माता नैना देवी दर्शन जब हम वहां पर पहुंचे पहले तो हमने गाडी को पार्किंग में लगाया । यहां पर हमें आज रूकना नही था तो हमने अपने बैग निकाले औ...
पहला फोटो ख्रींचते वक्त हाथ हिलने के कारण अजीब था |
पिछली पोस्ट में जिस फोटो के बारे में मैने आपसे पूछा था वो यूं ही हाथ हिलने के कारण खुद ब खुद ऐसा हो गया था उसमें मेरी कोई कारीगरी नही थी जब पार्किंग के पास पहुंचे तो बाजार शुरू हो गया । बाजार में प्रसाद की दुकानो के अलावा दो तीन दुकाने चाय परांठो की भी थी । नहा धोकर भूख लगी थी जोरो की तो पहले तो चाय पीने बैठे और साथ में ब्रैड पकोडे का आर्डर दिया । रेट बाद में पूछा तो पता चला कि ब्रैड पकोडा 15 रू का है और परांठा सब्जी 20 रू का तो हमने पकौडे का कैंसिल करके परांठे मंगाये । हमारे जाट देवता तो चाय पीते नही सो उन्होने पकौडा मंगा लिया । जब परांठे खाने लगे तो स्वाद होने के कारण एक की बजाय दो दो खा गये । हम पांच आदमियो का बिल बैठा 210 रूपये जिसमें चाय भी थी ।
नैना देवी के बाजार का दृश्य |
एक बात आरोजीत ने मुझसे कमेंट में पूछी थी नैना देवी पर रूकने और खाने के बारे में ....तो हम तो यहां पर रूके नही थे रात को पर महाराष्ट्र पार्टी रूकी थी और उन्होने 300 रू में एक कमरा लिया था । काफी अच्छे रूम जिनमें हम फ्रेश् हुए 800 से 1200 रू तक थे पर मेले आदि के वक्त इनका किराया बढ भी सकता है
20 रू में अजगर को अपने गले में लटका सकते हो ? |
इसके बाद हम लोग बाजार को घूमते हुए धीरे धीरे माता के मंदिर की चढाई चढने लगे । प्रसाद की दुकानो के खत्म होने के बाद से दो रास्ते आते हैं एक तो सीढीयो का और एक थोडा कम सीढियो का । सीढियो वाले रास्ते पर केवल सीढिया हैं जबकि दूसरा और नया बना रास्ता कुछ प्लेन सा है और उस पर चढते हुए थकान कम होती है । एक रास्ता ट्राली का है और उस पर मै पिछली बार गया था । माता के मंदिर की चढाई लगभग एक डेढ किलोमीटर की होगी । पहला दिन होने के कारण मै आराम आराम से चल रहा था । जबकि जाट देवता और विपिन सबसे आगे थे । विधान मेरे पीछे था ।
पालकी या कंडी की व्यवस्था इसीलिये मै जवानी में ही सब घूमना चाहता हूं |
यहां पर एक रास्ता और भी है गाडी के उपर जाने का पर उसमें बाहर की गाडियो को परमीशन नही होती है । यहां की लोकल गाडिया 50 रू प्रति व्यक्ति के हिसाब से उपर ले जाती हैं । ट्राली का टिकट 80 रू प्रति व्यक्ति का है और ट्राली पर जाने के लिये थोडा नीचे जाना पडता है । यहां पर भीख मांगने की काफी परंपरा सी है और मंदिर बोर्ड की ओर से ये बोर्ड तो लगे हैं कि आप भीख को बढावा ना दें पर ये समझ नही आता कि अगर इतनी फोर्स होते हुए जवान जवान लडकिया भीख मांग रही हैं तो हम लोग कैसे बढावा दे सकते हैं भीख को ,वो तो मंदिर प्रशासन खुद ही दे रहा है । खैर जब भी किसी धार्मिक जगह पर जाते हैं तो नयी नयी चीजो से रूबरू होना पडता है ।
नैना देवी से भाखडा डैम की झील |
मै नैना देवी के बारे में पहले भी लिख चुका हूं सो मै सोच रहा था कि इस बार लिखू कि नही पर फिर मैने सोचा कि पहली मेरी सारी पोस्टो में पुराने फोटो और यादे होने के कारण् इतनी डिटेल नही आ पायी है जितने कि लोगो को मुझसे उम्मीद रहती है । और तब घुमक्कडी उददेश्य था लेखन नही और साथ में फोटो भी उतने अच्छे नही आ पा रहे थे । सो इस बार मैने दोबार नैना देवी के दरबार में हाजिरी लगायी तो दोबारा इसे लिखने का निश्चय किया । । माता की कहानी मैने पहली पोस्टमें लिख दी थी आप उसे यहां पर पढ सकते हैं एक कारण और भी है कि मुझे यात्रा लिखनी है तो जैसे जैसे की है वैसे ही लिखना अच्छा होता है ।
नैना देवी से एक और नजारा |
यहां पर बसी धर्मशालाऐं आदि |
यात्रियो के लिये बने शेड |
वापस चलते हैं यात्रा पर तो जैसे हम चले जा रहे थे तो रास्ते में एक जगह एक महिला अजगर को लेकर बैठी थी । कोई भी 20 रू देकर उसको गले में डालकर फोटो खिंचवा सकता था । आगे चले तो कुछ वृद्ध जो कि चढने में असमर्थ थे वो पालकी में आते दिखायी दिये । मुझे ऐसे दृश्यो से और ज्यादा घूमने की प्रेरणा मिलती है क्योंकि मै इस तरह से अपनी वृद्धा वस्था में नही जाना चाहता सो मै जवानी में ही सारी चढाईया कर लेना चाहता हूं जैसे जैसे हम मंदिर की ओर चढते जा रहे थे नीचे के दृश्य और ज्यादा खूबसूरत होते जा रहे थे । सांप से लहराते रास्ते और सीढीदार खेत बडे मनभावन दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे ।
माता के मंदिर का प्रवेश द्धार |
मन्नत पूरी होने की आस |
मुझे चलते देखकर जाट देवता का कथन था कि मणिमहेश की यात्रा पर तो मनु को घोडा करना ही पडेगा मैने कहा क्यों तो बोले कि अब तक तो तुम्हे भागकर चढ जाना था तो मैने कहा कि मुझे पैदल चलने की ना तो आदत है क्योंकि मेरा काम ही ऐसा है और ना ही मुझे पैदल चलने के लिये समय मिलता है जबकि मैने घर में ट्रेडमिल भी रखा हुआ है पर मै नही चल पाता इसलिये मै अपनी एनर्जी बचाकर चल रहा हूं । वैसे इस रास्ते पर यात्रियो की सुविधा के लिये पानी पीने की टंकिया और छाया के लिये शेड भी बना दी गयी हैं । इस रास्ते से चलते चलते भाखडा डैम की झील का दृश्य भी दिखायी देता है ।
परिक्रमा |
कर लो दर्शन माता के मंदिर के |
हवन कुंड की ओर |
लाइन में लगकर दर्शन को जाते श्रद्धालु |
मंदिर के पास पहुंचकर जूता स्टाल आता है जो कि मंदिर समिति की तरफ से बनाया गया है । यहां पर जूता रखने का कोई शुल्क नही है आप अपनी मर्जी से अगर देना चाहो तो अलग बात है । अब मंदिर का प्रवेश द्धार आ चुका था और सफेद पत्थर की सीढियो पर हम चलकर मंदिर के प्रवेश द्धार पर जा पहुंचे । इस मंदिर में और कुछ अन्य मंदिरो से एक बात अच्छी है कि यहां कैमरा उपयोग करने पर आंशिक रोक है । इसका मतलब ये है कि आप कैमरे को परिसर में इस्तेमाल कर सकते हो और अपने फोटो लेकर अपनी यादे सुरक्षित रख सकते हो बस आपको मुख्य मूर्ति का चित्र नही लेना है । जब हम मंदिर पहुंचे तो माता के आर्शिवाद से भीड ज्यादा नही थी और इसीलिये हम सीधे मंदिर के पास से ही लाइन में लगे । अगर भीड ज्यादा हो जाती है तो मंदिर परिसर में लगी स्टील की लाइनो में से उनको घुमाया जाता है । हमारे बाद कुछ ज्यादा ही भीड एकदम से आ गयी थी तो उन सबको लाइन में घूमना पडा । मंदिर में माता के दर्शन भी बडे प्यार से हुए । माता का मंदिर बिलकुल पहाड की चोटी पर है तो मंदिर की परिक्रमा के रास्ते में से और भी बढिया दृश्य दिखायी देते हैं । वहां पर हमने अपने भी फोटो खिंचवाये । मंदिर के पास ही एक हवन कुंड बना है जिसमें हर वक्त कुछ न कुछ धुंआ होता रहता है । लोग अपने प्रसाद में लायी गयी अगरबत्ती और अन्य सामान यहां पर पुजारी को देते हैं और वे इसे कुंड में चढा देते हैं ।इस वृक्ष और कुंड के बारे में कई मान्यताऐं प्रसिद्ध हैं जैसे कि इस कुड में दिन रात अग्नि जलती है पर जो राख बचती है उसे कभी फेंकना नही पडता अर्थात वो कभी इतनी नही होती कि उसका ढेर लग जाये या उसे उठाकर कहीं और रखना पडे लोग यहां से अपने बच्चो के लिये नजर ना लगे इसका धागा भी लेकर जाते हैं । जिनको मन्नत मांगनी है वो अपने साथ लायी गयी प्रसाद की चुनरी को यहीं पर माता के परिसर में कहीं भी बांध देते हैं । जब मन्नत पूरी हो जाती है तो उसको खोलने के लिये दोबारा आते हैं । मंदिर परिसर में एक विशाल वृक्ष भी है जो कि बहुत ही प्राचीन है और उसकी छाया पूरे परिसर में लाइन में लगे श्रद्धालुओ को सूकुन पहुंचाती है । अब समय था वापिस चलने का । तो अपने अपने जूते लेकर हम सब वापस चल दिेये । इसके बाद थोडी दूर चलते ही जीने वाला रास्ता और प्लेन वाला रास्ता अलग अलग हो जाता है । इस बार संदीप और विपिन ने जीने वाले रास्ते से जाने का तय किया । मै उन्हे मना कर रहा था क्योंकि चढाई से ज्यादा उतराई में दिक्कत होती है और वो भी अगर सीढिया हो तो । पर वे नही माने और सीढियो से भाग भाग कर उतरते गये । संदीप भाई की फिटनेस का तो कोई जबाब नही पर मै तो पैदल भी नही चलता तो मुझे तो बडी परेशानी होती है । उपर से सीढियो पर चढने या उतरने में आपके घुटनों को सबसे ज्यादा श्रम करना पडता है । सारे शरीर का दबाव घुटनो पर आ जाता है । मन तो करता है कि भाग भाग कर उतर जायें लेकिन भागने से घुटने और जल्दी बेकार हो सकते हैं । अपने कार्य स्थल और घर दोनो जगह पर ही मुझे कहीं भी पैदल नही चलने का काम पडता है ना ही कहीं सीढियां हैं तो ऐसे में जब कभी भी अचानक कहीं पर पैदल चढाई होती है तो मै आराम आराम से चलता हूं और इस कारण मुझे ज्यादा दिक्कत नही होती इसलिये मै आराम आराम से चलता रहा और सबसे बाद में वहां पर पहुंचा जहां गाडी के पास जाट देवता और सब लोग बैठे थे । माता के इतिहास के बारे में आप पिछली पोस्ट में जरूर पढें और इस पोस्ट और पिछली में क्या अंतर लगा वो बतायें जरूर अपनी प्रतिक्रियाओ के माध्यम से .........आगे कहां जायेंगे वो तो मैने पूछा ही नही था जाट देवता से जहां वो लेकर चलते रहे वही पर हम जाते रहे सो देखें अगला पडाव कहां होगा ?
MANIMAHESH YATRA-
ये है प्राचीन वृक्ष , इस पर भी मनौती का धागा बांधते हैं ं |
एक फोटो मेरा भी |
ये है पवित्र हवन कुंड |
चढावा और प्रसाद |
जाट देवता माता के मंदिर में |
अब सही से ख्रींचा है |
बहुत बढ़िया लिखा है ..और उम्दा फोटू भी ..कभी वह जाने का प्रोग्राम बनायेगे
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