हम सब भी खुश थे और पता नही क्या क्या बात कर रहे थे इतने में चीख पुकार मचनी शुरू हुई । हम सबने देखा कि अगली नाव एक तरफ को लगातार झुक रही थी ...
हम सब भी खुश थे और पता नही क्या क्या बात कर रहे थे इतने में चीख पुकार मचनी शुरू हुई । हम सबने देखा कि अगली नाव एक तरफ को लगातार झुक रही थी और वो इतनी झुक गई थी कि कई लोग पानी में धडाधड गिर रहे थे । उफ क्या मंजर था ! लोग छप छप करके गिर रहे थे और जो लोग किनारे पर उतर चुके थे उनके साथ के और जो लेाग नाव में बचे थे वो चीख पुकार मचा रहे थे ।
समझ में नही आया कि क्या हुआ और अचानक एक जोर की आवाज हुई और वो नाव टूट गई । जी हां वो नाव बीच में से टूट गई और सारे लोग जो उस समय उस नाव में थे बिलकुल किनारे पर पानी में गिर पडे । हमारी नाव वाले ने अपनी नाव केा वहां लगाने का इरादा छोडकर प्लेटफार्म् के पास खडी कुछ नावो से सटा दिया औ सबसे पहले मै जो कि उस नाव के उपर खडा था , बराबर में खडी नाव में कूद गया ।
ये मै पागलो की तरह खडा हूं नाव की छत पर[/caption] और लोग भी भाग भाग कर उतरने लगे जिससे हमारी नाव भी तिरछी हो गयी और चार पांच लोग उस नाव और बराबर की नाव की जगह में गिर पडे क्योंकि वो संभल नही पाये । मुझे सबसे ज्यादा फिक्र थी लवी की और मैने उसे पुकारा क्योंकि वो उसी साइड में थी जिधर हमें उतरना था तो मैने उससे हाथ मांगा कि मेरा हाथ पकड लो एक बार । औरतो में कभी कभी बुद्धि सच मे लगता है कि जैसा कहते हैं कि कम होती है इस बात को बुरा मत मानना क्योंकि मुझे इतना गुस्सा आया जब लवी ने सबसे पहले मुझे बैग पकडाना चाहा अरे यार यहां लोग गिर रहे हैं मर रहे हैं और तुम बैग की चिंता कर रहे हो ।
ये है गंगासागर का टैक्सी स्टैंड[/caption] मैने बैग पकडा और लवी को पकडकर बराबर की नाव पर खींच लिया । उसके बाद मैने एक बार भी पलटकर लवी को नही देखा जब तक कि मै उस नाव से चढकर प्लेटफार्म पर पहुंच गया । यहां प्लेटफार्म पर खडे लोगो में से कुछ लोगो ने नाव के गिरे रस्सो को पानी में फेंक दिया था और उन्हे प्लेटफार्म पर बने लोहे के पिलरो से बांध दिया था । पानी में गिरे काफी लोगो ने इन्हे पकड रखा था । एक एक रस्सी से 20 —20 लोग लटक रहे थे । मै भी उपर लोहे के बने उस प्लेटफार्म पर पहुंच गया और उन पिलरो में और कई लोगो की तरह अपना सारा शरीर फंसा लिया बस हमारे हाथ बाहर थे और हम गिर नही सकते थे । उसके बाद हमने लोगो को निकालना शुरू किया । नीचे मेरी आंख के सामने केवल 10 फुट की दूरी पर चार पांच लाशे तैर रही थी जो डूब चुके थे और जो रस्सी से लटके थे उनकी आंखो में एक आस थी कि हमें बचा लेंगे । उन लटके हुए लोगो में वो महाशय भी थे जिन्होने ट्रेन में थोडी सी बात के उपर कितना कुछ हमें कहा था धर्म और अधर्म की बाते बतायी थी । चार पांच लोग हम एक पिलर पर लोगो को खींच रहे थे लवी रोने लगी थी और बार बार मेरे पास आकर मुझे वहां और आगे जाने को मना कर रही थी । इतने में हरकरन अंकल और आंटी आ गये वो भी सुरक्षित थे ।
ये है हमारी नाव और उसका लिया गया एकमात्र फोटो[/caption] मैने उन्हे लवी को दूर ले जाने को कहा । पूरा माहौल चीख पुकार से भरा था । और वहां के लोकल लोग और नाविक जो कि तैरना भी जानते थे बस बैठकर देख रहे थे जबकि फेरी वाले स्टीमर की इंतजार में प्लेटफार्म पर खडे लोग हमारी मदद कर रहे थे । कुछ औरते बेहोश हो गयी थी जिसमें हमारी टूर मैनेजर मोहतरमा भी थी । छह लोगो को हमने निकाला अपने वाले पिलर से तब तक दूसरे कोनेा से भी काफी लोगो को बचा लिया गया । अब पुलिस की गाडियो का सायरन गूंजने लगा था । कुछ लोग ऐसे थे जो बच तो गये थे पर या तो उनको पानी चला गया था या हाई ब्लड प्रेशर की वजह से वो सांस भी नही ले पा रहे थे । जब सारे लोग निकल गये तो लाशे निकालनी शुरू हुई । लोकल के कुछ बच्चे जो कि तैरना जानते थे उन्होने लाशो को जो कि जिंदा लोगो को निकालने के चक्कर में काफी दूर बह गई थी को धकेल धकेल कर किनारे पर लाये और वहां से हमने उन्हे निकाला । अब प्लेटफार्म पर लाशे फैली थी और उनके रिश्तेदार जबकि कुछ लोग अभी लापता थे और उनके रिश्तेदार पछाड खा खाकर गिर रहे थे । लवी अब भी रोये जा रही थी और अंकल आंटी ने मुझे वहां से चलने को कहा । हम अपनी बसेा के पास पहुंचे तो पता चला कि पास की एक धर्मशाला में सबके रूकने को कहा है । हमारे टूर मैनेजर नयी उम्र के थे और ऐसा उन्होने पहली बार देखा था वो होपलैस हो रहे थे और उन्होने दिल्ली हैडक्वाटर को फोन कर दिया था जहां से स्थानीय प्रशासन को इत्तला करने की वजह से डी एम से लेकर एस एस पी आदि समेत डाक्टरो की पूरी फौज आ गयी थी जो घायलो को वहां के अस्पताल में ले गये और बाकी का मैडिकल चैकअप हो रहा था ।
ये सुंदर बच्ची हमारे साथ हमारे डिब्बे में थी और हादसे में ये भी गिर गयी थी पर बच गयी भगवान की कृपा से[/caption] मेरे धर्मशाला में पहुंचते ही कई लोग मुझे ढूंढते मिले और कईयो ने तो हमें सीने से चिपका लिया । इस सफर में 7 दिन में जो लेाग आपस में हमसे काफी घुल मिल चुके थे और कुछ तो इसलिये की हम सबसे युवा जोडे थे फिक्रमंद थे कि कहीं वो ठीक हैं या नही ? सब अपने अपनेा के अलावा सफर में बने मित्रो को ढूंढ रहे थे । लोग फोन के लिये परेशान थे । कई लोग बच तो गये पर उनके सामान पानी में गिर गया जिससे कि उनके पास फोन नही था वो मेरे और औरो से अपने घर पर इस हादसे की सूचना दे रहे थे । मैने आज से पहले ऐसा मंजर नही देखा था मै खुद भी परेशान हो गया था । उन छह लाशो में जो मैने देखी थी मेरे जानने वाले और एक तो हमसे बराबर वाली सीट की महिला थी जो कि अपने पति और सास की साथ आई थी और बहुत भारी शरीर की महिला थी और उन्होने अपने मरते से पहले उपर से खींच रहे लोगो को कहा कि बस आप मेरे पति को बचा लो और पानी में उथल पुथल होने लगी । एक महिला तो अपने पडौस की तलाकशुदा युवती को लेकर आयी थी और अब वो लडकी लापता थी । उस दिन 50 लोग नाव से गिरे थे समुद्र में और उनमें से 10 की मौत हो गयी थी । दस में से चार लोगो की लाशे समुद्र में बह गई थी जो अगले दिन शाम तक मिल पायी और मै जितना जिक्र करूं उतना कम है उस हादसे के बारे में ।
हरकरन अंकल और आंटी जो पूरी यात्रा में हमारे साथ थे और हम लोग आज भी मिलते हैं[/caption] रात को ही हमें कोलकाता पहुंचाया गया और उसी होटल में रूकाया जहां पहले रूके थे और जो लेाग मर चुके थे उनको पोस्टमार्टम कराकर जो भी ट्रेन उनके घर की ओर जा रही थी उसी में विशेष कोच लगाकर उनके रिश्तेदारेा के साथ भेज दिया गया । हम लोग भी भारी मन से वापसी के लिये अगले दिन सुबह ट्रेन में बैठ गये । ट्रेन अपने गंतव्य की ओर चल पडी थी और अब चर्चा ये शुरू हो चुकी थी कि आगे टूर जारी रखा जायेगा या नही । रेलवे के अधिकारियो ने पहले तो टूर जारी रखने का फैसला किया लेकिन ट्रेन में मौजूद 80 प्रतिशत लोग इसके पक्ष में नही थे वो जल्द से जल्द अपने घर जाना चाहते थे । अगले दिन ये हादसा अखबारो और टीवी पर आ चुका था । इसलिये फोन घनघना रहे थे । 20 प्रतिशत लोग ऐसे भी थे जो खासतौर पर उस तीसरी नाव में सवार थे जो बाद में आयी और जिन्होने उस हादसे को नही देखा था और उनमें से कुछ स्वार्थी लोग अभी भी गया , इलाहबाद और उज्जैन के जगहो पर घूमना चाहते थे । पूरे दिन मंथन करने के बाद टूर मैनेजरो ने एक कागज सबसे लिखकर लिया जिसमें पांच चार सवाल थे जैसे कि आप इस हादसे के लिये किसकेा जिम्मेदार मानते हो और क्या आप आगे भी यात्रा जारी रखना चाहते हो ? परिणाम वही था 80 प्रतिशत लोगो की बात मानी गयी और हम सब जैसे जैसे स्टेशनो मुरादाबाद, बरेली और दिल्ली आदि से चढे थे उसी तरह से उतरते चले गये ।
मुरादाबाद स्टेशन पर काफी भीड थी और साथ में मीडिया भी । मुरादाबाद के उतरने वाले यात्रियेा में से कुछ ने मीडिया वालो को मेरे लोगो को बचाने के काम के बारे में बताया खासतौर से एक मुरादाबाद में रहने वाले खन्ना अंकल और आंटी ने जिन्हे मैने निकाला था । वो रास्ते में भी कई बार कहने आयी कि बेटा ये जिंदगी तेरी दी हुई है और कभी घर आना । उन्होने अपने नम्बर और पता भी दिया और आज भी उनका कभी भी फोन आ जाता है । मीडिया वाले फोटो खींचने के लिये कह रहे थे मैने साफ मना कर दिया मै इस काम को प्रचारित करने के लिये नही किया वो समय की मांग थी और भगवान ने मुझे इस लायक बनाया था कि मै इस काम को कर सकूं सो मैने कर दिया पर मै इसका प्रचार नही चाहता । मित्रो मैने आपको भी ये इसलिये लिखा है कि संकट में अगर हो सके तो दूसरो की मदद करो । मैने यहां भी इस बात को प्रचार के लिये नही लिखा है कि कोई वाह वाह करेगा मेरी इस बात को पढकर । और हां मैने खुद के घर पर इस बात की चर्चा तक नही की आने से पहले ताकि घर वाले परेशान ना हो । वापिस घर आकर ही बताया कि ऐसा हो गया था । मा0 जी जो कि हमारे साथ घूमने जाते हैं उन्होने अखबार में पढ लिया था और मुझे फोन किया था कि ये क्या हुआ मैने उन्हे भी मना कर दिया था कि इस बात को और मत बताना किसी को मै सुरक्षित हूं और वापिस आ रहा हूं । आई आर सी टी सी के उन टूर मैनेजरो के खिलाफ जांच चली जिसमें हममें से काफी लोगो ने ये सोचकर कि जो होना था वो हो गया पर इनकी तो नौकरी चली जायेगी उनके पक्ष में लिखकर दे दिया था कि इनकी कोई गलती नही थी । वापिस आने के एक महीने के अंदर कई बार ईमेल और फोन के माध्यम से सम्पर्क करने के बाद आई आर सी टी सी वालो ने उस टूर की पूरी राशि लौटा दी सभी को वापिस । अगर ये टूर किसी प्राइवेट टूर आपरेटर का होता तो शायद इतनी केयर ना मिल पाती इस हादसे के बाद हमने कसम खाई कि अब कभी समंदर में नही जायेंगे पर अगले साल ही गोआ में एक छोटी सी बोट में जो कि समंदर की लहरो से उपर नीचे उछल रही थी ,में बैठकर डाल्फिन को देखने जा रहे थे .....घुमक्कडी जिंदाबाद मेरी जिंदगी का दूसरा पर सबसे भयंकर हादसा और यात्रा मैने आप लोगो के सामने रखी है और आपसे इस पर आपकी प्रतिक्रिया जरूर चाहूंगा ।
आई आर सी टी सी के टूर मैनेजर कपिल शर्मा , हम बाद में मित्र बने
Manu bhai bahut hi khatarnaak yatra rahi aapki....
ReplyDeleteBahut hi dukh hota hai jab koi sahyatri sada ke liye bichud jaaye .par koi kya kr sakta hai honi ko ye hi manjoor tha...
Manu ji you are not only great ghumakkar but great human being as well.
ReplyDeleteOhhhh u r great men
ReplyDeleteऐसे संकट-काल में भी जो परदुख कातर होकर मानवता की सेवा में तत्पर रहे -उसे प्रणाम !
ReplyDeleteरोंगटे खड़े कर देने वाला वर्णन है....जिस पर गुजरती है वही समझ सकता है...शब्दो मे नहीं कहा जा सकता...
ReplyDeleteवास्तव मे गलती किसकी थी उन नाव वालो की
ReplyDeleteउन्हे तो कडी से कडी सजा होनी चाहिए
जिंदगी ऐसे ही चलती है .....
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