सुबह सवेरे सवेरे उठकर हम धनौल्टी के लिये चल दिये । धनौल्टी समुद्र तल से 2280 मी0 की उंचाई पर है लगभग 7500 फीट । ये मसूरी और चंबा जैसे दो मु...
सुबह सवेरे सवेरे उठकर हम धनौल्टी के लिये चल दिये । धनौल्टी समुद्र तल से 2280 मी0 की उंचाई पर है लगभग 7500 फीट । ये मसूरी और चंबा जैसे दो मुख्य आकर्षण के केन्द्र के बीच में है । मसूरी से 24 किमी0 और चंबा से 29 किमी0 की दूरी पर है । धनौल्टी में अब से कुछ साल पहले तक कोई खास पर्यटन नही था । क्योंकि वहां पर कोई ऐतिहासिक चीज विशेषतया नही है । वहां है तो शांति शांति और बस शांति । जो लोग छुटिटयां तो बिताना चाहते हैं पर मसूरी जैसी भीड भाड वाली जगहो से उन्हे एलर्जी है वे धनौल्टी को पसंद करते हैं । हाल फिलहाल के दिनो में यहां पर्यटन काफी बढ गया है । उसका एक कारण इसकी बढती लोकप्रियता है तो दूसरा सर्दियो में मसूरी की बजाय यहां तक बर्फ गिरना भी है । मसूरी में व्यवसायिक गतिविधियां इतनी हो गई हैं कि अब वहां प्रदूषण ज्यादा होने की वजह से बर्फ कम ही गिरती है ।
KEDARNATH YATRA-
शूटिंग प्वाइंट से दिखता नजारा |
वही मसूरी जो कभी बर्फ से लकदक रहती थी वो अब किसी किसी साल तो अच्छी बर्फ देखने के लिये तरस जाती है ।जबकि धनौल्टी में इसके उलट हैं लम्बे लम्बे चीड ,देवदार के पेड वो भी सैकडो फुट लम्बे ,सुंदर ढालान ,और यहां से दिखती कई प्रसिद्ध बर्फ की चोटियां ये सभी बाते धनौल्टी को आकर्षक जगह बनाती हैं पर्यटन के लिये । यहां लोग चाहें तो ट्रेकिंग भी कर सकते हैं । शांति सुकून चाहने और एक जगह आकर ठंडे मौसम का मजा लेने वालो के लिये ये जगह मुफीद है । रास्ते में छोटे छोटे पहाडी बच्चे जो आसपास के गांवो के हैं वो आलू बुखारे बेचते मिलते हैं । और गाडी वाले बडे लोग इन छोटे बच्चो से 10—10रू की एक थैली लेकर खुश हो जाते हैं । यहां घूमने के लिये ज्यादा कुछ नही है बस कुछ साल पहले ही यहां के वन विभाग द्धारा विकसित किया गया ईको पार्क है । मुख्य रास्ते पर उपर की ओर ढलानो पर खडे लम्बे लम्बे वृक्षो को सलीके से संवारकर और पार्क में जगह जगह कई तरह के झूले और खेल खिलौने लगाकर बच्चो और बडो के लिये एक पिकनिक स्पाट का रूप दे दिया गया है । हमने भी वहां पहुंचकर कई झूलो का आनंद लिया । धर्मपत्नी जी के साथ कई फोटो खिंचवाऐं । पार्क में एंट्री टिकट लगता है 15 रू का । कई तरह के कूडेदान बना रखे है और एक शिवजी की मूर्ति भी है इन सब पर यही संदेश दिया लिखा है कि वनो को बचाओ नये नये नारो के रूप में । यहां से चम्बा के लिये चलते हैं तो 8 किमी0 दूर सुरकंडा देवी का मंदिर आता है रास्ते में । जब कोई यहां तक आता है तो वहां भी जरूर चला ही जाता है । और अगर किसी को चंबा जाना हो तो भी वो रूककर जाता है । ईको पार्क बनने से यहां काफी लोगो को रोजगार मिला है जो यहीं आसपास गांव के बाशिंदे हैं वैसे यहां पर घोडे खच्चर वालो ने भी एक आकर्षण बना रखा है । वे आते ही लोगो को चिपट जाते हैं । आ जाओ जी आपको शूटिंग प्वाइंट दिखाकर लायेंगे सेव के बाग दिखाकर लायेंगे और पता नही क्या क्या ।
ये वृक्ष् कितने लम्बे हैं कौन पता लगा सकता है ? |
हम भी फंस गये थे इनके चक्कर में जब पहली बार गये थे । हमने सोचा उपर पहाड पर पता नही कितनी उंचाई पर क्या क्या देखने की चीज है। सो हमने भी घोडे कर लिये । एक और वजह भी थी घोडे करने की । वहां उस रास्ते से कोई और जा नही रहा था उपर जंगल में को रास्ता था सो हमने 200 रू प्रति आदमी के हिसाब से घोडे कर लिये । घोडे वाले हमें लेकर चल दिये और थोडी उंची पहाडी पर ले जाकर छोड दिया । वहां पर खेत थे । हमने चारो तरफ को देखा नजारे तो सुंदर दिखाई दे रहे थे पर सिवाय खेतो और पेडो के सिवाय कुछ नही है हमने पूछा कि यहां क्या है तो बोले कि ये शूटिंग प्वाइंट है यहां कई फिल्मो की शूटिंग हुई है ।हमें अंदाजा हो गया कि ठगे जा चुके हैं वो भी बढिया तरीके से ।
ये है ओपन एयर रेस्टोरेंट |
यहां तो खेत हैं उनमें भी बाड लगी है कंटीले तारो की । चलो भाई और क्या है वो भी दिखा दो तो वे वापिस हमें ले आये नीचे मुख्य रास्ते पर और चम्बा की तरफ को थोडा सा आगे चलकर सडक पर रोक दिया और नीचे उतारे बिना बोले कि ये हैं सेव के बाग । मै आपको फोटो दिखाना चाहता था उन सेव के बाग के पर तब सेव हरे और कच्चे थे छोटे छोटे । वो भी उपर से बहुत नीचे किसी के बाग दिखा दिये हमने पूछा कि बाग में क्यूं नही ले जा रहे तो बोले कि ये बाग तो प्राइवेट आदमी के हैं वहां हमें जाने की परमिशन नही है । तो फिर हमें यहां पागल बनाने लाये हो । काफी देर तक सिर मारने के बाद हमने सोचा कि अब तो ठगे गये अब क्या कर सकते हैं सो पैसे दिये और चल दिये अपने घर की ओर । उसके बाद जब इस यात्रा में हम गये तो भी घोडे वाले मिले पर कोई मतलब ही नही था कि हम उन्हे पूछते । ये बात मै आपको इसलिये भी बताई कि अगर कभी धनौल्टी जाओ तो घोडे वालो के चक्कर में मत पडना और अगर शूटिंग प्वाइंट देखने जाना हो तो पैदल ही चले जाना थोडी सी ही उपर है । सेव के बाग अपना वाहन हो तो 1 किलोमीटर आगे जाकर खुद देख लेना
इसी रास्ते से लेकर जाते हैं शूटिंग प्वाइंट दिखाने |
कुल मिलाकर धनौल्टी एक सुंदर जगह है पर कुछ समय अकेले शांति और सुकून से गुजारने वालो के लिये हमारे जैसो के लिये नही क्योंकि हम तो चल चला चल में ही रहते हैं ।तो धनौल्टी से चलकर हम चम्बा के लिये चल दिये और रास्ते में सुरकंडा देवी का मंदिर आया पर हम नही रूके क्योंकि आज हमारा इरादा ज्यादा से ज्यादा सफर कर लेने का था सो हम तेजी से निकल गये । कुछ दूर चलने के बाद से सुंदर नजारे आने शुरू हो गये । अगला शहर चंबा था उत्तरांचल वाला चंबा । एक चंबा हिमाचल में भी है उसका दर्शन का सौभाग्य अभी तक नही मिला है । चंबा में जाकर हमने खाना खाया एक होटल पर और एक तिराहा आता है वहां से रास्ता पूछा कि उत्तरकाशी किधर को जाना है इस तिराहे से एक रास्ता नीचे ऋषिकेश को चला जाता है जबकि एक रास्ता टिहरी के लिये तो खाना खाकर हम निकल पडे टिहरी के लिये
ईको पार्क के अजब गजब दृश्य |
ये ईको पार्क में सबसे सुंदर दृश्य था जय हो भोले शंकर की |
ये है शूटिंग प्वाइंट |
एक और नजारा इन वादियो का |
बस उपर आते बादलो ने नजारे को सुंदर बना दिया है |
बच्चो को फुसलाने का सामान ईको पार्क में |
बच्चो की चीज पर कभी कभी बडे भी हाथ् मार लेते हैं |
एक संदेश सफाई के लिये |
सबसे पहले यहीं रूके |
टिहरी भी दो हैं नई टिहरी और पुरानी टिहरी ? क्या अन्तर है और क्या फर्क है । नई टिहरी ,टिहरी जिले का मुख्यालय है । ये समुद्र तल से 900 मी0 लगभग की उंचाई पर है । यहां पर भागीरथी और भिलंगाना नदी को मिलती है चम्बा से 11 किमी 0 की दूरी पर है ऋषिकेश से 76 किलोमीटर है यहां पर टिहरी नाम का पुराना शहर था जो कि बहुत ही ऐतिहासिक था और अब तो बिलकुल ही ऐतिहासिक हो गया है । यहां पर एक बांध बनाया गया है जिसके बारे में कुछ तथ्य ये हैं ये एशिया का सबसे बडा और उंचा बांध है जिसकी उंचाई 260 मी0 है । एक हजार मेगावाट बिजली बनाने की क्षमता है पुरानी टिहरी वासियो को नई टिहरी नाम के एक सुनियोजित तरीके से बसाये गये शहरा में बसाया गया है ।
डूबे हुए शहर का एक दृश्य |
बांध का एक दृश्य |
हमें उस झील के किनारे किनारे बीसियो किलोमीटर तक चलते हुए हो गये थे तो आप अंदाजा लगा लो कितनी बडी झील है वो इसीलिये इस बांध पर आतंकी खतरा भी बताते हैं और उसके कारण ही इस बांध की सुरक्षा व्यवस्था बहुत चाक चौबंद है । बांध से बहुत दूरी से ही कोई उसे देख सकता है । ये एक प्रतिबंधित एरिया है और चाहे कोई विशेष परमीशन लेकर देख तो ले अंदर जाकर पर फोटो खींचने का तो सुरक्षाकर्मी विशेष ध्यान रखते हैं । वैसे मैने देखा कि जितनी दूर से वे हमें मना कर रहे थे फोटो खींचने के लिये उससे कम दूर के फोटो तो नेट पर उपलब्ध हैं । पर ये वही मंदिरो वाला हाल है कि अंदर तो फोटो खींचना मना है और बाहर से आप वही फोटो दुकानो से खरीद सकते हो । हमने झील में थोडा सा टिहरी शहर का उपरी हिस्सा जिसके बारे में बताते हैं कि वो सबसे उंची जगह थी पुरानी टिहरी की , को देखा । जब कभी झील में पानी का स्तर कम हो जाता है तो और भी कुछ जगहे टापू के रूप में नजर आने लगती हैं ।
बांध का एक और दृश्य |
जैसे कि आप फोटो में देखोगे कि ये एक टापू सा जो नजर आ रहा है ये कुछ भवनो के अवशेष हैं । झील के आसपास जो गांव उससे उंची जगह पर बसे थे उनको आने जाने की बडी परेशानी हो गई है । कुछ गांव जो आमने सामने के पहाड पर थे उनमें जाने के लिये अब झील के पहले एक तरफ 20 किलोमीटर फिर दूसरी तरफ 20 किलोमीटर तक चक्कर लगाना पडता है । पुरानी टिहरी के बांध निर्माण के कारण झील में समा जाने के कारण बहुत लोग विस्थापित हो गये हैं 'विस्थापन और विस्थापित 'ये शब्द कहने में जितने आसान हैं उतने ही उन लोगो के लिये कष्ट दायक जिन्होने उसे झेला है ।
झील का एक और नजारा |
पानी के अलग अलग रंग दिखत हैं यहां |
दूर दूर तक फैली जलराशि |
खेतो और गांवो को जाने के रास्ते |
झील का एक और सुंदर नजारा |
टिहरी झील |
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