Bhakhra -Nagal dam ,मानवीय निर्माण का एक अजूबा

इस यात्रा को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें झील की पहली झलक झील के किनारे पर एक पेड आगे चलने का ही विचार था । हम लोगो ने तो ...


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झील की पहली झलक


झील के किनारे पर एक पेड
आगे चलने का ही विचार था । हम लोगो ने तो परांठे खा लिये थे पर राजेश जी और मोहित और बलवान यानि की हमारे सारथी ने कुछ नही खाया था सो उनको भूख लगी थी । इसी बीच संदीप भाई ने हमारे सफर के कुछ और साथी को बुला रखा था । ये थे महाराष्ट्र के नांदेड से आये संतोष तिडके और उनके तीन साथी वसंत , सावंत और एक अन्य । ये लोग हमारे चलने की रात से पहली रात संदीप भाई के घर पहुंच गये थे नांदेड से बाइक चलाकर और रात को संदीप भाई के घर पर सोये थे संदीप भाई ने जिस दिन हम रात को दस बजे चले उस दिन सुबह सुबह इनकेा भेज दिया था कि आप नैना देवी जाकर दर्शन करो और वहीं पर रूको इस तरह ये लोग रात तक नैना देवी पहुंच गये थे और सुबह जब हम दर्शनो के लिये नैना देवी पहुंचे तो ये हमें वहां पर मिल गये ।



झील और उसके बीच में टापू जो कि  पानी कम होने के कारण बने हैं
अब हमारा पूरा ग्रुप तैयार हो चुका था । चार बंदे महाराष्ट्र के ,दो जयपुर से , तीन दरियापुर दिल्ली से , एक गढवाली , एक लोनी से और एक गाजियाबाद यूपी से । लग रहा था जैसे भारत दर्शन यहीं पर हो गया हो । नांदेड वाले अपनी दो बाइक से आये थे जिनमें से एक तो डिस्कवर 135 सी सी थी और दूसरी बजाज की प्लेटिना 100 सी सी । उन्होने तीन दिन में नांदेड से 1500 किलोमीटर और वहां से 400 किलोमीटर का सफर कर लिया था । इन चारो के कारनामो की चर्चा मै आगे भी करूंगा । मन तो करता है कि इनके उपर एक अलग ही पोस्ट हो क्योंकि ये इतने बडे घुमक्कड हैं कि पूछो मत इनमें से संतोष तो संदीप भाई के साथ अपनी इसी बाइक पर लेह की यात्रा कर चुका है और आप सबने उसे पढा भी होगा । बाकी तीनो बंदे इस बार नये थे । एक खासियत और थी कि इनमें से एक बंदा बाइक का मैकेनिक था । क्या बात है अगर बाइक की सर्विस का टाइम हो जाये या कुछ भी खराबी हो जाये तो कोई दिक्कत ही नही होगी ।
वैसे तो सबने फोटो खिंचाये पर एक लगा दे रहा हूं

इस बांध को गोविन्द सागर कहा जाता है वैसे मील के पत्थरो पर भाखडा लिखा आता है जो कि गांव का नाम है और यह सतलुज नदी पर बना हुआ है दोनो बांध में लगभग बीस किमी0 की दूरी है । और मजे की बात ये है कि एक बांध भाखडा तो हिमाचल में है जबकि दूसरा पजाब में  में यानि नागल । यह बांध टिहरी बांध के बाद उंचाई में दूसरे नम्बर पर है । चैकिंग के नाम पर केवल कारो को ही रोका जाता है बसो को नही तो क्या कोई बसेा से फोटो नही ले सकता ये भी सोचने वाली बात है वैसे भी आजकल तो गूगल अर्थ का जमाना है मैने भी गूगल में नाम डालकर देखा तो एक से एक फोटो बांध के मिले तो फिर ये खामवखाह की मंदिरो की तरह कोतवाल राज क्यों ? इस परियोजना में काफी कुछ आश्चर्य जनक है सतलुज नदी पर सबसे पहले बांध बनाने का विचार अंग्रेजो के राज में 1919 में आया था पर खारिज कर दिया गया । 1939.42 में एक व्यापक रिपोर्ट तैयार की गयी । पर परियोजना मूर्त रूप नही ले पायी । 1948—51 में इस काम पर असली योजनाऐं बनी जिसमें सबसे महत्वपूर्ण बात थी कि इस बांध की उंचाई कितनी हो और विदेशी  देखरेख में  भारतीय इंजीनियरो द्धारा बनाया जाये ताकि इसका अनुभव मिल सके । बांध से पहले नहर प्रणाली बनाने का निर्णय सा​हसिक था । 7 जुलाई 1954 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्धारा इसका उदघाटन किया गया । उन्होने दस बार बांध का दौरा किया और दस वर्षो की मेहनत करके इंजीनियरो ने इसे बनाया । 22 अक्टूबर 1963 को जवाहर लाल नेहरू ने इसे राष्ट्र को स​मर्पित किया ।
कभी कभी पानी इन निशानो के उपर भी हो जाता है

बांध से निकलकर जाता पानी
तो इसके बाद इस छोटी सी मुलाकात के बाद हम लोग चल दिये आगे के रास्ते पर जिसमें हमने मंदिर से थोडा नीचे उतरने के बाद आनंदपुर साहिब वाले रास्ते को छोडकर दूसरा रास्ता पकडा जिस पर भाखडा नागल बांध पडते हैं । मैने इसलिये लिखा है क्योंकि अबसे पहले मै भी भाखडा नागल को एक ही समझता था पर ये दोनो अलग अलग बांध और अलग अलग शब्द हैं । इस रास्ते पर 18 किलोमीटर दूर से ही भाखडा बांध की झील दिखायी देनी शुरू हो गयी थी । रास्ते में एक जगह देखने की अच्छी सी जगह आयी तो हमने गाडी रोककर झील के कुछ फोटो खींचे । अक्सर ज्यादातर बांधो के फोटो खींचने वर्जित होते हैं इस बांध को तेा ज्यादा ही संवेदन शील माना जाता है इसलिये बांध पर फोटो नही ले सकते हैं

MANIMAHESH YATRA-

मन्नू दा ढाबा , हे हे अपना भी हर जगह नाम है


ढाबे के सामने सुदर और नया बना छोटा सा मंदिर
हमारे साथ चल रहे महाराष्ट्रीयो ने यहां बांध के पास खडे होकर फोटो लेने शुरू कर दिये तो उन्हे पुलिस वालो ने पकडा और जब उनके कैमरे से फोटो डिलीट कर दिये तभी कैमरा वापस दिया । साथ में कुछ आर्शीवचन भी मिले । यहां बांध पर रास्ते में चैक पोस्ट है और वहां पर रूककर आपको अपनी इंट्री करानी पडती है । हमारी गाडी में से राजेश जी ने उतरकर एंट्री करायी और उसके बाद जैसे ही गाडी लेकर आगे चले तो हमें वहां एक वाटर कूलर दिखायी दिया । पुलिस चैक पोस्ट के पास ही वाटर कूलर लगा रखा है जहां से हमने ठंडा ठंडा पानी अपनी बोतलो में भर लिया । बहुत ही उंचाई पर बने इस बांध की विशालता देखकर हम हैरान थे । बांध की झील के पास में कुछ ट्राली सी लगी हुई थी उपर पहाडी से और उस ट्राली के खत्म होने की जगह पर काफी सारी मोटर बोट खडी थी । ऐसा लगता था कि जैसे वो आफिशियल लोगो के लिये जगह होगी जहां से वो लोग उतरकर नीचे झील का निरीक्षण् करने जाते होंगे । एक दो नाव हमने झील में घूमती हूई भी देखी । यहीं पर पुलिस चैक पोस्ट के पास में ही काफी अच्छा पार्क बना रखा है जहां पर अपनी गाडी खडी करके आराम से बांध को देख् सकते हैं ।हमारे वालो ने किसी ने इच्छा जाहिर ही नही की बांध को पास से देखने की और सब लोग चलते रहे तो हमने भी कुछ नही कहा । लेकिन अगले ही मोड पर हमें बांध का विंहगम दृश्य दिखायी दिया । जहां जब इतनी उंचाई से पानी गिरता होगा तेा कितना सुंदर नजारा होता होगा ? जब हम यहां आये तो झील में पानी का स्तर काफी कम था क्योंकि जब हमने झील देंखी तो उसमें पानी के लेवल जहां तक अधिकतम पहुंचता होगा वहां तक पेड पौधे नही होते जबकि उसके उपर होते हैं । और उस लेवल से पानी बहुत नीचे था
खाना खा लिया अब चलें
बांध से जो पानी छोडा जा रहा था वो भी बहुत कम था । खैर इसी रास्ते पर हम चलते रहे और अब भाखडा की जगह नागल के किलामीटर लगे बोर्ड आने शुरू हो गये थे ।धीरे धीरे बलखाती और लहराती सडको के सहारे हम नागल तक भी पहुंच गये । पर यहां आकर सबसे पहले एक पुल पार किया और कस्बे से में जो पहुंचे तो रास्ता भटक गये । बस स्टैंड के पास जब रास्ता पूछा तेा उन्होने बताया कि जिस पुल को पार करके आप आये हो उसी पुल के बराबर से रास्ता जायेगा । वापिस गाडी घुमायी और उसी पुल के बराबर से लिया तो घूम फिरकर बस स्टैंड के पीछे से ही मानो कि बाईपास निकल गये हों ऐसे नागल का बांध आया और उसके बराबर से दांये हाथ को मुडकर हमने उना की तरफ प्रस्थान किया । पर अब राजेश , उनके बेटे और बलवान को भूख लग रही थी । हम तो दो दो परांठे खा चुके थे तो हमें इतनी भूख नही सता रही थी पर जैसा सब कहें तो रास्ते में एक बढिया सा ढाबा देखकर गाडी रोक ली ।वैसे ढाबा अपना ही था क्योंकि जैसे मुझे प्यार से मन्नू और मोनू भी कह देते हैं वैसे ही इस ढाबे का नाम भी मन्नू का वैष्णो ढाबा था । ये गांव पनोह था जो कि उना अम्ब रोड पर था । होटल वालो ने उपर घर और नीचे रैस्टोरेंट बना रखा था । यहां पर सबसे पहले तो रोटी के बारे में पूछा — तवे की रोटी यहां नही थी केवल तंदूर की थी और कुछ लोगो ने दाल तो कुछ ने मिक्स वेज मंगाकर खायी । खाना बढिया था और रैस्टोरेट में आइसक्रीम से लेकर खाने पीने की और सभी वस्तुए थी । कुल मिलाकर बढिया खाना था रैस्टोरैंट का । खाना खा पीकर इधर उधर देखा तो एक सुंदर मंदिर दिखायी दिया हनुमान जी का जो अभी नया बना था और इस वक्त बंद था । उसका भी एक फोटो लिया और हम अपने रास्ते बढ चले ।</p>
तो ये पोस्ट आपको कैसी लगी बताईयेगा जरूर । अगली यात्रा का भी लिखना तभी सफल होगा जब पहली पसंद की जाये तो आप सब के आर्शीवाद का इंतजार रहेगा
ज्वाला जी के रास्ते में

COMMENTS

BLOGGER: 5
  1. सीधी साधी भाषा में लिखा हुआ आपका हर शब्द दिल को छूता है मनु ...आप यु ही यात्रा विवरण लिखते रहे ....आशीर्वाद !

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  2. Khubsurat nazaaro ke sath-sath mazedaar yatra ....
    chalte raho Manu bhai...

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  3. Manu bhai tumhare blog padhkar aur yatra k foto dekhkar bada mazaa aya..ho sake to koi agli yatra ka plan ho to hame bhi shamil kar lena..hamare dost bhi aapki yatra me shamil hona chahte hai...

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  4. abhi tak jitna pda dekha man ko bhut achcha laga / kbhi koe yatea plan kro to hme bhi yad kr lena / hmara no.09455062286

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  5. Interesting post. My maternal uncle was an engineer with the Bhakhra Beas Board and lived in Nangal. So got an opportunity to see the dam and understand the technical workings from close quarters. Also heard quite a few engaging spy stories.

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