चित्तौड ने वीर गाथाओ का ऐसा इतिहास रचा कि देश को प्रेम करने वाले प्रत्येक देशप्रेमी का सर नतमस्तक हो जाये । कविताओ ,गीतो और किस्सो में चित...
चित्तौड ने वीर गाथाओ का ऐसा इतिहास रचा कि देश को प्रेम करने वाले प्रत्येक देशप्रेमी का सर नतमस्तक हो जाये । कविताओ ,गीतो और किस्सो में चित्तौड की वीरता के किस्से हैं । इस पवित्र भूमि के कण कण में महाराणा प्रताप की वीरता , मीरा की भक्ति , भामाशाह की दानवीरता , रानी पदमिनी के जौहर , बादल के बलिदान और स्वामी भक्त पन्नाधाय की यादे और इतिहास बसा हुआ है । अजमेर से चित्तौड लगभग 190 किमी0 है अजमेर से चलने के बाद हमने रास्ते में दो तीन जगह गाडी रोकी खाना खाने के लिये । गाडी से उतरकर एक आदमी जायजा ले आता था पहले कि सफाई वगैरा है कि नही और रेट क्या हैं क्योंकि अगर सब उतरकर बैठ जायें और बाद में पता चले कि जहां बैठे हैं वहां अंडे वगैरा बनते हैं या शराब पीने वाले बैठते हैं तो फिर सब वापिस चलें इससे तो अच्छा है कि पहले ही पता कर ले एक आदमी नीचे जाकर फिर सबको बुला ले एक जगह काफी अच्छा रेस्टोरेंट बना हुआ था तो उस पर गाडी रोक ली । हमारी आदत और तजुर्बा है कमरा लेने से पहले और खाने से पहले वहां का बजट पूछ लेना । यहां 60 रू की एक थाली थी कितना भी खाओ । अच्छा खाना था और खाना खाते ही चल दिये ।
। राजस्थान में न तो जगह की कमी है और ना अच्छी सडको की । कई कई बार तेा आदमी को देखने को भी तरस जाते हैं । दिखाई देते हैं तो बस रेत के मैदान ,कुछ खेत और जहां भी वो खेत होते हैं उनकी वजह होता है वहां आसपास में पानी का कोई श्रोत कोई छोटा मोटा तालाब या बरसात का जमा पानी । चित्तौड को गढो में गढ कहा जाता है । क्योंकि इस दुर्ग पर अगर कोई चढाई करना चाहता था तो उसे सात दरवाजो से गुजरना पडता था । सात दरवाजे या जिन्हे पोल भी कहा जाता है जिनके नाम अलग अलग हैं मुख्य रास्ते से उदयपुर की ओर को जाते हुए उल्टे हाथ पर किले का रास्ता जाता है । खास बात ये है कि पूरे किले को आप अपने वाहन या टैम्पो करके भी देख सकते हो । इतने विशाल किले में पैदल ज्यादा चलने की जरूरत नही है टैम्पो वाला ले जायेगा तो बढिया पैसे लेगा पर वही गाइड भी बन जायेगा । मै एक बार पहले भीलवाडा की यात्रा के दौरान यहां आया था तब हम भीलवाडा में एक दिन के लिये खाली थे तो मैने अपने मित्र विकास शर्मा के साथ चित्तौड देखने का प्रोग्राम बनाया था और हम काफी देर तक यहां घूमे थे । इस बार मेरे साथ वालो की बजाय मेरी देखी हुई जगह आयी तो गाइड मुझे बनना पडा ।
किले में एंट्री गेट के बाद दोनो ओर बहुत मोटी मोटी दीवारे बनी हुई हैं जिनमे बंदूक रखकर चलाने की जगह बनी हुई है । वैसे किले की इस दीवार के किनारे किनारे चलने में बडा मजा आता है जबकि आप टैम्पो या अपनी गाडी में से बार बार नही उतर सकते । हां अपनी गाडी होने से आप टाइम बचा सकते हो । सबसे पहले कुछ घर बने हुए आते है जिनके बारे में कहा जाता है कि ये प्राचीन समय से ही बसे हुए बाशिंदो के घर हैं और उन्हे सरकार ने इतनी ऐतिहासिक और पर्यटक जगह होते हुए भी खाली नही कराया है । बस शर्त ये है कि पीढी दर पीढी वो और उनके परिवार रह तो सकते हैं पर ना तो इस सम्पत्ति् को बेच सकते हैं और ना ही ये सम्पत्ति उनकी कभी होगी । अगर किसी का कोई वारिस नही होगा तो उसे सरकार जब्त कर लेगी । पर कुल मिलाकर एक बात तो है कि इन लोगो को एक गौरव प्राप्त है अपने पते में चित्तौड का किला लिखने का । इस दुर्ग का निर्माण प्राचीन समय में मौर्य वंश् में हुआ था । चित्तौड का प्राचीन नाम चित्रकूट था । चित्तौड मेवाड की राजधानी हुआ करता था और राजपूत सत्ता का सदियो तक केन्द्र बना रहा ।
महाराणा कुम्भा ने अपने समय में काफी महलो और मंदिरो का निर्माण इस किले में करवाया । चित्तौड के किले को अपने लम्बे इतिहास काल में कई बार आक्रमण का शिकार होना पडा । अलाउददीन खिलजी , बहादुर शाह और अकबर के द्धारा तीन बार इस किले पर आक्रमण हुआ और तीनो बार उन युद्धो का अंत पराजय में होने पर इस किले की औरतो ने अपने आपको आग में समर्पित कर दिया जिसे कि जौहर कहा जाता है । ये राजपूताना की आन बान शान का प्रतीक बन गया और आज भी देशी विदेशी लाखो पर्यटक सालाना इस किले को देखने आते है । किस्सो और गाथाओ से भरा पडा है चित्तौड के इस दुर्ग का इतिहास । उसमें सबसे प्रसिद्ध है यहां के जौहर और शाके ।
पहला जौहर और शाका
रानी पदमिनी का किस्सा इसमें बहुत विख्यात है एक बार अलाउददीन खिलजी ने रानी पदमिनी के रूप के चर्चे सुने तो उसने सोचा कि मै खुद जाकर उसकी सुंदरता की तारीफ की तसदीक करूंगा । उसने चित्तौड को घेर लिया । खिलजी की सेना का राणा रतन सिंह की सेना के साथ छह महीने तक युद्ध होता रहा । जब खिलजी परेशान हो गया और उसके काफी सैनिक भी मारे गये तो उसने एक चाल खेली और राणा को संदेश भिजवाया कि मै दोस्ती का हाथ बढाना चाहता हूं और आपकी महारानी के सौंदर्य की बहुत तारीफ सुनी है बस उनके दर्शन करना चाहता हूं ।कुछ गिने चुने सिपाहियो के साथ दुर्ग में आ जाउंगा इससे दोनो पक्ष सहमत हो गये । राणा उनकी बात में आ गये और खिलजी 200 सैनिको के साथ दुर्ग में आ गया ।
महाराणा ने उसका सत्कार किया और उसकी मीठी बातो के प्रभाव में आकर उसे अपना मित्र मानने लगे जब चलने लगे तो महाराणा खिलजी को छोडने के लिये मुख्य द्धार तक आ गये खिलजी यही चाहता था वो उन्हे बात करता करता द्धार से थोडी दूर अपने पडाव की ओर ले गया जहां उसके विशेष सैनिक छुपे बैठे थे और राणा को गिरफतार कर लिया । खिलजी की सेना विशाल थी और अब तो राणा भी उनके कब्जे में थे । रानी सुंदर होने के साथ साथ बुद्धिमान भी थी उसने एक युक्ति सोची और खिलजी को संदेशा भिजवाया कि रानी आपसे मिलने को तैयार है पर शर्त ये है कि पहले उसे राणा जी से मिलवाया जाये और रानी के लाव लश्कर उसकी बांदियो आदि की कोई तलाशी वगैरा ना ली जाये । खिलजी तो रानी पदमिनी के अक्स को देखकर ही पागल हो चुका था सो उसने झट से शर्त मान ली । दर्जनो पालकी सैट की गई जिनमें हथियार बंद लडाके छिपकर बैठ गये ।
पालकी वालो के पास भी छिपी हुई तलवारे थी इस प्रकार काफी संख्या में सैनिक खिलजी के कैम्प में पहुंच गये । जैसे ही रानी वहां पहुंची और वादे के
मुताबिक राणा से मिली तो छिपे सैनिको ने हमला कर दिया । राणा जी को बाहर निकाल लिया गया पर इस लडाई में चित्तौड के काफी सैनिक मारे गये । अब खिलजी ने अपनी पूरी ताकत के साथ वापसी आक्रमण किया । वैसे ही चित्तौड की सेना कम थी उपर से राणा को छुडाने में काफी सैनिक मारे गये थे तो हार तो तय थी पर किसी भी कीमत पर आत्मसमर्पण करने की या अपने जीते जी किले को खिलजी के अधिकार में देने की किसी के दिमाग में नही थी । रानी और उसके साथ साथ दुर्ग की महिलाओ , सैनिको की पत्नियो ने जौहर किया अपने आप को जिंदा आग में झौंक दिया ताकि आताताईयो के हाथ में कुछ ना आ सके । पुरूष अपनी पत्नियो को मरता हुआ देख रहे थे और उनके जलने के बाद उनकी राख को माथे पर लगा निकल पडे आखिरी युद्ध के लिये जब तक जान रही लडते रहे । हार तो तय थी पर खिलजी भी जीत नही पाया । ना तो उसे रानी पदमिनी मिली और ना ही दुर्ग । क्योंकि दुर्ग में कोई रह नही गया था ।
दूसरा जौहर और शाका
दूसरा जौहर राजमाता कर्मवती का है 1535 में जब गुजरात के राजा बहादुर शाह ने चित्तौड को घेर लिया तब राजमाता कर्मवती ने अपने सारे राजपूतो को बुलाया और उन्हे मातृभूमि की महत्ता समझाई । युद्ध का निर्णय लिया गया और राजपूत पूरी वीरता के साथ लडे पर जब हारने की नौबत आने लगी तो जौहर और शाके का निर्णय लिया गया । राजमाता कर्मवती के साथ 13000 औरतो ने जौहर किया पर इतनी ज्यादा तादाद होने पर लकडियां कम पड गई तो बारूद का ढेर लगाया गया और उस पर जौहर हुआ । औरतो के जौहर के बाद पुरूषो ने शाका किया और वीरता से लडकर शहादत पायी ।
तीसरा जौहर और शाका
ये 1567 की बात है । अकबर ने चित्तौड पर हमला किया । चित्तौड के राजा उदय सिंह थे उन्हे हमले की सूचना मिली तो रण सज गया । राजपूतो ने पूरी हिम्मत और बहादुरी के साथ युद्ध किया और कई महीनो तक युद्ध चलता रहा । किले के बाहर मुगल सेना घेरा दिये पडी रही और कई महीने हो जाने के कारण किले के अंदर रसद और खाने पीने के सामान की कमी होने लगी । या तो लडकर मर जाना या भूखे मर जाना । तो लडकर मर जाना बेहतर था सो औरतो ने फिर से जौहर को अंजाम देने की ठानी । औरतो के जौहर करने के बाद सभी पुरूषो और सैनिको ने किले के गेट खोल दिये ओर मुगल सेना पर टूट पडे । सब वीर गति को जब तक प्राप्त नही हो गये तब तक अकबर किले के अंदर नही जा सका । अकबर के मन में इस वीरता ने राजपूतो के प्रति अगाध सम्मान पैदा कर दिया था
जब मै इन तीन किस्सो को लिखने बैठा तो मेरे रौंगटे खडे हो गये । किसी कहानी को पढना अलग बात है और उसको लिखना अलग बात । आप यदि एक सुनी सुनाई और कई बार पढी हुई कहानी को भी लिखने लगें और वो कहानी ऐसे बलिदानो से घिरी हो तो कभी तो आंसू आते हैं कभी जोश और कभी दिल हिलोरे मारता है कि ऐसी है हमारी भारत की हस्ती जो किसी से न मिट सकी है ना मिटेगी
चित्तौड के बारे में अगर लिखने लगे तो लेखनी भी कम पड जाये मै तो इसे लिख ही नही पाउंगा क्योंकि मैने आपको चित्तौड के इतिहास का एक अंश मात्र बताया है । महाराणा प्रताप , मीराबाई आदि कई ऐसे नाम मै आपको शुरूआत में बता चुका हूं जिनको हम पढकर बडे हुए हैं और उन पर किताबे लिखी जा चुकी हैं और शोध हुए हैं । जौहर और शाके की कहानी मैने आपको इसलिये बतानी जरूरी समझी क्योंकि ये मेरे दिल को बहुत छू जाती है और मैने जब भी इस बारे में पढा तो एक लाइन को पढकर मेरी आंखे नम हो जाती हैं कि पुरूषो ने अपनी मांओ और पत्नियो बहनो को अपनी आंखो के सामने जलते हुए देखा । क्या बीता होगा उनके दिल पर और उसके बाद भले वो शहीद हुऐ हों पर क्या हाल किया होगा उन्होने आताताईयो का खैर अपनी घुमक्कडी की ओर वापिस चलते हैं
पहले गेट के बाद और इस छोटे से मौहल्ले या गांव, जिसमे पानी या कोल्ड ड्रिेंक की दुकाने हैं ,को पार करने के बाद एक काउंटर बना हुआ है जिससे टिकट लेना पडता है । उसके बाद सामने ही महल के अवशेष आ जाते हैं । सच में ये किला इतना बडा है कि अगर इसे घूमने लग जाओ तो एक दिन तो बहुत कम है । यहां इस किले में कितने ही मंदिर , महलो के खंडहर , म्यूजियम आदि हैं । म्यूजियम मै अपनी पहली यात्रा में जा चुका था और मुझे सब म्यूजियम एक जैसे ही लगते हैं यहां सबसे पहले कुम्भा महल आता है गाडी हमने कुंभा महल के सामने खडी कर दी । चित्तौड का किला बडा भी इतना है कि इसे आप एक दिन में पूरा समझकर नही घूम सकते सो दौड कर घूम लिये 7 मील लम्बी,700 एकड , 280 हैक्टेयर में दुर्ग ,महल , टावर और मंदिरो के साथ ये दुर्ग सदियो से खडा है । कुंभा महल की शुरूआत या उपर से शहर का बहुत सुंदर नजारा दिखता है कुछ घर तो नीली पुताई में पुते हुए हैं और उनकी संख्या काफी है और नोटिस की जा सकती है। मै सोच रहा था कि अगर कुछ और घर ऐसे पुताई कर दिये जाते तो शायद गुलाबी नगरी जयपुर की तरह इसका नाम भी कुछ नीली नगरी या ब्लू सिटी हो जाता ।
कुंभा महल का प्रवेश द्धार एक छोटा सा गेट है और जब इसमें घुसते हैं तो गेट के पास ही एक लाल रंग के पत्थर पर जानकारी में लिखा है ।
यह भव्य महल विशिष्ट राजपूत स्थापत्य शैली की झलक प्रदान करता है । पूर्ववर्ती इस महल में महाराणा कुंभा 1433—68 ने कई परिवर्तन किये । महल में प्रवेश हेतू पूर्व से बडी पोल एवं त्रिपोलिया दरवाजे होकर दक्षिण में स्थित खुले प्रांगण से होते हुए दरीखाने तक पहुंचा जा सकता है महल के मुख्य परिसर में स्थित सूरज गोखरा,जनाना महल ,कांवर पडे महल व अन्य आवासीय भवनो में प्रवेश हेतू दरीखाने से छोटा प्रवेश द्धार है । महल की दीवारे सुदृढ पत्थरो से निर्मित हैं जिसकी बाहरी दीवारो को अनेक प्रकार के अलंकरणो से सुसज्जित किया गया है ।
एक छोटा सा तीन फुट का रास्ता मेन सडक ,जो कि पूरे दुर्ग में घूम गई है और जिस पर कारे टैम्पेा पूरे दुर्ग् में घुमा सकते हैं, से उस छोटे से गेट को जाता है और फिर अंदर जाते ही एक जेलनुमा कमरे के दर्शन होते हैं जो कि कुछ कुछ ऐसा बना हुआ है जैसे कि बंदीरक्षको या पहरेदारो का कमरा हो । ज्यादा से ज्यादा 8 या 9 फुट की उंचाई पर पिलरो के सहारे कमरा खडा है । मेन गेट के बाहर छतरिया बनी हुई हैं जो राजस्थानी शैली की पहचान हैं
आजकल तो दिल्ली जैसे शहरो में मैरिज होम को बिलकुल ऐसा बना देते हैं जैसे कोई पुराना राजस्थान का शहर हो और उन पर ये बालकनी या बाहर का छतरी के साथ् निकले हुए झरोखे बना देते हैं । अभी भी इस महल में तीन तीन मंजिला भवनो के अवशेष बचे हुए हैं कहीं कहीं उपर जाने के लिये सीढीया हैं तो कहीं पर कुछ भी नही बस लम्बी लम्बी और उंची खडी सरपट दीवारे शेष हैं इन्हे देखकर मुझे अपनी घर की लखोरी ईंटो की याद आ गई । मेरा कस्बा बहुत ऐतिहासिक है और वहां आज भी पुरानी लखोरी ईटो के बने मकान हैं जिनकी ल0 और चौडाई एक साबुन की टिकिया से ज्यादा नही होती । पहले पुराने जमाने में गारा मिटटी से चिनाई होती थी और कम से कम दो फुट और उससे ज्यादा चौडी दीवारे बनाई जाती थी जिनमें लाखो से कम ईंट तो लगती ही नही थी सो इनका नाम लखोरी पड गया । ऐसा ही मुझे राजस्थान को देखकर याद आता है कि यहां पर जो जमीन में से पत्थर निकलते हैं उन्ही की बहुत मोटी मोटी दीवारे बनी हुई हैं । हालांकि आजकल हर चीज ने बहुत तरक्की कर ली है और आज का आदमी किसी भी तरह की बारीक से बारीक तकनीक और डिजाइन की इमारत बना सकता है पर पुराने जमाने को देखकर कभी कभी तो उनकी तकनीक का लोहा बडे बडे इ्ंजीनियर भी मानते हैं
यहां लवी को अचानक उल्टी हो गई क्योंकि रात में पूरी नींद तो ले नही पाये थे और दोपहर में काफी गर्मी में खाना खाते ही गाडी में बैठकर चल दिये तो शायद उसको खाना ठीक से हजम नही हुआ । लेकिन उल्टी होने के थोडी देर बाद वो नार्मल हो गयी और फिर से घूमना शुरू कर दिया । कुंभा महल को आप लोग तस्वीरो में देखिये इसी के पीछे एक मैदान से में लाइट एवं साउंड शो होता है तो कुछ बैंच वहां पडी हुई हैं । इसके बाद हम गाडी में बैठकर विजय स्तम्भ पहुंचे । ये महाराणा कुंभा द्धारा विजय की स्मृति में बनवाया गया था और कई मंजिला है एक बारीक सा जीना घूमते घूमते चढता है और उपर से किले का बडा अच्छा नजारा दिखता है पर अफसोस कि वहां से फोटो नही ले पाते हैं जो लेते भी हैं उनमें जाली आ जाती है जो बढिया नही लगती । कुंभा महल से भी दुर्ग का अच्छा नजारा दिखाई देता है एक जगह नीचे को उतरकर छोटा सा तालाब जैसा है जिसमें पानी भरा है । काफी सीढिया नीचे उतरकर नीचे जाना पडता है । इसे कहते हैं गौमुख । यहां गाय के जैसा मुंह बना हुआ है और उसमें से जल की धारा बहती रहती है कुछ लोग यहां नहाते भी हैं । और हां यहां मछलिया भी रहती है जिन्हे दाना देने के लिये यहां बेचने वाले बैठे रहते हैं ।
चित्तौड के किले को इतना लाजबाब तरीके से बनाया गया है इसकी जितनी भी तारीफ की जाये कम हैं । हम जब पहली बार गये थे तो एक गाइड जो कि अपने ग्रुप को बता रहा था और हमने भी बिना पैसे के उसका ज्ञान ले लिया था वो बडी मजेदार बात थी । चित्तौडगढ में एक समय में ऐसा बताते हैं कि 80 के करीब जल श्रोत थे उनमें गौमुख जैसे तालाब , कुंड और बावडी थे जिनमें से अब केवल 20 बचे हैं 700 हैक्टेयर में फैले इस किले का 40 प्रतिशत हिस्सा तब केवल जल के लिये था और ये सामान्य मानसून में इतना पानी एकत्र कर लेते थे कि एक साल के लिये पर्याप्त होता था । युद्ध की स्थिति में 50000 सैनिको की सेना दो साल तक पानी की चिंता किये बिना रह सकती थी । तो ये था जल प्रबंधन और किले की स्थापत्य कला का एक नमूना
इसके बाद हम चले गाडी में बैठकर आगे की ओर जहां पदमिनी पैलेस या महल पडता है जो कि किसी जमाने में पानी से घिरा रहता था पर अब पानी तो नही पर गंदगी से घिरा पडा है और राणा और खिलजी के बीच में युद्ध का कारण भी बना । सो हमने गाडी वहां नही रोकी बल्कि गाडी हमने आगे काली मां के मंदिर के पास जाकर रोकी और दर्शन करने गये । मंदिर बहुत सुंदर है पर जब कहीं एक दिन में या एक ही जगह में बहुत सारे मंदिर हो जायें तो फिर मै बोर हो जाता हूं इसलिये प्रत्येक प्रसिद्ध मंदिर में जहां भी मै दर्शन करने गया वहां आसपास में भी बहुत सारे मंदिर बने होते हैं या कहिये कहीं कहीं पर उसी मंदिर परिसर में छोटे छोटे मंदिर तो मुझे व्यक्तिगत तौर पर आनंद नही आता । काली माता का मंदिर भी कुछ सीढिया चढकर है और यहीं के पुराने मंदिरो में से एक था जिसे बाद में कालिका माता के मंदिर का स्वरूप दिया गया
यहां मीराबाई और कुम्भा श्याम मंदिर भी है । म्यूजियम के पास को हमने एक जैन मंदिर भी देखा जो कि बहुत ही सुंदर बनाया हुआ है । जैन धर्म का चित्तौड से नाता रहा है और वर्तमान में किले में जैन धर्म का सबसे बडा मंदिर भगवान श्री आदिनाथ का है उसमें फोटो खींचने को मना था जबकि सारे किले में ज्यादातर मंदिरो में ऐसा नही है । कीर्ति स्तम्भ भी जैन धर्म से संबंधित है और विजय स्त्म्भ जैसा बनाया गया है पर जब हम गये तो उसमें चढने के लिये मना थी सो बाहर से देखकर ही चल दिये चित्तौड में हमारा रूकना तो नही हुआ पर यहां होटलो की कोई कमी नही है हर बजट के होटल यहां मिल जाते हैं आसानी से । आने जाने की बडी सुविधा है राजस्थान परिवहन निगम की बसे बडी अच्छी कंडीशन की होती हैं चित्तौड जब हम पहली बार गये थे तो भीलवाडा से गये थे और दिल्ली से भीलवाडा के लिये हमने प्राइवेट स्लीपर बसे जो दिल्ली से मिलती है को पकडा था ना कोई रिजर्वेशन ना टेंशन और सीधे ट्रेन की तरह सोते हुए जाना
लगभग साढे पांच बज चुके थे हम यहां भी रूक सकते थे और 115 किमी0 के करीब उदयपुर भी जा सकते थे । तो उदयपुर चलकर ही रूकने का निर्णय हुआ और चल दिये उदयपुर की ओर
कुंभा महल के सामने खडी अपनी गाडी |
। राजस्थान में न तो जगह की कमी है और ना अच्छी सडको की । कई कई बार तेा आदमी को देखने को भी तरस जाते हैं । दिखाई देते हैं तो बस रेत के मैदान ,कुछ खेत और जहां भी वो खेत होते हैं उनकी वजह होता है वहां आसपास में पानी का कोई श्रोत कोई छोटा मोटा तालाब या बरसात का जमा पानी । चित्तौड को गढो में गढ कहा जाता है । क्योंकि इस दुर्ग पर अगर कोई चढाई करना चाहता था तो उसे सात दरवाजो से गुजरना पडता था । सात दरवाजे या जिन्हे पोल भी कहा जाता है जिनके नाम अलग अलग हैं मुख्य रास्ते से उदयपुर की ओर को जाते हुए उल्टे हाथ पर किले का रास्ता जाता है । खास बात ये है कि पूरे किले को आप अपने वाहन या टैम्पो करके भी देख सकते हो । इतने विशाल किले में पैदल ज्यादा चलने की जरूरत नही है टैम्पो वाला ले जायेगा तो बढिया पैसे लेगा पर वही गाइड भी बन जायेगा । मै एक बार पहले भीलवाडा की यात्रा के दौरान यहां आया था तब हम भीलवाडा में एक दिन के लिये खाली थे तो मैने अपने मित्र विकास शर्मा के साथ चित्तौड देखने का प्रोग्राम बनाया था और हम काफी देर तक यहां घूमे थे । इस बार मेरे साथ वालो की बजाय मेरी देखी हुई जगह आयी तो गाइड मुझे बनना पडा ।
कुंभा महल की बाहरी दीवारे |
कुंभा महल का एक प्रवेश द्धार |
महाराणा कुम्भा ने अपने समय में काफी महलो और मंदिरो का निर्माण इस किले में करवाया । चित्तौड के किले को अपने लम्बे इतिहास काल में कई बार आक्रमण का शिकार होना पडा । अलाउददीन खिलजी , बहादुर शाह और अकबर के द्धारा तीन बार इस किले पर आक्रमण हुआ और तीनो बार उन युद्धो का अंत पराजय में होने पर इस किले की औरतो ने अपने आपको आग में समर्पित कर दिया जिसे कि जौहर कहा जाता है । ये राजपूताना की आन बान शान का प्रतीक बन गया और आज भी देशी विदेशी लाखो पर्यटक सालाना इस किले को देखने आते है । किस्सो और गाथाओ से भरा पडा है चित्तौड के इस दुर्ग का इतिहास । उसमें सबसे प्रसिद्ध है यहां के जौहर और शाके ।
ये कभी आलीशान इमारते थी |
अब केवल खंडहर हैं |
फोटो खिंचाने के लिये चाहे कोई भी जगह हो |
यहीं पर दिखाते हैं लाइट शो |
किले का एक विहंगम दृश्य |
ये हैं दीवारें |
इनमें कभी रौनके थी |
ये है भव्य नजारा तीन मंजिला इमारतो का |
विजय स्त्म्भ के पास |
किले का एक और दृश्य |
किले से शहर का एक नजारा |
गौमुख कुंड |
एक फोटो हमारा भी |
यहां लंगूर बहुत हैं |
विजय स्तम्भ का पूरा दृश्य |
सूखे पडे पानी के श्रोत |
मनु जी आप अच्छा लिखते हैं पूरा विवरण फोटो के साथ पद कर अपनी यात्रा याद आ जाती है आगे आप उदयपुर जा रहें हैं उसकी भी याद ताजा होगी.
ReplyDeleteसर्वेश जी आपके द्धारा लेख पसंद करने के लिये धन्यवाद
Deleteधन्यवाद वशिष्ठ जी , आपके इन सुंदर शब्दो के लिये
ReplyDeleteVery interesting... मुझे तो बहुत मज़ा आया...लगा जैसे मैंने पूरा राजस्थान घूम लिया... thank you! for sharing this interesting journey to us...!!!
ReplyDeleteधन्यवाद रूनझुन , आप बहुत प्यारे हैं और मुझे तो आपका ब्लाग देखकर ऐसा लगा कि आज तक मैने इसे क्यों नही देखा , असल में मै एक और वेबसाइट पर यही लेख लिखता हूं इसलिये ब्लाग पर ज्यादा सक्रिय नही हूं पर आपकी हिम्मत और लगन की दाद देता हूं .................आज से आपके ब्लाग को नियमित पढा करूंगा
Deleteधन्यवाद सर आपका इस लेख को पसंद करने के लिये और चर्चा मंच पर स्थान देने के लिये आपका आभार ..................मुझे इस मंच के बारे में पता नही था पर आकर अच्छा लगा इसमें खुद के लेख कैसे भेज सकते हैं कृपया बताईयेगा
ReplyDeleteमस्त ब्लॉग लिखा आपने मनु जी। चित्तौड की एक-एक कहानी सुना कर आपने मेरी यात्रा याद दिला दी। अति उत्तम .
ReplyDeleteyour blog is very nice
ReplyDeletediscoverindiatravel
Bahut Khoob... :)
ReplyDeletevery detailed !! The snaps are fabulous !! Manu its always a pleasure coming to your site !!
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