hemkunt sahib gurudwara,हेमकुन्ट साहिब

पिछली पोस्ट कैसे कैसे फूल से आगे ............   घांघरिया में भी एक गुरूद्धारा है जिसमें रहने की सुविधा है पर हमें तो जगह मिली नही क्यों...


पिछली पोस्ट कैसे कैसे फूल से आगे ............


 घांघरिया में भी एक गुरूद्धारा है जिसमें रहने की सुविधा है पर हमें तो जगह मिली नही क्योंकि दिन के बारह बजे के आसपास जो लोग घांघरिया पहुंचते है वे गुरूद्धारा तो जा नही सकते बस वे घांघरिया वाले गुरूद्धारे में डेरा जमा लेते हैं हमारी तरह बाद में आने वालो को तो होटल ही लेना पडता है
यही है वो रास्ते का फोटो । सफेद लकीर सी 


घांघरिया में एक पर्यटक आफिस भी था हम लोग भी ऐसे ही देखने के लिये घुस गये । वहां एक नक्शा लगा था हेमकुन्ट साहिब का और उसके रास्ते का । किसी फोटोग्राफर ने हेमकुन्ट साहिब के सामने वाले पहाड से क्या गजब का फोटो लिया था । 50 रू का फोटा सुनकर लिया ही नही पर हां उसका फोटू जरूर खींच लिया ​। आप भी देख लो कैमरे की रोशनी लगने की वजह से थोडा बढिया नही आया । उस फोटू को देखकर हमारी तो सांसे ही रूक गई । सीधी खडी चढाई 6 किलोमीटर की ।

badrinath yatra -


घोडे पर  अभी तो चारो ही हैं 

 दो साथियो की तो वहीं पर मना हो गई । क्या जरूरत है वहां जाने की । सरदार लोग तो अपने गुरूद्धारे की वजह से जाते हैं हमें क्या करना है । लेकिन मैने समझाया कि भाई रोज रोज ऐसी जगहो पर आना नही होता है । एक बात बताओ क्या तुम दोबारा कभी केवल हेमकुन्ट देखने के लिये 1319 किलोमीटर और दो दिन लगाओगे । आज तो केवल एक दिन लगेगा क्योंकि गुरूद्धारा केवल दो बजे तक ही खुलता है दो बजे अरदास करने के बाद बंद हो जाता है दो बजे के बाद गुरूद्धारे वाली जगह पर आक्सीजन की कमी भी हो जाती है । उसके बाद दो बजे से हम वापिस घांघरिया जा सकते हैं ।अब से जायेंगे तो भी ज्यादा से ज्यादा बद्रीनाथ पहुंच जायेंगे और रात को रूकेंगे अगर शाम को निकले तो तो भी एक घंटे का रास्ता है तब भी पहुंच जायेंगे ।  
यहां पर घोडो से उतारते हैं 

मैने ज्यादा जोर दिया तो सबने मेरी बात मान ली पर इस शर्त के साथ कि पैदल नही चढेंगे घोडे कर लो । मरते क्या न करते पहले 13 किलोमीटर की चढाई फिर 6 किलोमीटर फूलो की घाटी का आना जाना घाटी में भी कई किलोमीटर घूमें थे । उपर से दो दिन का सफर बाइक से करने की वजह और ठंड और बारिश् की वजह से पैर भी अकड रहे थे । घोडो का एक स्टैन्ड सा बना है हेमकुन्ट साहिब के रास्ते पर । हम जब पहुंचे तो ज्यादातर घोडे जा चुके थे क्योंकि कोई भी व्यक्ति सुबह सवेरे गोविन्द घाट से  चलकर गुरूद्धारे नही पहुंच सकता । कुछ लोग तो गोविन्द घाट से रात को ही सफर करते हैं ताकि अगले दिन ही सुबह तक घांघरिया और फिर गुरूद्धारे पहुंच जायें । रास्ते में लाइट की कोई व्यवस्था नही है रात को सफर करने वाले सब अपने साथ टार्च और खाने का सामान गोविन्द घाट से ही लेकर चलते हैं  ।
रास्ते का नजारा । जरा गौर से ​देखियेगा 
 मै तो कायल हो गया उनकी इतनी श्रद्धा देखकर ।ये तो रास्ता भी बर्फ पडने की वजह से खराब हो जाता है तो सरदार लोग जून में यात्रा शुरू होने से पहले मेहनत करके श्रमदान करके रास्ते को सही करते हैं वो इसे कार सेवा कहते हैं ।   सात बर्फ के पहाडो से घिरा हुआ । और उन बर्फ के पहाडो का बर्फ पिघलकर नीचे एक झील में इकठठा होता है जो कि गुरूद्धारे के बराबर में है ताजी ताजी बर्फ का ठंडा ठंडा पानी और सरदार लोग उसमें नहाये बिना बिलकुल नही जाते जी । मेरी तो रूह भी कांप गई थी । वहां की ठंड की क्या हालत थी 
नजदीक आने वाला है गुरूद्धारा 
बादलो के पार........................

चलो फोटू हो जाये पवित्र गुरूद्धारे के सामने

देख लो जी मौसम

काफी लोग इतनी ठंड में भी नहाते हैं
 उनकी श्रद्धा का कारण है इस जगह की ऐतिहासिक महत्ता यहां पर जो गुरूद्धारा बना है उसी का नाम श्री हेमकुन्ट साहिब जी है  सिखो के दसवे गुरू श्री गोविन्द सिंह जी ने यहां कुछ समय तक मेडिटेशन यानि तपस्या की थी ।  वैसे ​इसका सही नाम कुछ लोगो ने बताया हेमकुन्ड जिसका मतलब हुआ हिम का बर्फ और कुन्ड मतलब एक गढढा तो बर्फ का कुन्ड । और बिलकुल ऐसी ही है ये जगह  जो लोग रात को सफर नही करते उन्हे दो दिन लगते हैं दर्शन करने को क्योंकि कितनी भी सवेरे चलें गोविन्दघाट से घांघरिया तक पहुंचने में इतना वक्त लग जाता है कि तब तक दो बज जाते हैं । इसलिये उस दिन और रातघांघरिया में रूककर अगली सुबह सवेरे अंधेरे अंधेरे ही लोग गुरूद्धारे के लिये चल देते हैं ।
ये जो पीला फूल है यही ब्रहकमल है।
 हमें जो घोडे मिले वे तो सुबह से एक चक्कर लगा कर भी आये थे । घोडे से 6 किलोमीटर जाने में डेढ दो घंटे लगते हैं । पर मेरी सोच ये है कि हमने गलती की । रास्ते में वो काम हुआ जिसकी उम्मीद नही थी । खडी चढाई और पगडन्डी का रास्ता । जानवर जानवर ही होता है   उसके मुडने चढने पर आप कितना कंट्रोल लगा सकते हैं । दो घोडे तो हमें ठीक ठाक से मिले पर आशु और अंकित के घोडे या खच्चर जो भी थे बहुत हल्के ​थे । रास्ते में पलट गये दोनो चोट लगने से बचे । उसके बाद वो दोनो घोडे पर नही बैठे  । मौसम वहां अक्सर खराब ही रहता है । उस दिन भी बहुत खराब था । सर्दी के मारे हालत खराब थी । घोडेवाले भी 6 ​किलोमीटर के रास्ते में 1 ब्रेक लेते हैं । इतनी  खडी और मुश्किल चढाई है वहां की मै तो घोडो की भी हिम्मत मानता हूं ।रास्ता इतना खडा है कि आपको 1100 मी0 लगभग 3500 फिट  की चढाई गोविन्द धाम यानि घांघरिया से 6 किलोमीटर में चढनी पडती है अब आप अन्दाजा लगा लो 
ये देखो झकास ओरिजनल फोटो  भुलाये नही भूलेगा ये नजारा

  कई कई साल के घोडे के छोटे बच्चे खाली साथ में आते जाते हैं ट्रेन्ड होने के लिये फिर उन पर सामान ढोया जाता है उसके बाद आदमियो के बैठने के लिये वो तैयार होते हैं रास्ते में हमें बहुत सारे ब्रहकमल के फूल मिले और बर्फ की जमी हुई नदी भी । जिसे हेमकुन्ट ग्लेशियर भी कहते हैं 
जिसका सब रूककर और घोडो से उतर उतरकर एंजोय कर रहे थे । हम भी उतरे थोडा बहुत फिसले भी एक दो फोटो खिचाऐ और फिर चल पडे । गुरूद्धारे पहुंचने पर घोडे वाले ने एक जगह हमें उतार दिया और बोला कि जाओ और एक घंटे में आ जाना । सब घोडे वाले वही पर इकठठा थे हमने पूछा हम तुम्हे मिलेंगे कैसे वो बोले बाबूजी आपको जरूरत नही पडेगी हम खुद आपको देख लेंगे ।

जमी हुई नदी या ग्लेशियर
 गुरूद्धारे पहुंचे तो बेहिसाब ठंड थी । कंपकंपी छूट रही थी क्योंकि हम जुलाई के महीने में गये थे और गर्म कपडे ज्यादा नही ले रहे थे इसलिये सबने जो कपडे बैग में ले रहे ​थे वे भी निकाल निकाल कर पहनने शुरू कर दिये । अंकित और आशु ने तो अपनी रात को ओढने की चादर भी निकाल कर लपेट ली
गुरूद्धारा श्री हेमकुंट साहिब में रूकने की कोई व्यवस्था नही है वहां तो आक्सीजन की कमी हो जाती है कई लोग जिन्हे सांस की समस्या है या कमजोर हैं वे तो पहले से ही आक्सीजन की एक बोतल सी आती है उसे लेकर चलते है । हमें तो जरूरत पडी नही खैर 
वो वादिया वो फजाऐं

फिसलने से बाल बाल बचे फोटो के चक्कर में 
गुरूद्धारा पहुंचे तो रास्ते में मिलती ठंड और कोहरा और भी बढ गया था । विजिबिलटी यानी देखने की सीमा बहुत कम थी । बस सामने खडे आदमी को ही देख पा रहे थे । सबसे पहले देखा सरदार लोग तो कपडे निकाले और लगे डुबकी लगाने । हमारी तो हिम्मत नही हुई । हम तो लगे नजारा देखने । आ हा क्या नजारा था कुछ दिखाई ही नही दे रहा था । हा हा हा हा क्योंकि कोहरा ही इतना घना था । हम भी गुरूद्धारे में गये सिर झुकाया और बाहर आ गये । उसके बाद पास ही में एक मन्दिर बना हुआ है । लक्ष्मण लोकपाल का मन्दिर । जैसा कि हमें वहां बताया गया कि दुनिया का एकमात्र लक्ष्मण लोकपाल का मन्दिर है । राम परिवार के​ मन्दिर तो सारी दुनिया में है लेकिन वहां केवल लक्ष्मण  जी का है । तो उनके भी दर्शन किये और फिर से गुरूद्धारे के पास आये तो असली चीज के दर्शन हुए । जी हां उस वक्त तो ठंड भी थी और भूख भी जोर की लगी थी पर क्या बात है जी गुरूद्धारे वालो की । एकमात्र वही जगह थी जहां बिना पैसे बिना पूछे एक बडा स्टील का गिलास भरकर चाय और कुछ खाने को भी था । मै भूल गया शायद खिचडी या दलिया था । लेकिन अंधे को क्या चाहिये दो आंखे । उस वक्त तो इतना अच्छा प्रसाद था वो कि आज तक उससे अच्छा प्रसाद नही मिला । घूमने को वहां काफी देर तक बैठे कि शायद अब थोडी देर में कोहरा छंट जाये पर एक घंटा वहां रहे पर को​हरा हटा ही नही । मित्रो ने दबाव बनाया कि चलो अब भी चले तो वापिस गोविन्द घाट पहुंचकर बद्रीनाथ जा सकते हैं । तो वापिस घोडा स्टैंड पहुंचे तो देखा हमारे वहां पहुंचत ही हमारे दो घोडे वाले दौडकर आ गये । अबकी बार रास्ते में दो बार घोडा बदला । बीच रास्ते से हम पैदल और आशु और अंकित बैठे । घांघरिया पहुंचने के बाद तुरंत वापिस चलना शुरू कर दिया । वापसी का रास्ता था । चढना जितना मुश्किल था । उतरना हमेशा उतना ही आसान लगता है पर यहीं गलती हो जाती है । अगर आपने भागना शुरू कर दिया तो पैर मुडने या बेकार होने की गुंजाइश ज्यादा रहती है । आशु और अंकित तो आधा घंटा पहले ही गोविन्द घाट पहुंच गये थे । सबसे लेट मै ही था । लेकिन उनकी मेहनत और जल्दी दौडने का कोई फायदा नही हुआ कैसे आगे बताउंगा 







COMMENTS

BLOGGER: 8
  1. बहुत सुंदर यात्रा वृ्ताँत
    लाकर आप दिखाते हो
    हमें भी इससे पता
    चल ही जाता है
    चुपके चुपके कहाँ कहाँ
    हो के चले आते हो !!!

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  2. जीवन खुद इक सफर है, जिसमें है आनन्द।
    मोहक दृश्यों को किया, हमने मन में बन्द।।

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  3. हसीन मौसम ,ये खुबसूरत वादियाँ ,मनभावन नज़ारे ...
    भई वाह मज़ा आ गया ......

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  4. हम भी गए थे यहाँ २००९ सितम्बर में. बहुत ही खूबसूरत लेकिन मुश्किल चढ़ाई. हेमकुंड चढ़ते चढ़ते आंसू निकल आये पर गर्व से कह सकते हैं की गए थे पैदल.

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  5. wow bahut badiya
    http://eyeswantstosee.blogspot.com/

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  6. Bahot badhiya likha hai bandhu. Lagta hai jaise mai khud wahan par he hoon.

    www.bnomadic.wordpress.com

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  7. 2006 में गई थी आज भी याद ताजा है

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  8. नीचे से सवेरे जल्दी चलकर ऊपर हेमकुंड के दर्शन करो वापिस दिन में घगरिया आ सकते हैं

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TravelUFO । Musafir hoon yaaron: hemkunt sahib gurudwara,हेमकुन्ट साहिब
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