ज्यादातर लोग यहां प्रवासी पक्षियो को देखने आते हैं और मुख्यत: सारस क्रेन को । शायद सारस क्रेन यहां पर कम संख्या में आते हैं इसलिये उस...
ज्यादातर लोग यहां प्रवासी पक्षियो को देखने आते हैं और मुख्यत: सारस क्रेन को । शायद सारस क्रेन यहां पर कम संख्या में आते हैं इसलिये उस दिन हमें तो दिखा नही और लोग बस यहीं पूछते दिखायी दिये । मंदिर के पास बनी छोटी सी झील के किनारे लोग अपने अस्त्र शस्त्र लिये बैठै थे कि कब यहां पर पक्षी मछली पकडें और उनमें से एक उसे लेकर उडे या फिर दूसरे उन्हे पाने के लिये आपस में भिडें ।
यहां एक बात देखनी मजेदार थी । कई परिवार देखे । पति एसएलआर कैमरा स्टैंड समेत लिये है । पत्नी भी डिजिटल कैमरा लिये है और आठ नौ साल की बेटी टैब या फोन से फोटो खींच रहे हैं । पूरी फैमिली वैकेशन है यहां पर । दोस्तो की भी कमी नही है । लडके लडकियो के अलग अलग ग्रुप हैं ।
गाय , नीलगाय , हिरन और जैकाल की भी यहां पर कमी नही है । भरतपुर पक्षी अभयारण्य या भरतपुर बर्ड सैंचुरी को केवलादेव घाना नेशनल पार्क के नाम से भी जाना जाता है । इस विश्व संरक्षित स्थलो में भी गिना गया है । इस पार्क का एरिया 29 वर्ग किलोमीटर है । 300 से ज्यादा चिडियो की प्रजाति ,मछलियो , सांपो , कछुओ और जाने कितने प्रकार के पशु पक्षियो की प्रजाति यहां पर पाई जाती है । लाखो पक्षी यहां पर सर्दियो में विदेशो से प्रवास करने के लिये आते हैं । दुर्लभ साईबेरियन क्रेन सारस इनमें सबसे ज्यादा दर्शनीय है ।
जब मै काफी देर तक पर्यटको के आस पास घूम चुका तो फिर कुछ अलग सी जगह जाने के लिये मै कच्चे रास्तो पर मुड गया । यहां पर मै अकेला ही था । कुछ दूर तक मै चलता रहा । इस एरिया में आकर पानी वाले सांप भी मिल जाते हैं । अचानक मौसम खराब होना शुरू हुआ और हल्की हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गयी । इस बूंदाबांदी में दिक्कत तो नही थी पर मै इस रास्ते को छोडना नही चाहता था इसलिये चलता रहा । आगे चलकर मुझे दो साईकिल सवार बंदे और मिले । वे भी कुछ नया देखने के लिये चले जा रहे थे । और वो हमें मिले भी । जैकाल और वो भी बहुत सारे इकठठे होकर रास्ता घेरे खडे थे । तीनो रूक गये और धडाधड फोटो खींचे जाने लगे ।
थोडी देर में पचासो की संख्या में वे बराबर के जंगल में चले गये । उसके बाद हम आगे बढे । अब हम पार्क के एक साइड की अंतिम सीमा पर चल रहे थे । बारिश और थोडी तेज हुई तो हमने साईकिले तेज कर दी क्योंकि यहां सिवाय मंदिर के या कोठी के बारिश से बचने के लिये खडे होने की भी कोई जगह नही है । जब बारिश इतनी तेज हो गयी कि भीगने का डर लगने लगा तो मैने और उन दोनो बंदो ने कैमरा बैग में रखकर एक नहर के किनारे खजूर के पेडो के नीचे रूकने की सोची । हम अभी इतनी दूर थे कि मंदिर या गेट तक पहुंचने में हम पूरे भीग जाते । लेकिन ये रूकना उससे भी बडी गलती थी । खजूर के पेड से चिपके हम एक घंटे तक खडे रहे और यहां भी पानी से नही बच पा रहे थे । बस वो कम गिर रहा था । एक घंटे बाद जब बारिश हल्की हुई तो हम साईकिल लेकर चले तो सौ मीटर भी नही चल पाये । ये कच्चे रास्ते थे और इनकी लाल सी मिटटी साईकिल के पहियो में ऐसे चिपक गयी थी कि पूछो मत ।
Agra Bharatpur yatra series -
उसके बाद वो मिटटी पहियो के और गार्ड के बीच में और चैन कवर में इतनी बुरी तरह अटकी की थोडी थोडी दूर पर हमें किसी लकडी से उसे निकालना पडता । फिर तो इतना बुरा हाल हो गया कि हम साईकिल को किसी बुग्गी की तरह खींचने लगे । बडी मुश्किल से जैसे तैसे पक्के रास्ते पर पहुंचे तो यहां पर पानी का पम्प चला रखा था उसमें साईकिल धोयी और फिर मै तो साईकिल को लेकर वापस गेट पर आ गया क्योंकि भूख बहुत जोर से लगी थी ।
केवलादेव नेशनल पार्क भरतपुर की यात्रा को जारी रखते हुए इसका तीसरा भाग जारी कर रहा हूं । इस भाग में भी कई पक्षी हैं जिनके नाम मै नही जानता । जो जानते हों फोटो क्रमांक से बताने का कष्ट करें ।
इन्होने तो मुंह ही फेरे रखा |
क्या स्टाइल है |
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ये शायद बूढा हो गया है |
keoladeo national park , Bharatpur , rajasthan |
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एक शिकार को लेकर बज गयी |
ये मै लेकर उडा |
देखो मैने पकड लिया |