सारे तीर्थ बार बार , गंगा सागर एक बार । जहां गंगा सागर में मिल जाती है वो गंगा सागर है । पश्चिम बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना जिले में ...
सारे तीर्थ बार बार , गंगा सागर एक बार । जहां गंगा सागर में मिल जाती है वो गंगा सागर है । पश्चिम बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना जिले में स्थित इस जगह तक पहुंचना इतना दुर्गम है कि शायद इसीलिये ये कहा गया है कि सारे तीरथ बार बार गंगासागर एक बार । कोलकाता से 110 किमी0 दूर तक बस का सफर करके डायमंड हार्बर तक पहुंचा जाता है जहां समुद्र के दर्शन होते हैं इसी के साथ कोलकाता का ग्रामीण परिवेश भी यदि आपको देखना हो तो वो भी इस रास्ते में दिख जायेगा जहां हर गांव में और लगभग ज्यादातर घरो में छोटे से पानी के श्रोत में मछलीयां पाली जाती है । यानि खाने की सबसे सुलभ और प्रसिद्ध चीज अपने घर में । इसके बाद डायमंड हार्बर से फेरी या नाव पकडकर सागर द्धीप पहुंचना होता है जो कि करीब दो लाख की आबादी वाला द्धीप है और वैसे तो साल भर सूना सा ही रहता है पर मकर संक्राति आते ही ये दूधिया रोशनी से जगमगा उठता है इस अवसर पर लगने वाला मेला अदभुत होता है ।
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देश के कोने कोने से आये साधु सन्यासी और श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और दुकाने सज जाती हैं । इस सागर तीर्थ का काफी पुराना महत्व है । कुछ लोकोक्तियो के अनुसार यहां का मंदिर ईसवी सन 437 से स्थापित है । 1683 में जेम्स नामक लेखक ने अपनी किताब में यहां के मंदिर का जिक्र किया है । प्राचीन मंदिर के बारे में ये भी कहा जाता है कि कई बार समुद्र में समा गये । 1973 में वर्तमान मंदिर का निर्माण समुद्र से एक किमी0 दूर कराया गया । पहले कच्चा बना ये मंदिर अब पक्का हो गया है । मंदिर में लक्ष्मी , घोडे को पकडे राजा इंद्र और कपिलमुनि की मूर्तिया है । यहां अब पास में ही साधु संतो और तीर्थ यात्रियेा के लिये धर्मशाला भी बनी हुई है । इस द्धीप के एक छोर पर बंगाल की खाडी है तो दूसरा छोर बांग्लादेश है । पुराने जमाने में इस जगह पर पहुंचने का रास्ता इतना कष्टसाध्य और दुर्गम था कि यहां तक पहुंचने में कई कई दिन लग जाते थे । साथ में नाव से जाने के लिये कोई मछुआरे ही तैयार होते थे और उसके बाद 32 किमी0 लंबे इस द्धीप को पार करने में कई जोखिम थे जैसे जंगली जानवर और कोई यातायात की सुविधा और रूकने की कोई सुविधा ना होना । ना कोई खाने पीने का इंतजाम इसलिये कई यात्री इनमें से किसी भी कारण से अक्सर जान गंवा दिया करते थे शायद इसीलिये भी कहा जाता हो कि सारे तीरथ बार बार और गंगासागर एक बार ।
अब तो यहां आने का रास्ता और सुविधाये इतनी बेहतर हो चुकी हैं कि कोलकाता से सुबह से शाम तक आना जाना हो सकता है । यहां इस द्धीप पर गांवो मे विकास की बहार आ गर्ई है । सरकारी फेरी जो चलती है वो इतनी बडी है कि एक बार में 1500 आदमी और कई गाडियो को एक ही बार में ले जा सकती है और इससे इस द्धीप पर गाडियो की संख्या काफी हो गयी है जिससे 32 किमी0 लम्बे और नाक की सीध के रास्ते को पार करने में समुद्र से उतरते ही गाडी में बैठकर कुल एक घंटे का समय लगता है । और पहुच जाते हैं गंगासागर तट पर
मंदिर से भी काफी पहले ये गाडिया छोड देती है जहां से समुद्र तट काफी दूर होता है अब आगे का सफर ठेली या रिक्शा जिसे कहा जाता है उसे लिये लोकल के लोग खडे रहते हैं । वे 10 रू सवारी लेकर आगे तट तक आपको ले जाते हैं । ऐसा नही है कि तट तक गाडिया नही जा सकती पर ये पर्यटको को लूटने का एक और साधन है और यहां के लोगो के लिये एक और कमाई का जरिया ।
गाडी वालेा ने बोला कि हम इससे आगे नही जा सकते तो इससे आगे फिर आपकेा रिक्शा में बैठकर जाना होगा । लोकल के लोग यहां नारियल पानी लिये रहते है और काफी सस्ते में , क्योंकि जब हम गये तो वहां मेला वगैरा तो था नही , केवल 5 रू में पानी वाला और 10 रू में मलाई वाला नारियल पानी पिलाते हैं रास्ते भर ना तो हमें किसी ने बताया कि ये यात्रा कैसी होगी और ना हमें पता था ।
पहले बस में बैठ गये और हार्बर तक पहुंच गये उसके बाद नाव में बैठ गये और द्धीप तक पहुंच गये । इस बार हमने सोचा कि हम पहुंच गये पर अभी कार का सफर बाकी था और उसके बाद रिक्शा का । कुल मिलाकर बस से 3 घंटे और एक घंटा नाव और उसमें बैठने का , एक घंटे में तट के पास और फिर रिक्शा में तट तक । चार चार साधनो से तो अब भी यात्रा करनी पडती है तब जाकर लगभग 5 घंटे में गंगासागर तक पहुंचते हैं और उसके बाद मुश्किल से एक या डेढ घंटा रूकने का आदेश हुआ क्योकि उसके बाद खाना भी खाना था सो हम सब लोगो ने जाकर सबसे पहले तो समुद्र तट पर जाकर ये देखा कि गंगा जी कहां सागर से मिल रही है पर कमाल की बात ये थी कि हम एक ऐसी जगह खडे थे जो कि समुद्र मे पानी से घिरा एक द्धीप था और यहां कोई नदी किधर से भी नही आ रही थी जो हमें सागर से मिलन का दृश्य दिखाती
सेा काफी कोशिश के बाद हमने अपने टूर गाइड से पूछा कि गंगा सागर में यहां कैसे मिलती है तो उन्होने बताया कि यहां गंगा सागर में मिलती दिखाई नही देती है बल्कि गंगा बंगाल में हुगली नदी के किनारे सैकडो जलधाराओ में बंट जाती है और समुद्र में मिल जाती है । आप इस जगह का पानी देखो तो आपको कुछ कम नमकीन पानी मिलेगा जितना कि आमतौर पर समुद्री पानी होता है इसका कारण गंगा का पानी मिलना है और यहां पर गंगा जी का पानी समुद्र के पानी से कुछ अलग सा उठा हुआ मकर संक्रांति के मौके पर सबसे अच्छा दिखता है आजकल नही सूर्य स्नान और चावल के भोजन के अलावा यहां पर उस मेले में पिंडदान का भी विशेष महत्व है ।
संक्राति के दिन सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करता है । 5—6 लाख लोग इस अवसर पर यहां जुटते हैं । तो अब हमारे सामने और कोई चारा नही था कि बस या तो यहां खडे रहें और थोडी देर बाद यहां से चल दें या फिर 500 के करीब लोगो को नहाते देखने की बजाय खुद भी नहा लें और यहां आने का कुछ तो मकसद सफल करें । सेा हम दोनो भी अपने कपडे किनारे पर रखकर जो कि एक आदमी से 10 रू में किराये पर पोलिथीन ली बडी सी जो केवल कपडे रखने के लिये थी और नहाने के लिये चल दिये । जहां हमने सामान रखा था वेा जगह लहरो से काफी दूर थी और वहां तक पानी का कोई निशान भी नही था सो हमने सामान रखा तो एक दो लोकल ने कहा कि सामान पीछे रखो नही तो पानी आ जायेगा । पर सामान इतने पीछे रखकर हम उसका ध्यान कैसे रखते सेा हमने उसकी बात नही मानी ।
जब हम नहाने लगे तो नहाने के लिये काफी दूर तक चले गये थे और इसी बीच हमने देखा कि एक लहर हमसे होकर हमारे सामान की ओर जाने लगी । हम भागे तो भी उस लहर ने हमारे कपडे और मेरा नया नया कैमरा भिगो डाला था । मुझे कपडो की कोई चिंता नही हो रही थी कैमरे की ज्यादा थी । कैमरा अपने कवर में था और कवर भीग गया था । मैने तुरंत कवर उतारा तो कुछ नमी कैमरे की एलसीडी पर जा चुकी थी । मैने कैमरा आन किया तो कोई पिक्चर नही आयी । मै परेशान हो गया था और उसके बाद सब नहा धोकर कपिल मुनि के मंदिर में गये और वहां से सीधे चलते हुए कार स्टैंड पर पर गये जहां हमारे यात्रा आयोजको ने खाने के पैकिट ला रखे थे और सबको पैकिट दे दिये गये । वैसे वहां एक दो दुकाने भी लगी थी चाय वगैरा की जिससे लोगो ने पानी आदि लिया । और वापिस कारो में बैठकर चल दिये । एक घंटे के बाद वापिस उसी स्थान पर पहुंचे जहां हमारी नावें खडी थी । पर सबसे पहले हमें इकठठे होकर अपनी गिनती देनी थी कि कोई रह तो नही गया और जब सब इकठठे हो गये तो यात्रा आयोजको ने नाव वालो को बुलाया और पहली नाव किनारे पर लगी । एक बात मै जरूर कहूंगा कि लोगो को तीर्थ यात्रा हो या कुछ भी इतनी जल्दी होती है और इतना स्वार्थ की बस की सीट से लेकर वो नाव में बैठने को भी लेकर लडते झगडते हैं और वो भी बच्चो की तरह । पहली नाव को देखते ही लोग टूटकर पडे उसमें चढने के लिये जैसे सब उसी में जाना चाहते थे और जैसे उसके अलावा दो नावे ही ना हों । पहली नाव में काफी भीड हो जाने के कारण हम उसमें नही चढे और हमने दूसरी नाव का रूख किया जो कि उसी के पीछे लगी हुई थी । दूसरी नाव में भी काफी भीड हो गयी थी और तीसरी नाव में सबसे कम लोग थे । पर सबसे पहले हमारी नाव वाला आगे चल पडा । मै और रेलवे का यात्रा आयोजको में से बंदा कपिल शर्मा मस्ती के लिये नाव में बनी बीच की जगह के उपर खडे हो गये और यकीन मानिये पूर रास्ते हम लोग नाव के सबसे उपर खडे थे जबकि और सब लोग नाव के फर्श पर बैठे थे । हम सागर को मजाक मान रहे थे और शायद सागर हमें । जब तट नजदीक आया तो हमने देखा कि एक स्टीमर की नाव जो कि एंबूलैंस नाव थी और तट पर खडी थी वो वहां से चल दी थी उसमें चार पांच लोग सवार थे शायद वो पैट्रोलिंग के लिये जा रही थी । कितनी सुविधा दे रखी हैं सरकार ने समुद्र में भी चिकित्सा सुविधा पर क्या करें जब वक्त साथ ना हो तो कुछ नही हो सकता । चिकित्सा नाव हमारे सामने ही और हमारे बराबर को होती हूई निकल गई । हम तट पर पहुंचने ही वाले थे कि हमारी नाव वाले ने नाव को धीमा कर दिया और फोन पर दूसरी नाव वाले से जोर जोर से बात करने लगा । इसके बाद उसने वापिस नाव को घुमा दिया । जब सबने पूछा कि ये क्या कर रहे हो तो उसने बताया कि जाते वक्त मेरी नाव में 80 लोगो की बात तय हुई थी जबकि अभी 100 लोग हैं तो 20 लोगो का पैसा मुझे चाहिये और वो कौन देगा । मेरे साथ कपिल शर्मा मौजूद था उसने कहा कि तुम तट तक चलो सबका हिसाब हो जायेगा क्योंकि हमें तो टोटल जितना पैसा देना हे उतना ही देना है तुम लोग जितने जितने आदमियो को लाये हो उतने उतने आपस में बांट लेना इस बात को समझाने में जितनी देर लगी उतने में उसने नाव को दो तीन बार गोल गोल घुमा दिया था और दूसरे नम्बर की नाव जिसमें लगभग 120 यात्री के करीब थे वो आकर तट पर रूक गई । नावो को उन्होने उस तट पर उतारना तय किया जहां पर स्टीमर रूकता था और इस समय नही था । ये जगह इतने बडे स्टीमर के लिये थी और यहां पानी 30 फुट गहरा था । हांलांकि वो हमें नाव के द्धारा कहीं भी किनारे पर उतार सकते थे पर स्टीमर को ना देख कर उन्होने वहां की सेवा ले ली और उसको उतारते देखकर हमारी नाव वाले ने एक और चक्कर गोल गोल घुमा दिया ताकि जब तक वो अपनी सवारिया उतारे तब तक हमारा नम्बर आ जाये । तीसरे नम्बर की नाव अभी तक दिखायी भी नही दी थी और आगे वाली नाव वाले ने अपनी नाव लोहे के बने प्लेटफार्म से लगा दी थी और अपने रस्से उस प्लेटफार्म पर डाल दिये थे और लोग उतरने लगे थे ।
और तभी चीख पुकार की आवाजे आनी शुरू हो गयी .........क्रमश:
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