मै अपनी आराध्य और इष्ट देवी माता वैष्णो देवी के बारे में आपको विस्तार से बताता हूं ...माता वैष्णो देवी के दर्शन करना सबके भाग्य में नही होत...
मै अपनी आराध्य और इष्ट देवी माता वैष्णो देवी के बारे में आपको विस्तार से बताता हूं ...माता वैष्णो देवी के दर्शन करना सबके भाग्य में नही होता । कहते हैं कि जब तक पहाडो वाली का बुलावा ना आ जाये तब तक दर्शन नही होते । आपने अवतार फिल्म का वो गाना देखा होगा तूने मुझे बुलाया शेरावालिये ..मै आया मै आया शेरावालिये
माता के तीन रूप माता रानी के तीन रूप हैं जो कि पिंडी के रूप में हैं । पहली महासरस्वती जो ज्ञान की देवी है , दूसरी महालक्ष्मी जो धन वैभव की देवी और तीसरी महाकाली जो कि शक्ति स्वरूपा मानी जाती है । माता के ये तीन रूप सात्विक , राजसी और तामसिक गुणो को प्रकट करते हैं
स्थिति माता का मंदिर जम्मू में कटरा में त्रिकुटा पर्वत में एक गुफा में स्थित है यहां जाने के लिये जम्मू तक हवाई जहाज या ट्रेन से जाना पडता है और उसके बाद 50 किमी0 की दूरी बस या टैक्सी से तय करके कटरा कस्बे तक जाना होता है जो कि माता के मंदिर तक पहुंचने का बेस है । यहां रूकने आदि की सब सुविधाये हैं और यहां से माता के मंदिर की 14 किलोमीटर की चढाई शुरू होती है माता का ये मंदिर तिरूमला के बाद सबसे ज्यादा दर्शनार्थियो का केन्द्र है और पिछले वर्षो में यहां दर्शन करने वालेा की संख्या 1 करोड को पार कर गयी है
दर्शन करने का तरीका , माता के दर्शन करने के लिये भक्तो को पहले कटरा स्थित पंजीकरण कक्ष से अपना और अपने साथ के लोगो का एक ग्रुप के रूप में पंजीकरण कराना होता है । जो कि कम्पयूटराइज कक्ष से होता है और पंजीकरण के बाद आपको एक पर्ची मिलती है जिसे लेकर आपको चार घंटे के भीतर पहली चौकी बाणगंगा पार करनी होती है । यानि यात्रा जब शुरू करने का मन हो तभी पर्ची कटाये । इस पर्ची की अहमियत ये है कि इस पर्ची को रास्ते में कई बार चैक किया जाता है और उपर माता के भवन पर जाकर इस पर्ची से ही आपको दर्शनो के लिये ग्रुप नम्बर मिलता है जिससे आप सुविधाजनक तरीक से दर्शन कर पाते हैं
माता का यात्रा पथ पर्ची कटाने के बाद आप यात्रा शुरू करते हो तेा सबसे पहली चौकी बाणगंगा की आती है जहां तक आप अगर पैदल ना भी जाना चाहेा तो आटो से जा सकते हो । बाणगंगा यहीं पर माता ने अपने भक्त हनुमान को प्यास लगने पर बाण मारकर धरती से पानी निकाला और उनकी प्यास बुझायी थी यहां पर्ची दिखाकर और सामान चैकिंग कराकर आपको आगे जाने दिया जाता है और चढाई शुरू हो जाती है । यहीं से आपको घोडे ,खच्चर , पालकी और सामान और बच्चो को ले जाने के लिये पोर्टर भी मिलते हैं यहां से दो तीन किलोमीटर की चढाई तक दोनो ओर प्रसाद और खाने पीने की दुकाने हैं जिनसे गुजरते हुए रास्ते का पता ही नही चलता है । यहीं पर उपर चढने वाले यात्रियेा को छडी और डंडे मिलते हैं जो कि 10 रू का होता है और अगर वापसी में आप इसे वापिस करो तो आधे पैसे में ले लेते हैं । बाण गंगा से आगे बढने पर चरण पादुका मंदिर आता है ।
चरण पादुका बाणगंगा से आगे चलकर चरण पादुका नामक जगह आती है जहां पर माता के चरणो के निशान हैं । भैरो से हाथ छुडाकर माता ने इस शिला पर खडे होकर पीछे मुडकर भैरो को देखा था आदि कुमारी या अर्धकंवारी भैरो से बचने के लिये माता ने इस गुफा में नौ महीने तक छिपकर विश्राम किया था 14 किमी0 की चढाई में आधे रास्ते में आदि कुवारी माता का मंदिर आता है और गर्भजून गुफा । यह एक संकरी गुफा है पर माता के कमाल से आज तक कोई भी मोटे से मोटा आदमी भी नही फंसा यहां पर । इसमें जाने और आने का एक ही रास्ता है इसलिये काफी देर में नम्बर आता है दर्शनो का । यहां पर भी दर्शनो की पर्ची कटती है और नम्बर से दर्शन होते हैं । जब तक आपका नम्बर नही आता तब तक आप आराम कर सकते हैं । ऐसा कहा जाता है कि जो भी भक्त इस गुफा में प्रवेश करता है उसे दोबारा गर्भ में नही आना पडता । वैसे मै माता के दरबार में आठ नौ बार जा चुका हूं पर आज तक इस गुफा के दर्शन नही कर पाया । शायद माता ने अभी तक नही चाहा है यहां से माता के भवन के लिये दो रास्ते जाते हैं एक रास्ता है हाथी मत्था और दूसरा नया रास्ता
हाथी माथा आदि कुमारी से आगे हाथी माथा वाले रास्ते पर तीन चार किलोमीटर की खडी चढार्इ् है । इस जगह पहाड की आकृति हाथी के सिर जैसी है और ये सबसे उंची जगह है । इसके बाद देा किलोमीटर की उतराई आती है इस रास्ते को जाना नही चाहिये जब तक मजबूरी ना हो क्योंकि अब जो नया रास्ता बना है वो इतना आसान है कि उस पर वृद्ध और विकलांगो के लिये बैट्री चालित स्कूटर चलते हैं जो कि 100 रू प्रति सवारी लेते हैं
सांझी छत हाथी माथा पर चढते चढते जब ढालान आ जाता है तो सांझी छत नाम की जगह आती है जहां पर हैलीकाप्टर की सेवाये उतरती हैं । हैलीकाप्टर जिसका किराया यहां एक ओर से 1200 रू प्रति व्यक्ति के करीब है यहां पर उतारते हैं और यहां से घोडे से करीब 1 किमी0 का सफर करके भवन तक पहुंचते हैं । उनकी लाइन भी बराबर में चलती रहती है । हैलीकाप्टर सेवा कटरा से शुरू होती है और लगभग 15 मिनट में भवन पर पहुंचा देते हैं
माता का भवन . माता के भवन पर पहुंचकर सबसे पहले भक्त को मंदिर के नीचे बह रहे प्राकृतिक श्रोत में नहाकर और नये कपडे पहनकर अपनी पर्ची से ग्रुप नम्बर लेकर अपने दर्शनो के समय का आराम से बैठकर इंतजार करना चाहिये । यहां नये कपडो से आशय आप अपनी आत्मा को निर्मल करने से भी लगा सकते हैं क्योंकि नये कपडे पहनना अनिवार्य नही है बल्कि श्रद्धा पर निर्भर है । दर्शनो के लिये लाइन ज्यादा लम्बी नही होती और ना ही कोई धक्का मुक्की होती है
सुविधाये माता वैष्णो देवी का ये मंदिर श्राइन बोर्ड के अधीन है जो कि सरकारी है और उन्होने इस मंदिर का ऐसा नक्शा पलट दिया है कि भले ही दर्शनार्थियो की संख्या के मामले में ये दूसरे नंबर पर हो पर सुविधाओ के मामले में ये पहले नम्बर पर है जिनमें से कुछ मै आपको बता देता हूं एक — आपको प्रसाद सिवाय उपर भवन के अतिरिक्त कहीं से लेने की जरूरत नही क्योंकि वहां सरकारी दुकान से 11—21—51 तीन रेट में प्रसाद मिलता है बस इसके अलावा कुछ नही वो भी जूट के बने थैले मे जिसमें नारियल , चुनरी और प्रसाद सब होता है दो — आपको लाइन में धक्का मुक्की की कोई जरूरत नही आप अपनी पंजीकरण पर्ची को दिखाईये और अपना ग्रुप नम्बर ले लिजिये इसके बाद कहीं भी आसपास बैठकर आराम से टीवी स्क्रीन पर नंबर देखते रहिये और अपना नम्बर आने पर लाइन मे लगिये तीन — बाणगंगा से दो तीन किलोमीटर तक बाजार है पर उसके बाद जाने के आठ नौ और दूसरे रास्तो पर कोई दुकान प्राइवेट नही है पर यात्रियो की सुविधा के लिये चाय , काफी और आइसक्रीम की सरकारी रेट पर दुकाने है चार — जगह जगह यात्रियेा की सुविधा के लिये शेड बने हैं पांच — हर किलोमीटर पर जनसुविधायें जैसे कि टायलेट और पीने का पानी उपलब्ध है छह — गुफा में यानि भवन में आप प्रसाद ना ले जा सकते हैं ना चढा सकते हैं आपका प्रसाद पहले ही जमा कर लिया जाता है और बदले में एक टोकन मिलता है जिसे देकर दर्शन करने के बाद आप अपना प्रसाद वापस ले सकते हो और साथ में माता के मंदिर का प्रसाद जिसमे एक चांदी के सिक्के का बहुत ही हल्का सा रूप आपको मिलता है इसलिये आपको कहीं भी प्रसाद पैरो में बिखरा हुआ नही मिलता है जो कि हमारे यहां अन्य मंदिरो में अमूमन होता है
सात —भवन में पुजारी लोग ना तो आपसे प्रसाद लेते हैं ना देते हैं ना कोई चढावा चढा सकते हो । आपको प्यार से दर्शन करने के बाद आप दान पात्र में चढाओ या रसीद कटा लो । यदि आप 51 रू की भी रसीद काउंटर से बनवाते हो तो आपको माता के स्वर्ण श्रंगार का एक फोटो और साथ में एक प्रसाद की थैली और मिलती है आठ — यहां बिजली की निर्बाध आपूर्ति चौबीस घंटे रहती है जिससे कि पूरी पहाडी रात भर जगमगाती रहती है और चौबीसो घंटे यात्रा चलती है नौ —भक्तो की सुविधा के लिये पुरानी गुफा जिससे कि आजकल कम ही दर्शन होते हैं के अलावा दो नयी गुफाये बन गयी है जिनमें खडे खडे ही दर्शन हो जाते हैं और चौबीसेा घ्ंटे दर्शन चलते रहते हैं दस — भक्तो को कोई परेशानी ना हों इसलिये हजारो लाकर की यहां सुविधा है वो भी निशुल्क । बस अपनी पर्ची दिखाईये और एक से लेकर अपने सामान के अनुसार लाकर्स की चाबी लीजिये । अपने जूतो से लेकर बैग तक हर सामान उसमें रखिये और चाबी अपने गले में लटका लीजिये । वापसी में अपना सामान वापिस ले लीजिये ग्यारह — अगर आप उपर माता के भवन में रूकना चाहें तो निशुल्क रूकने की सुविधा है बस आपको अगर कम्बल लेने हो तो प्रति कम्बल 100 रू जमा कीजिये और सुबह कम्बल देकर अपने पैसे पूरे वापस यानि की कम्बल का कोई शुल्क नही है
काश ऐसे सुंदर और शांत तीर्थ हमारे यहां सभी हो जायें तेा कुछ लोगो को धर्म के प्रति आस्था खत्म ना हो और लोग अंधविश्वास मानकर मजाक ना बनायें
माता की कथा श्रीधर पंडित वर्तमान कटरा से 2 किमी0 की दूरी पर हंसली नाम के गांव में रहते थे वे माता वैष्णो देवी के परम भक्त थे पर उनके कोई संतान नही थी और संतान की इच्छा से एक बार उन्होने कन्या भोजन करवाने का मन बनाया । माता ने उनकी इच्छा को देखते हुए स्वयं कन्या रूप धारण किया और उनके घर आयी । जब सबने भोजन कर लिया और सब कन्याऐं भोजन कर अपने घर चली गयी तो कन्या रूपी माता ने पंडित को कहा कि आप सारे गांव को भोजन करवाओ और इस भोज में भैरोनाथ को भी आमंत्रित करेा । पंडित जी ने कहा कि सारे गांव को भोजन कराना मेरे बस में नही है इस पर कन्या ने उन्हे कोई चिंता ना करने की सलाह दी । कन्या की बात मानकर पंडित जी ने सारे गांव को आमंत्रित किया । तय समय पर सब लोग आ गये । कन्या रूपी माता भी आ गयी और सबको भोजन कराने लगी अपने हाथ से । वहीं बैठे हुए भैरोनाथ को शक हो गया कि ये कन्या नही माता है तो उसने माता से मांस एवं मदिरा की मांग की । इस पर माता ने कहा कि ये वैष्णव भक्त का घर है और यहां केवल शाकाहारी भोजन ही मिलेगा । भैरोनाथ ने क्रोध में आकर माता का हाथ पकड लिया माता ने अपना हाथ छुडाया और वायु मार्ग से अपनी गुफा में जाने लगी । भैरोनाथ् भी अपनी तप शक्ति से माता का पीछा करने लगा । माता के साथ हनुमान जी आ गये । रास्ते में हनुमान जी को प्यास लगने पर माता ने बाण मारकर धरती से पानी निकालकर उनकी प्यास बुझाई इस जगह को बाण गंगा कहते हैं आदि कुमारी के पास जाकर माता जी ने हनुमान जी से कहा कि तुम द्धार पर पहरा देना मै कुछ समय विश्राम करना चाहती हूं । माता ने यहां नौ महीने तक विश्राम किया । इधर माता का पीछा करते करते भैरोनाथ यहीं पहुंच गया और उसका हनुमान के साथ घमासान युद्ध होने लगा । जब हनुमान जी युद्ध करते करते थक गये तो माता माता गुफा से बाहर निकली और भैरोनाथ से युद्ध करने लगी । क्रोध में आकर माता ने अपने त्रिशूल से भैरोनाथ का सिर काट दिया जो उस स्थान पर गिरा जहां भैरोनाथ का मंदिर है । इस जगह को भैरोघाटी के नाम से भी जाना जाता है और भैरोनाथ का धड वो जगह है जहां पुरानी गुफा से होकर जाते हैं । भैरोनाथ को अपनी गलती का अहसास हुआ और वह कटे हुए सिर से माता माता पुकारने लगा और विनती करने लगा कि माता संसार मुझे पापी मानकर मेरा अपमान करेगा , लोग मुझसे घृणा करेंगे आप मेरा उद्धार करो । यह सुनकर जगतजननी माता का मन पिघल गया और माता ने भैरो से कहा कि जो भी मेरे दर्शन को आयेगा वो जब तक तुम्हारे दर्शन नही कर लेगा तब तक उसकी यात्रा पूरी नही होगी । इसलिये भक्त दो किलोमीटर और चढकर भैरो मंदिर पर जाते हैं माता के दर्शनो के बाद दूसरी तरफ श्रीधर पंडित इस बात से दुखी था कि माता उसके घर आयी और वो पहचान ना सका तो माता ने श्रीधर को सपने में दर्शन दिये और अपनी गुफा का रास्ता बतलाया । उसी मार्ग पर चलकर श्रीधर वैष्णो माता के मंदिर पर पहुंचा जहां उसे माता के पिंडी रूप में दर्शन हु्ए
इस यात्रा में हमारा आखिरी पडाव था माता वैष्णो देवी का भवन । हम सुबह सुबह कटरा पहुंचे और सीधे चढना शुरू कर दिया आपको बताये गये तरीके से हमने सबने दर्शन किये और रात के ग्यारह बजे तक वापिस नीचे कटरा में अपनी गाडी तक पहुंच गये । हमारा ड्राइवर अपनी नींद पूरी कर चुका था सो उसके बाद हम सोये और उसने गाडी चलायी । पर सुबह कुरूक्षेत्र आने तक उसे भी नींद आने लगी थी । कहीं उसे झपकी ना लग जाये इसलिये मैने गाडी उससे ले ली और घर तक खुद चलाई क्योंकि तब तक मै सोकर तरोताजा हो चुका था । एक काम की बात और कि जम्मू की सीमा में प्रवेश करने के बाद पूरे देश के सभी कंपनियेा के प्रीपेड नंबर बंद हो जाते हैं और केवल पोस्टपेड कनैक्शन वो भी जिनकी नेशनल रोमिंग एक्टीवेट हो वो ही चल पाते हैं । इसलिये एक बार अपने कनेकशन को चैक कर लें यहां दर्शन करने के बाद अपने घर पर जाकर कन्या भोजन कराने की परंपरा है माता की इस यात्रा और इसके महात्मय के बारे में मै इसलिये इतनी अच्छी तरीके से लिख पाया क्योंकि चार धामेा से भी ज्यादा श्रद्धा मेरे मन में माता वैष्णो देवी के लिये है मैने कोशिश की पर चूंकि मुझे पता नही था कि मै लिखू्ंगा इसलिये ये फोटोज जो कि आप देख रहे हैं कई अलग अलग यात्राओ के हैं माता ने चाहा तो अबकी बार जैसे ही मां बुलायेगी आपको और बढिया जानकारी और फोटोज के साथ मिलू्ंगा अगर मुझसे कुछ छूट गया हेा तेा क्षमा करें और अगर अच्छा लगे तो एक बार यहां की यात्रा जरूर करें बोल मेरी माई सचियां जोता वाली माता तेरी सदा ही जय
माता के तीन रूप माता रानी के तीन रूप हैं जो कि पिंडी के रूप में हैं । पहली महासरस्वती जो ज्ञान की देवी है , दूसरी महालक्ष्मी जो धन वैभव की देवी और तीसरी महाकाली जो कि शक्ति स्वरूपा मानी जाती है । माता के ये तीन रूप सात्विक , राजसी और तामसिक गुणो को प्रकट करते हैं
स्थिति माता का मंदिर जम्मू में कटरा में त्रिकुटा पर्वत में एक गुफा में स्थित है यहां जाने के लिये जम्मू तक हवाई जहाज या ट्रेन से जाना पडता है और उसके बाद 50 किमी0 की दूरी बस या टैक्सी से तय करके कटरा कस्बे तक जाना होता है जो कि माता के मंदिर तक पहुंचने का बेस है । यहां रूकने आदि की सब सुविधाये हैं और यहां से माता के मंदिर की 14 किलोमीटर की चढाई शुरू होती है माता का ये मंदिर तिरूमला के बाद सबसे ज्यादा दर्शनार्थियो का केन्द्र है और पिछले वर्षो में यहां दर्शन करने वालेा की संख्या 1 करोड को पार कर गयी है
दर्शन करने का तरीका , माता के दर्शन करने के लिये भक्तो को पहले कटरा स्थित पंजीकरण कक्ष से अपना और अपने साथ के लोगो का एक ग्रुप के रूप में पंजीकरण कराना होता है । जो कि कम्पयूटराइज कक्ष से होता है और पंजीकरण के बाद आपको एक पर्ची मिलती है जिसे लेकर आपको चार घंटे के भीतर पहली चौकी बाणगंगा पार करनी होती है । यानि यात्रा जब शुरू करने का मन हो तभी पर्ची कटाये । इस पर्ची की अहमियत ये है कि इस पर्ची को रास्ते में कई बार चैक किया जाता है और उपर माता के भवन पर जाकर इस पर्ची से ही आपको दर्शनो के लिये ग्रुप नम्बर मिलता है जिससे आप सुविधाजनक तरीक से दर्शन कर पाते हैं
माता का यात्रा पथ पर्ची कटाने के बाद आप यात्रा शुरू करते हो तेा सबसे पहली चौकी बाणगंगा की आती है जहां तक आप अगर पैदल ना भी जाना चाहेा तो आटो से जा सकते हो । बाणगंगा यहीं पर माता ने अपने भक्त हनुमान को प्यास लगने पर बाण मारकर धरती से पानी निकाला और उनकी प्यास बुझायी थी यहां पर्ची दिखाकर और सामान चैकिंग कराकर आपको आगे जाने दिया जाता है और चढाई शुरू हो जाती है । यहीं से आपको घोडे ,खच्चर , पालकी और सामान और बच्चो को ले जाने के लिये पोर्टर भी मिलते हैं यहां से दो तीन किलोमीटर की चढाई तक दोनो ओर प्रसाद और खाने पीने की दुकाने हैं जिनसे गुजरते हुए रास्ते का पता ही नही चलता है । यहीं पर उपर चढने वाले यात्रियेा को छडी और डंडे मिलते हैं जो कि 10 रू का होता है और अगर वापसी में आप इसे वापिस करो तो आधे पैसे में ले लेते हैं । बाण गंगा से आगे बढने पर चरण पादुका मंदिर आता है ।
चरण पादुका बाणगंगा से आगे चलकर चरण पादुका नामक जगह आती है जहां पर माता के चरणो के निशान हैं । भैरो से हाथ छुडाकर माता ने इस शिला पर खडे होकर पीछे मुडकर भैरो को देखा था आदि कुमारी या अर्धकंवारी भैरो से बचने के लिये माता ने इस गुफा में नौ महीने तक छिपकर विश्राम किया था 14 किमी0 की चढाई में आधे रास्ते में आदि कुवारी माता का मंदिर आता है और गर्भजून गुफा । यह एक संकरी गुफा है पर माता के कमाल से आज तक कोई भी मोटे से मोटा आदमी भी नही फंसा यहां पर । इसमें जाने और आने का एक ही रास्ता है इसलिये काफी देर में नम्बर आता है दर्शनो का । यहां पर भी दर्शनो की पर्ची कटती है और नम्बर से दर्शन होते हैं । जब तक आपका नम्बर नही आता तब तक आप आराम कर सकते हैं । ऐसा कहा जाता है कि जो भी भक्त इस गुफा में प्रवेश करता है उसे दोबारा गर्भ में नही आना पडता । वैसे मै माता के दरबार में आठ नौ बार जा चुका हूं पर आज तक इस गुफा के दर्शन नही कर पाया । शायद माता ने अभी तक नही चाहा है यहां से माता के भवन के लिये दो रास्ते जाते हैं एक रास्ता है हाथी मत्था और दूसरा नया रास्ता
हाथी माथा आदि कुमारी से आगे हाथी माथा वाले रास्ते पर तीन चार किलोमीटर की खडी चढार्इ् है । इस जगह पहाड की आकृति हाथी के सिर जैसी है और ये सबसे उंची जगह है । इसके बाद देा किलोमीटर की उतराई आती है इस रास्ते को जाना नही चाहिये जब तक मजबूरी ना हो क्योंकि अब जो नया रास्ता बना है वो इतना आसान है कि उस पर वृद्ध और विकलांगो के लिये बैट्री चालित स्कूटर चलते हैं जो कि 100 रू प्रति सवारी लेते हैं
सांझी छत हाथी माथा पर चढते चढते जब ढालान आ जाता है तो सांझी छत नाम की जगह आती है जहां पर हैलीकाप्टर की सेवाये उतरती हैं । हैलीकाप्टर जिसका किराया यहां एक ओर से 1200 रू प्रति व्यक्ति के करीब है यहां पर उतारते हैं और यहां से घोडे से करीब 1 किमी0 का सफर करके भवन तक पहुंचते हैं । उनकी लाइन भी बराबर में चलती रहती है । हैलीकाप्टर सेवा कटरा से शुरू होती है और लगभग 15 मिनट में भवन पर पहुंचा देते हैं
माता का भवन . माता के भवन पर पहुंचकर सबसे पहले भक्त को मंदिर के नीचे बह रहे प्राकृतिक श्रोत में नहाकर और नये कपडे पहनकर अपनी पर्ची से ग्रुप नम्बर लेकर अपने दर्शनो के समय का आराम से बैठकर इंतजार करना चाहिये । यहां नये कपडो से आशय आप अपनी आत्मा को निर्मल करने से भी लगा सकते हैं क्योंकि नये कपडे पहनना अनिवार्य नही है बल्कि श्रद्धा पर निर्भर है । दर्शनो के लिये लाइन ज्यादा लम्बी नही होती और ना ही कोई धक्का मुक्की होती है
सुविधाये माता वैष्णो देवी का ये मंदिर श्राइन बोर्ड के अधीन है जो कि सरकारी है और उन्होने इस मंदिर का ऐसा नक्शा पलट दिया है कि भले ही दर्शनार्थियो की संख्या के मामले में ये दूसरे नंबर पर हो पर सुविधाओ के मामले में ये पहले नम्बर पर है जिनमें से कुछ मै आपको बता देता हूं एक — आपको प्रसाद सिवाय उपर भवन के अतिरिक्त कहीं से लेने की जरूरत नही क्योंकि वहां सरकारी दुकान से 11—21—51 तीन रेट में प्रसाद मिलता है बस इसके अलावा कुछ नही वो भी जूट के बने थैले मे जिसमें नारियल , चुनरी और प्रसाद सब होता है दो — आपको लाइन में धक्का मुक्की की कोई जरूरत नही आप अपनी पंजीकरण पर्ची को दिखाईये और अपना ग्रुप नम्बर ले लिजिये इसके बाद कहीं भी आसपास बैठकर आराम से टीवी स्क्रीन पर नंबर देखते रहिये और अपना नम्बर आने पर लाइन मे लगिये तीन — बाणगंगा से दो तीन किलोमीटर तक बाजार है पर उसके बाद जाने के आठ नौ और दूसरे रास्तो पर कोई दुकान प्राइवेट नही है पर यात्रियो की सुविधा के लिये चाय , काफी और आइसक्रीम की सरकारी रेट पर दुकाने है चार — जगह जगह यात्रियेा की सुविधा के लिये शेड बने हैं पांच — हर किलोमीटर पर जनसुविधायें जैसे कि टायलेट और पीने का पानी उपलब्ध है छह — गुफा में यानि भवन में आप प्रसाद ना ले जा सकते हैं ना चढा सकते हैं आपका प्रसाद पहले ही जमा कर लिया जाता है और बदले में एक टोकन मिलता है जिसे देकर दर्शन करने के बाद आप अपना प्रसाद वापस ले सकते हो और साथ में माता के मंदिर का प्रसाद जिसमे एक चांदी के सिक्के का बहुत ही हल्का सा रूप आपको मिलता है इसलिये आपको कहीं भी प्रसाद पैरो में बिखरा हुआ नही मिलता है जो कि हमारे यहां अन्य मंदिरो में अमूमन होता है
सात —भवन में पुजारी लोग ना तो आपसे प्रसाद लेते हैं ना देते हैं ना कोई चढावा चढा सकते हो । आपको प्यार से दर्शन करने के बाद आप दान पात्र में चढाओ या रसीद कटा लो । यदि आप 51 रू की भी रसीद काउंटर से बनवाते हो तो आपको माता के स्वर्ण श्रंगार का एक फोटो और साथ में एक प्रसाद की थैली और मिलती है आठ — यहां बिजली की निर्बाध आपूर्ति चौबीस घंटे रहती है जिससे कि पूरी पहाडी रात भर जगमगाती रहती है और चौबीसो घंटे यात्रा चलती है नौ —भक्तो की सुविधा के लिये पुरानी गुफा जिससे कि आजकल कम ही दर्शन होते हैं के अलावा दो नयी गुफाये बन गयी है जिनमें खडे खडे ही दर्शन हो जाते हैं और चौबीसेा घ्ंटे दर्शन चलते रहते हैं दस — भक्तो को कोई परेशानी ना हों इसलिये हजारो लाकर की यहां सुविधा है वो भी निशुल्क । बस अपनी पर्ची दिखाईये और एक से लेकर अपने सामान के अनुसार लाकर्स की चाबी लीजिये । अपने जूतो से लेकर बैग तक हर सामान उसमें रखिये और चाबी अपने गले में लटका लीजिये । वापसी में अपना सामान वापिस ले लीजिये ग्यारह — अगर आप उपर माता के भवन में रूकना चाहें तो निशुल्क रूकने की सुविधा है बस आपको अगर कम्बल लेने हो तो प्रति कम्बल 100 रू जमा कीजिये और सुबह कम्बल देकर अपने पैसे पूरे वापस यानि की कम्बल का कोई शुल्क नही है
काश ऐसे सुंदर और शांत तीर्थ हमारे यहां सभी हो जायें तेा कुछ लोगो को धर्म के प्रति आस्था खत्म ना हो और लोग अंधविश्वास मानकर मजाक ना बनायें
माता की कथा श्रीधर पंडित वर्तमान कटरा से 2 किमी0 की दूरी पर हंसली नाम के गांव में रहते थे वे माता वैष्णो देवी के परम भक्त थे पर उनके कोई संतान नही थी और संतान की इच्छा से एक बार उन्होने कन्या भोजन करवाने का मन बनाया । माता ने उनकी इच्छा को देखते हुए स्वयं कन्या रूप धारण किया और उनके घर आयी । जब सबने भोजन कर लिया और सब कन्याऐं भोजन कर अपने घर चली गयी तो कन्या रूपी माता ने पंडित को कहा कि आप सारे गांव को भोजन करवाओ और इस भोज में भैरोनाथ को भी आमंत्रित करेा । पंडित जी ने कहा कि सारे गांव को भोजन कराना मेरे बस में नही है इस पर कन्या ने उन्हे कोई चिंता ना करने की सलाह दी । कन्या की बात मानकर पंडित जी ने सारे गांव को आमंत्रित किया । तय समय पर सब लोग आ गये । कन्या रूपी माता भी आ गयी और सबको भोजन कराने लगी अपने हाथ से । वहीं बैठे हुए भैरोनाथ को शक हो गया कि ये कन्या नही माता है तो उसने माता से मांस एवं मदिरा की मांग की । इस पर माता ने कहा कि ये वैष्णव भक्त का घर है और यहां केवल शाकाहारी भोजन ही मिलेगा । भैरोनाथ ने क्रोध में आकर माता का हाथ पकड लिया माता ने अपना हाथ छुडाया और वायु मार्ग से अपनी गुफा में जाने लगी । भैरोनाथ् भी अपनी तप शक्ति से माता का पीछा करने लगा । माता के साथ हनुमान जी आ गये । रास्ते में हनुमान जी को प्यास लगने पर माता ने बाण मारकर धरती से पानी निकालकर उनकी प्यास बुझाई इस जगह को बाण गंगा कहते हैं आदि कुमारी के पास जाकर माता जी ने हनुमान जी से कहा कि तुम द्धार पर पहरा देना मै कुछ समय विश्राम करना चाहती हूं । माता ने यहां नौ महीने तक विश्राम किया । इधर माता का पीछा करते करते भैरोनाथ यहीं पहुंच गया और उसका हनुमान के साथ घमासान युद्ध होने लगा । जब हनुमान जी युद्ध करते करते थक गये तो माता माता गुफा से बाहर निकली और भैरोनाथ से युद्ध करने लगी । क्रोध में आकर माता ने अपने त्रिशूल से भैरोनाथ का सिर काट दिया जो उस स्थान पर गिरा जहां भैरोनाथ का मंदिर है । इस जगह को भैरोघाटी के नाम से भी जाना जाता है और भैरोनाथ का धड वो जगह है जहां पुरानी गुफा से होकर जाते हैं । भैरोनाथ को अपनी गलती का अहसास हुआ और वह कटे हुए सिर से माता माता पुकारने लगा और विनती करने लगा कि माता संसार मुझे पापी मानकर मेरा अपमान करेगा , लोग मुझसे घृणा करेंगे आप मेरा उद्धार करो । यह सुनकर जगतजननी माता का मन पिघल गया और माता ने भैरो से कहा कि जो भी मेरे दर्शन को आयेगा वो जब तक तुम्हारे दर्शन नही कर लेगा तब तक उसकी यात्रा पूरी नही होगी । इसलिये भक्त दो किलोमीटर और चढकर भैरो मंदिर पर जाते हैं माता के दर्शनो के बाद दूसरी तरफ श्रीधर पंडित इस बात से दुखी था कि माता उसके घर आयी और वो पहचान ना सका तो माता ने श्रीधर को सपने में दर्शन दिये और अपनी गुफा का रास्ता बतलाया । उसी मार्ग पर चलकर श्रीधर वैष्णो माता के मंदिर पर पहुंचा जहां उसे माता के पिंडी रूप में दर्शन हु्ए
इस यात्रा में हमारा आखिरी पडाव था माता वैष्णो देवी का भवन । हम सुबह सुबह कटरा पहुंचे और सीधे चढना शुरू कर दिया आपको बताये गये तरीके से हमने सबने दर्शन किये और रात के ग्यारह बजे तक वापिस नीचे कटरा में अपनी गाडी तक पहुंच गये । हमारा ड्राइवर अपनी नींद पूरी कर चुका था सो उसके बाद हम सोये और उसने गाडी चलायी । पर सुबह कुरूक्षेत्र आने तक उसे भी नींद आने लगी थी । कहीं उसे झपकी ना लग जाये इसलिये मैने गाडी उससे ले ली और घर तक खुद चलाई क्योंकि तब तक मै सोकर तरोताजा हो चुका था । एक काम की बात और कि जम्मू की सीमा में प्रवेश करने के बाद पूरे देश के सभी कंपनियेा के प्रीपेड नंबर बंद हो जाते हैं और केवल पोस्टपेड कनैक्शन वो भी जिनकी नेशनल रोमिंग एक्टीवेट हो वो ही चल पाते हैं । इसलिये एक बार अपने कनेकशन को चैक कर लें यहां दर्शन करने के बाद अपने घर पर जाकर कन्या भोजन कराने की परंपरा है माता की इस यात्रा और इसके महात्मय के बारे में मै इसलिये इतनी अच्छी तरीके से लिख पाया क्योंकि चार धामेा से भी ज्यादा श्रद्धा मेरे मन में माता वैष्णो देवी के लिये है मैने कोशिश की पर चूंकि मुझे पता नही था कि मै लिखू्ंगा इसलिये ये फोटोज जो कि आप देख रहे हैं कई अलग अलग यात्राओ के हैं माता ने चाहा तो अबकी बार जैसे ही मां बुलायेगी आपको और बढिया जानकारी और फोटोज के साथ मिलू्ंगा अगर मुझसे कुछ छूट गया हेा तेा क्षमा करें और अगर अच्छा लगे तो एक बार यहां की यात्रा जरूर करें बोल मेरी माई सचियां जोता वाली माता तेरी सदा ही जय
माँ वैष्णो देवी की यात्रा का सचित्र वर्णन आपके मुख से सुनकर मन प्रफुल्लित हो गया, इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद् , अक्टूबर माह में मैं भी माँ वैष्णो देवी की यात्रा के लिए जा रहा हूँ i
ReplyDeleteभाई जय माता की
ReplyDeleteमैं पहली बार यात्रा के लिए १९ मई को जा रहा हूँ आपके द्वारा लिखित लेख से वो सब जानकारी मुझे मिल गयी जो मैं चाहता था, माँ की कृपा हम सब पर बनी रहे,
जय माता की||
main first time vaishno mata ke mandir ja rahi hun mujhe apke jankari mill chuki main chahati hun ki hamari bhi yatara mangalmay ho jai mata di
ReplyDeleteJai Mata di....
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