पुरी जिले में ही स्थित कोणार्क मंदिर को हमें देखने के लिये ले जाया गया । धर्मशाला में हमारी बसे खडी थी और सारी बसे भरने के बाद एक साथ कोण...
मंदिर में मुख्यत भगवान सूर्य की पूजा की जाती थी और बारह जोडी चक्र वाले सात घोडो से खींचे जाते सूर्य देव का रथ इसमें दिखाया गया है । इस रथ के पहिये कोणार्क की और उडीसा की पहचान बन गये हैं इस मंदिर में सूर्य देव की भव्य यात्रा को दर्शाया गया है । मंदिर में भगवान सूर्य की तीन प्रतिमाऐं हैं जो उनके बचपन , युवा और वृद्धावस्था को दिखाती हैं । मंदिर तीन मंडपो में बना है जिनमें से दो नष्ट हो चुके है एक बचा है । और उस मंडप को भी अब बंद कर दिया गया है ।
जब हम कोणार्क पहुंचे तो बारिश शुरू हो गयी थी । ज्यादा तेज तो नही पर हल्की हल्की थी । चूंकि हम ट्रेन में थे और वो भी ऐसी ट्रेन में जो सिर्फ हमारे लिये थी और हमारे उतरने के बाद वो यार्ड में जाकर खडी हो जाती थी । सो हमने एक बडा सूटकेस और एक छोटा बैग रख लिया था । बडे सूटकेस को हम कहीं भी उतारते नही थे । बस उसमें से एक या दो दिन के जैसा भी प्रोग्राम होता था वैसे ही कपडे निकालते छोटे बैग में रखते और निकल जाते इस तरह सामान उठाने या ढोने की समस्या भी नही थी हम घर से छतरी लेकर चले थे जो यहां काम आ गयी । और हमने छतरी के सहारे मंदिर घूम लिया । वैसे समुद्र तट पास होने के कारण यहां कभी भी बारिश शुरू हो जाती है इसलिये यहां छतरी वाले किराये पर भी छतरी देते हैं । आपको मै बता दूं कि इस यात्रा में हम कैमरा लेकर नही चले थे तो मोबाईल से ही फोटो खींचे थे । कैमरा हमने भुवनेश्वर में जाकर लिया था सो अगली पोस्ट में आपको फोटो और अच्छे देखने को मिलेंगे कोणार्क से लौटते हुए सबकी एक ही फरमाइश थी कि बीच पर जाना है इसलिये कोणार्क के बीच पर रोका भी बस वाले ने पर जब बारिश बंद नही हुई तो वापिस चल पडे । उसके बाद हमने शाम को पुरी का बीच देखा और उसमें नहाये भी
[/caption] भुवनेश्वर जाते हुए हमें रास्ते में एक जगह रोका गया जो कि बिल्कुल रास्ते में थी और बसो के खडे करने के बाद थोडी सीढिया चढकर पहले एक समतल जगह आती है और वहां से धौली का स्तूप दिखाई देता है और उसके लिये फिर से कुछ सीढिया चढनी होती हैं । मंदिर के नीचे गाडी की पार्किंग के पास में काजू की दुकाने ज्यादातर थी जहां से हमारे कई साथियो ने काजू और बादाम खरीदे क्योंकि ये यहां सस्ते मिल रहे थे वो अलग बात है कि यहां से चलने के बाद जब खाकर देखे तो ज्यादातर का स्वाद बढिया नही था
ये वही स्थान है जहां अशोक कलिंग युद्ध की समाप्ति के बाद पश्चाताप की अग्नि में जला था । इसी के बाद उसने बौद्ध धर्म अपनाया था । अशोक के जीवन दर्शन को दिखाता हुआ पत्थर का स्तम्भ भी यहां है । ये स्तूप धौली पहाडी की चोटी पर बना हुआ है । यहां भगवान बुद्ध की मूर्ति और उनके जीवन से संबधित घटनाऐं दिखायी गयी हैं चित्रो के माध्यम से । स्तूप के पास जाकर उसके चारो ओर की परिक्रमा करने के क्रम में बडा ही सुंदर नजारा दिखाई देता है जिनमें पास से गुजरती दया नदी भी बडी सुंदर लगती है और चारो ओर की हरियाली मन मोह लेती है सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक ये स्तूप खुलता है आम जनता के लिये और कोई टिकट वगैरा इसे देखने का नही लगता । ये भुवनेश्वर से करीब 8 किमी है
यहां एक शेर की भी प्रतिमा बनी है और शांति स्तूप की दीवारो पर चित्रकारी बहुत अच्छी लगी । उडीसा की राजधानी है भुवनेश्वर । कटक से भुवनेश्वर के राजधानी बनने का सफर तो वैसे 1950 में हुआ लेकिन भुवनेश्वर का इतिहास 2000 वर्षो से भी ज्यादा पुराना है । प्राचीन कलिंग राजाओ की राजधानी रहा भुवनेश्वर अपनी उडिया शैली के भव्य मंदिरो और गिरजाघरो के लिये प्रसिद्ध है यहां से हम चल दिये भुवनेश्वर की ओर और भुवनेश्वर में जाकर हमारा सबसे पहला पडाव था लिंगराज मंदिर ।
भुवनेश्वर में वैसे तो मंदिरो की बहुतायत है पर लिंगराज मंदिर इनमें सबसे मेन है ।। यहां का प्रमुख आकर्षण लिंगराज मंदिर है । तीनो भुवनो के स्वामी भगवान त्रिभुवनेश्वर को समर्पित इस मंदिर के वर्तमान स्वरूप में कुछ हिस्से 1400 वर्षो से भी ज्यादा पुराने हैं । लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर के सबसे पुराने मंदिरो में से तो है ही साथ ही अपने आप में एक मंदिरो का समूह जैसा है एक विशाल परिसर के अंदर बना हुआ ये मंदिर 1100 साल पुराना है और मंदिरो के शहर भुवनेश्वर जिसमें बताते हैं कि अब भी कई सौ मंदिर हैं में विशिष्ठ स्थान रखता है । लिंगराज का अर्थ है लिंगो का राजा । लिंग जो कि शिव का प्रतीक है उन सबमें श्रेष्ठ ।
मंदिर लगभग 55 मी0 उंचा है और मंदिर में 150 के लगभग छोटी बडी मूर्तिया हैं और कई मंदिर । मंदिर की दीवारे बहुत मोटी मोटी हैं और साथ ही मंदिर का द्धार बडा आकर्षक मंदिर में फोटोग्राफी प्रतिबंधित है और कैमरा मोबाइल आदि गेट के पास बने क्लाक रूम में जमा करना पडता है । हालांकि मंदिर में फोटो नही खींच सकते थे पर मेरा मन अब कैमरे के लिये कर रहा था और मै समय देख रहा था कि जब मुझे इतना समय मिल गया जो मुझे कैमरा लाने के लिये चाहिये था । असल में मैने लिंगराज मंदिर को बडी तेजी से घूमा और फिर बाहर निकलकर अपने टूर गाइड से अगली जगह के बारे में पूछा तो उसने बताया कि हम राजा रानी मंदिर जायेंगे इसके बाद लेकिन खाना खाकर जो कि लिंगराज मंदिर के बराबर में ही एक जगह पर बनकर आ चुका है हमने सोचा कि खाना अगर छूट भी गया तो कोई बात नही और अपने साथ के अंकल आंटी को कहकर कि हम राजा रानी मंदिर पर मिलेंगे बस वाले परेशान ना हों । ये कहकर हम चल दिये और लिंगराज मंदिर के सामने से एक टैम्पो किया ये तय करके कि हमें कैमरा दिलाकर वो राजा रानी मंदिर तक छोडेगा । 100 रू लेकर उसने हमें वहां की एक मार्किट में ले गया जहां से हमने निकोन का 8 मेगा पिक्सल का कैमरा लिया और वहां से राजा रानी मंदिर में पहुंचे । तब तक हमारी बस नही आयी थी सो हमने राजा रानी मंदिर के टिकट लेकर तब तक सारा का सारा घूम लिया और जब हमारी बस आयी तो हम बैठे उन सबको देख रहे थे
राजा रानी मंदिर में फिलहाल कोई मूर्ति नही है । पर बाहर सुंदर सा परिसर है और प्राचीन मंदिर । इस मंदिर में हमारे आने तक केवल दो चार जोडे बैठे थे जो कि हमारी बसेा के आने के बाद असहज हो गये । क्योंकि हमारी बसेा में मौजूद सारे अंकल आंटी का टूर मैनेजर से यही कहना था कि राजा रानी कौन से हैं । म्ंदिर में तो कोई नही है क्या ये जो बैठे हैं पेडो की ओट में इन्ही को राजा रानी दिखाने लाये हो ? इस बात पर काफी हंसी आती रही और फिर थोडी देर इस मंदिर परिसर में घूमने के बाद में सब बस में बैठकर वापिस चल दिये पुरी की ओर क्योंकि हमारा रूकने का वही स्थान था और हमारी ट्रेन भी खडी थी पुरी के स्टेशन पर
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