2010 साल गर्मियो की यात्रा है । स्कूल की छुटिटयो में सभी का मन घूमने के लिये करता है और प्रोग्राम पहले ही बनने शुरू हो जाते हैं । जो पहली...
2010 साल गर्मियो की यात्रा है । स्कूल की छुटिटयो में सभी का मन घूमने के लिये करता है और प्रोग्राम पहले ही बनने शुरू हो जाते हैं । जो पहली बार जा रहे हों वे पास के हिल स्टेशन पर जाने के लिये सोचते हैं और जो आसपास से घूमकर बोर हो चुके हों वे लम्बा हाथ मारने की सोचते हैं । हमारा भी कुछ ऐसा ही हाल था । उत्तराखंड में दो चक्कर बाइक पर लगा चुके थे और इस बीच आगरा और नैनीताल तक भी होकर आ चुके थे । बाइक पर 1500 किमी0 तक घूमने के बाद हमारा इरादा लम्बी यात्रा का बन रहा था । इसी बीच एक विज्ञापन देखा जो बस से द्धारिका गुजरात की यात्रा का था और वो 20 दिन की यात्रा थी । गर्मी में बस में 20 दिन तक और 1500 किमी0 का एक ओर से यानि की 3000 किमी0 का सफर कैसे होगा इसे सोचकर ही हमें पसीने आ गये । बस का किराया बहुत सस्ता था कुल 6000 रू एक आदमी का खाने पीने सहित । लेकिन पैसो से ज्यादा सुविधा भी देखनी पडती है । तभी मेरी मुलाकात हमारे कस्बे में रहने वाले एक रिटायर्ड गुरूजी से हुई जो घूमने के बहुत शौकीन हैं और मौके की तलाश में रहते हैं कि कब कहां बढिया सा टूर हाथ लगे । हम लोग पहले से एक दूसरे को जानते तो थे एक कस्बे में रहने के नाते पर कौन कितना घुमक्कड है ये तो कोई नही बता सकता चेहरा देखकर सो उस दिन ऋषिकेश से चलने वाली एक रेल यात्रा का एक पर्चा लिये वो खडे थे एक दुकान पर और उस पर चर्चा चल रही थी । मै भी सामान लेने गया था मुझे पता चला कि घूमने पर चर्चा चल रही है तो फिर क्या था बिना बुलाये हम कूद पडे अखाडे में । मास्टर जी को भी पता चला तो उन्होने भी कुछ तीर मारे और हमने भी अपना तरकस पूरा खाली कर चुके थे । घुमक्कड पूरे बातूनी होते हैं । एक दूसरे के बारे में सब कुछ पता चल चुका था और फिर बारी थी बैठने की । मीटिंगो का दौर शुरू हो गया । मा0 जी से पता चला कि वो एक बार इस बस के टूर से नेपाल तक गये थे और उनके अनुभव बहुत अच्छे नही थे इस बारे में । लगभग 62 वर्ष की उम्र में मा0जी अपनी धर्मपत्नी के साथ में घूमना पसंद करते हैं बिना उनके वो कहीं नही जाते । पर बस में उन्होने बताया कि तीन चार दिन तक बस वाले ने बस लगातार दिन और रात में चलाई । कभी कहीं रास्ते में रोककर खाना खिलवा दिया कभी कही सुला दिया । जवान व्यक्ति तो इस सबको झेल सकते हैं पर वृद्ध व्यक्ति कहां तक झेलेंगे ।
सो मा0 जी का मन बस से टूर पर जाने का नही था पर द्धारका देखने का जरूर था और वो भी ठीक उसी रूट पर जिस तरह बस वाले जा रहे थे । मा0 जी के साथ उस बस में जो कस्बे के अनेको यात्री गये थे उसमें से दो तीन और भी तैयार थे जाने के लिये । उनमें थे एक लाला जी और एक शर्माजी । लाला जी और शर्मा जी ने कह दिया कि हमें अब समय नही है जो तुम लोग तय करोगे हम वैसे ही चल पडेंगे । इसलिये सारा जिम्मा मेरे और मा0 जी के उपर आ गया । जितना भी वक्त मिलता नेट पर रूट और किलोमीटर के साथ साथ घूमने वाली जगह देखने में लगा देता । कई दौर की मंत्रणा के बाद कुछ इस तरह का रूट बना कि अपनी गाडी करते हैं और इस रास्ते में एक ओर से जाना है और एक तरफ से वापिस घूमते हुए आना है । बस वाले ने केवल द्धारिका तक का टूर बनाया था जबकि हमने उसे बढाकर मुम्बई तक का कर लिया था ।रूट कुछ इस तरह से बना कि सबसे पहले दिन हम शाम को घर से चलेंगे और पुष्कर — अजमेर — चित्तौडगढ— उदयपुर —एकलिंग जी — श्रीनाथ् जी —माउंट आबू—अम्बा जी—गांधीनगर—अहमदाबाद —जामनगर—द्धारिका—पोरबंदर—सोमनाथ—दमन व दीव—सिलवासा—मुंबई —पुणे — नासिक—शिरडी—शनि सिंगनापुर—अजंता व एलोरा—उज्जैन—जयपुर—खाटू श्याम —सालासर बालाजी होते हुए वापिस अपने घर तक ।
ये उस वक्त का रफ टूर था । हमने इन सब जगहो का मैप , घूमने की जगहो का विवरण ,आदि के प्रिंटआउट ले लिये थे । हमने ये यात्रा की और इसमें उपर बतायी गयी जगहो में से एक दो जगहे छोडी भी और एक दो जगह अलग से भी देखी । लेकिन 24 दिन की इस यात्रा को हमने सफलता पूर्वक पूरा किया । जब रूट फाइनल हो गया तो बारी थी गाडी करने की । लालाजी की तरफ से गाडी कर ली गई 6 रू किलोमीटर । गाडी थी बोलेरा एक्स एल दस सीटर । दस सीटर इसलिये क्योंकि हम टोटल आठ आदमी हो रहे थे । मै मेरी धर्मपत्नी , मा0जी और उनकी धर्मपत्नी , लालाजी और उनकी धर्मपत्नी और शर्मा जी और उनकी धर्मपत्नी । एक त्यागी एक जाट एक बनिये और एक पंडित । शायद घुमक्कडी इसी का नाम है जहां जात पात धर्म भेदभाव नही देखा जाता । जो आदमी इन चीजो को मानता है वो कभी घूमने नही जा पाता और अगर वो बहुत पैसे वाला है और सबसे दूर रहकर अकेला भी घूम सकता है तो वो घूम तो लेगा पर घुमक्कडी नही कर पायेगा और घुमक्कडी में जो मजा है वो कहीं और नही । घुमक्कड कभी बंधना पसंद नही करता । हम चारो ने अपनी गाडी का जो प्रोग्राम बनाया था वो इसलिये था क्योंकि हम सबको पहले का कडवा तजुर्बा था कि टूर आपरेटर किस तरह मंदे होते हुए भी घुमक्कडी नही करा सकते । घुमक्कड का तो जहां मन करेगा वहीं रूकेगा वहीं देखेगा और टूर आपरेटर तो समय और जगह में बांध लेता है अगर पास में कोई छोटी सी जगह हो और उसे देखने का मन हो तो भी नही देख सकते । मजबूरी की बात अलग है जैसे कि अगर आपके पास बहुत ज्यादा पैसे ना हों जैसे हमारे पास एक लिमिटिड बजट है और घुम्क्कडी करनी हो तो और अकेले जाना हो तो ग्रुप में चलने वाले टूर भी ठीक रह जाते हैं पर जैसा कि हमारे मा0 जी का कहना है कि अपना हुक्का अपनी मरोड पीवे तो पीवे नही तो दे फोड
यानि घुमक्कडी वो जो अपनी मर्जी की हो नही तो घुमक्कडी कहां वो तो पर्यटन हुआ । सो अपनी गाडी कर ली और इसलिये कि जहां चाहेगे रोक लेंगे जो चाहेंगे देख लेंगे और जो चाहेंगे छोड देंगे । व्यय का अनुमान भी लगाना जरूरी था । हमारे 4000 किमी 0 की यात्रा बैठ रही थी पर हमने इसे अनुमानित 5000 किमी0 मान लिया । तो इस हिसाब से 30000 रू गाडी का खर्च आया और फिर हमने 150 रू रोज एक आदमी के हिसाब से अपने देानो का 300 रू रोज के हिसाब सेयानि की 24 दिन का 7200 रू दो व्यक्तियो का खाने पीने और नाश्ते का खर्चा मान लिया । क्योंकि 30 या 40 रू की थाली के हिसाब से और 20 रू नाश्ते के हिसाब से 100 रू तो प्रतिदिन एक आदमी बाहर खाना ही पडता है । फिर और कुछ भी खाने का मन कर जाता है । सो हमने 150 रू माना इसे । इसके बाद हमने होटल का खर्च 300 रू रोज के हिसाब से जोडा तो वही 7000 रू के करीब दो व्यक्तियो का आया और गाडी का 10000 रू
क्योंकि चलने से पहले ऐसा हुआ कि मा0 जी बुजुर्ग थे 60 से उपर के ,लालाजी थे 50 के लपेटे में ,मेरी उम्र ....................बतानी ही पडेगी चलो मेरी उम्र थी दो साल पहले 28 और शर्मा जी मुझसे भी दो साल छोटे । बस यही परेशानी मार गई । गांव कस्बो में अभी भी संस्कार बचे हैं सो शर्मा जी की मम्मी ने कह दिया कि बहू को ले तो जा पर बडो से परदा करना पडेगा । अब ऐसा कैसे लगेगा सो शर्मा जी ने सोचा कि कोई फायदा नही होगा ना ही मजा आयेगा घूमने में सो चार दिन पहले मना हो गई शर्मा जी की तो कि जरूरी काम की वजह से नही जा पायेंगे पंडित जी अकेला चलने को तैयार था पर परिवार वालो के बीच में हम उसे कहां ले जाते खामव्खाह कबाब में हडडी हो जाते । सो अकेले को हमने मना कर दी अब इतनी जल्दी किसी आदमी को तैयार करना 24 दिन के लिये बडा मुश्किल था । सब हमारी तरह निठल्ले थोडे ही होते हैं । एक और विभूषण है घुमक्कडो का 'आवारा' । वो घूमने जायें तो टूर हम घूमें तो आवारा । क्योंकि वो साल में एक बार घूमने जाते हैं वो भी छुटिटयों में और आवारा घुमक्कड तो पता नही कब घूमने चल दें । सो सोच लिया कि चलो 6 लोग ही चलते हैं । बडी गाडी का फायदा होगा अगर लंबे सफर में किसी को आराम करना हो तो पीछे लेट सकता है ।सो हम पर गाडी का खर्च 10000 रू के करीब बैठ रहा था । खाने और ठहरने के मिलाकर 24000 का स्टीमेट था और अगर उपर से कुछ अपना लेना चाहो तो वो अलग । सेा 30000 रू का अनुमानित बजट था एक परिवार के लिये । हुआ तो इससे कम ही था । रूपये मा0 जी ने नकद , मैने और लालाजी ने 10000 के अलावा एटीएम से निकालने का आप्शन रखा था । 24 दिन के लिये अगर जाना हो तो घर पर किसी न किसी को छोडकर जाना पडेगा ही । काम धंधे का भी इंतजाम करके जाना पडेगा । मा0 जी गाय रखते हैं उन्होने बाहर रहने वाले बहू बेटे को बुलाया ,लाला जी की दुकान है उन्होने अपने लडको को जिम्मेदारी दी । हमारी बेटी छोटी है उसे हमने अपनी माताजी के पास छोडा ।ये सब मैने क्यूं लिखा ? क्योंकि इतनी लम्बी यात्रा और वो भी अपने दम पर जहां सब कुछ हमें करना था रास्ता पूछना पडे तो भी क्योंकि कोई ड्राइवर ऐसा नही था जो इतने लम्बे टूर या इन सारे रास्तो पर गया हो पहले कभी । हमारा सारथी कल्लू था । सीधा सादा बिल्कुल ना बोलने वाला , चार बार कहोगे तब वो एक बार बोलेगा वो भी अगर जरूरत पडी तो । रास्ता तो किसी से पूछेगा ही नही बहुत शर्मीला था ना इसलिये । हमें ही पूछना पडता था । पर चालक अच्छा था । 24 दिन की यात्रा थी सेा उस हिसाब से तैयारी भी बहुत ज्यादा करनी थी सो कपडो के बारे में सबसे ज्यादा सोचना पड रहा था । 24 दिन के लिये कितने जोडी कपडे हों —किसी की सोच थी 12 और किसी की 8 जोडी । मा0जी को तो फायदा था वो तो कुर्ता पाजामा पहनते थे सो हल्के फुल्के कपडे थे । हमारी तो जींस भारी थी 8 जींस में ही बैग भर जाना और भारी हो जाना था । बडी मुश्किलो से दो दो बैग मे 6 जोडी कपडे 2 जोडी टी शर्ट और लोअर जो कि बहुत अच्छे सिद्ध हुआ , ले लिये । थ्योरी ये थी कि सबकी मैडम जी साथ हैं तो कपडे तो जहां भी मौका मिलेगा धुल जायेंगे और प्रेस तो सब जगह हो जाती है ।
तो इस तरह सबने अपनी दवाईंया आदि भी रख ली और पानी पीने के लिये दो देा लीटर की मिल्टन की बोतले रख लीं । साथ में टार्च , कपडे सुखाने के लिये नायलोन की रस्सी , और तीन मोटे मोटे डंडे ताकि अगर कहीं किसी को डराने या लडना पड जाये तो काम आ जाये या किसी जानवर आदि को डराने के लिये । और हां खाने के लिये मठरी,सूखे मेवे ,नमकीन और बिस्कुट के पैकेट जो भी दिमाग में आया रख लिया । एक मित्र से कैमरा भी मांग लिया । उस वक्त इतना बजट नही था कि अपना ले पाते कुछ यात्रा का बजट हाई हो रहा था । ऐसी बात नही कभी कभी कोई सामान मांग भी लेना चाहिये उसका भी अपना मजा होता है । हमारे मित्र आज भी किसी को बता देते हैं कि जितना आज तक मै नही घूमा उससे ज्यादा तो मेरा कैमरा घूम आया है । वैसे इस पोस्ट में कोई फोटो की जगह तो निकलती नही पर जैसे हिंदी फिल्म में गाने के बिना पिक्चर नही चलती ऐसे ही सांग नही आइटम सांग की तरह आपके लिये कुछ झलकियां डाल दी हैं इस यात्रा की ।ये लेख लिखने का मकसद एक लम्बी यात्रा की तैयारी पर आपका ध्यान दिलाने के साथ साथ ही इस यात्रा को लिखने की शुरूआत करना भी है । तो चलते हैं घर से अगले लेख में और सबसे पहले पुष्कर राजस्थान में ....................
हमारे सारथी कल्लू जिन्हे हमने बिना कल्लू महाराज के बोला नही माउंट आबू में |
सो मा0 जी का मन बस से टूर पर जाने का नही था पर द्धारका देखने का जरूर था और वो भी ठीक उसी रूट पर जिस तरह बस वाले जा रहे थे । मा0 जी के साथ उस बस में जो कस्बे के अनेको यात्री गये थे उसमें से दो तीन और भी तैयार थे जाने के लिये । उनमें थे एक लाला जी और एक शर्माजी । लाला जी और शर्मा जी ने कह दिया कि हमें अब समय नही है जो तुम लोग तय करोगे हम वैसे ही चल पडेंगे । इसलिये सारा जिम्मा मेरे और मा0 जी के उपर आ गया । जितना भी वक्त मिलता नेट पर रूट और किलोमीटर के साथ साथ घूमने वाली जगह देखने में लगा देता । कई दौर की मंत्रणा के बाद कुछ इस तरह का रूट बना कि अपनी गाडी करते हैं और इस रास्ते में एक ओर से जाना है और एक तरफ से वापिस घूमते हुए आना है । बस वाले ने केवल द्धारिका तक का टूर बनाया था जबकि हमने उसे बढाकर मुम्बई तक का कर लिया था ।रूट कुछ इस तरह से बना कि सबसे पहले दिन हम शाम को घर से चलेंगे और पुष्कर — अजमेर — चित्तौडगढ— उदयपुर —एकलिंग जी — श्रीनाथ् जी —माउंट आबू—अम्बा जी—गांधीनगर—अहमदाबाद —जामनगर—द्धारिका—पोरबंदर—सोमनाथ—दमन व दीव—सिलवासा—मुंबई —पुणे — नासिक—शिरडी—शनि सिंगनापुर—अजंता व एलोरा—उज्जैन—जयपुर—खाटू श्याम —सालासर बालाजी होते हुए वापिस अपने घर तक ।
गाडी में पर माफ कीजियेगा समय सही है तिथि गलत है मुझे पता नही था कि ये फोटो पर आयेंगी |
ये उस वक्त का रफ टूर था । हमने इन सब जगहो का मैप , घूमने की जगहो का विवरण ,आदि के प्रिंटआउट ले लिये थे । हमने ये यात्रा की और इसमें उपर बतायी गयी जगहो में से एक दो जगहे छोडी भी और एक दो जगह अलग से भी देखी । लेकिन 24 दिन की इस यात्रा को हमने सफलता पूर्वक पूरा किया । जब रूट फाइनल हो गया तो बारी थी गाडी करने की । लालाजी की तरफ से गाडी कर ली गई 6 रू किलोमीटर । गाडी थी बोलेरा एक्स एल दस सीटर । दस सीटर इसलिये क्योंकि हम टोटल आठ आदमी हो रहे थे । मै मेरी धर्मपत्नी , मा0जी और उनकी धर्मपत्नी , लालाजी और उनकी धर्मपत्नी और शर्मा जी और उनकी धर्मपत्नी । एक त्यागी एक जाट एक बनिये और एक पंडित । शायद घुमक्कडी इसी का नाम है जहां जात पात धर्म भेदभाव नही देखा जाता । जो आदमी इन चीजो को मानता है वो कभी घूमने नही जा पाता और अगर वो बहुत पैसे वाला है और सबसे दूर रहकर अकेला भी घूम सकता है तो वो घूम तो लेगा पर घुमक्कडी नही कर पायेगा और घुमक्कडी में जो मजा है वो कहीं और नही । घुमक्कड कभी बंधना पसंद नही करता । हम चारो ने अपनी गाडी का जो प्रोग्राम बनाया था वो इसलिये था क्योंकि हम सबको पहले का कडवा तजुर्बा था कि टूर आपरेटर किस तरह मंदे होते हुए भी घुमक्कडी नही करा सकते । घुमक्कड का तो जहां मन करेगा वहीं रूकेगा वहीं देखेगा और टूर आपरेटर तो समय और जगह में बांध लेता है अगर पास में कोई छोटी सी जगह हो और उसे देखने का मन हो तो भी नही देख सकते । मजबूरी की बात अलग है जैसे कि अगर आपके पास बहुत ज्यादा पैसे ना हों जैसे हमारे पास एक लिमिटिड बजट है और घुम्क्कडी करनी हो तो और अकेले जाना हो तो ग्रुप में चलने वाले टूर भी ठीक रह जाते हैं पर जैसा कि हमारे मा0 जी का कहना है कि अपना हुक्का अपनी मरोड पीवे तो पीवे नही तो दे फोड
माउंट आबू का एक नजारा , राजस्थानी ड्रेस में फोटो खिंचवाती एक युवती |
यानि घुमक्कडी वो जो अपनी मर्जी की हो नही तो घुमक्कडी कहां वो तो पर्यटन हुआ । सो अपनी गाडी कर ली और इसलिये कि जहां चाहेगे रोक लेंगे जो चाहेंगे देख लेंगे और जो चाहेंगे छोड देंगे । व्यय का अनुमान भी लगाना जरूरी था । हमारे 4000 किमी 0 की यात्रा बैठ रही थी पर हमने इसे अनुमानित 5000 किमी0 मान लिया । तो इस हिसाब से 30000 रू गाडी का खर्च आया और फिर हमने 150 रू रोज एक आदमी के हिसाब से अपने देानो का 300 रू रोज के हिसाब सेयानि की 24 दिन का 7200 रू दो व्यक्तियो का खाने पीने और नाश्ते का खर्चा मान लिया । क्योंकि 30 या 40 रू की थाली के हिसाब से और 20 रू नाश्ते के हिसाब से 100 रू तो प्रतिदिन एक आदमी बाहर खाना ही पडता है । फिर और कुछ भी खाने का मन कर जाता है । सो हमने 150 रू माना इसे । इसके बाद हमने होटल का खर्च 300 रू रोज के हिसाब से जोडा तो वही 7000 रू के करीब दो व्यक्तियो का आया और गाडी का 10000 रू
अपनी गाडी हो तो छांव में खडी करते हैं । सिलवासा में |
क्योंकि चलने से पहले ऐसा हुआ कि मा0 जी बुजुर्ग थे 60 से उपर के ,लालाजी थे 50 के लपेटे में ,मेरी उम्र ....................बतानी ही पडेगी चलो मेरी उम्र थी दो साल पहले 28 और शर्मा जी मुझसे भी दो साल छोटे । बस यही परेशानी मार गई । गांव कस्बो में अभी भी संस्कार बचे हैं सो शर्मा जी की मम्मी ने कह दिया कि बहू को ले तो जा पर बडो से परदा करना पडेगा । अब ऐसा कैसे लगेगा सो शर्मा जी ने सोचा कि कोई फायदा नही होगा ना ही मजा आयेगा घूमने में सो चार दिन पहले मना हो गई शर्मा जी की तो कि जरूरी काम की वजह से नही जा पायेंगे पंडित जी अकेला चलने को तैयार था पर परिवार वालो के बीच में हम उसे कहां ले जाते खामव्खाह कबाब में हडडी हो जाते । सो अकेले को हमने मना कर दी अब इतनी जल्दी किसी आदमी को तैयार करना 24 दिन के लिये बडा मुश्किल था । सब हमारी तरह निठल्ले थोडे ही होते हैं । एक और विभूषण है घुमक्कडो का 'आवारा' । वो घूमने जायें तो टूर हम घूमें तो आवारा । क्योंकि वो साल में एक बार घूमने जाते हैं वो भी छुटिटयों में और आवारा घुमक्कड तो पता नही कब घूमने चल दें । सो सोच लिया कि चलो 6 लोग ही चलते हैं । बडी गाडी का फायदा होगा अगर लंबे सफर में किसी को आराम करना हो तो पीछे लेट सकता है ।सो हम पर गाडी का खर्च 10000 रू के करीब बैठ रहा था । खाने और ठहरने के मिलाकर 24000 का स्टीमेट था और अगर उपर से कुछ अपना लेना चाहो तो वो अलग । सेा 30000 रू का अनुमानित बजट था एक परिवार के लिये । हुआ तो इससे कम ही था । रूपये मा0 जी ने नकद , मैने और लालाजी ने 10000 के अलावा एटीएम से निकालने का आप्शन रखा था । 24 दिन के लिये अगर जाना हो तो घर पर किसी न किसी को छोडकर जाना पडेगा ही । काम धंधे का भी इंतजाम करके जाना पडेगा । मा0 जी गाय रखते हैं उन्होने बाहर रहने वाले बहू बेटे को बुलाया ,लाला जी की दुकान है उन्होने अपने लडको को जिम्मेदारी दी । हमारी बेटी छोटी है उसे हमने अपनी माताजी के पास छोडा ।ये सब मैने क्यूं लिखा ? क्योंकि इतनी लम्बी यात्रा और वो भी अपने दम पर जहां सब कुछ हमें करना था रास्ता पूछना पडे तो भी क्योंकि कोई ड्राइवर ऐसा नही था जो इतने लम्बे टूर या इन सारे रास्तो पर गया हो पहले कभी । हमारा सारथी कल्लू था । सीधा सादा बिल्कुल ना बोलने वाला , चार बार कहोगे तब वो एक बार बोलेगा वो भी अगर जरूरत पडी तो । रास्ता तो किसी से पूछेगा ही नही बहुत शर्मीला था ना इसलिये । हमें ही पूछना पडता था । पर चालक अच्छा था । 24 दिन की यात्रा थी सेा उस हिसाब से तैयारी भी बहुत ज्यादा करनी थी सो कपडो के बारे में सबसे ज्यादा सोचना पड रहा था । 24 दिन के लिये कितने जोडी कपडे हों —किसी की सोच थी 12 और किसी की 8 जोडी । मा0जी को तो फायदा था वो तो कुर्ता पाजामा पहनते थे सो हल्के फुल्के कपडे थे । हमारी तो जींस भारी थी 8 जींस में ही बैग भर जाना और भारी हो जाना था । बडी मुश्किलो से दो दो बैग मे 6 जोडी कपडे 2 जोडी टी शर्ट और लोअर जो कि बहुत अच्छे सिद्ध हुआ , ले लिये । थ्योरी ये थी कि सबकी मैडम जी साथ हैं तो कपडे तो जहां भी मौका मिलेगा धुल जायेंगे और प्रेस तो सब जगह हो जाती है ।
इन्हे देखकर तो एक बार को हम भी चौंक गये थे । अजन्ता के पास |
तो इस तरह सबने अपनी दवाईंया आदि भी रख ली और पानी पीने के लिये दो देा लीटर की मिल्टन की बोतले रख लीं । साथ में टार्च , कपडे सुखाने के लिये नायलोन की रस्सी , और तीन मोटे मोटे डंडे ताकि अगर कहीं किसी को डराने या लडना पड जाये तो काम आ जाये या किसी जानवर आदि को डराने के लिये । और हां खाने के लिये मठरी,सूखे मेवे ,नमकीन और बिस्कुट के पैकेट जो भी दिमाग में आया रख लिया । एक मित्र से कैमरा भी मांग लिया । उस वक्त इतना बजट नही था कि अपना ले पाते कुछ यात्रा का बजट हाई हो रहा था । ऐसी बात नही कभी कभी कोई सामान मांग भी लेना चाहिये उसका भी अपना मजा होता है । हमारे मित्र आज भी किसी को बता देते हैं कि जितना आज तक मै नही घूमा उससे ज्यादा तो मेरा कैमरा घूम आया है । वैसे इस पोस्ट में कोई फोटो की जगह तो निकलती नही पर जैसे हिंदी फिल्म में गाने के बिना पिक्चर नही चलती ऐसे ही सांग नही आइटम सांग की तरह आपके लिये कुछ झलकियां डाल दी हैं इस यात्रा की ।ये लेख लिखने का मकसद एक लम्बी यात्रा की तैयारी पर आपका ध्यान दिलाने के साथ साथ ही इस यात्रा को लिखने की शुरूआत करना भी है । तो चलते हैं घर से अगले लेख में और सबसे पहले पुष्कर राजस्थान में ....................
एक या दो ही फोटो हैं जिनमें सब साथ में हैं । हमारा ग्रुप |
मुम्बई में |
BAAP RE BAAP BADE BHARI TOUR THA YE TO AGALI KADI POST KARIYE
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