माउंट आबू के कई जगहे देखने के बाद हम लोगो को गाइड ले गया दिलवाडा जैन मंदिर पर । गाइड क्या ले गया हमारे लालाजी को तो लगी हुई थी कि और कुछ द...
माउंट आबू के कई जगहे देखने के बाद हम लोगो को गाइड ले गया दिलवाडा जैन मंदिर पर । गाइड क्या ले गया हमारे लालाजी को तो लगी हुई थी कि और कुछ देखो ना देखो पर दिलवाडा जैन मंदिर जरूर देखना है और हमें भी पता नही था कि आज हम कितनी अच्छी चीज देखने जा रहे हैं ।
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जब हम मंदिर के पास पहुंचे तो मंदिर बंद हो गया था आम लोगो के लिये । जी हां इस मंदिर में कुछ ऐसा ही नियम है कि कुछ समय आम लोगो के लिये जब मंदिर बंद हो जाता है तब भी जैन धर्म वालो के लिये दर्शन की सुविधा रहती है और हाल फिलहाल में तो हम भी जैन ही थे , मेरा मतलब जैन साहब यानि की लालाजी के साथ थे जिन्होने अग्रणी होकर हमें मंदिर में प्रवेश दिला दिया ।
मंदिर में प्रवेश से पहले हमने अपने मोबाइल और कैमरा आदि सब मंदिर के गेट पर बने लाकर रूम में जमा करा दिये । मंदिर में फोटोग्राफी प्रतिबंधित है और मंदिर के परिसर में स्थित एक दुकान में 40 रू के 10 फोटो मिलते हैं जो कि मंदिर परिसर के हैं । हालांकि उस दुकान में और भी जैन साहित्य मिलता है पर हमारे लिये तो सबसे खास उस मंदिर के फोटो थे । क्योंकि संगमरमर पर ऐसी नक्काशी तो मैने आज से पहले कभी नही देखी थी । मन प्रसन्न हो गया मंदिर की स्थापत्य कला को देखकर । और फिर वे तो 40 रू में ही दे रहे थे उन फोटोज को अगर ज्यादा में भी देते तो भी मै ले लेता । आज इस पोस्ट में वे 10 फोटो मै लगा रहा हूं और इन्हे मैने स्कैन किया है । फोटो मंदिर परिसर से मंदिर द्धारा संचालित दुकान से खरीदे गये हैं तो इनका क्रेडिट मै मंदिर समिति को देना चाहता हूं
दिलवाडा जैन मंदिर में संगमरमर में जो शिल्पकारी और पच्चीकारी की गई है वो आश्चर्य जनक हैं और हैरतअंगेज भी । यहां विभिन्न समय पर हुए जैन तीर्थंकरो के मुख्य पांच मंदिर हैं हर एक में दीवार से घिरा एक आंगन है जिनमें जैन तीर्थकरो के चित्र लगे हैं । आंगन में कई छोटे छोटे मठ टाइप भी बने हैं । इन मंदिरो का निर्माण एक साथ नही हुआ बल्कि 11 वी से 13 वी शताब्दी तक गुजरात के सोलंकी शासको ने कराया था । इन मंदिरो के समूह में विमल वसाही यहां सबसे पुराना मंदिर है जिसे एक व्यापारी ने बनाकर समर्पित किया था और इस मंदिर की सबसे बडी खूबी है इसकी छत जिसे आप फोटो में देख सकते हैं कि इस पर कितनी शानदार पच्चीकारी की गई है और इसे कैसे किया गया होगा ये सोचकर भी हैरानी होती है ।
छत में और स्तम्भो पर मूर्तिया भी बनाई गयी हैं जो कि छोटी से लेकर बडी तक हैं यहां की शिल्प इतनी शानदार है कि लगता है कि जीवंत है और इसके आगे बडे बडे स्थलो की दस्तकारी फेल है बताते हैं कि हजारो शिल्पियो ने इसे 14 वर्षो में इसे अंतिम रूप दिया था और उस मंदे जमाने में भी इसे बनाने में 15 करोड के करीब लागत आई थी जिसे सुनकर मुझे आश्चर्य होता है कि क्यों हम केवल ताजमहल को ही इस तरह का एकमात्र उदाहरण मानते हैं जबकि इतना प्रचार इस मंदिर को नही मिला है । एक खास बात और हमने यहां एक मंदिर में देवरानी और जेठानी का भी स्थान लिखा देखा । कुल मिलाकर ये जगह एक बेजोड पर्यटक स्थल है और इसे एक बार जरूर देखना चाहिये ।
। दिलवाडा मंदिर को देखने के बाद हमने मंदिर में स्थित जलपान गृह में ही खाना खाया जो कि सात्विक , शुद्ध और शाकाहारी था और आगे यहां रूकने की बजाय चलना ज्यादा उचित समझा क्योंकि हम यहां के लगभग सभी मेन जगह घूम चुके थे और हमें अपनी मेन यात्रा द्धारिकाधीश जाने की जल्दी लगी थी सो आज अभी और चलते रहने का विचार हुआ और गाडी मोडकर हम
माउंट आबू से चल दिये गुजरात की ओर
गुजरात और राजस्थान की सीमा पर एक जगह जो हमारे दिमाग में थी और जो कि शक्ति पीठ भी है और आबू रोड से सिर्फ 20 किलोमीटर और माउंट आबू से 45 किलोमीटर के करीब है । हमें आज माउंट आबू में ही रूकना और घूमना था पर 3 से 4 घंटे के अंदर जब हमने सारी जगहे देख ली तो हमारा मन नही हुआ कि आज माउंट आबू रूके बल्कि उसके बजाय हमारा मन जहां तक हो सके चलने का था सो अंबा जी के दर्शन करने के लिये हम मंदिर पहुंच गये । जब हम मंदिर पहुंचे तो यहां भी मंदिर दर्शनेा के लिये बंद होने वाला था और जैसे ही हम वहां पहुंचे तो प्रसाद की दुकान वालो ने हमें जल्दी से गाडी से उतरकर दर्शन करने की सलाह दी । बस हमने भी अपने जूत चप्पल गाडी में ही उतारे और गाडी से उतरकर लाइन में लग गये । गाडी को कल्लू आगे पार्किंग में ले गया । एक और फायदा था कल्लू महाराज का कि हम जब कहीं ऐसी जल्दी में होते थे तो जूते चप्पल गाडी में निकालने के अलावा अपने मोबाइल और कैमरे भी उसे ही पकडा देते थे और जब वापिस आते तो ले लेते । इससे एक तो लाकर में रखवाने के लिये लाइन में लगने का समय बचता और दूसरा जब तक कल्लू गाडी पार्किंग में लगाता तब तक तो हम दर्शन करके आ भी जाया करते । ऐसा हमारे साथ कई जगह हुआ । अंबा जी का मंदिर बहुत प्रसिद्ध मंदिर है और उस समय मंदिर के दर्शनो के बंद होने का समय था इसलिये भीड कम हो चुकी थी । सो हमे आधा घंटा लगा दर्शन करने में उसके बाद हमने वहां पूछा तो उन्होने एक पहाडी की ओर इशारा करके बताया कि वहां गब्बर तीर्थ है पर हमने उसे छोड दिया और आगे की ओर चल दिये माता का ये मंदिर मेन रोड पर ही है और उस वक्त काफी गर्मी थी । लाइन में चलते समय मंदिर के फर्श पर हमारे पैर भी जल गये । मंदिर से 5 किमी0 दूर गब्बर नामक पहाडी पर माता का मंदिर है जहां माता की मूर्ति है । यह पहाड राजस्थान और गुजरात के बार्डर पर है और इसका वर्णन पुराणो में आया है कि यहां माता सती के दिल का टुकडा गिरा था । इसलिये इस जगह को 51 शक्तिपीठो में गिना जाता है ।
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तो इस तरह एक शक्तिपीठ के भी दर्शन हो गये और इसके बाद भी हमने चलना जारी रखा ...........उसी दिन और गांधीनगर पहुंच गये । यहां एक दो से पूछा रास्ते में कि अक्षरधाम मंदिर कहां है तो उन्होने बताया कि पास ही है । शाम का समय हो रहा था और अंधेरा बस होने ही वाला था । एक तरफ तो लाला जी कह रहे थे कि सुबह सवेरे से चले हुए हैं और अब हमें कमरा देख लेना चाहिये दूसरी ओर हमारे और मा0 जी के मन में था कि अगर आज हो सके तो अक्षरधाम मंदिर देख लें । मैने दिल्ली का अक्षरधाम पहले ही दो बार देख लिया था और वो इसी गुजरात के अक्षरधाम का प्रतिरूप है बस फर्क है कि वो बहुत बडा है । मंदिर के पास पहुंचे तो बहुत सारी गाडियो की भीड थी वहां पर क्योंकि अक्षरधाम मंदिर धार्मिक जगह होने के साथ साथ एक पिकनिक स्पाट बन गया है ऐसा हमने महसूस किया । एक तो काफी सारा समय दे सकते हैं घूमने के लिये और बच्चो के लिये खेल खिलौने और साथ में वहां पर एक काफी बडा रैस्टोरेंट बनाया हुआ है जहां पर हर तरह का खाना और आधुनिक खान पान की वस्तुए जैसे फास्ट फूड और कोल्ड ड्रिंक सब मिलते हैं तो इसे एक साप्ताहिक अवकाश की बेहतरीन जगह कह सकते हैं जहां पूरे परिवार के साथ घूमने जाओ तो कोई भी चीज की कमी नही । हम गये तो लाइट एवं साउंड शो की टिकट तो मिल नही सकी पर मंदिर की टिकट मिल गयी और हमने अंदर प्रवेश करके मंदिर परिसर घूमा । उसके बाद हमने वहीं बने रैस्टोरेंट पर खाना खाया और फिर बाहर निकलकर होटल ढूंढना शुरू किया । लालाजी साथ साथ जैन धर्मशाला भी पूछते रहे । जब हम होटल पूछ रहे थे तो पास ही में एक सुंदर जैन मंदिर मिला जिसके अंदर नयी बनी जैन धर्मशाला थी और हमारे अलावा वहां कोई और रूका नही था कमरे साथ सुथरे और टायल आदि लगे अटैच थे । कमरे में कैमरा रखने से पहले मैन वैसे ही एक फोटो खींच लिया था जो कि मै लगा रहा हूं । खाना हमने खा ही लिया था बस फिर सो गये और सुबह सवेरे उठकर चल दिये द्धारिका के लिये
छतो की शानदार नक्काशी |
जब हम मंदिर के पास पहुंचे तो मंदिर बंद हो गया था आम लोगो के लिये । जी हां इस मंदिर में कुछ ऐसा ही नियम है कि कुछ समय आम लोगो के लिये जब मंदिर बंद हो जाता है तब भी जैन धर्म वालो के लिये दर्शन की सुविधा रहती है और हाल फिलहाल में तो हम भी जैन ही थे , मेरा मतलब जैन साहब यानि की लालाजी के साथ थे जिन्होने अग्रणी होकर हमें मंदिर में प्रवेश दिला दिया ।
शानदार स्तम्भ |
छत का बारीक काम |
छत और स्तम्भो सहित गलियारा |
इसके बारे में क्या कहूं आप खुद देखिये |
और ये संगेमरमर पर शानदार मूर्तिकला |
इसको देखकर दंग रह गये हम और आप ? |
भगवान की प्रतिमा |
छत पर काम का एक और नायाब नमूना |
छत में शिल्प का एक नमूना |
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गांधीनगर की जैन धर्मशाला के कमरे का फोटो |
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