं । कभी हम नीचे की ओर देखते और हरी हरी घास पर बैठ जाने को मन करता तो कभी उपर से उडकर आते लोगो को और उनके परिजनो को देखते जो कि उनका फोटो खींचने की या वीडियो बनाने की कोशिश करते , हालांकि उनमें से ज्यादातर असफल हो जाते क्योंकि वो इतनी तेजी से आते हैं जब नीचे आते हैं कि आप साधारण कैमरो से फोटो नही ले पाते । दूसरी बात जब वो उपर होते हैं तो इतने उपर होते हैं कि आप ये भी नही पहचान पाते कि ये आपके वाला ही बंदा है । ऐसे में मदद करते हैं वो प्रोफेशनल फोटोग्राफर जो कि वहीं पर खडे रहते हैं और अपने बढिया कैमरो और अनुभव से फोटो खींच लेते हैं । हालांकि किसी ने उन्हे कहा भी नही होतालेकिन फिर भी वे खींच लेते हैं । उसके बाद वे आपके पास आकर अपने कैमरो में और पास में रखे कम्पयूटर की स्क्रीन में आपको दिखाते हैं उनमें से जो आपकेा फोटो पसंद आता है वे उसे बना देते हैं 100 रू का एक अगर पसंद नही आये या आप ना बनवाना चाहें तो कोई बात नही वे आपको कहेंगे भी नही पर जब आदमी 2000 रू खर्च करके आया है और उस पल का फोटो सौ रूपये में मिल रहा हो तो ज्यादातर सभी ले लेते हैं । हमारे एकमात्र साथी जो गये थे उन्होने भी हमें कह रखा था कि मेरे फोटो ले लेना । हमें तो पता भी नही लगना था कि हमारे साथी कब आयेंगे वो तो जो पैरा ग्लाइडिंग वाला ले गया था उसी का दूसरा साथी बैठा था उसने दूर से देखकर ही बता दिया कि वो वाला है अपना पैराशूट । सारो ने कोशिश की पर किसी का फोटो ठीक नही आया बाद मे उन्ही से फोटो लेना पडा सौ रूपये का ।यहां पर मैने एक घोडे का फोटो भी खींचा है । ये कोई खास घोडा नही है असल में ये 'सिंघम ' है । इसकी गर्दन पर इसका नाम गुदा हुआ है । लोगो की अपनी अपनी पसंद है । पैदल पथ पर चलते चलते मैने जाट देवता के और उन्होने मेरे कुछ फोटो पेडो की ओट में खडे होकर खिंचवाये । जाट देवता तो कैमरा ले ही नही रहे थे साथ् ही राजेश जी ग्रुप भी कैमरा नही लिये हुए था । उनके फोटो भी मै ही खींच रहा था । काफी देर हो गयी चलते चलते तो हम लोग झील के थोडे पास को मैदान में एक जगह पर आराम करने के लिये बैठ गये । यहां पर जाट देवता ने पहले तो वहां पर चर रही गायो को छेडने की कोशिश की पर गाय कुछ गुस्से में थी तो उसने सिर हिला दिया और हम सब दूर को भागे । अब अपना सारा प्यार हमने वहां पर चर रही काली सफेद भेडो पर उडेलना शुरू कर दिया । भेडे भी काफी प्यार से पोज दे रही थी । उसके बाद कुछ मस्ती शुरू हुई तो जाट देवता के कई हाथ निकल आये । फोटोज में ये मस्ती के क्षण् आप देख सकते हैं । असल में यहां आकर और करना ही क्या है यहां पर ठंडा मौसम है । ठंडी हवा , सुंदर नजारे , बस देखे जाओ और देखे जाओ । मै तो वहीं घास के मैदान पर लेट गया । थोडी देर में मेरा जी खराब सा हुआ और मुझे उल्टी हो गयी अचानक । उल्टी का कारण था कि आज सुबह से खाना तो खाया नही था अब लगभग 4 बज रहे थे और यहां आने के बाद कोल्ड ड्रिंक और चिप्स खा लिये जो कुछ गलत हो गया । लेकिन उल्टी हो जाने के बाद मेरा मन सही हो गया था ।अब राजेश जी ग्रुप का तो कहना था कि आज यहीं पर रूकते हैं । मन तो हमारा भी था कि इतनी सुंदर जगह पर रात गुजारते हैं पर दिक्कत ये थी कि अगर आज रूक जाते हैं तो अभी लगभग 100 किलोमीटर का सफर मणिमहेश के बेस तक जाने में लगेगा जो कि आधा दिन ले लेगा और फिर चढाई शुरू हम सुबह से नही कर पायेंगे जबकि हम ये चाहते थे कि जितनी सुबह चढाई शुरू कर पायेंगे उतना अच्छा होगा तो थोडा राजेश जी को समझाया और थोडा उन्हे यहां की महंगाई के बारे में बताया और लेकर चल दिये चम्बा की ओर ।
MANIMAHESH YATRA-
प्रथम दर्शन |
ये सामने होटल हैं |
और ये ढालदार घास के मैदान |
मैदान खजियार का |
आसमान से होड करते पैरा ग्लाइडरस |
यहां तैयारी करते हुए |
और ये है 'सिंघम ' गर्दन पर देखिये |
बस यहां की झील की हालत बेकार थी |
एक और नजारा |
अब हम चक्कर लगा रहे हैं |
चारो ओर से देखिये |
पेड के पीछे क्या है |
ये कौन छिपा है ? |
धूप छांव का खेल |
त्यागी जी |
बाल , इसके अंदर बैठकर लुढकने का अलग मजा है |
और ये उछलने का जुगाड |
आराम करता एक फूल विक्रेता |
सुंदर मैदान |
एक कोना |
पहचान कौन ? |
जाट देवता |
मै और विपिन |
ना होंगे जुदा |
बच्चे की जान लोगे क्या ? |
जय काली या कुछ और ? |
ये हमारे बिलकुल उपर |
उतरने से पहले |
Mast majha aa gaya woooooooooooooooo
ReplyDeleteMast majha aa gaya woooooooooooooooo
ReplyDeleteMast majha aa gaya woooooooooooooooo
ReplyDeleteMast majha aa gaya woooooooooooooooo
ReplyDeleteMast majha aa gaya woooooooooooooooo
ReplyDeleteखुबसूरत खजियार .........मैने देखा है ..यहाँ जैसा माहौल और रंगीनियाँ मैने कही नहीं देखि ..आश्चर्य लगा ....यदि आप लोग थोड़ी दूर बना माता का मंदिर जाते तो और भी आनंद आता ..संदीप को बताया था मैने और अपनी पोस्ट में भी लिखा था ....
ReplyDeletenice post,beautiful pics
ReplyDeletemera comment kaha gaya
ReplyDeleteखजियार बहुत ही सुंदर जगह है .....अब तक देखि कई जगहों में सबसे सुंदर ...
ReplyDeletemanu ji maja hamen aaya ya ashu ji ko jinhone 5 bar click kar diya
ReplyDelete