हिडिम्बा मंदिर को देखने के बाद हम लोगो ने सीधे रोहतांग दर्रे पर चलने का निश्चय किया और नदी को पार करके रोहतांग की ओर चल पडे ।रोहतांग दर्रा म...
हिडिम्बा मंदिर को देखने के बाद हम लोगो ने सीधे रोहतांग दर्रे पर चलने का निश्चय किया और नदी को पार करके रोहतांग की ओर चल पडे ।रोहतांग दर्रा मनाली से 51 किमी0 दूर समुद्र तल से 4111 मी0 की उंचाई पर स्थित है । यह दर्रा साहसी और ट्रैकिंग के शौकीन लोगो की पसंद है पर एक मुख्य मार्ग लेह लददाख को जाने का रास्ता होने के कारण यहां मोटर मार्ग है इसलिये आम पर्यटक भी यहां बडी आसानी से पहुंच जाते हैं और इसीलिये इसकी लोकप्रियता लगातार बढती जा रही है ।
कुछ फिल्मो की शूटिंग ने भी इसे लोकप्रिय बना दिया है । जब वी मेट फिल्म में करीना कपूर के उपर फिल्माये गाने ये इश्क हाय बैठे बिठाये ने इसकी लोकप्रियता और सुंदरता में चार चांद लगा दिये हैं । इस फिल्म में करीना कपूर खुली जीप में जब बर्फ से दोनेा ओर से ढके और बीच में बने रास्ते से निकलती है तो काफी सुंदर लगती है । आप लोग ये मत समझना कि मै करीना कपूर की तारीफ कर रहा हूं बल्कि मै तो उस दृश्य की तारीफ कर रहा हूं जो यहां फिल्माया गया है ।
यहां का तापमान गर्मियो में भी काफी ठंडा रहता है । जून से नवम्बर के बीच लाहौल घाटी से यहां पहुंचा जा सकता है । यहां से कुछ दूर सोनपानी ग्लेशियर है और इस दर्रे के पश्चिम में दसोहर नामक एक खूबसूरत झील है जहां हम नही जा पाये पर कभी मौका लगेगा तो जरूर जायेंगे । मनाली से रोहतांग दर्रे के जाने के रास्ते में काफी सुंदर नजारे हैं । हमने सोचा था कि 51 किमी का रास्ता मैदानी इलाको में लगभग 1 घंटे का होता है तो यहां पर 2 घंटे में तय हो जायेगा । ज्यादा हुआ तो तीन घंटे जाने के और तीन घ्ंटे आने के पर ये हमारी भूल थी ।
रास्ता इतना दुर्गम तो है ही साथ ही इस रास्ते की स्थिति तो हमारे गांवो के रास्ते से भी बदतर थी । सडक कहां है ये तो पता ही नही चल रहा था । चढाई के रास्ते में दुकाने लगी थी जहां पर उपर पहनने के लिये कपडे और जूते मिलते हैं । हम लोग गर्मियो के सीजन में गये थे और मैदानी इलाके से थे इसलिये हम ये मान ही नही रहे थे कि इतनी भी ठंड हो सकती है जो गर्मी में हमें ठंड को मानने पर मजबूर कर दे। गाडी की स्पीड दूसरे गियर से आगे नही बढी पूरे रास्ते । रास्ते में थोडा उपर जाने पर नीचे की घाटी का सुंदर नजारा दिखता और उपर की ओर देखो तो बर्फ से ढकी चोटियां । मन कर रहा था कि बस हम जल्दी से जल्दी उस बर्फ की चोटी तक पहुंच जायें । पर जितना हम जल्दी सोच रहे थे उतनी ही देर हो रही थी क्योंकि जगह जगह जाम लग जाता था और गाडिया रोककर लोग उस जाम का भी लुत्फ उठाने लगते थे । जैसे ही कहीं जाम लगता लोग गाडिया रूकते ही बाहर निकलते और कैमरो की लाइटे चमकने लगती ।
इस पूरी यात्रा में सिर्फ यहीं पर मैने अपनी गाडी जो कि काले रंग की बोलेरो थी का भी फोटो लिया जो आप देखेंगे । रास्ते में कुछ दूर तक तो चाय और मैगी मिली उसके बाद आधे रास्ते में जाकर एक जगह आयी जहां पर चार पांच होटल वगैरा थे जिन पर खाना मिल रहा था । इसके बाद रोहतांग तक कोई होटल या खाना वगैरा नही था । और यहां खाना तो खाना चाय पीना भी बडा मुश्किल था वो भी 15 रू की थी । हम ये सोचकर नही चले थे कि खाना नही होगा आगे पर हमारी गाडी में सेब की पेटी रखी थी और बच्चो को कहने की जरूरत नही थी कि कब खाओ । रोहतांग जाने और आने में एक पेटी सेब खाये गये थे ।
रास्ते में जाम की वजह रास्ते का बनना भी था । जगह जगह मजदूर लगे थे और मशीने । रास्ते को चौडा किया जा रहा था और इसलिये जगह जगह जाम लग जाता था । आर्मी की गाडिया तेा जब निकलती तो 40—50 एक साथ निकलती थी । पर रास्ता इतना खराब हो चुका था कि एक जगह तो हमारी गाडी का फटटा ही टूट गया । वो तो शुक्र था कि ड्राइवर ने बताया कि इसमे दो होते हैं इसलिये मै धीरे धीरे ले जाउंगा जैसे जैसे हम उपर की ओर जा रहे थे वैसे वैसे ठंड बढती जा रही थी ।
वैसे मजे की बात ये थी कि चटकीली धूप निकली हुई थी पर धूप का तो जैसे ना तो कोई असर था और ना ही कुछ फर्क पडता था । ठंड ऐसी थी कि आधे रास्ते के बाद तो बच्चो और महिलाओ ने गाडी से बाहर जाम मे भी निकलने को मना कर दिया और गाडी के शीशे चढा लिये । जाम का फायदा कुछ और लोग भी उठा रहे थे जो कि जहां भी जाम लगता वहीं पर केसर और शिलाजीत बेचने पहुंच जाते । जाम में फंसे लोगो को फोटो खींचने के अलावा एक और काम मिल जाता । फिर सौदेबाजी होने लगती और भीड जमा हो जाती । कुछ लोग खरीद पाते और कुछ के खरीदने से पहले ही जाम में लगी गाडिया चलने लगती और लोग उन्हे छोडकर अपनी गाडी की ओर भाग पडते और वे केसर बेचने वाले गाडी के साथ साथ अपना बाकी बचा सौदा पूरा करने के लिये
पांच घंटे लगे हमें रोहतांग तक पहुंचने मे और वहां जाकर देखा कि गाडिया तो लेह जाने वाले मुख्य मार्ग पर ही खडी हो गयी हैं और अब घोडे वाले कह रहे हैं कि इससे उपर जाने के लिये घोडो पर जाना पडेगा । हमने एक दो बंदे जो वापिस आ रहे थे उनसे पूछा तो उन्होने बताया कि उपर मामूली एक दो फीट बर्फ है जो जमी है जहां पर ये घोडे वाले ले जा रहे हैं वो भी ठोस बर्फ है । जो मजा ताजी बर्फ में आता है वो वहां नही है । शाम होने वाली थी और जितने समय मे हम आये थे अगर उतने ही समय में जाना हो तो अंधेरा होना तय था । सुबह मंडी से मनाली और मनाली भ्रमण उसके बाद रोहतांग तक का ये सफर , सब थक चुके थे और पास में दिखाई दे रही बर्फ को देखकर ही उनका मन भर गया । किसी ने भी हामी नही भरी उपर चढने के लिये और वापिस चल दिये । इस बार एक तो उतराई थी और दूसरा जाम भी कम मिला इसलिये 3 घंटे से कुछ ज्यादा समय में हम लोग मनाली पहुंच गये और मनाली के मेन चौक से बाहर निकलकर हमने एक होटल में 2 कमरे लिये 300 रू प्रति कमरे के हिसाब से क्योंकि इन दूर के होटलो में केवल अपनी गाडी वाले ही आ पाते हैं । यहां मनाली में होटल दिखाने के लिये लडके बाइक पर मिलते हैं जो आपकी गाडी के साथ साथ चलकर आपको कमरा दिखाते हैं । काफी थकान के कारण पडते ही सबको नींद आ गयी पर रोहतांग के वो नजारे आंखो में सपनो में आ रहे थे और आज तक भी आते हैं । अगले दिन हमें देवी दर्शनो के लिये निकलना था सो सवेर उठने की तैयारी करने लगे अगले भाग में पढिये बैजनाथ मंदिर के साथ साथ ज्वाला देवी, कांगडा देवी एवं चिंतपूर्णी देवी की यात्रा वो भी एक साथ एक पोस्ट में धन्यवादकुछ फिल्मो की शूटिंग ने भी इसे लोकप्रिय बना दिया है । जब वी मेट फिल्म में करीना कपूर के उपर फिल्माये गाने ये इश्क हाय बैठे बिठाये ने इसकी लोकप्रियता और सुंदरता में चार चांद लगा दिये हैं । इस फिल्म में करीना कपूर खुली जीप में जब बर्फ से दोनेा ओर से ढके और बीच में बने रास्ते से निकलती है तो काफी सुंदर लगती है । आप लोग ये मत समझना कि मै करीना कपूर की तारीफ कर रहा हूं बल्कि मै तो उस दृश्य की तारीफ कर रहा हूं जो यहां फिल्माया गया है ।
यहां का तापमान गर्मियो में भी काफी ठंडा रहता है । जून से नवम्बर के बीच लाहौल घाटी से यहां पहुंचा जा सकता है । यहां से कुछ दूर सोनपानी ग्लेशियर है और इस दर्रे के पश्चिम में दसोहर नामक एक खूबसूरत झील है जहां हम नही जा पाये पर कभी मौका लगेगा तो जरूर जायेंगे । मनाली से रोहतांग दर्रे के जाने के रास्ते में काफी सुंदर नजारे हैं । हमने सोचा था कि 51 किमी का रास्ता मैदानी इलाको में लगभग 1 घंटे का होता है तो यहां पर 2 घंटे में तय हो जायेगा । ज्यादा हुआ तो तीन घंटे जाने के और तीन घ्ंटे आने के पर ये हमारी भूल थी ।
रास्ता इतना दुर्गम तो है ही साथ ही इस रास्ते की स्थिति तो हमारे गांवो के रास्ते से भी बदतर थी । सडक कहां है ये तो पता ही नही चल रहा था । चढाई के रास्ते में दुकाने लगी थी जहां पर उपर पहनने के लिये कपडे और जूते मिलते हैं । हम लोग गर्मियो के सीजन में गये थे और मैदानी इलाके से थे इसलिये हम ये मान ही नही रहे थे कि इतनी भी ठंड हो सकती है जो गर्मी में हमें ठंड को मानने पर मजबूर कर दे। गाडी की स्पीड दूसरे गियर से आगे नही बढी पूरे रास्ते । रास्ते में थोडा उपर जाने पर नीचे की घाटी का सुंदर नजारा दिखता और उपर की ओर देखो तो बर्फ से ढकी चोटियां । मन कर रहा था कि बस हम जल्दी से जल्दी उस बर्फ की चोटी तक पहुंच जायें । पर जितना हम जल्दी सोच रहे थे उतनी ही देर हो रही थी क्योंकि जगह जगह जाम लग जाता था और गाडिया रोककर लोग उस जाम का भी लुत्फ उठाने लगते थे । जैसे ही कहीं जाम लगता लोग गाडिया रूकते ही बाहर निकलते और कैमरो की लाइटे चमकने लगती ।
इस पूरी यात्रा में सिर्फ यहीं पर मैने अपनी गाडी जो कि काले रंग की बोलेरो थी का भी फोटो लिया जो आप देखेंगे । रास्ते में कुछ दूर तक तो चाय और मैगी मिली उसके बाद आधे रास्ते में जाकर एक जगह आयी जहां पर चार पांच होटल वगैरा थे जिन पर खाना मिल रहा था । इसके बाद रोहतांग तक कोई होटल या खाना वगैरा नही था । और यहां खाना तो खाना चाय पीना भी बडा मुश्किल था वो भी 15 रू की थी । हम ये सोचकर नही चले थे कि खाना नही होगा आगे पर हमारी गाडी में सेब की पेटी रखी थी और बच्चो को कहने की जरूरत नही थी कि कब खाओ । रोहतांग जाने और आने में एक पेटी सेब खाये गये थे ।
रास्ते में जाम की वजह रास्ते का बनना भी था । जगह जगह मजदूर लगे थे और मशीने । रास्ते को चौडा किया जा रहा था और इसलिये जगह जगह जाम लग जाता था । आर्मी की गाडिया तेा जब निकलती तो 40—50 एक साथ निकलती थी । पर रास्ता इतना खराब हो चुका था कि एक जगह तो हमारी गाडी का फटटा ही टूट गया । वो तो शुक्र था कि ड्राइवर ने बताया कि इसमे दो होते हैं इसलिये मै धीरे धीरे ले जाउंगा जैसे जैसे हम उपर की ओर जा रहे थे वैसे वैसे ठंड बढती जा रही थी ।
वैसे मजे की बात ये थी कि चटकीली धूप निकली हुई थी पर धूप का तो जैसे ना तो कोई असर था और ना ही कुछ फर्क पडता था । ठंड ऐसी थी कि आधे रास्ते के बाद तो बच्चो और महिलाओ ने गाडी से बाहर जाम मे भी निकलने को मना कर दिया और गाडी के शीशे चढा लिये । जाम का फायदा कुछ और लोग भी उठा रहे थे जो कि जहां भी जाम लगता वहीं पर केसर और शिलाजीत बेचने पहुंच जाते । जाम में फंसे लोगो को फोटो खींचने के अलावा एक और काम मिल जाता । फिर सौदेबाजी होने लगती और भीड जमा हो जाती । कुछ लोग खरीद पाते और कुछ के खरीदने से पहले ही जाम में लगी गाडिया चलने लगती और लोग उन्हे छोडकर अपनी गाडी की ओर भाग पडते और वे केसर बेचने वाले गाडी के साथ साथ अपना बाकी बचा सौदा पूरा करने के लिये