लोमा चैकपोस्ट पर हम रूके और उन जवान की पूछताछ की जो हमें मिले थे क्योंकि अब डयूटी बदल गयी थी तो वो महाशय जा चुके थे । अभी लोमा में म...
लोमा चैकपोस्ट पर हम रूके और उन जवान की पूछताछ की जो हमें मिले थे क्योंकि अब डयूटी बदल गयी थी तो वो महाशय जा चुके थे । अभी लोमा में मौसम ठीक था जबकि हनले में ऐसा लग रहा था जैसे बारिश होने वाली थी । लोमा में सिंधु नदी के उपर जाती हुई धूप थी । यहां से आगे ठीक ठाक जगह रूकने के लिये न्योमा थी और उससे आगे 20 किलोमीटर पर माहे गांव । इनमें से जिस जगह में भी रूकने का ठीक इंतजाम मिलेगा वहीं पर रूकना होगा आज का । आज 270 किलोमीटर के करीब अभी तक चल चुके थे और न्येामा तक और भी थोडा चल लेंगें । खाया पिया कुछ नही था सिवाय चाय और बिस्कुटो के । न्योमा तक पहुंचने में भी ज्यादा समय नही लगा क्येांकि रोड ठीक स्थिति में थी । न्योमा के चौराहे पर पहुंचते ही एकमात्र महिला मिली जो सामने ही अपनी दुकान को बंद करके वापस जा रही थी अपने घर ।
हमने उससे रूकने के इंतजाम के बारे में पूछा तो उसने बताया कि ये जिस दुकान को मै करती हूं इसी में गेस्ट हाउस है और उन्होने अपने फोन से उसके मालिक को फोन कर दिया । दस मिनट में मालिक भी अपनी पिकअप गाडी लिये आ गये और कमरे के लिये सौदेबाजी होने लगी । 200 रूपये कमरे के तय हुए और तीन सौ रूपये खाने के । मालिक साहब बुजुर्ग आदमी थे और वे यहीं पर खाना बनायेंगें हमारे लिये । हमने सामान उतारा और कमरे में रख दिया । कमरा काफी बडा था जिसमें चारो कोनो में चार बेड थे । ये कमरे ग्रुप वालो के हिसाब से बनाये गये लगते हैं क्योकिं यहां पर केवल डबल बैड वाली अवधारणा काम नही करती है । कमरो में अटैच बाथरूम तो थे ही नही पर टायलेट भी नही थे । यहां पारम्परिक टायलेट था जो कि मैने आपको पेंगोंग में बताया था । मकान के पीछे की ओर गहराई थी शौच वहीं जाकर गिरेगा । आप में से कुछ को अजीब लग सकता है पर इतने दूरदराज में जहां साल के 5 महीने मुश्किल से बाहर का आदमी दिखता हो वहां पर इन्होने अपने हिसाब से बहुत सही किया हुआ है । खैर गेस्ट हाउस के मालिक ने दाल चावल और रोटियां बनानी शुरू की । हमने यहां पर रूकने का फैसला इसलिये भी किया था क्योंकि हमने पता किया था कि न्योमा में नेटवर्क आता है बीएसएनएल का इसलिये घर पर बात हो सकती थी । लाइट केवल जेनरेटर से 4 घंटे के लिये आती है और इसमें हमने अपने फोन और कैमरा आदि सब लगा दिये थे । रात को ही फिर से किसी बात पर बहस शुरू हो गयी मिश्रा जी से दिन के मामले को लेकर ।
आज पूरा दिन मिश्रा जी से दो तीन बार बहस हो चुकी थी बाइक चलाने और हनले में रूकने को लेकर । असलियत में मै पहले ही बता चुका हूं कि चोट लगने के बाद मिश्रा जी विचलित हो गये थे और घर जाना चाहते थे । मैने उन्हे कारगिल से जाने या फिर लेह पहुंचाने के लिये कह दिया था । लेह पहुंचते पहुंचते वो आगे चलने के लिये कहने लगे तो हम पेंगोंग और चुशुल जो कि हमारा परमिट लिया हुआ था उसी निर्धारित रास्ते पर चल पडे । हम घर से तो 20 दिन के लिये आये थे पर अब बस घर पहुंचने की लगी थी इस बीच जो देखा जा सके उसे देखना था । मै उसी हिसाब से चल रहा था और एक एक दिन ऐसा लग रहा था कि कैसे कट रहा है । अब ये जिद मेरी समझ में नही आ रही थी मिश्रा जी की पर लगता है मिश्रा जी ने दिल पर ले ली थी बात और इस बात पर अड गये थे कि आप हमारी बात नही मानकर हमारी बेइज्जती कर रहे हैं । मुझे ये बहुत अजीब लगा और मैने सोच लिया कि अब इन हालात में साथ चलना संभव नही है जब मन में इतनी खटास आ चुकी हो तो । मैने मिश्रा जी को कहा कि मिश्रा जी कल आप और मै अलग हो जायेंगें । मै आपको नजदीकी बस जहां से भी मिले वहां तक बस में बिठा दूंगा या फिल लेह कहो तो लेह छोड दूंगा क्योंकि यहां से लेह भी ज्यादा दूर नही है पर हम कल एक साथ नही चल पायेंगें । इस बात पर मिश्रा जी ने कुछ भावुक बात कह दी जिससे मुझे अहसास हुआ कि इनके अंदर वही वाली बात है कि जब घूमते घूमते ज्यादा दिन हो जाते हैं तो चिडचिडाहट होने लगती है । उपर से मिश्रा जी की बात मैडम से भी नही हो पायी थी क्योंकि नेटवर्क का नाम तो था पर फोन नही लग रहा था । शादी की सालगिरह भी छूट गयी थी सो थोडे बुझे बुझे से थे मिश्रा जी । बहुत देर चर्चा हुई और सब बाते सही हो गयी । जो मैने गलती की थी उनकी बात ना मानकर मैने उसकी माफी मांगी और उन्होने अपनी बात की जो मुझे बुरी लगी थी और इस तरह हम दोनो सुबह उठने का समय तय करके सो गये । ये भी वादा हुआ कि मिश्रा जी अब से अपने प्रसिद्ध जुमले कि जब मिल रहा है तो क्यों ना लें का ज्यादा व्यहवारिक उपयोग नही करेंगें और सुबह अंकल को गरम पानी के लिये परेेशान नही करेंगें ।
ये बाते ताउम्र ये खटटी मीठी यादे मानस पटल पर अंकित हो जाती हैं । हमेशा याद रहती हैं आज भी मिश्रा जी से बढिया मित्रता है और शायद हमेशा रहेगी ।
खैर सुबह हुई तो हमारे सामने एक और समस्या थी कि आज हमें शी मोरिरी और शी कार जाना था और वहां से लेह मनाली रोड पर निकलना था । हम कारू से पैट्रोल लेकर चले थे पर कारू से पेंगोंग और वहां से चुशुल हनले तक सब एक्सट्रा पैट्रोल बाइक में डल चुका था अब इस रास्ते पर आगे कहीं मिलने वाला नही था इसलिये हमें पैट्रोल तो चाहिये ही होगा । कुछ पैट्रोल हमारा जब बाइक चांग ला पर फिसली तो वहां पर टंकी से और केन से बह गया था इसलिये भी कम हो गया था ।
हमने पहले गेस्ट हाउस मालिक से पूछा और फिर रात वाली महिला जो कि अब दुकान खोल चुकी थी उन्होने भी पैट्रोल रखा हुआ था । यहां पर 80 रूपये की एक बोतल थी जो एक लीटर तो कतई नही थी पर कोई और विकल्प ना होने पर हमने वही डलवा लिया । हमने केवल अपनी टंकी फुल की जो किसी भी हालत में हमारे आज के सफर के लिये पर्याप्त थी और एक बार हम मनाली रोड पर पहुंच जायेंगें तो वहां पर पैट्रोल कहीं ना कहीं मिल जायेगा ।
पैट्रोल डलवाने के बाद नाश्ते की सोची पर मिश्रा जी ने देखा कि महिला नानवेज भी रखे थी और शायद कुछ बना भी रही थी तो उन्होने मना कर दिया । मै भी नही खाता हूं पर इतनी गहराई में नही जाता कि जहां नानवेज बन रहा हो वहां ना खाउं पर मिश्रा जी की बात को देखते हुए हम दोनो ने वहीं पर कोल्ड ड्रिंक और जूस बिस्कुट के साथ पीकर नाश्ता किया और आगे के लिये चल दिये । यहां से माहे पुल करीब 20 किलोमीटर है माहे पुल तक का रास्ता खूबसूरत था और माहे पुल पर पुलिस चौकी पर हमारा परमिट चैक हुआ । माहे पुल ही वो जगह है कि आप अगर मनाली की तरफ से आ रहे हो तो आप शी मोरिरी और शी कार बिना परमिट के देख सकते हो पर हनले या चुशुल जाने के लिये आपको यहां पर परमिट दिखाना पडेगा । कुल मिलाकर पेंगोंग क्षेत्र में मेरक गांव और माहे पुल इस ओर दोनो बार्डर एरिया हैं परमिट के लिये । इसके अलावा आप लददाख का ज्यादातर हिस्सा बिना किसी परमिट के देख सकते हो । अब हमारे परमिट का काम समाप्त हो चुका था । हम उल्टे हाथ पर बना पुल पार करके शी मोरिरी की तरफ चल दिये थे । ये एक संकरी घाटी थी जिसमें छोटी सी जलधारा सडक के साथ साथ चल रही थी । यहां से 12 किलोमीटर दूर सुमदो गांव है । सुमदो या सुमडो मतलब संगम । ये गांव इसलिये खास है क्योंकि यहां से बांये हाथ को शी मोरिरी को रास्ता जाता है तो दांये हाथ को शी कार । शी कार वाला रास्ता मनाली रोड पर निकल जाता है । शी मोरिरी वाले रास्ते पर करजोक के नाम का बोर्ड लगा मिलेगा । करजोक गांव शी मोरिरी झील के किनारे पर बसा हुआ है और वहां पर रूकने खाने का साधन भी है । सुमदो तक तो चढाई हल्की हल्की है पर उसके बाद शी मोरिरी तक ठीक ठाक चढाई है । सुमदो गांव का एक छोटा सा मजरा शी मोरिरी झील वाले रास्ते पर भी है जहां दस बारह घर और एक होटल है । होटल का नाम है एंजाय होटल और यहां पर जरूरी सामान के अलावा टैंट आदि भी मिल जाते हैं किराये पर अगर आपको झील पर कैंप आदि करना है तो । हमने यहां से भी कुछ खाने वगैरा का सामान ले लिया और चलते रहे । शी मोरिरी से पहले एक छोटी झील शी क्यागर आती है । झील छोटी जरूर है पर सुंदरता में कम नही है । शी मोरिरी जाने का रास्ता इस झील के दांये हाथ को झील के किनारे किनारे होकर जाता है । यहां से शी मोरिरी झील के पीछे के बर्फ से ढंके पहाड दिखने शुरू हो गये थे । शी क्यागर से थोडा सा चढाई और और उसके बाद उतराई आ जाती है । पर यहां करीब 5 किलोमीटर पहले इतना खराब रास्ता आया कि पूछो मत । जैसे तैसे इस रास्ते को पार किया तो सामने अपने पूरे विशाल रूप में शी मोरिरी सामने थी ।
Leh laddakh-
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सूर्यास्त के समय दूर से दिखता लोमा ,दांये धूप की तरफ हनले का रास्ता है |
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न्योमा से पहले |
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न्योमा से पहले |
न्योमा में हमारा रात का ठिकाना |
न्योमा में हमारा रात का ठिकाना |
न्योमा |
न्योमा से माहे पुल की तरफ |
जूले , लददाखी में अभिवादन |
माहे पुल से पहले |
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माहे पुल से पहले |
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माहे पुल |
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सुमदो के लिये रास्ता |
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सुमदो गांव , दांये शी कार और बांये शी मोरिरी |
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sumdo village |
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शी मोरिरी जाने वाले रास्ते पर कुछ घर |
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शी मोरिरी का रास्ता |
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शी क्यागर |
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शी क्यागर |
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शी क्यागर |
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शी क्यागर |
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दूर से दिखती शी मोरिरी |
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शी मोरिरी से पहले बेकार रास्ता |
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शी मोरिरी |