जय माता दी...............नवरात्रो के दिन ........तारीख 25 मार्च 2012 ...........हर साल की तरह मै इस बार भी नवरात्रो में माता रानी के दर्शन...
जय माता दी...............नवरात्रो के दिन ........तारीख 25 मार्च 2012 ...........हर साल की तरह मै इस बार भी नवरात्रो में माता रानी के दर्शन करने जाना चाहता था । हर साल मै अपने घर से बाइक पर चलकर शाकुम्भर देवी , सहारनपुर , और वहां से हरिद्धार जाया करता रहा हूं हरिद्धार में हर की पैडी होकर उसके बाद चंडी देवी ,मंसा देवी और वहां से वापिस घर ये कई सालो से क्रम चला आ रहा है । इस बार भी मैने और धर्मपत्नी जी ने व्रत रखे हुए थे और इस बार भी हमारा मन नवरात्रो में जाने का ही था । हम एक बार को छोडकर अष्टमी या नवमी को कभी नही गये । क्योंकि उन दिनो इतनी भीड हो जाती है कि मन भी घबराने लगता है कि दर्शन करें या ऐसे ही वापस चलें ।
रविवार की सुबह 6 बजे उठने के बाद श्रीमति जी बोली कि चलोगे या नही । मैने कहा चलेंगे तो जरूर । तो फिर कब चलोगे ? मैने सोचा सही कह रही है आज रविवार के अलावा पूरे हफते छुटटी नही है तो फिर आज ही चलना चाहिये । मैने श्रीमति जी से कहा कि चलो चलते हैं अभी ? हां अभी । एक घंटे बाद ठीक सात बजे हम घर से निकल पडे । पर आपको मै पहले ही बता दूं कि अबकी बार मै गाजियाबाद के पास मुरादनगर में था और कायदे में हमें चलने के हिसाब से देर हो चुकी थी पर हम चल पडे । घर से निकलते वक्त सोचा कि हाइवे को चलूं या फिर गंगनहर की पटरी को ? इस उलझन में गंगनहर भी आ गई ।
दोनो रास्तो पर सुबह के समय भीड नही मिलनी थी पर शाम के समय नेशनल हाइवे 58,[ दिल्ली से माना] जिसका शायद अब नाम बदल गया है, पर अभी मन और दिमाग नही मानता है कि वो एन एच 58 नही है , शाम के समय जाम मोदी नगर में तो मिलना ही मिलना है । लेकिन एक समस्या और थी कि अगर हमें आते हुए शाम होगी ही होगी तो कांवड पटरी को तो आने के लिये रास्ता रात का ठीक नही है सो मैने दोनो विक्ल्पो पर गौर करके कांवड पटरी का मार्ग् पकड लिया । मुरादनगर में जहां नेशनल हाइवे गंगनहर को क्रास करता है वहां से मील का पत्थर मंगलौर 121 किमी0 दिखाता है मंगलौर रूडकी के पास है । तो हम कांवड पटरी पर चल दिये और सिंगल लेन के इस रास्ते जिसके बराबर में बहुत और करीब 15 फुट तक गहरी बडी गंग नहर बहती है के रास्ते में कुछ फोटो रूक रूक कर लिये ।
। कांवड पटरी का रास्ता नजारो से भरपूर है कभी कभी तो इसे देखकर केरल की याद आती है तो कभी उडीसा की । क्योंकि इसके किनारे कभी खजूर के पेड आते हैं तो कभी बांस के पेडो का झुरमुट और कभी कंटीले पेडो की श्रंखला । लगभग तीन से चार किलोमीटर पर पुल आते हैं जिससे नहर को क्रास कर सकते हैं । ज्यादातर पुल अंग्रेजो के जमाने की याद दिलाते हैं । रास्ते में हरिद्धार तक कई जगह झाल पडती हैं । झाल का मतलब जहां बिजली बनाई जाती है नहर को दो भागो में बांट दिया जाता है और एक छोटी धारा के पानी के स्तर को धीरे धीरे उंचा करते जाते हैं । फिर एक जगह नीचे गहराई में टरबाइन पर वो धारा गिरती है और उससे बिजली पैदा होती है । कई लोगो के लिये तो कौतहूल से देखने की चीज होती है । कांवड पटरी मार्ग दिल्ली से हरिद्धार तक जाता है और नेशनल हाइवे 58 का एक विकल्प है । अगर आपके पास कार या बाइक है तो आप इस मार्ग से जा सकते हो क्योंकि ट्रक या बस प्रतिबन्धित हैं ।
ये मार्ग कांवड यात्रा के दौरान नेशनल हाइवे को बंद होने से बचाने के लिये बनाया गया था जो हो ना सका क्योंकि सावन के महीने में कांवडियो की भीड इतनी होती है कि इस रास्ते पर तो केवल पैदल कांवडिये ही नही चल सकते तो डाक कांवड या उसके वाहन कैसे चलेंगे । कांवड मार्ग बाकी के साल भर छोटे वाहनो के लिये एक अति उत्तम मार्ग है बशर्ते आप वाहन बहुत ज्यादा तेज ना चलाते हों और रात को सफर ना करें तो अच्छा । क्योंकि इस मार्ग सुरक्षा व्यवस्था कम है और आबादी भी कम है । गांव कम ही पडते हैं पर यदि आप दिन में किसी भी वक्त जा रहे हैं तो कोई दिक्कत नही मिलेगी । हां पैट्रोल जरूर पूरा रखे क्योंकि अगर पैट्रोल खत्म हो गया तो मिलेगा तो जरूर पर उसके लिये एक या दो किलोमीटर पास के गांव में जाना होगा क्योकि कांवड पटरी पर पैट्रोल पंप नही है । वैसे इस मार्ग पर अपर ग्ंगा कैनाल एक्सप्रेस वे बनाने की भी योजना है जिसमें नहर के दोनो ओर फोर लेन रोड बनेगी जो एक ओर से जाने की और एक ओर से आने की होगी । प्रोजेक्ट तो यहां तक भी सर्वे कर चुके हैं कि बढते यातायात और जाम से बचने के लिये क्यों ना गंगनहर में नाव की सर्विस शुरू कर दी जाये जैसे कई देशो और शहरो में है पर ये भारत है जनाब यहां कहने को जबान हिलती है और करने के नाम पर सब फुस्स ।
खैर बात ये है कि अगर आपके पास अपना वाहन है और आप अपना कुछ समय और तेल बचाना चाहते है और साथ ही गर्मिैयेो में बिना एसी के गाडी चलाना चाहें तो अच्छा विकल्प है ये मार्ग । मुरादनगर गंगनहर के पुल से लगभग 14 किमी0 बाद निवाडी पुल आता है जहां से मोदीनगर को रास्ता जाता है और यहां खाने पीने की भी सुविधा भी है उसके बाद 16 किमी0 दूर भोला की झाल नाम का गांव आता है जहां आप बिजली बनती हुई देख सकते हैं उसके बाद 12 किमी0 के करीब चलकर मेरठ करनाल हाइवे इस रोड को क्रास करता है आप मोदीनगर और मेरठ मे जब भी घुसना चाहें या जब भी नेशनल हाइवे पर जाना चाहें जा सकते हैं । मुरादनगर से लगभग 65 किमी0 चलकर हम खतौली पहुंच गये जहां गंगनहर को हाइवे का बाईपास उपर से क्रास करता है और यहीं से आप अगर हाइवे पर जाना चाहो तो जा सकते हो क्योंकि इसके बाद इस पटरी मार्ग से ये हाइवे मंगलौर में ही मिलता है । खतौली के बाद ये पटरी मार्ग भोपा शुक्रताल के पास को होता हुआ जाता है पर यदि किसी को मु0नगर से जाना है तो खतौली से उसे नेशनल हाइवे पर चढना होगा । हमें भी मंगलौर नही जाना था बल्कि उससे पहले एक पुरकाजी से एक शार्टकट रास्ते को जाना था जो रूडकी शहर को बचा देता है और सुंदर और बढिया रास्ता है । सो इस पुल से हम नेशनल हाइवे पर चढ गये । नेशनल हाइवे 58 दिल्ली से मेरठ परतापुर तक और मु0नगर से हरिद्धार तक पुरानी रोड ही है जबकि परतापुर से मु0नगर तक इसे टोल रोड बना दिया गया है । राजस्थान और गुजरात के हाइवे जैसा अपने क्षेत्र में ये पहला हाइवे है । मु0नगर ,खतौली और मेरठ शहरो में बाइपास निकाले गये हैं ये 70 किमी0 का सफर आपका बिना गढढो और जाम के शर्तिया गुजर सकता है
मु0नगर से आगे हाइवे पर एक कस्बा आता है छपार यहां हमने लगभग 25 मिनट आराम किया और दुकान में बैठकर चाय पी । लवी अपने साथ व्रत का सामान लिये थी जो हमने चाय के साथ लिया । मु0नगर से आगे रोड पर शहर बसे है और कई साल से हाइवे बनने का काम चल रहा है सो हम पुरकाजी से 4 किमी0 आगे नारसन से उल्टे हाथ को एक रास्ता झबरेडा से होकर पुहाना जाता है , को मुड गये । ये रास्ता 30 किमी0 का है पर दो लेन की सडक बिना गढढे और जाम के रूडकी शहर के ट्रैफिक से बचाती हुई आपको रूडकी से देहरादून के लिये जाने वाले मार्ग पर पुहाना जो कि रूडकी से 9 किमी0 आगे है पर छोडती है । बीच में झबरेडा कस्बा और इकबालपुर शुगर मिल पडती है ।
इस रास्ते में आपको कोई दिक्कत नही होगी । तो पुहाना से हम छुटमलपुर पहुंचे । छुटमलपुर एक ऐसा कस्बा है जो सहारनपुर ,रूडकी और देहरादून से लगभग सम दूरी पर स्थित है और देहरादून यहां से 50 किमी0 मुश्किल से है । ये यूपी के बार्डर जैसा ही है बस थोडी दूर से बाद ही उत्तराख्ंड की सीमा शुरू हो जाती है । इसलिये इस कस्बे का काफी महत्व है । शाकुंभरी जाने के लिये छुटमलपुर से देहरादून के रास्ते पर सिर्फ देा किलोमीटर चलकर फतेहपुर और फतेहपुर से कलसिया और बेहट के रास्ते पर उल्टे हाथ को मुडना होता है । यहां तक तो सब ठीक था पर अब असली परीक्षा थी । छुटमलपुर से बेहट को जाने वाला लगभग 25 किमी0 का रास्ता बिल्कुल टूटा हुआ था और बनने की प्रक्रिया में चल रहा था ।
सो पत्थर पूरे रास्ते में पडे थे और उन पर बाइक का चलना मुश्किल हो रहा था । दूसरा उस रास्ते पर इतनी धूल उड रही थी कि अगर कोई बस आगे निकल जाये तो दिन में रात बना दे । जैसे तैसे करके ये 25 किमी0 कटे और हम बेहट पहुंचे । बेहट एक बहुत प्राचीन और एतिहासिक कस्बा है । इसका महत्व भी छुटमलपुर के तरह ही है । ये हिमाचल और उत्तरांचल देानो राज्येा से सम दूरी पर है और शाकुम्भरी देवी का मंदिर बेहट से 16 किमी0 दूर है । बेहट में जो बोर्ड आप देख् रहे हैं इससे थोडी दूर चलकर ही सीधे हाथ पर एक विशाल द्धार बना है जो शाकुंम्भरी द्धार है और यहां से लेकर शाकुंम्भरी देवी तक का रास्ता फिर से बढिया आ जाता है । तो ये थी जाने के रास्ते की कहानी मै आपकी सुविधा के लिये एक बार संक्षेप में फिर से लिखे देता हूं मुरादनगर से खतौली वाया कांवड पटरी या गंगनहर से 65 किमी0 खतौली से मुजफफरनगर एन एच 58 बाईपास 35 किमी0 मु0नगर से पुरकाजी ,पुरकाजी से नारसन एन एच 58, 25 किमी0 नारसन से झबरेडा ,झबरेडा से पुहाना 30 किमी0 पुहाना से छुटमलपुर लगभग 25 किमी0 छुटमलपुर से कलसिया होते हुए बेहट 25 किमी0 बेहट से शाकुंभरी देवी 16 किमी कुल दूरी 221 किमी0 लगभग
वापसेी में हमने शाकुंम्भरी देवी से बेहट , बेहट से छुटमल पुर , छुटमलपुर से पुहाना , पुहाना से झबरेडा होते हुए नारसन और नारसन से मु0 नगर से नेशनल हाइवे 58 से खतौली , मेरठ ,मोदीनगर होते हुए मुरादनगर पहुंचे जो जाने के रास्ते के लगभग बराबर ही पडा । मैने इस पोस्ट के शीर्षक में शाकुंभरी देवी के साथ साथ हरिद्धार और देहरादून का भी रोड रिव्यू लिखा है क्योंकि देहरादून जाने के लिये आप छुटमलपुर से जा सकते हो जबकि रूडकी से सीधे हरिद्धार ।
एक और शार्टकट ................
पुहाना से एक किलोमीटर आगे भगवान पुर के पास से एक रास्ता बाईपास के नाम से है और कलियर को होता हुआ गंगनहर की पटरी में मिलकर आपको हरिद्धार पहुंचा देता है । यदि आप देहरादून से हरिद्धार जा रहे है और आप ऋषिकेश के रास्ते नही जाना चाहते तो ये एक विकल्प है ।
एक और शार्टकट ............
यदि आप दिल्ली से हरिद्धार जा रहे हैं और आप रूडकी को छोडना चाहते हैं तो पुरकाजी से लक्सर होते हुए हरिद्धार जा सकते हैं
एक और रास्ता ....................
दिल्ली से हरिद्धार या देहरादून जाने के लिये एक और बढिया और कम किलोमीटर का रास्ता ये भी है
दिल्ली —लोनी—37 km बागपत— बडौत —51km बुढाना—30kmमु0नगर—पुरकाजी—50kmरूडकी—32kmहरिद्धार या72 km देहरादून
अगले भाग में माता शाकुंभरी देवी के दर्शन करें मेरे साथ जो कि 51 शक्तिपीठो में से एक है
सामने वाले पेड पर गिद्ध बैठते हैं और उनकी बीट से सारा पेड सफेद हो चुका है |
रविवार की सुबह 6 बजे उठने के बाद श्रीमति जी बोली कि चलोगे या नही । मैने कहा चलेंगे तो जरूर । तो फिर कब चलोगे ? मैने सोचा सही कह रही है आज रविवार के अलावा पूरे हफते छुटटी नही है तो फिर आज ही चलना चाहिये । मैने श्रीमति जी से कहा कि चलो चलते हैं अभी ? हां अभी । एक घंटे बाद ठीक सात बजे हम घर से निकल पडे । पर आपको मै पहले ही बता दूं कि अबकी बार मै गाजियाबाद के पास मुरादनगर में था और कायदे में हमें चलने के हिसाब से देर हो चुकी थी पर हम चल पडे । घर से निकलते वक्त सोचा कि हाइवे को चलूं या फिर गंगनहर की पटरी को ? इस उलझन में गंगनहर भी आ गई ।
खाली सडक और साइड में गिरने से बचने के लिये बाउंड्री |
इसे देखकर केरल की याद आ गई |
। कांवड पटरी का रास्ता नजारो से भरपूर है कभी कभी तो इसे देखकर केरल की याद आती है तो कभी उडीसा की । क्योंकि इसके किनारे कभी खजूर के पेड आते हैं तो कभी बांस के पेडो का झुरमुट और कभी कंटीले पेडो की श्रंखला । लगभग तीन से चार किलोमीटर पर पुल आते हैं जिससे नहर को क्रास कर सकते हैं । ज्यादातर पुल अंग्रेजो के जमाने की याद दिलाते हैं । रास्ते में हरिद्धार तक कई जगह झाल पडती हैं । झाल का मतलब जहां बिजली बनाई जाती है नहर को दो भागो में बांट दिया जाता है और एक छोटी धारा के पानी के स्तर को धीरे धीरे उंचा करते जाते हैं । फिर एक जगह नीचे गहराई में टरबाइन पर वो धारा गिरती है और उससे बिजली पैदा होती है । कई लोगो के लिये तो कौतहूल से देखने की चीज होती है । कांवड पटरी मार्ग दिल्ली से हरिद्धार तक जाता है और नेशनल हाइवे 58 का एक विकल्प है । अगर आपके पास कार या बाइक है तो आप इस मार्ग से जा सकते हो क्योंकि ट्रक या बस प्रतिबन्धित हैं ।
यही है गंगनहर और उसकी पटरी |
इस दृश्य को देखिये जरा |
यहां से हमने नेशनल हाइवे पकड लिया |
बेहट का फोटो , यहां से हिमाचल बार्डर नजदीक है |
इस रास्ते में आपको कोई दिक्कत नही होगी । तो पुहाना से हम छुटमलपुर पहुंचे । छुटमलपुर एक ऐसा कस्बा है जो सहारनपुर ,रूडकी और देहरादून से लगभग सम दूरी पर स्थित है और देहरादून यहां से 50 किमी0 मुश्किल से है । ये यूपी के बार्डर जैसा ही है बस थोडी दूर से बाद ही उत्तराख्ंड की सीमा शुरू हो जाती है । इसलिये इस कस्बे का काफी महत्व है । शाकुंभरी जाने के लिये छुटमलपुर से देहरादून के रास्ते पर सिर्फ देा किलोमीटर चलकर फतेहपुर और फतेहपुर से कलसिया और बेहट के रास्ते पर उल्टे हाथ को मुडना होता है । यहां तक तो सब ठीक था पर अब असली परीक्षा थी । छुटमलपुर से बेहट को जाने वाला लगभग 25 किमी0 का रास्ता बिल्कुल टूटा हुआ था और बनने की प्रक्रिया में चल रहा था ।
ये है झबरेडा बाईपास |
सो पत्थर पूरे रास्ते में पडे थे और उन पर बाइक का चलना मुश्किल हो रहा था । दूसरा उस रास्ते पर इतनी धूल उड रही थी कि अगर कोई बस आगे निकल जाये तो दिन में रात बना दे । जैसे तैसे करके ये 25 किमी0 कटे और हम बेहट पहुंचे । बेहट एक बहुत प्राचीन और एतिहासिक कस्बा है । इसका महत्व भी छुटमलपुर के तरह ही है । ये हिमाचल और उत्तरांचल देानो राज्येा से सम दूरी पर है और शाकुम्भरी देवी का मंदिर बेहट से 16 किमी0 दूर है । बेहट में जो बोर्ड आप देख् रहे हैं इससे थोडी दूर चलकर ही सीधे हाथ पर एक विशाल द्धार बना है जो शाकुंम्भरी द्धार है और यहां से लेकर शाकुंम्भरी देवी तक का रास्ता फिर से बढिया आ जाता है । तो ये थी जाने के रास्ते की कहानी मै आपकी सुविधा के लिये एक बार संक्षेप में फिर से लिखे देता हूं मुरादनगर से खतौली वाया कांवड पटरी या गंगनहर से 65 किमी0 खतौली से मुजफफरनगर एन एच 58 बाईपास 35 किमी0 मु0नगर से पुरकाजी ,पुरकाजी से नारसन एन एच 58, 25 किमी0 नारसन से झबरेडा ,झबरेडा से पुहाना 30 किमी0 पुहाना से छुटमलपुर लगभग 25 किमी0 छुटमलपुर से कलसिया होते हुए बेहट 25 किमी0 बेहट से शाकुंभरी देवी 16 किमी कुल दूरी 221 किमी0 लगभग
ये है माता शाकुंभरी पहुंचने का पहला फोटो |
I like your article very much. Hope to read more soon.
ReplyDeleteDehradun News Weekly
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