गंगोत्री से चले तो 20 किलोमीटर चलने के बाद हरसिल में रूके । हरसिल से कुछ पहले ही सडक किनारे एक खुला मैदान था जहां से पहाडो की बर्फ ढकी चोटिय...
गंगोत्री से चले तो 20 किलोमीटर चलने के बाद हरसिल में रूके । हरसिल से कुछ पहले ही सडक किनारे एक खुला मैदान था जहां से पहाडो की बर्फ ढकी चोटियां दिखाई दे रही थी । लोग वहां रूककर फोटो खींच रहे थे और प्रकृति के नजारो का आनन्द ले रहे थे हमने भी वहां रूककर फोटो खींचे । बहुत ही सुंदर जगह है हरसिल पर हमें ज्यादा चिंता पैट्रोल की और केदारनाथ आज ही पहुंचने की थी । हरसिल के इस मैदान से आगे जाकर किसी ने बताया कि अंदर गांव में जाने पर एक दुकान है जो पैट्रोल रखता है । हम गांव में गये पर वहां भी नही मिला । बस अब हमने सोच लिया कि 50 का एवरेज देने वाली बाइक अगर कम भी एवरेज देगी तो भी दोनो बाइको का तेल मिलाकर उत्तरकाशी तक पहुंच जायेंगे । फिर दूसरी बात हरसिल से सुखी तोप तक आते हुए ढलान था तो अब जाते हुए चढाई और इसी तरह सुखी तोप से आगे उत्तरकाशी तक आते हुए
ज्यादातर चढाई थी तो अब जाते हुए ढलान पडेगा और ढालान पर हम बाइक बंद कर लेते थे क्योंकि जितनी उंची चढाई होती थी उतनी ही फिर ढलान होती थी कई बार तो बीस बीस किलोमीटर तक लगातार ढालान ही आता चला जाता था । उत्तरकाशी से 20 किलोमीटर पहले एक और समस्या खडी हो गई अचानक आशू की बाइक से बहुत जोर की आवाज आनी शुरू हो गई । पहले तो इतना ध्यान नही दिया पर जब आवाज इतनी हो गई कि बराबर में को निकलने वाले भी देखने लगे तो बाइक रोककर देखा कि कहीं कोई पहिये की तीली या ताडी जिसे बोलते हैं वो तो नही टूटकर अडने लगी है । पर ऐसा नही था और तीलियां सब ठीक थी तो क्या दिक्कत हो सकती थी? कुछ दूर धीरे धीरे चले और एक पंचर वाले की दुकान आयी । उससे पूछा कि क्या यहां कोई मिस्त्री मिलेगा तो उसने बोला कि मिस्त्री तो उत्तरकाशी ही मिलेगा पर क्या बात है मै ठीक कर दूंगा । हमने कहा तुम कर दो तो बोला कि अभी दो गाडियो में पंचर लगाकर तब देखूंगा । हमने सोचा कि इन दो गाडियो में पंचर लगाने में कम से कम एक घंटा तो लेगा ही । उसके बाद हमें देखेगा तब तक तो धीरे धीरे ही सही उत्तरकाशी भी पहुंच सकते हैं
दोनो ने धीरे धीरे बाइक चलानी शुरू कर दी पर देा तीन किलोमीटर चलने के बाद तो आवाज इतनी तेज हो गई कि बस अब टूटा पहिया । फिर बाइक रोक ली और औजार निकाल लिये । मै तो बाइक के बारे में कुछ नही जानता भले ही कितने साल से चला रहा हूं पर आशु ने पिछला पहिया जिसमें से आवाज आ रही थी उसे खोल लिया मैने कहा भी कि अगर ठीक ना हुआ तो फिर खींचकर ले जानी पडेगी तू कहे तो मै मिस्त्री ले आता हूं पर वो भी धुन का पक्का था । उसने पिछला पहिया खोलकर उसके अंदर कोई पिन होती है जो टूटकर उसमें ही उलझ गई थी और आवाज कर रही थी पर उसे निकालने के बाद वो ठीक हो गई और शुक्र की बात ये थी कि शायद ऐसी दो पिन थी तो एक से काम चल सकता था । आधा घंटा लगा और आशु ने पहिया दोबारा से बंद कर दिया और हम धीरे धीरे चलने लगे । उत्तरकाशी पहुंचकर शहर शुरू होने से पहले ही एक दुकान पर हम रूके और आशु की बाइक में पहिया दुबारा खुलवाकर वो पिन डलवाई । मेरी बाइक में भी एक समस्या आ रही थी । बाइक ज्यादातर मैदानो में चलती थी और पहाडो में आने के बाद चढाई पर चढते समय चेन स्लिप कर रही थी ।
मैने उसी मिस्त्री को दिखाया तो बोला कि आपका तो चैन सैट पुराना हो चुका है जो पहाडो पर चलने लायक नही है और नया डलवाना पडेगा । तब चैन सैट हमारे यहां 500 रू का बढिया आ जाता था पर उसने 1200 का बताया । चैन सैट टीवीएस की पैकिंग में था । बाहर जाकर ये ही समस्या आती है वो कम्पनी के सामान पर भी 300 रू ज्यादा ले रहा था और मै ये सोच रहा था कि अब इस दुकान को छोडकर अगर मै दूसरी दूकान देखूंगा तो पहले यहां आशु की बाइक में टाइम लगेगा और उसके बाद मेरी बाइक में जबकि यहां आशु की बाइक खुली थी और मेरी बाइक में भी उसके बराबर समय में काम हो जाना था । तो मैने वो चैन सैट ले लिया और लगाने को बोल दिया उसने आधा घंटा टाइम बोला । अब आधा घंटा तो बैठना ही था । आशु ने बराबर की जनरल स्टोर से कोल्ड ड्रिंक और बिस्कुट ले लिये । उन्हे खाते खाते हम शहर को निहारने लगे यहां जिस जगह हम बैठे थे वहां उंचाई थी और उसके आगे शहर थोडी गहराई में दिखाई दे रहा था ।
हमारा इरादा मुख्य मार्ग से यानि हाइवे से जाने का था पर वहीं आगे एक बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था उत्तरकाशी से केदारनाथ शार्टकट रास्ता लम्बगांव होते हुए । मैने एक बार फिर बोर्ड के बिल्कुल पास जाकर पढा और वापिस आकर बाइक के मिस्त्री से पूछा कि क्या ये सही है तो वो बोला कि ये छोटा रास्ता है और केवल बाइक और छोटी कार के लिये है । बस रास्ता छोटा है इस बात से हमने सोचा कि एक तो नया रास्ता देख लेगें और जो हमारा एक डेढ घंटा खराब हुआ है तो शायद हम केदारनाथ भी पहुंच जायेंगे । मुख्य राजमार्ग को छोडकर बाइक सही होते ही हम तो चल दिये लंबगांव की ओर । पहले हमने एक पुल से उत्तरकाशी को पार किया और नदी के दूसरी ओर जो पहाड दिखाई देता है उसी से होकर ये रास्ता गया है । यहां सबसे पहले तो उस उंचे पहाड पर जाते ही बारिश शुरू हो गई । हमें लगा कि आज कैसा मनहूस दिन है सुबह से परेशानी ही आये जा रही हैं तो हमने अपनी बरसाती पन्नी निकालकर ओढ ली और चलते रहे क्योंकि यहां सिर छुपाने के लिये भी आसपास जगह नही थी ।
पहाड की सबसे उंची चढाई पर जाकर हमने वहां लगे हुए हैडपम्प देखे । सरकारी हैडपम्प हमने अपने यहां भी देखे हैं पर उनका डिजाइन अजीब था । उनको इस तरह डिजाइन किया गया था कि उसे दो लोग खींच सकें एक साथ । क्योंकि इतने उंचे पहाड पर भी पानी का लेविल तो बहुत गहरा होगा सो बडी कठिनाई से पानी खींचना पडता है । इस पूरे रास्ते में मुझे याद है कि हमें कोई एकाध को छोडकर बडी मुश्किल से ढूंढे भी यात्री या पर्यटक नही मिला । ये एक लोकल रास्ता था जिसे आगे चलकर बनाया जा रहा था । काफी समय हो जाने के वजह से आज मै निश्चित ज्यादातर गांवो के नाम तो नही बता सकता पर जो मेरे मुख्य गांव याद है वो ये हैं
उत्तरकाशी —लम्बगांव—चौरंगीखाल—घनस्याली—तिलवाडा —अगस्तमुनि—गुप्तकाशी—केदारनाथ ये हमें रूट मिला और मेरा मन है कि अगर दोबारा जाउंगा तो इस रूट से जरूर जाउंगा वो इसलिये क्योंकि इस रूट पर हमें सच्चे उत्तराखंड के दर्शन हुए । जिन मुख्य मार्गो को चार धाम यात्रा होती है वो सब व्यवसायिक हो चुके हैं पर ये रास्ता अनछुआ सा था । ना इस रास्ते पर घनस्याली से पहले तक कोई बस सुविधा थी ना भीड । कई जगह रास्ते में पहाडी लडकियां मिलती पानी भरने के लिये जाती हुई । यहां के लोगो के पहनावे भी ठेठ उत्तराखंडी थे । मुझे याद है कि तब इस मार्ग को चौडा किया जा रहा था और मोटर मार्ग बनाने की कवायद की जा रही थी । रास्ते में एक जगह तो इतनी खडी चढाई आयी कि बाइक गर्म होकर बंद हो गयी । कुछ देर बाद दोबारा से एक एक आदमी बाइक पर चले और बाकी दो पैदल एक किलामीटर पर चले । मौसम बडा सुहावना था और दृश्य बडे लुभावने थे । उसी पहाड पर जिस पर बाइक चढते समय गर्म होकर बंद हो गई थी दूसरी ओर जब उतरने लगे तो बाइक को रोकना मुश्किल हो गया । उस समय डिस्क ब्रेक तो थे नही पर आगे और पीछे के देानेा ब्रेक लगाकर भी बडी मुश्किल से बाइक रूकी ।
उसके बाद कुछ दूर तक पहाड से उतरने के बाद रास्ता समतल आया । ये रास्ता ऐसा इसलिये था क्योंकि ये पुराना गांव का लोकल रास्ता था जिसका कोई मानक नही होती कि कितना उंचा और खडा होगा जबकि सरकार जो रास्ते बनाती है उनके मानक होते हैं पहाडो में कि कितना घुमाव होना चाहिये और कितनी चढाई एकदम से हो सकती है और उसके लिये इस मार्ग को जगह जगह से काटा जा रहा था और चौडा किया जा रहा था । इस पहाड से उतरने के बाद हमें जो रास्ता मिला वो अच्छी सडक थी पर वो इतना सुनसान था कि कई बार तो लगता था कि हम कहीं रास्ता भटक कर कहीं और तो नही जा रहे । इस पूरे रास्ते पर कई कई किलोमीटर तक कोई नही मिलता था । एक जगह तो 8—10 बच्चो ने सडक कब्जा रखी थी और क्रिकेट खेल रहे थे । लोकल पहाडी बच्चे , हमने बाइक रोकी और थोडे आराम के लिये रूके और उनका खेल देखने लगे । सडक के एक तरफ गहरी खाई और पेड थे और दूसरी ओर पहाड ।एक पत्थर पर तीन लकडियो के विकेट रखे थे बालर और बैटसमैन के अलावा बाकी सारे बच्चे फील्डर थे और खाई वाली साइड में खडे थे । खाई वाली साइड को बाल मारना मना था और गेंद खाई में पहुंचाने पर खिलाडी आउट हो जाता था ।पहाड की तरफ कितना भी मारो कोई रोक नही थी । कुल मिलाकर केवल लैग साइड में ही मार सकते थे । हम सब अपने आप को रोक नही पाये और उनसे रिक्वेस्ट की कि हमें भी खिला लो । पहले तो वे अंजान आदमियो को देखकर कुछ घबराये पर फिर खिला लिया । लवी एक साइड में बैठकर हमें देखने लगी ।
वो मेरी जिंदगी का सबसे बेहतरीन खेल था । हम एक सडक पर खेल रहे थे एक घंटा वहीं पर रूके वो भी तब जब अंकित ने गेंद खाई में पहुंचा दी । बच्चो का मन मायूस था । उन्होने हमें कुछ नही कहा पर हमने पूछा कि नयी बाल कितने की आयेगी तो उन्होने कहा 10 रू की । हमने 20 रू दिये सबसे हाथ मिलाया और चल दिये । बच्चे बहुत खुश थे और उन्होने बताया कि बाल लेने के लिये गांव जाना पडेगा । गांव पूछा तो उन्होने उंगली के इशारे से दिखाया । वो दूसरे पहाड पर था और अगर हमें कोइ सौ रूपये भी देता तब भी हम पैदल वहां गेंद लेने ना जाते पर वो तो बच्चे थे और वो भी पहाडी उनके लिये तो ये रोज का खेल था । रास्ते में एक जगह चौरंगी खाल आयी और वहां लिखा था कि यहां से नचिकेता ताल यहां से 3 किमी0 दूर है । हमने सेाचा कि इतना समय नही हो पायेगा कि वहां तक जायें तो आगे चलते रहे । चौरंगी खाल से आगे फिर से बारिश पडने लगी और थोडी देर में फिर से बंद हो गयी । ये रास्ता भी एक छोटी सी नदी के किनारे पर बना था और बहुत ढालान वाला था । उसके बाद हमने एक जगह रास्ते में ही छोटी सी दुकान में ब्रैड पकौडे और चाय ली क्योंकि होटल तो यहां अब तक दिखा नही था । शाम होते होते हम घनस्याली पहुंच गये ।
घनस्याली एक काफी अच्छा कस्बा या शहर की तरह है । यहां हर तरह की सुविधाऐं है होटल या रेस्टोरेट सब कुछ यहां था । देखने में भी शहर सुंदर दिख रहा था मेरा मन रात को यहीं रूकने का था पर आशु और अंकित नही माने और बोले कि अभी तो हम दो तीन घंटे और चल सकते हैं एक दो से पूछा तो बोले कि आपको आगे रात को 8 बजे रास्ते पहाडेा में पुलिस बंद कर देती है तो यहीं रूक जाओ पता नही आगे ठिकाना मिले या ना मिले पर आशु और अंकित नही माने । फिर से चलना शुरू कर दिया । इस बार बाइक की स्पीड थोडी तेज थी और अंधेरा होने के बावजूद हम बहुत तेजी से जा रहे थे । रास्ते में हमे एक दो जीप ही मिली जो कि दूध ढोने वाली थी । ना रास्ते में कुछ दिखाई दे रहा था कि कौन सा गांव है और कौन सा नही पर एक जगह छोटे से गांव में जाकर एक बैरियर मिला और वो भी बंद । रात के 8 बज चुके थे और रास्ता बंद हो चुका था । छोटा सा गांव होने के बावजूद वहां एक होटल था जो दो मंजिला था । खासतौर पर जहां बैरियर लगे हों वहां शायद इसीलिये उन्होने बना रखा हो । उपर की मंजिल पर 8 कमरे और नीचे दुकाने जिसमें सब खाली थी ।
250 रू में डबल बैड का कमरा और खाना भी नीचे की एक दुकान में ही बना रहे थे । उसी में चार कुर्सी थी जिसमें वो बारी बारी से मेहमानो को बुलाकर खिला देते थे । हमारे बाद उस होटल में एक गाडी क्वालिस आयी जिसमें 12 लेाग थे बच्चो सहित । मजबूरी में उन्हे भी रूकना पडा तो उन्होने भी दो कमरे ले लिये और रात को गांव में घूमने निकले तो देखने को कुछ था ही नही सो वापिस कमरे में आकर सो गये । इस गांव का नाम था चिरबटिया जो सुबह हमने देखा और एक देा फोटो भी लिये । चिरबटिया से सुबह को हम चले तो बीच के गांव तो मुझे नाम याद नही पर हम तिलवाडा जाकर निकले और तिलवाडा से हमने अगस्तमुनि होते हुए मुख्य मार्ग पकडा । ![]() |
हरसिल से दिखती बर्फीली चोटियां |
ज्यादातर चढाई थी तो अब जाते हुए ढलान पडेगा और ढालान पर हम बाइक बंद कर लेते थे क्योंकि जितनी उंची चढाई होती थी उतनी ही फिर ढलान होती थी कई बार तो बीस बीस किलोमीटर तक लगातार ढालान ही आता चला जाता था । उत्तरकाशी से 20 किलोमीटर पहले एक और समस्या खडी हो गई अचानक आशू की बाइक से बहुत जोर की आवाज आनी शुरू हो गई । पहले तो इतना ध्यान नही दिया पर जब आवाज इतनी हो गई कि बराबर में को निकलने वाले भी देखने लगे तो बाइक रोककर देखा कि कहीं कोई पहिये की तीली या ताडी जिसे बोलते हैं वो तो नही टूटकर अडने लगी है । पर ऐसा नही था और तीलियां सब ठीक थी तो क्या दिक्कत हो सकती थी? कुछ दूर धीरे धीरे चले और एक पंचर वाले की दुकान आयी । उससे पूछा कि क्या यहां कोई मिस्त्री मिलेगा तो उसने बोला कि मिस्त्री तो उत्तरकाशी ही मिलेगा पर क्या बात है मै ठीक कर दूंगा । हमने कहा तुम कर दो तो बोला कि अभी दो गाडियो में पंचर लगाकर तब देखूंगा । हमने सोचा कि इन दो गाडियो में पंचर लगाने में कम से कम एक घंटा तो लेगा ही । उसके बाद हमें देखेगा तब तक तो धीरे धीरे ही सही उत्तरकाशी भी पहुंच सकते हैं
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हर्सिल का एक और नजारा |
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तीर्थयात्री भी यहां आकर फोटो खींचने में खो जाते हैं |
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बाइक के पहिये को ठीक कर रहे हैं |
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उत्तराखंड का ग्रामीण परिवेश 1 |
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उत्तराखंड का ग्रामीण परिवेश 2 |
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सुंदर छोट छोटे धान के खेत |
KEDARNATH YATRA-
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गांव और खेत एक साथ |
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ये घुमावदार नजारे.......... |
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एक और नजारा |
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सुहाने नजारे |
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चिरबटिया में सुबह का दृश्य |
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इस रास्त से रात को आये थे और होटल |
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सामने मोड से आगे बैरियर था |
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गुप्तकाशी शहर |
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गुप्तकाशी शहर का एक और नजारा |
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सर्पीली सडके |
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सडके और दूर दिखती घाटी |
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घाटी का एक और दृश्य |
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गुप्त काशी |
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घुमक्कड़ जी बहुत खूब
ReplyDeleteकभी कुमाऊँ की तरफ भी निकलो
तो अल्मोड़ा मे मिलो ।
पढ़ने में बहुत मजा आया हमें। क्या आप इसे देखना पसंद करोगे गंगोत्री धाम का इतिहास
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