masoori ,uttrakhand मसूरी पहाडो की रानी

मित्रो आप सबने मेरी पहली यात्रा को जो रेस्पांस दिया उसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद । पिछली यात्रा इतनी रोमांचक और मजेदार रही कि हमारा मन आगे भी...

मित्रो आप सबने मेरी पहली यात्रा को जो रेस्पांस दिया उसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद । पिछली यात्रा इतनी रोमांचक और मजेदार रही कि हमारा मन आगे भी जाने के लिये किया तो अगले साल वही दिन थे कांवड यात्रा के छुटिटया पड गई थी और फिर से प्रोग्राम बनने लगे थे । चारो मित्रो ने फिर से प्रोग्राम बनाया इस बार गंगोत्री होते हुए केदारनाथ जाने का । तारीख तय हो गई । समय तय हो गया । वही चार आदमी मै , आशु, अंकित और जितेन्द्र । वही दो बाइक एक मेरी टीवीएस विक्टर और आशु की बजाज बाक्सर ।

KEDARNATH YATRA-

मसूरी झील में बोटिंग
ये जलमुर्गियां मसूरी झील में मिलती हैं

मसूरी झील
जाने के ठीक एक दिन पहले पता चला कि जितेन्द्र नही जा रहा है । अब क्या करें तो यहां से शुरूआत हुई मेरी धर्मपत्नी लवी त्यागी की मेरे साथ यात्रा की । जब बना बनाया प्रोग्राम बिगड जाये तो बडा दुख होता है सारी तैयारियां धरी की धरी रह गई थी अचानक मुझे उदास देखकर धर्मपत्नी जी बोली अजी कोई नही मिल रहा तो मै चलती हूं आपके साथ । मैने एक बार जरा गौर से देखा फिर पूछा 1200 किलोमीटर का सफर होगा कम से कम । रोज 200 से उपर चलना चल सकोगी ? जब जबाब कई बार पूछने के बाद भी हां रहा तो मैने भी सोचा यार देख लेते हैं एक बार । ज्यादा से ज्यादा क्या होगा ? अगर ज्यादा परेशानी आयी तो वापिस चल देंगे वहीं से ।
गांधी चौक पर गांधी जी की प्रतिमा रात में
होटल की खिडकी से पहाडो की रानी
मेरी सबसे पहली यात्रा का फोटो नोकिया 6600 से

सन 2005 के लगभग के फोटो हैं
तो मैडम जी ने तो पैकिंग शुरू कर दी और गर्म कपडे , मोजे , गर्म टोपा , मफलर पता नही क्या क्या रखने लगी । मैने बहुत समझाया अरे बहुत ठंड नही है वहां बिना वजह क्यों परेशान हो रही हो । नही मानी दवाईया भी सारी और तो और बैन्डेड , बीटाडीन और पटिटयां भी । खैर चल दिये जी अपने तय टाइम पर और सुबह 6 बजे निकले तो सबसे पहले मसूरी पहुंचे । मसूरी मेरे घर से 200 किमी0 पडता है । पांच घंटे में पहुंच गये और लगे घूमने । इससे पहले मै आपको बताना चाहता हूं कि हमारी यात्रा का रूट क्या था । वो इस तरह था कि पहले मसूरी — धनौल्टी — टिहरी—उत्तरकाशी— गंगोत्री —उत्तरकाशी —केदारनाथ —ऋषिकेश होते हुए घर । तो इस रूट के सबसे पहले पडाव मसूरी में हम पहुंचे और ये पहली बार नही था कि हम चारो में से कोई भी पहली बार मसूरी आया हो । मै और धर्मपत्नी जी शादी के बाद इस यात्रा से पहले भी तीन चार बार मसूरी आ चुके थे पर वो जब भी मेरे साथ आयी तो कार से आयी । मसूरी हमारे घर के इतना पास है कि जब भी छुटटी में घूमने का या गर्मियो की ठंड से बचने का मन करे तो पहुंच जाओ मसूरी । लेकिन जब भी मसूरी जाते हैं हर बार कुछ न कुछ नया सा लगता है । मसूरी दिल्ली से लगभग 290 किमी0 और देहरादून से 35 किमी0 है । मसूरी को पहाडो की रानी कहा जाता है । दिल्लीवासियो की ये जद में आती है कि अगर वीकेंड मनाना हो तो रात में बैठो सुबह तक मसूरी पहुंच जाओगे । दिल्ली से देहरादून के लिये बहुत सारी बसे 24 घंटे की सेवा में देहरादून के लिये चलती हैं और अगर आप देहरादून पहूंच जाओ तो वहां से टैक्सी और बसो की कोई कमी नही है मसूरी जाने के लिये । मसूरी समुद्र तल से 2000 मी0 की उंचाई पर है । ये मै वहां की बात कर रहा हूं जहां मसूरी शहर शुरू होता है । वैसेशहर में इससे भी कई उंची चोटियां हैं जो 3000 मी0 तक हैं ।
सुबह सवेरे

पहाडो में बसा शहर
शाम का एक दृश्य
यहां का मौसम बडा मस्त है । पता ही नही लगता कि कब बारिश होने लगे । कब रूक जाये कोई नही जानता । कई लोगो से मैने सुना कि यहां बारिश ज्यादा लंबी नही होती पर मैने खुद देखा कि दो दो दिन तक बारिश नही रूकी । आखिरकार बारिश में ही चलना पडा । मैने कई बार मसूरी की यात्रा की है तो सोच रहा था कि कौन सी लिखूं फिर मैने सभी के फोटो पुराने से नये तक के निकाले । मसूरी शहर 1820 में बसना शुरू हुआ था । ब्रिटिश सेना के कैप्टन यंग ने बताते हैं कि यहां सबसे पहले आशियाना बनाया था । अंग्रेज हमेशा से ठंडी जगहो की तलाश में रहते थे । जब से मसूरी बसा है तभी से लोगो के आकर्षण का केन्द्र रहा है । सदिया गुजरती गयी और मसूरी का आर्कषण बढता गया । गढवाल मंडल में बसे इस शहर को देखने लाखो सैलानी देश विदेश से सालाना आते हैं और किताबो और इंटरनेट पर पता नही कितना कुछ लिखा गया है इसके बारे में । मुझे याद है कि मेरे पांचवी तक के स्कूल में अंग्रेजी की किताब में एक पाठ था मसूरी के बारे में । जिसमें एक बच्चा बताता है स्कूल खुलने के बाद में अपने दोस्तो को बातचीत में कि मै मसूरी घूमने गया था औ वहां कैम्पटी फाल देखा । वो पाठ आज भी याद आ जाता है ।
गांधी चौक से नीचे का नजारा
होटल की सुबह
रास्ते में रूक रूक कर नजारेा का आनंद लो
अंग्रेजो ने इस शहर को खोजा और बसाया तो आज भी उनकी छाप इस शहर पर देखी जा सकती है । कंपनी गार्डन जो अब म्युनिसिपल गार्डन बन गया है और माल रोड पर आज भी अंग्रेजो की याद आती है । यहां अब भी शाम को लोगो के पैदल घूमने के लिये रोड बंद हो जाती है । अगर गाडी ले जानी हो माल रोड पर तो 100 रू टिकट लगता है । यहां के पहाडो में मंसूर नाम का पौधा पाया जाता है उसी के नाम पर मसूरी पडा । इसे देहरादून की छत भी कहते हैं । लंढौर बाजार यहां सबसे पहले बसा । देहरादून से मसूरी आने का रास्ता बडा सुहाना है । रास्ते में एक जगह 6 किमी0 पहले एक मानव निर्मित कृत्रिम झील बनाई गयी है जिसमें बोटिंग का मजा लिया जा सकता है । गोल गोल और सांप की तरह या कहो कि नागिन की तरह लहराती सडको पर दिमाग घूम जाता है गाडी के घूमने से और फिर जिसके पास अपनी गाडी या बाइक हो वो तो कहीं भी रूक जाता है । लोग छुटिटयां बिताने आते हैं ऐसी जगहो पर तो उनके पास समय की कोई कमी तो होती नही जहां भी कोई मनोरंजन का साधन देखा वहीं रूक जाते हैं । ऐसे ही रास्ते में लाल बहादूर शास्त्री राष्ट्रीय एकेडमी पडती है जहां मैने सुना है कि नये नये आई ए एस और आई पी एस अफसरो को ट्रेनिंग दी जाती है । मसूरी आने के लिये हवाई मार्ग भी पास में देहरादून में जौलीग्रांट है । और ट्रेन से भी देहरादून तक आ सकते हैं ।
लाल ​टिब्बा से .........
चीड और देवदार के पेड
लाल टिब्बा की दूरबीन
मसूरी में इतना सब कुछ है पर फिर भी कभी भी मसूरी किसी भी राज्य की ग्रीष्माकालीन राजधानी नही रही जैसे शिमला और जम्मू कश्मीर मे कश्मीर । मसूरी में माल रोड बहुत महंगी है और माल रोड पर ही ज्यादातर रौनक है । तीन साल तक मै लगातार गया और गांधी चौक पर पहुंचकर गाडी रोकी । माल रोड घूमी और गन हिल तक जाकर वापिस आ गया । गन हिल से आगे कुछ दूर पर दुकाने खत्म हो जाती हैं तो हमने सोचा कि बस माल रोड यहीं है । वो तो भला हो कुछ पुलिस वालो का जिन्होने एक बार हमारी बाइक कांवड के सीजन में कई किलोमीटर लगभग 20 किमी0 पहले रूकवा दी ।अब हमें जाना तो था ही मसूरी सो बाइक वहीं एक दूकान पर खडी की और बस में बैठकर आ गये मसूरी तो बस ने दो किलोमीटर पहले जो तिराहा आता है वहां से गांधी चौक वाली सडक की बजाय दूसरी सडक को टर्न लिया । हम देख रहे थे कि कहीं गलत बस में तो नही बैठ गये । दो किलोमीटर बाद बस रूकी और हम उतरे तो गांधी चौक के नीचे जितना बडा ही बस स्टैंड और टैक्सी स्टैंड वहां भी था तब हमें पता चला कि ये दूसरी साइड है और यहां से कुलडी बाजार होते हुए पूरे 3 किमी0 की माल रोड की राइड है । जिसके एक किनारे पर गांधी चौक है । ऐसा मानो कि बहुत सारे पहाडो के बीच में एक बहुत और सबसे उंचा पहाड जिसकी चोटी बहुत दूर तक लम्बी और उंची गई है और आप उससे दोनो ओर देख सकते हो आजकल कांवड के सीजन में कांवड की ड्रैस पहने आदमियो की एंट्री नही होती क्योंकि कांवडिये के भेष् में कुछ लोग भूल जाते हैं कि उन्होने कौन सा रंग पहना है और मां बेटी बहन वाले होने के बावजूद राक्षसो की तरह वहां आये हुए परिवारो की महिलाओ की बेइज्जती करते हैं । अगर कोई पुलिस वाला कुछ कहता है तो रौब भोले का कि मुझको छेडोगे तो सारे कांवडिये बवाल मचा देंगे । इससे मसूरी का पर्यटन निशाने पर आ गया था सो वहां के प्रशासन ने डाक और बाइक कार वाले किसी भी कांवडियो की शिवरात्रि से तीन दिन पहले एंट्री बंद कर दी है । मेरी नजर में सही भी है । मसूरी का नजारा अगर रात में देहरादून से देखो तो ऐसा लगता है जैसे तारो भरी रात हो और अगर देहरादून से मसूरी देखो तेा वो भी इससे सुंदर लगता है । मसूरी में अक्सर बारिश होती है आप कभी भी जाओ तो देखना कि नीचे दून घाटी में अक्सर धूप निकली होगी तो मसूरी में बादल छाये होंगे और कई बार तो रास्ते में इतना कोहरा होता है कि रास्ता दिखाई देना बंद हो जाता है । बडा ही मनोरम दृश्य है मसूरी का तभी तो गर्मीया आते ही मैदानी इलाको से लोग मसूरी की ओर भागना शुरू कर देते हैं । बडे बडे सैलीब्रिटी भी यहां आते रहते हैं जैसे सचिन ,धोनी और बहुत सारे फिल्म स्टार आदि ।
अजी सुनते हो ?
क्या है ?
मुझे पहाडी ड्रैस में फोटो खिंचवानी है

नवविवाहित जोडो के लिये तो ये स्वर्ग है अक्सर माल रोड पर नवविवाहित जोडे जो हनीमून मनाने आते हैं देखा जा सकता है और कुछ तो उनमें से बिलकुल बेशर्मी का व्यवहार करते हैं । इसे देखकर मुझे वो गाना याद आता है देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान यहां आकर आदमी फैशनेबल हो जाता है गांव की सीधी सादी औरते भी यहां आकर जींस और टाप पहनकर अपना अरमान पूरा कर लेती हैं जिन्हे संयुक्त परिवार में ऐसा करने का मौका नही मिल पाता । यहां फैशन में लोग भुटटे खाते हैं वो भी 20 रू का । पूरी ठंड में आइसक्रीम खाते हैं । शापिंग के लिये टूट पडते हैं हमने भी कमरा ढूंढना शुरू कर दिया । जब भी हम कहीं घूमने जाते हैं तो रूकने वाली जगह पर कमरा पहले ही ले लेते हैं क्योंकि ये अनुभव की बात है कि आपको अक्सर होटल का चेक आउट टाइम 10 या 12 बजे होता है । यानि की अगर आप आज सुबह 10 बजे कमरा लोगे तो भी और रात को 12 बजे कमरा लेागे तो भी किराया तो उतना ही लगना है तो क्यूं ना अभी लेकर अपना सामान रखो और फ्रेश होकर घूमने चलो सो हमने भी कमरा ढूंढना शुरू कर दिया और बडी मुश्किल से 700 रू में कमरे मिले । दो कमरे ले लिये और सामान रखकर घूमने निकल पडे । बाइक का पहाडो में अपना ही एक फायदा है । होटल अगर ढूंढना पड जाये तो एक समस्या से सबको दो चार होना पडता है कि कभी कई मंजिल नीचे और कभी कई मंजिल उपर जाना पडता है कमरा देखने के लिये । दूसरी बात बाइक को उंचाई पर भी ले जा सकते हो जहां गाडी में बैठे बैठे नही जा सकते । जब हम पहली बार मसूरी गये थे तो रास्ते में रूककर हर मोड पर हमारा मन करता था कि फोटो खींचने को और वो हमने किया भी ।


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