हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 1397 में एक बार कन्याकुमारी में आये थे । उनकी मृत्यू के बाद उनकी अस्थियां देश की कई नदियो में प्रवाहित की गयी । उनके कई कलश बनाये गये थे । उनमें से एक कलश को यहां पर भी स्थापित किया गया । जिस भवन में ये कलश रखा गया उसका डिजाइन कुछ इस तरह बनाया गया कि ये मंदिर , मस्जिद और चर्च जैसा लगता है । मंदिर के परिसर में भारत माता की प्रतिमा लगायी गयी है जो कि आदम कद है
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विवेकानन्द आश्रम में |
भारत का अंतिम कोना यानि कन्याकुमारी ,पर ऐसे तो कई कोने हैं जो भारत के अंतिम हैं और जहां पर समुद्र भी है । पर तमिलनाडु के दक्षिणी तट पर बसे इस शहर की और भी कई ऐसी बाते हैं जो इसे अन्य कोनेा से अलग करती हैं और एक शानदार दर्शनीय स्थान बनाती हैं । यहां की सबसे पहली और खास बात ये है कि यहां पर तीन समुद्रो का मिलन होता है । हिंद महासागर , बंगाल की खाडी और अरब सागर का मेल स्थान है ये जगह । नीली चादर की तरह बिछा यहां का समुद्र एक अलग ही नजारा पेश करता है । यहां लोग समुद्र में डूबता और उदय होता सूर्य देखने भी आते हैं
खास बात ये भी है कि यहां पर एक ही स्थान से सूर्योदय और सूर्यास्त एक साथ देखा जा सकता है । कन्याकुमारी केरल के काफी नजदीक है । यहां हर साल बीस से 25 लाख पर्यटक पहुंचते हैं
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गांधी मैमारियल |
विवेकानन्द आश्रम
रामेश्वरम से कन्याकुमारी का खूबसूरत रास्ता तय करते हुए जब हम कन्याकुमारी पहुंचे तो ड्राइवर को हिसार वाले मनीराम अंकल ने पहले ही कह दिया कि हमें विवेकानन्द आश्रम उतरना है । उन्होने अपने किसी परिचित से फोन पर बात की और बताया कि हम कन्याकुमारी जा रहे हैं परिचित पहले ही कन्याकुमारी घूमकर गये थे सो उन्होने सबसे पहला सुझाव दिया कि विवेकानन्द आश्रम में ही रूकना और अंकल ने ड्राइवर से पूछा कि आश्रम कहां पर है तो उसने बताया कि बस स्टैंड और शहर से आधा किलोमीटर पहले है । पहले तो हम सोचने लगे कि जहां पर अंकल कह रहे हैं अगर वहां पर कमरा ना मिला तो शहर से आधा किलोमीटर दूर पता नही कोई और भी रूकने का जुगाड मिलेगा या नही । इस बीच बारिश होने लगी थी और हम सब बारिश में ही विवेकानन्द आश्रम के सामने बस से उतर गये । ये रास्ते में मेन रोड पर ही था । बारिश काफी हल्की थी । सो उतरकर गेट में ही एक सिक्योरिटी वाले का जो कमरा सा बना
होता है उसमें अपना सामान रख लिया ।
हमने आश्रम के बारे में पूछा तो सुरक्षाकर्मी ने
बताया कि आश्रम अभी काफी अंदर है और वहां तक जाने के लिये आटो कर लो । लो कर लो बात
हम आश्रम के गेट पर खडे हैं और कह रहे हैं कि आटो कर लो । तब तक हमें ये नही पता था
कि आश्रम इतना बडा है । हमने महिलाओ को सामान के साथ और लालाजी के साथ छोडा और तीन
आदमी पैदल पैदल चलकर आश्रम तक पहुंच गये । काफी बडे आश्रम परिसर में करीब डेढ दौ सेा
मीटर चलकर मुख्य भवन आता है जहां पर रिसेप्शन है । वहां पर हमने रूकने के लिये कमरा
पूछा तो उन्होने बताया कि कमरे मिल जायेंगे लेकिन अभी केवल तीन कमरे ही खाली हैं ।
कमरे का किराया था 45 रू मात्र जी हां इतने बडे आश्रम मे काफी कमरे अलग अलग नाम से ग्रुप में बने हुए थे जैसे कि अलग अलग नाम से अलग अलग तरह के मकान हाउसिंग कम्पनियां बनाती हैं । हमें जिस ग्रुप के कमरो में रहने को मिला था वो इसी रेट में थे वैसे एसी वाले कमरो का रेट सौ रूपये था । और इस रेट में उन्हे कौन छोडने वाला था । हमारे कमरेा में कामन शौचालय और स्नानागार थे जो कमरो के सामने ही थे । वैसे हमारे बराबर में जितने भी कमरे थे वो सब बंद थे सब बाहर गये थे और बहुत खुला माहौल था ।
मै और लालाजी का परिवार एक कमरे में शिफट हो गये क्योंकि एक परिवार अलग तो जा नही सकता था तो हम दोनेा तैयार थे एक साथ रहने को वैसे अगले दिन के लिये उन्होने कह दिया था कि एक कमरा और दे देंगे । यहां पहुंचने के बाद पता चला कि यहां आश्रम से हर आधे घंटे में गाडी आश्रम की निशुल्क सेवा है समंदर के पास तक जाने के लिये । जिस दिन हम यहां पहुंचे उस दिन तो हम कहीं नही गये ।
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गाधी मैमोरियल के अंदर का नजारा |
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गांधी मैमोरियल की गैलरी |
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गांधी मैमोरियल की छत से |
महात्मा गांधी मैमोरियल
हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 1397 में एक बार कन्याकुमारी में आये थे । उनकी मृत्यू के बाद उनकी अस्थियां देश की कई नदियो में प्रवाहित की गयी । उनके कई कलश बनाये गये थे । उनमें से एक कलश को यहां पर भी स्थापित किया गया । जिस भवन में ये कलश रखा गया उसका डिजाइन कुछ इस तरह बनाया गया कि ये मंदिर , मस्जिद और चर्च जैसा लगता है । मंदिर के परिसर में भारत माता की प्रतिमा लगायी गयी है जो कि आदम कद है । इस भवन में जिस चबूतरे पर महात्मा गांधी की अस्थियो का कलश रखा गया था उस पर उपर की ओर एक छेद छोड दिया गया । साल में सिर्फ एक बार यानि की 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी के जन्म दिन पर सूर्य की किरणे उनके जन्म दिन के समय 12 बजकर 20 मिनट पर इस छेद से इस चबूतरे पर गिरती हैं । हम तो उस दिन गये नही थे तो इस नजारे को देख ही नही सकते थे । पर हां इस भवन में उपर जाने के लिये सीढिया बनी हैं जिससे विवेकानन्द राक मैमोरियल
और दूसरी ओर सनसेट प्वांइट और लाइट हाउस समेत कन्याकुमारी के काफी बडे हिस्से का बडा बढिया नजारा दिखता है और यहां से
फोटो भी बढिया आते हैं
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समुद्र का नजारा |
कुमारी देवी का मंदिर
कन्याकुमारी के तट पर ही कुमारी देवी का मंदिर है और इसे देवी के 51 शक्तिपीठो में भी माना जाता है । इस मंदिर में जाने के लिये दक्षिण के अन्य मंदिरो की तरह पुरूषो को शरीर के उपरी हिस्से से कपडे उतारने पडते हैं । मा0 जी तो इस बात को सुनकर गये ही नही । वे इससे पिछले साल अजन्ता एलोरा की गुफाओ के पास के ज्योर्तिलिंग में भी नही गये थे इसी कारण से । ऐसा कहा जाता है कि कुमारी देवी का विवाह ना हो पाने के कारण जो दाल और चावल बच गये वे कंकड के रूप में बदल गये जो आज भी यहां की रेत में दिख जाते हैं ।
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बीच की ओर जाते हुए पीछे है गांधी स्मारक |
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विवेकानन्द आश्रम में मयूर |