तो धनौल्टी और टिहरी से होते हुए हम उत्तरकाशी पहुंचे । शाम हो चुकी थी और हमने दोपहर में कुछ भी नही खाया था मसूरी से नाश्ता जो करके चले तो बस ...
तो धनौल्टी और टिहरी से होते हुए हम उत्तरकाशी पहुंचे । शाम हो चुकी थी और हमने दोपहर में कुछ भी नही खाया था मसूरी से नाश्ता जो करके चले तो बस कहीं कुछ खाया नही । उत्तरकाशी पहुंचकर हमने वहां के बस स्टैंड से केले लिये और चार चार केले खाये ये सोचकर कि अब तो बस गंगोत्री जाकर ही खाना खायेंगे । उत्तरकाशी से फिर से बाइक दौडा दी और मनेरी और भटवारी होते हुए उत्तरकाशी पहुंचे । रास्ते में हरसिल और सुखी तोप नाम की जगहे भी पडती हैं । सुखी तोप से कुछ पहले आशु की बाइक में तेल खत्म हो गया । टैंक पूरा भरवाया था पर 13 लीटर के टैंक इतनी जल्दी खाली कैसे हो गया ये समझ में तब आया जब देखा कि उसकी टंकी का ढक्कन ढीला हो गया था । कोई पेंच वगैरा ऐसा ढीला हो गया था कि जिसकी वजह से ढक्कन काफी ढीला था और पैट्रोल केा अगर खुला मिले तो वो उड जाता है सो तेल उड रहा होगा सुबह से या पता नही कब से पर हमें पता ही नही चला । वो तो शुक्र था कि मेरी बाइक में सात आठ ली0 तेल अभी बचा था उसमें से दो लीटर तेल निकालकर उसकी बाइक में डाला और उसके बाद हमने रास्ते में जगह जगह पूछना शुरू कर दिया कि पैट्रोल कहां मिल सकता है । कई लोगो ने बताया कि या तो सुखी तोप या फिर हर्सिल में ही मिल सकता है और वो भी फौजियो के पास ही मिलेगा बाकी आगे कोई पंप वगैरा नही है । हम सोच रहे थे कि क्यों नही हमने उत्तरकाशी में ध्यान दिया कि तेल कितना है । बजाज बाक्सर काफी पुरानी बाइक थी और उसमें तेल दिखाने वाली मीटर नही होता था ।
KEDARNATH YATRA-
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और ये पतली बारीक सी लकीर जैसी नदी |
उत्तरकाशी आने का रास्ता भी खराब था और उत्तरकाशी से गंगोत्री तक का रास्ता भी कोई ज्यादा अच्छा नही था । जगह जगह बरसात की वजह से गढढे हो चुके थे और खुदा ना खास्ता जब भी कोशिश करने के बावजूद कभी गढढे में पहिया गिर जाता था तो इतना लम्बा सफर करने और आज के दिन तो पूरा दिन बाइक पर बैठे रहने के कारण बडा दर्द महसूस होता था । इस बीच कई जगह पूछा पर पैट्रोल नही मिला तो हमने सोचा कि जो होगा देखा जायेगा और गंगोत्री की ओर चलते गये जब हम गंगोत्री पहुंचे तो अंधेरा हो गया था और कांवड यात्रा होने के कारण डाक कांवड वाली टाटा 407 गाडियो की लाइन की वजह से कई किलोमीटर पहले से जाम लगा था
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मंदिर का एक दृश्य |
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मंदिर के पास दिखती उंचे पहाडो की चोटियां |
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धर्म का झंडा उंचा रहे |
उनके लोगो के अलावा उपर नीचे सारे गेस्ट हाउस में हम अकेले ही थे । चाय पीकर हमने मंदिर जाने की सोची । फ्रेश होने के लिये गये तो क्या कहूं आपसे कि पानी इतना ठंडा था कि हाथ धोना भी मुश्किल था । सोचा कि अब क्या करें फिर उन्ही हलवाईयो की भटटी में पानी गर्म हो रहा था जिसमें से थोडा पानी लेकर हमने हाथ मुंह धो लिये । बाकी लोगो में से ज्यादातर ऐसा ही कर रहे थे । आशु बोला कि मै तो गंगा जी में ही नहाउंगा । सबने मना किया कि भाई पानी बहुत ठंडा है मान जा बोला नही मै तो सात डुबकी लगा सकता हूं । बस चल दिये मंदिर की ओर ---------------
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मंदिर के सामने एक फोटो |
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गंगोत्री का एक नजारा |
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स्नानार्थियो की भीड |
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गंगोत्री का एक और दृश्य |
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एक फोटो जल का , बरसात के कारण मटमैला रंग हो गया है |
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पीछे हैं चीड के पेड और उनके फूल |
मंदिर पहुंचने के रास्ते में कुछ दूर पहुंचने से पहले तक दोनो ओर दुकाने लगी हुई हैं । जिनमें प्रसाद के अलावा गंगाजल लाने के लिये खाली कैन सबसे ज्यादा बिकती हैं । हमने भी यहां से कैन ली और दर्शनो के बाद जब वापिस चले तो इनमें गंगाजल भरकर अपने घर लेकर आये । तो मंदिर पहुंचने पर मंदिर के सामने ही गंगा जी या भगीरथी अपने पूरे वेग में बह रही थी और बरसात होने के कारण पानी का रंग मटमैला था । क्योंकि बरसात में पहाडो की मिटटी भी इसमें घुल जाती है । कांवडियो की भीड तो ज्यादातर गौमुख के लिये प्रस्थान कर चुकी थी और मंदिर में ज्यादा भीड नही थी ।
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ये घाटी तो देखिये |
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पुल से एक नजारा |
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पहाडो की गोद में बसा एक शहर |
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ये नजारा देखिये |
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दूसरी साइड से |
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पीछे गंगोत्री का भी नजारा |
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पुल के नीचे एक फोटो हमारा भी |
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घाटी में प्रवेश करती गंगा |